बर्ष 2017क जुलाई-अगस्तक गप थिक । मैसेंजर पर कृष्णमोहन जीक मैसेज आयल । लिखल छल- “अहाँक पोथी हमरा घरमे अहाँक प्रतीक्षा क’ रहल अछि। अपन पता पठाबी।” ई पहिल गप छल हिनकासँ । तकर बाद बस पोथी प्राप्त भेल तकर सूचना पठेने रहियनि । लगले हैदराबाद शिफ्ट भ’ गेल रही तैं पूरा पोथी नै पढ़ल भेल छल । ई मुदा लगैत रहैत छल जे व्यक्ति एतेक सहजतासँ बिनु बेसी गपशपक एतेक आत्मीय संबंध बना सकैत छथि ओ हो ने हो कविता ठीके लिखैत हेताह ।
हम मानैत छी जे जँ व्यक्ति अपन चरित्र आ सामाजिक संबंध ठीक नै रखैत हो त’ ओ कतबो नीक लिखि लिये लेखक नै भ’ सकैत अछि । कहि भने लिये कियो अपनाकेँ ‘लेखक’। कतेको एहन उदाहरण देखल अछि जे घरमे माय/बहिन/पत्नी/बेटी आदि सभक कोनो मानि नै मुदा ‘स्त्री-विमर्श’ आ उत्कर्षक घनघोर सेनानी (?) । ई स्त्री आ पुरुष दुनू प्रकारक सेनानी(?) लेल देखबामे आयल अछि । खैर, से कहैत रही जे ओहि समय नै पढ़ि सकल रही ‘ग्लोबल गामसँ अबैत हकार’ । आइ पढ़लहुँ अछि । नीक संग्रह लागल ।
पूरा संग्रहक मूल स्वर लागल कविक गामसँ शेष होइत सरोकारक दुःख । कहल जा सकैछ जे संवेदनाक स्तरपर कृष्णमोहन जी गामक कवि छथि; माटिक कवि छथि । हिनक कविता सबमे जबरदस्ती गमैया शब्दक प्रयोग नै छनि । जे शब्द प्रयोग भेल अछि से एकदम कविक संग भीजल लगैत अछि । एकदम सहज, एकदम अनुकूल । किछु राजनीति केंद्रित कविता सब सेहो अछि जे कि निश्चय ध्यान घीचैत अछि। एकटा विशेषता विशेष रूपसँ आंनदित कयलक जे कृष्णमोहन जी कोमलताक संग विद्रोह करबाक विशिष्ट शिल्प रखैत छथि जे कि हिनका कविताकेँ ‘लाउड’ होबयसँ बचबैत छनि । हमर मानब अछि जे ‘लाउड’ होबय कविताक दुर्गुण अछि । एतय लाउड होयबासँ हमर अभिप्राय अनेरोक चिचियायब अछि । कतेको ठाम देखबामे अबैत अछि जे कवि अपन कवितामे जबरदस्ती कृत्रिम ‘क्रांति’ देखबैत छथि जखन कि कविता अंडरटोन किछु आओरे रहैत अछि ।
त’ से कहलहुँ जे जानि ने कियैक हमरा सब एखन धरि कृष्णमोहन जीक ओतेक भाषाई उपयोग नहि क’ सकलहुँ अछि जतेक ओ सहयोग द’ सकैत छथि । संग्रह कविता सभक चर्च एहि दुआरे नै कयल अछि जे आइ काल्हि पहिल पैरामे कविताक इतिहास, दोसरमे किछु समकालीन लेखक सभक नाम आ तेसरमे संग्रहक कविता सबकेँ अनावश्यक रूपसँ उद्धरित क’ चारिममे “हुनका पढ़ल जयबाक चाही” कहि पैघ-पैघ समीक्षा(?) लिखबाक चलनि खूब उफानपर अछि । हम निवेदन करब जे स्वंय पढ़ि कविता सबकेँ चेक करू जे हम झूठ त’ ने लिखलहुँ अछि हिनक मादे ।