डॉ. कमल मोहन चुन्नूक बीस गोट गजल

1.

दमड़ीक लोभे चाम घसेलहुँ, यैह होइ भाइ?
मूनल पौतीक नाग डसेलहुँ, यैह होइ भाइ?

अहाँक पएर पर आदर मे जे लोटै छल
तकरे गरदनि काटि खसेलहुँ, यैह होइ भाइ?

जकर आँखि वेश्यालय मदिरालय उगिलय
तकर साज लए राज बसेलहुँ, यैह होइ भाइ?

अनकर टोकना अनके जारनि बासन चूल्हि
मुहगर बनि क’ भात पसेलहुँ, यैह होइ भाइ?

कान्ह जकर चढ़ि छूलहुँ चान-तरेगन के
तकर माथ पाताल धसेलहुँ, यैह होइ भाइ?

जोगता थिक ढेलमाउस अहाँ लए नटबा सन
नेत-पानि सब धार भसेलहुँ, यैह होइ भाइ?

परगन्ना एकमुहरी हमर पराभव लेल
इरखे नकुसी कंठ कसेलहुँ, यैह होइ भाइ?

नाराक अन्हड़ झोंकि लोक केँ आन्हर गमि
राम-ठाम पर नाम हँसेलहुँ, यैह होइ भाइ?

हाथक कंगन देखा, सिंह सन जाल पसारि
दीन-हीन बनि फाँस फँसेलहुँ, यैह होइ भाइ?

2.

मुलुकक मनुक्ख आउर जकरा लए साग हइ।
आफत-असमानी सब ओकरे लए भाग हइ।।

तिरसुल कि पाथर के ढेपबाहि जँहि-तँहि
भारथ के हाँक’ लए ई कोन राग हइ ??

बीयरि स’ पीट-पाटि जकरा भगैबिती से
सिरमा मे चौपेतल आइयो ओ नाग हइ।।

अँतड़ी दुहलकौ ग’ धनियाँ बिदेसिया ई
उठै जो आँखि पोछ भोरका ई जाग हइ।।

थारी सँ मुह धरिक जतरा-सुतार हम
हमरे पसेना आ हमरे पर दाग हइ ??

खत्ता की हत्ता की महला-दुमहला की
लोके हइ धन-बीत लोके सोहाग हइ।।

बुढ़बा-बुढ़िया लागी एसगरुआ अंगना मे
जेहने अखाढ़-साओन तेहने ओ फाग हइ।।

सोना के आस तोड़ि लोल नितुआन केने
सजमनियाँ चार पर आइयो ओ काग हइ।।

आँखिए के सोझा मे नाचै सरूप दीब
घिचने हए कहिए स’ कोन एहेन ताग हइ ??

देखह मजूर भाइ मेथला दिस फेर स’
सितिया अभगली के यैह कलम-बाग हइ।।

3.

कोना-कोना क’ करै गोहरिया, की जानी?
हमरा लए भरि साल अन्हरिया, की जानी??

खेतक आरि सँ हाट-बजारक अपनैती
कहिया बनतै ई एकपेरिया, की जानी??

खून-पसेना उसरैग चललहुँ संतति लए
ओमहर राजा भरै बखरिया, की जानी??

साधु-महात्मा मस्त-मलंगी डंटा तर
राम-राज सपनौती हुँड़िया, की जानी??

कहै कहाँदन आर्य-भूमि दक्खल करतै
कत्ता बनलै मरनीक भरिया, की जानी??

बाबा पुरचुक सिका चढ़ौलनि चिनियाँ के
भार पठौलक बिख के पुरिया, की जानी??

बुद्धि-विवेकक अगबे दाबी दिल्ली के
तखन एते हिजड़ा संगतुरिया, की जानी??

जोगी रोगी भोगी सोगी दुनियाँ छै
एना कथी लए कटै अहुरिया, की जानी??

फ़तबा-उधबा उला-पका देखलक सगरो
शांति-सुनरकी बनत बहुरिया, की जानी??

एक किरिन हो एक पवन हो एक लहरि
सगर गाम हो एक इजोरिया, की जानी??

4.

बात-बेबस्थे भेली बेलल्ला।
हमरे बेर हइ ढोंढ़ी ढिल्ला??

पेटकट्टी स’ जिनगी खेपली
एहिना मरबै राम हौ अल्ला??

हमर घाम पर सब फरफैसी
हमर पेट बेर झिक्कम-झिल्ला??

हमर भोट ठकि दिल्ली ठेकलह
घरमूहाँ बेर भेली निठल्ला??

खूम केलह पैकारी हम्मर
तोरा लागी भारथ गल्ला।।

तेल चाउर के खेल खरतिया
केना हँतलहक बाँहिक सल्ला!!

गबर-गबर खेलकै गोरिया क’
गाबै बेरी तोबह-तिल्ला ??

अपना ओइजग जिद्द रोपै छा
हमरा ओइजग गल्लम-गुल्ला??

भलमानुस के खुनियाँ बोलि क’
फँसरी झिकलह दबलह कल्ला।।

रामेक देश मे राम निकलुआ
अपने गाम मे केलह तेहल्ला??

सीता-सोग बिसेलै ओकरा
सीरिया-हीन अजोधिया जिल्ला।।

दगधल जीवन चलती बेरिया
आब की बसनी की पनिसल्ला!!

राहु-गहन स’ घोर अन्हरिया
होतै कोना उगरासक पल्ला??

हीन अदिनता गबदी तोड़तै
जाबी तीड़ क’ करतै हल्ला??

हमरो पेट मे बात सड़ै हइ
कहिया होतै खुल्लम-खुल्ला??

5.

क्षोभ अपन पीबय चाहै छी
आर थोड़ेक लीबय चाहै छी

देखल भोगल अन्यायो लए
ठोर अपन सीबय चाहै छी

पुर-परिजन लए अग्नि-वृष्टि मे
मिसियो नहि भीजय चाहै छी

असली कुशल-छेम कुटमारे
नकली सन हीबय चाहै छी

ठकुरसोहाँती, क्लीब-जीव बनि
सुविधा मे रीझय चाहै छी

चलैत पानि, चलता बसात संग
बलजोरी जीबय चाहै छी

6.

आन केलक से जातिवाद आ क्षेत्रवाद छै
अहाँ करी तँ नव प्रयोग आ नव समाद छै

सगर शहर असुआएल भेटल बाणक सेजौट मे
गीरहे-गीरह घाव रोम-रोमहि मवाद छै

भरिदिनुका खरखाही क’ ओ घ’र घुरि रहल
अप्पन खाली हाथ देखि मन मे विषाद छै

बनिज, विकल्पक खेल, सूर्य सूपहि सँ झाँपल
ओकर गड़ी पर ऊमटाम कुंठाक लाद छै

बाँझ कोखि होइतैक द्वेष केर जन्म ने होइतै
दैवक थोपल वंश ताहु लए ई फसाद छै

झिज्झिरकोना-पारंगत केर अट्टहास मे
अँखिगरहे लए गरल, आँखि मे साओन-भाद छै

7.

सुखलो मुह पर अक्षय-निधि अभिमान अबै छै
सोझाँ मे जहिखन काबिल संतान अबै छै

पड़बा-पडुकी जखन उड़ै छै शंकरहित भ’
पाँखिक नीचाँ धरती आ असमान अबै छै

जनद्रोही भुजबली बनै छै जहलक पाहुन
न्याय-पुजेगरीक सिरजल जखन विधान अबै छै

काकी केर गुम्मीक विवशता तखन बुझै छी
कालनेमि सन कक्का जखने ध्यान अबै छै

फूसि गवाही, तदपि स्यमंतक कयल असूली
जखन कृष्ण केर इरखा मे सन्धान अबै छै

हाँसू खुरपी ह’र कोदारिक घाम सँ भीजल
हमरा लए निस दिन एहने भगवान अबै छै

8.

परहेजी एहि धूर्त्तनगर सँ, तेँ एसकर हम
असोथकित चिर अगर-मगर सँ, तेँ एसकर हम

हमर सीर हम्मर पुरखा आ नोत-पिहानी
जनकपुरी आ रामनगर सँ, तेँ एसकर हम

गाछ रोपि श्रम-सिंचन मे नहि कोनो कोताही
फरक याचना जेँ मतबर सँ, तेँ एसकर हम

नदीक कुभेला सँ पर्वत नहि रहत व्यथित, से
खिस्सा कहितए केओ अहगर सँ, तेँ एसकर हम

बापक घा लए, मायक नोर पोछय लए आतुर
सन्ततिओ होइतए कन्हगर सँ, तेँ एसकर हम

रपटि-झपटि दरबार किला कित्ता चतरबितहुँ
नहि सपठैती ओहि गहबर सँ, तेँ एसकर हम

एकदिसाह हुमचैत रहथि तैयो चुप रहलहुँ
घिरना छल मुहगर-कनगर सँ, तेँ एसकर हम

9.

च’प ओलाड़क भाँजक बिनु जे बहलमान छै
गाड़ी के उनटाय कहय ओ सावधान छै

माइजन अगुआ जाल-फरेबक मुकुट महंथी
पंचैती पाबनिओ तेँ तीरे-कमान छै

एक हाथ लुत्ती दोसरा मे छूरा धरगर
ओकरा लए अनकर घर गरदनि सब समान छै

कुश्तीए जक्कर बुत्ता हो तकरा छोडू
असिरबाद लए जे रकटल से पहलमान छै

खधिया बाहा पोखरि खत्ता हमरे हिस्सा
ओमहर सजल-धजल एखनो पुष्पक विमान छै

सीटल अजबारल परिभाषा नबका ओक्कर
जकरे तापी घूर सैह आइ भगिनमान छै

कहिया धरि शबरीक खोंइछ मे बैर ओगारब
सुदिन-दरस हो ओकरो से इच्छाभिमान छै

10.

नित खियाइ छै, से कहलहुँ
एकपबाइ छै, से कहलहुँ

चौबगली हो अक्षर-बरखा
तेँ घसाइ छै, से कहलहुँ

हीत-मीत की, मुद्दइयो लए
नित लुटाइ छै, से कहलहुँ

एकटा तागक मर्म निमाहैत
नहि जुड़ाइ छै, से कहलहुँ

नोर पोछनमा ई, एसकर मे
हिया नोराइ छै, से कहलहुँ

जकरा लए रोटी धरि बँटलक
सैह कसाइ छै, से कहलहुँ

ठुठ्ठ गाछ तर बिलमि हेरैए
कते पिसाइ छै, से कहलहुँ

शीत बसात मे ओकर आगि-दुख
नहि सेराइ छै, से कहलहुँ

स्वजनक स्वार्थी कुड़हरि देखितो
आँखि मुनाइ छै, से कहलहुँ

अन्हरायल सत्ता-लाठी सँ
चिर लड़ाइ छै, से कहलहुँ

धापक तर दुनियाँ आनय लए
ई चढ़ाइ छै, से कहलहुँ

अन्हर-बिर्रोक चाप मे तैयो
नहि उधियाइ छै, से कहलहुँ

अक्खज ओक्कर मनुख भितरिया
कहाँ पराइ छै, से कहलहुँ

ओकर जिनगी खर-खर आखर
काल्हि-आइ छै, से कहलहुँ

11.

गाम-गाम ई खुनियाँ खन्तर, पैघ बात नहि
बैदे बाँटथि बिखहा जन्तर, पैघ बात नहि

जहिया धरि सत्ता सिंहासन पूजित अर्चित
ऊँच-नीच केर मारुक अन्तर, पैघ बात नहि

गादि काछि क’ हमरा मुह पर फेकि देने छै
अपने चोभय छनुआँ-छन्तर, पैघ बात नहि

देश राज केर चाँकि छोड़ि नित करय बलंठी
तक्कर दुनियाँ घूम-घुमन्तर, पैघ बात नहि

मधु-मितभाषी लोकक आमद छै बरु दुर्लभ
छलिया जलिया बाज-बजन्तर, पैघ बात नहि

दामिनीक लेल दाओ, निर्भया लए जे हुलकय
सेहो ओगरय जन्तर-मन्तर, पैघ बात नहि

सोइरीए मे नोन चटा जे मारलक सीया
से बरनय नारी-मन-अन्तर, पैघ बात नहि

आनक चन्ना मांगि पसारत इजोत अंगना
मौढ़ी-मगजी हएत छुमन्तर, पैघ बात नहि

घरही भेल सरपंच, न्याय केर दोहाइ, तैयो
भुजरी-भुजरी परजा-तन्तर, पैघ बात नहि

12.

दू आँखि असल चाही, दू हाथ असल चाही
शोणित के करय खनहन, से बात असल चाही

श्रमटा जकर हो पूजी, घामे जकर चढ़ौना
तकरा मुहेँठ-मुसकी अफरात असल चाही

कतबा समुद्र नांघल, कतबा पहाड़ तोड़ल
वसुधाक एते सीमा लए घात असल चाही

अंगना बेपर्द जक्कर, मरजाद की सम्हारत
जे मान-धने धनी, सखा-पात असल चाही

आयल कते नियन्ता, धेलकै कतेको बाना
जनताक बीच तकर अबरजात असल चाही

शोभा कते कलह के, इतिहास दै गवाही
होइतै उबेर आबहु, समिलात असल चाही

खगताक अंत नहि छै, से टोबि क’ कहै छी
दुखियाक आँखि निन्न चारूकात असल चाही

कहलक केओ ई जीवन-इजोत चारिदिनमा
जहिठाँ भरोस निरबधि से गात असल चाही

सिन्दूर-सूर्य साजल ई भाल भारती केर
सिन्दूर रंग साँझ आ परात असल चाही

एहि जग-असीम-जल मे, एक चान उगय हमरो
हो मेघ-मोन पनिगर, बरिसात असल चाही

13.

ओ अभियानी मोन पड़ैए, ओ अवदानी मोन पड़ैए
चौबगली मेगडम्मर पसरल, मस्त-मसानी मोन पड़ैए

अपना लए फाटल धोती बरु, कुर्ता मसकल-लसकल सन
स’र-कुटुम लए घाम-पसेना, से किरदानी मोन पड़ैए

हमर सुदिन केर सपना मे, श्रम अविरल बहबैत नीर जकाँ
चास-बास मे लहलहाइत से, सोना-चानी मोन पड़ैए

रुक्ख-सुक्ख अप्पन जिनगी केर, सुख-सपना बहटारले सन
लाठी ऊपर नचैत सुरुज एक, तकर पिहानी मोन पड़ैए

तिक्त-रिक्त सहितो अपना भरि, जीवन भरना अनका लए
टोलबैया-गौआँ सभ जिनकर, से संतानी मोन पड़ैए

अमरलती घन अमती काँटे, अरि-परिजन केर झाँट-ओसाँटे
अपने सँ सोझराबैत सभठाँ, सस्सरफानी मोन पड़ैए

नीमूधन केर अन्हरजाल के, रत्ती-रत्ती करबा लए
बुद्धि-कलम सँ बोरि लिखल जे, से मोसिहानी मोन पड़ैए

छत्ता-नभ आशीषक तनने, अपनो भीजैत-छीजैत जँ
दहो-बहो सीदित छत्ता केर, तनल कमानी मोन पड़ैए

14.

मुर्खक लाठी रीत गाम के
कानब बौसब गीत गाम के

षड्यंत्री केर जते टहलुआ
से बनि बैसल मीत गाम के

गछ पट्टी आ टोल विभाजित
नहि अबंच एक बीत गाम के

अगिलह नेता लहलह बेटा
सपनहुँ नहि छै जीत गाम के

सरकारी धन केर बखरा सँ
मिसरी बोली तीत गाम के

नव सम्बन्धक पैकारी मे
भैयारी छह-छीत गाम के

की करतै बेदनाय बहरिया
गौएँ नहि छै हीत गाम के

भाषा-संस्कृति दुष्चक्री लए
शोणित भ’ गेल शीत गाम के

प्रेम-सुधामय होइत धरा ई
सुजन-भूमि सुपुनीत गाम के

एक अछार निर्णायक होइतए
घुरि अबितए सब थीत गाम के

15.

बड़का लोकक उतकिरना मे छोटका जानक की मोजर
ओक्कर चानी जुत्ताक सोझाँ एक्कर घामक की मोजर

फेरलाहा खरपा-खड़ाम चढ़ि जे गओलक चारण केर गीत
ओहि नेत केर, ओहि घेंट केर ओहि उतानक की मोजर

जतय निर्भया, जतय दामिनी हाकरोस मे काटय राति
धरम-करम पुरखा-पुरखारत एहि विधानक की मोजर

जजमनिका ई राज-पाट तेँ ने हियासि ओ चोभैए
हथउठाइ सँ जनता मोहित एहि अभिमानक की मोजर

बीघाक बीघा परती धरती मुदा कहाँ अखड़ै ककरो
जन-धन खाता ऊमटाम तँ गहुम कि धानक की मोजर

आँजुर भरि धन आहुल भरि जन ओ धेलकै आकाशक बाट
जड़ि अपन लागय झलफल सन एहि उधियानक की मोजर

काल्हिओ धरि ओ धनपशु बनि शोणिते अरजलक घैलक घैल
आइ छड़पि लुझलक सिंहासन एहि छड़पानक की मोजर

जाल खिड़ा क’ बैसल छै बैमान कह’ लए बैमनमा
अपन माटि केर करय दलाली तकर इमानक की मोजर

सुतरल काजक बाद बनल छै अनचिन्हार चानन-काजर
तकर विहानक, तकर उठानक तकर महानक की मोजर

एखनहुँ सूतय दुनू मीता सिरमा मे चक्कू ल’ क’
राङल हाथक हीत-मितारए एहि मिलानक की मोजर

ओहि महल केर तरहारा मे एखनहु कानय नर-कंकाल
तैयो गुम्बद मातल मद मे ताहि मतानक की मोजर

16.

फेर मंच पर किदन-किदन हएत
पुरने गीतक सुनले धुन हएत

संस्कृति आ साहित्यक दाउन
डोपटा-पागक लतखुर्दन हएत

मतजीवी लग नत मसिजीवी
पद-पदार्थ लए चिर वन्दन हएत

बारल-बागड़ समाङ सब सँ
धन लेल पुरखा केर तर्पण हएत

काग उचारत दीन-बेरागन
नीलकंठ लए निर्वासन हएत

खेत-पथार पर लघुशंका आ
नभ-विहार लए मारुक रण हएत

पर्वत लए गुपचुप भइबट्टी
सुइया पर चहुँदिस गर्जन हएत

अट्टहास शोभत रावण के
रोदनाक बोदरि विभीषण हएत

बात-विचारक घाट-बाट नहि
तकरे सिर अच्छत चन्दन हएत

पनितोआ लए अब्दुल विक्टर
उसरगुआ लए रामरिझन हएत

17.

की झाँपल आ की उघार छै
एक खोल मे दू सियार छै

रामनगर मे उधब-बधाबा
सिया नगरिया घुप अन्हार छै

की जोतखी आ की और्दा जँ
पेटहि मे निर्लज प्रहार छै

ओकर हँसी पर हीरा-मोती
एकर हँसी पर थल-खिचाड़ छै

एहि सृष्टि के एसकर टेकने
तखनहुँ उपमा ढोल-गमार छै

अंकशायिनी गृहिणी नौड़िन
एक तीर सँ कए शिकार छै

क’ल-कुशल घर घुरती धीया
एखनहुँ सपना निराकार छै

देखि घुरल छी न्याय-कचहरी
एकहि दोख लए दू विचार छै

नारा सँ दुख घटतै नारीक
ठकहर कानूनक जोगाड़ छै

नारी-पूजक हम सनातनी
आइ बहल झूठक पलार छै

18.

जनता नहि छै तीन-तेरह मे, औ बाबू
तैयो नित्तह देश कलह मे, औ बाबू

झूठक शासन कत्तेटा से नुकायल नहि
सत के झोपड़ी छैक विरह मे, औ बाबू

पद्मासन पर बैसि राजसुख भोगय बेर
बाघ आ बकरी फेर सुलह मे, औ बाबू

जकरे लए अप्पन गरदनि हँति कात केलहुँ
उनटे बैसल ओ लह-लह मे, औ बाबू

कने खखसि क’ कने जोर सँ बाजय ओ
तक्कर नाम लेलक अगिलह मे, औ बाबू

ओ राजा नहि, हम प्रजा नहि, जनता छी
सदिखन राखओ बान्हि गिरह मे, औ बाबू

गजब कबिलती, सोना ताकय कादो मे
सूइ सिमरिया-हाथीदह मे, औ बाबू

एखन मतल छै कुर्सी के घोड़दौड़ी मे
क्षेत्र जाति केर अतत्तह मे, औ बाबू

ओ बेसाहि क’ मालिक अनलक अपना घर
मायक फरकी चढ़ल जिरह मे, औ बाबू

आँखि खोलि क’ बाट कोनहु ताकहि पड़तै
नहि तँ मरतै इतस्तत: मे, औ बाबू

19.

ई बढ़मोतर, जे दिन से दिन
धनगर-पनिगर, जे दिन से दिन

हरियर खेत मे टाहि लगौने
फलकल भिनसर, जे दिन से दिन

बुढ़बा पीपर, नबगछुली केर
घाड़ उछतगर, जे दिन से दिन

खुट्टा पर कुदकैत ढूसि संग
निमुधन चरफर, जे दिन से दिन

माटिक कोखि सँ बहराइत सुर-
ताल रमनगर, जे दिन से दिन

आंगन सँ निकसैत बहुरिया
विरहक एसकर, जे दिन से दिन

पाँज सँ बाहर कर्त्तापुत्रक
सोनाक परतर, जे दिन से दिन

अपनैती-भैयारिक मोटरी
मोटगर-गुदगर, जे दिन से दिन

बुढ़िया कुहरय एकचारी मे
नबकीक थरथर, जे दिन से दिन

खाम्हक दुख सँ दुखी घरेना
दुर्लभ अवसर, जे दिन से दिन

अपना गाछीक, अपन जजातक
स्वाद सोहनगर, जे दिन से दिन

नव पैकार केलक घरपैसी
खेतिहर खड़गर, जे दिन से दिन

आबि रहल एक हाहि भार मे
हिया पियरगर, जे दिन से दिन

20.

ओ पनही के पाग कह’ मे लागल छै
पठरूए के बाघ कह’ मे लागल छै

रक्त शहीदक छीटल भारत भूमि सगर
ओ छिटका के दाग कह’ मे लागल छै

न्याय-प्रशासन केर अकबाली छौंकी स’
गोधियाँ के बेदाग कह’ मे लागल छै

दू कनाह के साटि बनाओत सौंस मनुक्ख
उतकिरना धन भाग कह’ मे लागल छै

ओ कहबैका, नगरे नगर पुजाइत रहल
जे कोइली के काग कह’ मे लागल छै

कनियाँ-मनियाँ त्राहि कृष्ण घर-घर देखल
ओ भुतसप्पा-नाग कह’ मे लागल छै

ओ खेतिहर अभिमानी बलिदानी सब दिन
तकरा भागम-भाग कह’ मे लागल छै

आइ ओकर दुख फाटि बनल छै बमकारा
तेँ अधरतिए जाग कह’ मे लागल छै

फेर शिखर सम्मेलन भरि मे खान साहेब
निज खुनियाँ अनुराग कह’ मे लागल छै

डॉ. कमल मोहन चुन्नू सँ सम्पर्क लेल हुनक मोबाइल नंबर +91-9334924753 वा ईमेल kmchunnu@rediffmail क प्रयोग कयल जा सकैछ। हुनका सँ फेसबुक पर जुड़बाक लेल हुनक फेसबुक प्रोफाइल यूआरएल Dr K M chunnu पर क्लिक करी।