महत्त्वपूर्ण किन्तु विस्मृत साहित्यरथी: फजलुर रहमान हाशमी (1942–2011)

स्मृतिदिवसपर श्रद्धास्मरण

फजलुर रहमान हाशमीक दीर्घ सान्निध्यक अवसर तँ नहि भेटि सकल, मुदा अ’ढ़सँ आ ग’रसँ देखैत अयलियनि। करीब चालिस वर्षक परिचय छल। परिचय बड़ कम दिन औपचारिक रहल, किछुए दिनक बाद ओ अनौपचारिक बना लेलनि। माने, हमर एक चिट्ठीपर ओ तीन चिट्ठी लिखथि, कथंकदाच पहिने पटना आ बादमे दरभंगा आबथि तँ पूर्व सूचना द’ देथि, डेरा पहुँचि भेट देबाक कृपा करथि, एक वा दू राति, बहुत आग्रहपर अँटकलो रहथि। हृदयक निर्मल, अन्तर्मुखी, मितभाषी रहथि, खाली मैथिली सम्बन्धी गप करथि।

1973 क शुरूमे ‘मिथिला मिहिर’मे गेलहुँ तँ कने बेसिए उत्साहित भ’ नव-पुरान लेखक सभकेँ अपन ढंगे पत्रिकासँ जोड़’ लगलहुँ। प्रतिष्ठित लेखकवृन्दकेँ तँ पहिनो रचना लेल पत्र जाइन, नव लेखक मुदा ताहि दिन ई अपेक्षा नहि क’ सकै छला जे ‘मिहिर’सँ हुनका पत्र अबितनि। हुनका लोकनि लेल मिहिर ‘किला’ रहनि, तकरा हम ‘कॉमन रूम’ बनब’ चाहैत रही। ताहि हेतु नवो लेखककेँ अनुकूल रचना लेल पत्र देब’ लागल रहियनि। हुनका लोकनि लेल ई कल्पनातीत रहनि। हाशमीजीकेँ सेहो हमर पत्र पहुँचल छल होयतनि। तकर बाद हुनक पत्र आब’ लागल। कविता तँ ओ अव्याहत पठबथि। हमर आग्रहपर किछु गद्यो लिखलनि– कथा, निबन्ध, टिप्पणी इत्यादि। किछु छपलनि, किछु नहियोँ छपल होइन, से सम्भव।

जतेक ओ लिखलनि, तकर अनुपातमे छपलनि थोड़, संगृहीत तँ नगण्य भेलनि। जयकान्त बाबूक सौजन्येँ एक कविता-पुस्तिका ‘निर्मोही’। ‘हरबाहक बेटी’ (1977), जकरा ओ खण्डकाव्य कहलनि, सेहो क्षीणकाय। एकर अतिरिक्त, कविता-संकलनक पाँच-दस पोथीमे गोटेक-आधेक कविता हिनको। एतद्धि। पत्र-पत्रिकामे छिड़िआयल बहुत होयतनि, ताहिसँ बेसी घरमे लिखल-पड़ल।
गद्यक तीन टा पोथी छपल छनि, तीनू अनुवादे, तीनू साहित्य अकादेमी द्वारा। मीर तकी मीर (1987) तथा फिराक गोरखपुरी (2001) विनिबन्ध। अबुल कलाम आजाद (1995)– जीवनचरित।

डॉ.सुरेश्वर झाक संयोजकत्व (1993 — 97) मे गठित साहित्य अकादेमीक मैथिली परामर्शी मण्डलक एक सदस्य ईहो मनोनीत भेल रहथि। सम्पूर्ण अवधिमे ओकर जतेक बैसक भेलैक, सभ बेर पत्र लिखि अवश्य पुछैत छलाह जे कोनो काज अछि तँ कहू, किछुओ कहू। ई भिन्न बात जे हमरा कोनो काज नहि पड़ल।

लिखलनि हिन्दी आ उर्दुओमे। पोथी सभसँ पहिने छपौलनि हिन्दिएमे ‘रश्मिरथी’ नामसँ। मुदा, लगले बाट बदलि लेलनि, मैथिलीमे आबि गेलाह।

साहित्यकार ई असली छलाह, सुच्चा। कतेक छपल छनि से महत्त्वक नहि, उल्लेखनीय थिक मैथिलीक प्रति हिनक भावना, हिनक दर्द, हिनक समर्पण, एकरा मातृभाषाक रूपमे ग्रहण। ई ताहि क्षेत्रक छलाह जे प्रख्यात लेखक प्रो. राधाकृष्ण चौधरीक कर्मभूमि तथा ‘चाणक्य’ महाकाव्यक यशस्वी रचयिता कविवर दीनानाथ पाठक ‘बन्धु’, दिवाकर शास्त्री, चन्द्रकान्त झा ‘नवेन्दु’, कीर्त्ति नारायण मिश्र, डॉ. रवीन्द्र राकेशक जन्मभूमिक गौरव प्राप्त कयने अछि। स्थायी निवासी प्रदीप बिहारी ओ मेनका मल्लिक एखनहुँ ओत’ मैथिली-दीपक टेमी उसका रहल छथि। एकर अछैतो, संकीर्ण भाषायी राजनीतिक चलते, जेना चाही, मैथिली तेहन खिलखिला नहि रहल अछि। मैथिली लेल एकरा ‘अनुकूल स्थिति’ नहि कहल जा सकैछ। तेहना ठाम गौरवपूर्वक मैथिलीक नाम ल’क’ अड़ब, एकरा महत्तर सिद्ध करब, स्थानीय नव लेखकमे मिथिलाक साहित्यिक उत्कर्षक भावना भरब– ई बड़का सेवा थिक, साहित्य-लेखनसँ पैघ तँ अबस्से। हम तँ कहब जे जे काज मधुबनी-दरभंगामे किरणजी कहियो कयलनि, सुपौल-सहरसामे किसुनजी कहियो कयलनि, सैह काज बेगूसराय- खगड़ियामे हाशमीजी एम्हर क’ रहल छलाह।

हाशमीजी मैथिली साहित्यकारक अपेक्षा मैथिली एक्टिभिस्टक रूपमे हमर हृदयमे अधिक ऊँच आसनपर बैसल छथि। साहित्यकारक रूपमे, जेना पहिने कहने छी, सुच्चा तँ छलाहे। हुनक निधनसँ साहित्यकेँ जे क्षति भेल होउक, से भेलैक अछि, आ थोड़ क्षति नहि भेलैक अछि, मुदा मिथिलाक दक्षिणांचलमे जे एक भूमिपुत्र जुझारू नेता-कार्यकर्ताक हठात् अभाव भ’ गेलैक अछि, तकर पूर्ति कहिया होयतैक, आइ के कहत ?

परिवार जमींदारक छलनि, मुदा स्वयं मध्यवर्गीय छलाह। प्रमाणपत्रमे जन्मतिथि एक जनवरी 1942 अंकित रहनि। प्राथमिक- माध्यमिक विद्यालयक शिक्षक रहथि। घर रहनि बेगूसराय जिलाक भवानन्दपुर (मुजफरा), पोस्ट पानापुर। सखापातसँ भरल-पुरल– पाँच बालक, पाँच कन्या। किन्तु, घर-परिवारमे, चाकरी- कृषिकार्यमे ओझरायल नहि रहि कलमकेँ सधलनि, मैथिलीकेँ गहलनि आ जिलाक ‘व्यक्तित्व’ बनि गेलाह, वृहत्तर इलाकामे प्रख्यात भ’ गेलाह, बुद्धिजीवीवर्गमे आदरणीय स्थान पौलनि, मैथिली संसारक रत्न मानल जाय लगलाह। 1996 मे ‘अबुल कलाम आजाद’ पोथीपर प्रतिष्ठित साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कारसँ सम्मानित भेलाह । कह’ पड़ैछ, एहि सभक अधिकारी ई छलाहो। दिनांक 20 जुलाइ 2011क उषाकालमे अल्लाक प्यारा- दुलरुआ बनि गेलाह।

हमरा प्रति हिनक आबेस कने बेसिए रहलनि बराबरि। यदाकदा पत्र लिखथि। एक बेर एक दैनिक अखबार ‘कुबेर टाइम्स’क चारि मइ 1997 (रवि)क एक पूरा पन्ना पठा देलनि। ओ दिल्लीसँ प्रकाशित होइत छैक। ओहि अंकमे छठम पृष्ठपर हिनक एक साक्षात्कार छपल छलनि, जे ए. आर. आजाद द्वारा लेल गेल छल। ओहि अंककेँ ओरियाक’ रखने छी। हिनक साक्षात्कारक मैथिली रूपान्तर एहि विश्वाससँ द’ रहल छी जे हिनका एहि माध्यमे अपना लोकनि आर गहीँरसँ चिन्हबनि। ओ की छलाह, कतेक महान् छलाह, केहन उदात्त विचारक छलाह– से जनबनि। आ आइ हुनक परोक्ष भेने केहन उदार आ आत्मीय व्यक्तित्वक अभाव भ’ गेल अछि आ ओ अभाव कतेक ‘गम्भीर’ अछि, तकर अनुभव करब।

ए.आर.आजाद: अपने पहिल रचना कोन भाषा आ विधामे कयने रही ? तकर कारण आ आधार की छल ?
फ.र.हाशमी: हमरो संग आदिकवि वाल्मीकिवला घटना कोनो-ने-कोनो रूपमे अछि। आदिकवि क्रौंचवधसँ प्रभावित भ’ ‘मा निषाद…’क उच्चारण कयने रहथि। हमर विपत्ति ई थिक जे 1952 क आवधिमे हमर पड़ोसीगण पाकिस्तान जाय लगलाह, से सुरक्षाक दृष्टिएँ, कारण जे ओसभ भारतमे हिन्दूसँ खतरा मानैत रहथि। हमर बाबूजी डॉ. समीम उद्दीन फातमीसँ सेहो देश छोड़बा ले’ कहल गेलनि। मुदा ओ राजी नहि भेलथिन। हम अपन नाना (मौलाना शाफिक)क भाषण एक दिन सुनने रही। ओ कहने रहथिन ‘खुदा दुनियाँक मालिक थिका’। हमरा लागल जे किएक ई लोकनि पाकिस्तान सुरक्षाक दृष्टिएँ जा रहल छथि, जखन कि खुदा दुनियाँक मालिक थिका ? जे भारतक खुदा छथि सैह तँ पाकिस्तानोक छथि। ओही काल दस वर्षक उमेरमे हमर मुँहसँ शेरक किछु पाँती बहरा गेल, जकर एक्के चरण मन अछि। ओ थिक–
“मुल्क दो है तो क्या खुदा भी दो हैं?
यह न सोचा के चले जाते हैं
छोड़े घर-दरा।”

सत्ते कहै छी, ओहि दिन हम खूब कानल रही। तकर अनेक वर्षक बाद फेर तहिया हमर आँखि भीजि गेल जहिया ई सुनलहुँ जे ओ सभ गोटे पाकिस्तानमे मुसलमानेक हाथेँ मारल गेलाह।

आजाद: मैथिली कहियासँ लिख’ लगलहुँ ? एहि भाषासँ कोना प्रभावित भेलहुँ ?
हाशमी: जखन दुइए मासक रही, तहिए सभ दिन ले’ पैतृक (बराह,पटना)केँ छोड़ि मातृक (मुजफरा) आबि गेलहुँ। आठ वर्षक भेलहुँ तँ माय चल गेली। एकमात्र सन्तान होयबाक कारणे हमरा हुनक सम्पत्तिमे बारह आना मालिकाना हक भेटल, जाहिमे जमीन्दारी आ जमीनो छल। हमरा भेल जे मायक सम्पत्तिक संग मायक भाषाकेँ सेहो अपनयबाक चाही, आ हम 1960 सँ मैथिलीमे लिख’ लगलहुँ।
आजाद: किछु अखबार आ लोक अपनेकेँ मैथिलीमे साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार प्राप्त कर’वला भारतक पहिल मुसलमान कहलनि अछि ?
हाशमी: अरे ! अपना ओहि ठाम अतिशयोक्तियो तेहने अछि आ हीनोक्तियो तेहने। श्रीकृष्ण पहाड़ उठा लेलनि तँ हुनक नाम गिरिधर सैह ने होयबाक चाही, मुदा लोक एहन जे हुनका मुरलीधरो कहिते रहि गेलनि। हमरो संग बस सैह बुझू। विश्वास करू, हम भारतेक नहि, सौँसे संसारक एहि मामिलामे पहिल मुसलमान थिकहुँ।
आजाद: अपनेक मैथिली लेखनपर मुसलमान प्रशंसा अधिक कयलनि की विरोध ?
हाशमी: सौँसे मिथिलामे प्रशंसा भेल। मिथिलाक बाहरो लोकक मनमे आदरक भाव छैक। कारण, मुसलमान जन्मजात ईमानदार आ सेक्युलर होइत अछि। हमरा लेल ई प्रशंसा आ गर्वक विषय थिक जे हमरा लोकनिक मुफ्ती आजम, भारत-गौरव जनाब हजरत डॉ. मुफ्ती मुहम्मद मुकर्म अहमद साहेब मदजिलहुल शाही इमाम फतेहपुरी मस्जिदक आशीर्वाद प्राप्त अछि। अपना ओहि ठामक डॉ. नबाब, डॉ. अब्दुल मोगनी, मजहर इमाम प्रभृति मैथिलीविरोधी नहि छथि। ई सत्य जे बेगूसरायक एक्के परिवारक दू गोटे हमर कसिक’ निन्दा कयलनि आ हमर मैथिली लेखनमे तथा आकाशवाणी- दूरदर्शनसँ राम-कृष्णक नाम लेलापर भारी विरोध कयलनि आ पत्रो लिखबौलनि। सलमान रशदी एवं तसलीमा नसरीनक पाँतीमे हमरो ठाढ़ करबाक चेष्टा कयलनि। खुदाक शुक्र जे हुनक बात बेगूसरायमे चललनि नहि।
आजाद: मातृभाषाक वरीयता की इस्लामिक दृष्टिएँ सेहो छैक ?
हाशमी: मातृभाषाक महत्त्व तँ ईश्वरो दैत छथिन। श्रुतिग्रन्थ (आसमानी किताब) पर ध्यान दी तँ ई स्पष्ट भ’ जायत जे सोहफे इब्राहीम, जबूर, तौरेत, इंजील एवं कुरआन पाकक भाषा भिन्न-भिन्न छैक। से किएक छैक ?
असलमे बात ई छलै जे ईश्वरकेँ जत’ उपदेश देबाक छलनि, ताहि ठामक अनुरूप भाषाकेँ चुनलनि, जाहिसँ ईशसन्देशकेँ ईशदूत मानि अपन अनुयायीक बीच सहजतापूर्वक परचारल जा सकय। हम तँ मैथिलीमे कुरआन पाक आ हदीश शरीफकेँ सेहो आन’ चाहैत छी। एकरा इस्लाम आ मुसलमानक शानक खिलाफ नहि मानल जाय। भाषा कहियो धर्मक छहरदेबालीमे बन्द नहि रहल अछि।
आजाद: मैथिलीक सन्दर्भ ल’क’ मुसलमानकेँ अपने की कह’ चाहब ?
हाशमी: बंगाली मुसलमानक भाषा बंगला, असमी मुसलमानक भाषा असमिया, उड़ीसाक मुसलमानक भाषा उड़िया, कर्नाटकक मुसलमानक भाषा कन्नड़, आन्ध्रक मुसलमानक भाषा तेलगू जखन भ’ सकैत छैक तँ मिथिलाक मुसलमानक भाषा मैथिली किएक ने होयत ?
हम मिथिलाक मुसलमानसँ अपील कर’ चाहब जे ओसभ एहिपर शान्त चित्तसँ सोचथि। मैथिली लेल आगाँ आबथि। सत्ता, सम्पत्ति, जमीन्दारी सभकिछु मुसलमानक हाथसँ निकलि गेल अछि, आब जँ ईमान सेहो चल जायत तँ बचल की रहत ?
आजाद: मैथिलीक कोन-कोन रचनाकारसँ अपने प्रभावित छी ?
हाशमी: डॉ. भीमनाथ झा, जे ‘मिथिला मिहिर’क कार्यकाल धरि पत्र लिखि आ पारिश्रमिक द’क’ प्रोत्साहित कयलनि। सोमदेवजी सेहो बराबरि पत्र लिखि प्रोत्साहित कयलनि। बेगूसरायक प्रथम जिलाधिकारी श्री मन्त्रेश्वर झाक आगमनसँ सम्पूर्ण जिला साहित्यमय भ’ गेल छल। ओ स्वयं तीन भाषा मैथिली, हिन्दी, अङरेजीक लेखक रहथि। ओ हमरा बहुत प्रेरित कयलनि। हुनक आलोकसँ हिन्दी, मैथिली आ ऊर्दू तीनू भाषा जगमगा उठल। हम श्री मन्त्रेश्वर झाक आभारी छियनि। दूरदृष्टि, विशाल दृष्टि, स्वच्छ हृदय आब स्वप्नवत अछि, मुदा हुनक लेसल दीप आइयो बरैत अछि। वर्तमान जिलाधिकारी श्री विमलकीर्ति सिंह सेहो साहित्यानुरागी छथि। डॉ. जयकान्त मिश्र हमर पोथी ‘निर्मोही’क प्रकाशन क’ पटनामे विशाल विमोचन समारोह आयोजित कयलनि, जाहिसँ हमर उत्साह बढ़ल। हम मधुप, किरण, सुधांशु शेखर चौधरी, मोहन, हरिमोहन झा, आरसी प्रसाद सिंह, कुमुद विद्यालंकार आदिक प्रति आभार प्रगट करैत सर्वश्री सुमन, अमर, मिथिला मिहिर परिवार, मैथिली आ मिथिला दर्शन परिवार, वैदेही परिवार, डॉ. रामदेव झा, डॉ. सुरेश्वर झा, भाइ मोहन भारद्वाज, शेफालिका वर्मा, डॉ. प्रबोध नारायण सिंह, डॉ. अणिमा सिंह, डॉ. नीता झा आदि-आदिक प्रति कृतज्ञ छी।
आजाद: मैथिलीवलाक हेतु कोनो सन्देश ? हिन्दी आ उर्दूक प्रसंग सेहो किछु कह’ चाहब ?
हाशमी: हिन्दी अपन अनुजापर ध्यान राखय। ओ अपन विकास आन भाषाक विनाशपर नहि चाहय। उर्दूवला उर्दूकेँ मुसलमानक संग नहि जोड़थि। एहिसँ उर्दूक बड़ा भारी हानि होयत। मास्टर रामचन्दर, पं. चकबस्त, महादेव ‘आसी’, मनोहर सहाय ‘अनवर’, जोशमल सियानी, अर्शमल सियानी, फिराक गोरखपुरी, जयनारायण राज, प्रेमचन्द, कृष्णचन्दर, खुश्तर गिरामी, राजेन्द्र वेदी, सहर, डॉ. अमरनाथ झा आदि-आदिसँ सेहो उर्दूक सम्बन्ध छैक, जनिका गैरमुस्लिम सैह कहल जयतनि।
मैथिलीवला दूध-दही-माछे जकाँ पत्र-पत्रिको कीनिक’ पढ़थि। दैनिक अखबारो द’ सोचथि। संविधानक आठम अनुसूचीमे प्रवेश लेल जीतोड़ कोशिश करथि। पत्रिका युगक आकांक्षाक अनुरूप हो। मैथिली बजबामे हीनताबोध नहि होइन। साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित मैथिली पोथीसभकेँ अपन घरमे राखथि।
(07. 08. 2011)