ऋण (कथा) — शारदा झा

बड़ी काल सँ अपन एकटा पुरान डायरी ताकि रहल छलहुँ, जाहि मे अपन किछु कॉलेजक संगी सभक पता लिखने रही।पोस्ट आ कुरियर करबाक लेल जरूरत पड़ल छल।बहुत दिन सँ किछु लिखने नहि रही, से कतहु ऊपर-निचा भ’ गेल रहयक किताबक टेबुल पर सँ।आइ बुझना गेल जे कतेको दिन सँ टेबुल पर छिड़िआयल किताब सभ नहि सैंतल गेल अछि।जे पढ़लहुँ से ओतहि कतहु राखि देलियै, एक पर एक गेंटि क’।

मोन भेल जे डायरी तकबा सँ पहिने यएह काज सरिया ली।मुदा ताहि मे समय लागि जायत, आ ताधरि पोस्टऑफिस बन्न भ’ जायत । पहिने जे जरूरी, सएह काज करी।किछु किताब सभ उधेसलाक बाद कतहु पाछू मे खसल मुदा टेबुलक कात मे देबाल सँ ओंगठल हमर ललका डायरी अभरल।चैनक साँस लेलहुँ।आब इ काज आइ भइए जायत।

आधा दिन लगभग बीत चुकल छल।रजिस्टर्ड डाक अढ़ाई बजेक बाद बुक नहि होयत।ऑफिस सँ आइ एहिए काजक लेल छुट्टी लेने रही आ यएह काज जँ नहि होयत त’ फेर अगिले सप्ताह समय भेटत।पार्सल सभक पैकिंग त’ रातिये क’ क’ राखि देने रहियैक ।

हम हबर-हबर अपन किछु पुरान संगी सभक पता ताकय लगलहुँ।कॉलेज छोड़बाक काल सभ अपन-अपन पता लिखौने छल, जे चिट्ठी-पतरी सँ हाल-समाचार बुझबा मे आसानी रहय।बाद मे लगभग सभक पता बदलि गेलैक।सभ जखन बियाहल-दानल गेलि, त’ ओकर सभक सासुरक पता भेटल।समयक काल-क्रम मे सब गोधियाँ आ सखी-बहिनपा देशक विभिन्न शहर आ नगर में बसैत गेलीह।नोकरी-चाकरी भेलनि, बाल-बच्चा, पड़िवार आ समाज सब केँ देखैत सभक जीवन चलि रहल छनि।मुदा एतबो पर, किछु गोटे एखनो संपर्क मे छथि।आब ककरो घरक पता कहाँ क्यो लीखि क’ रखैत अछि, कोनो चिट्ठी-पतरी पठेबाक खगते नहि।मोबाइलक जमाना भ’ गेल छैक।

हम सभक फोन नंबर त’ अपन मोबाइल मे सुरक्षित रखने छी, मुदा सभक घरक पता अपन ओही पुरने डायरी मे लिखने छी।पुरान- धुरान भेल चीज-वस्तु सब जेना स्मृतिक सुखाइत खेत पर बरखा बनि बरसि जाइत त अछि, आ मोन फेर हरियर आ प्रफुल्लित भ’ उठैत अछि।

ई ललका डायरी हाथ मे लइते देरी मोन जेना बीस बर्ख पहिलुक समय मे जीब’ चलि जाइत त अछि।गत्ता आब कनि झरि गेल छैक आ रंग सेहो कनि मलिन पड़ि गेल छैक, मुदा एखनो एकरा बड्ड सहेजि क’ रखने छी।जहिया श्वेता, हमर होस्टलक रूम पार्टनर, हमरा ई डायरी जन्मदिन पर उपहार देने छल, त’ कहने रहय — “एकरा सदिखन अपना लग मे रखिहें।अपन मैत्रीक एकटा पकिया निसानी यएह रहतहु। जहिया कहियो एकर पन्ना उन्टा क’ देखबिही, एहि मे किछु लिखबिही, त’ बुझिहें जे हम संगहि छियौ।”
सत्ते कहल जाइत छैक, मित्र सँ बेसी अहाँ ककरा अपन बुझि सकैत छी, जखन अहाँ पड़िवार सँ दूर भ’ एकटा छात्र जीवन जीबैत छी।यएह संगी सब परिवार बनि जाइत अछि।आ सएह भाव एतेक बरख बितलाक बादो ओहिना जीवन्त अछि।आइ श्वेता अपन काम-काज आ पड़िवार मे व्यस्त अछि, मुदा हमसब एक दोसराक नीक बेजाय सब केँ खबरि रखैत छी आ दूर रहितो, सँग होयबाक उपाय करैत छी। ई आधुनिक समयक उपलब्धि आ देन अछि, जकर नाम अछि मोबाइल आ विभिन्न प्रकारक दूर संचारक माध्यम; अस्तु !

अपन पहिल किताब छपलाक बाद, अपन प्रसन्नता आ उद्वेग अपन संगी सब संगे बँटनाइ त’ बहुत स्वाभाविक अछि।कतेक प्रसन्न भेल छल सब हमर कथाक किताब छपबाक बात सुनि क’।

कतेको बात सब, रंग बिरंगक चित्र सब पाड़ल अछि एहि डायरी मे।संगी सबहक चौल केनाइ, होस्टलक दिनक किछु हिसाबो-किताब सब लिखल अछि एहि डायरी मे। हमरा पर उधार अछि, 30 टाका, जे हमरा सरिता केँ देबाक छल।हँसी लागि गेल देखि क’! की सब करियैक हमसब, आ कोना ओ दिन सब बीति गेल।बीस साल पुरान सियाही अब कनि धुँआनि सन भ’ गेल अछि, मुदा आइयो हमरा ओतबे स्पष्ट आ प्रखर बुझाइत अछि।

ओकर सबहक पता सब देखबाक क्रम मे हमर दृष्टि परल एक पेज पर, एकटा लिखलाहा पांति पर, “आइ एकटा आत्मा अनंत आकाश मे तारा बनि चमकय लेल विदा लेलाह। -5/3/2012”

सहसा आँखिक सोझा अनेकानेक प्रसंग, दृष्टिगोचर होमय लागल। मोन बाझि गेल अतीतक जाल मे। एकटा स्मित मुस्कान अपन अधर पर आबय सँ रोकि नहि सकलहुँ। हृदय प्रेम, करुणा आ विश्वास सँ भरि गेल। मोने-मोन ओहि दिवंगत आत्मा केँ धन्यवाद करैत अपन काज मे लागि गेलहुँ। जल्दी जल्दी पार्सल सब पर पता लीखि, सबटा केँ एकटा बैग मे भरलहुँ आ विदा भेलहुँ पोस्ट ऑफिसक दिस।

घमायल आ गर्मी मे सुसिद्ध होइत जखन ओतय पहुँचलहुँ, त देखैत छी ओतय बिजली गुल भेल। आब जाधरि बिजली नहि आओत, स्पीड-पोस्ट संभव नहि होयत। हम फेर एहि काज लेल दोबारा आबी, ताहि सँ नीक त’ जे एखने कनि काल प्रतीक्षा क’ ली। सएह कयलहुँ।

हमर मोन एखनहुँ अपन ललका डायरीक ओहि पेज पर अटकल छल। वएह कहने छलाह “अहाँ खूब लीखि सकैत छी। लिखू, बहुत ज़रूरत छैक एखन समाज मे चेतनाक। अहाँ एकटा सचेतन व्यक्ति छी, सबहक उपकार हेतैक । यदि एकहु गोट लोक अहाँक लेखनी सँ प्रभावित भ’ सामजिक चेतनाक अंग बनैत छथि, सएह होयत अहाँक उपलब्धि।”
हम कहने रहियनि, — ” हमरा से अवगति कहाँ अछि। हमरा पढ़ब नीक लगैए। हमरा बुते नहि होयत इ लिखनाइ।”
ओ बजलाह, — ” आरती, ई अहाँ सबसँ पैघ भूल क’ रहल छी। अपना आप केँ कमतर क’ क’ नहिं आँकू। सब सँ पैघ नेमति जे अहाँ लग मे अछि, से अछि जीवन। जँ जीबैत छी, त मनुखक लेल कोनोटा काज असम्भव नहि अछि। हमरा विश्वासे टा नहि अछि, बूझल अछि, जे अहाँ मे प्रतिभाक कोनो कमी नहि अछि।”

एतेक विश्वास अपना पर हमरा नहि छल, जतबा ओ रखैत छलाह।

— ” हम की लीखि सकैत छी ? हमर संसार त’ घर दुआरि आ अपन काजक ऑफिस तक अछि।” हम कहने रहियनि।
ओ फोनक ओहि कात सँ बजलाह, “आर की चाही लिखबाक लेल? मनुष्यक जीवने त’ विविधता सँ भरल अछि, — प्रेम, दुःख, विषाद, प्रसन्नता, क्षोभ, ईर्ष्या, ममता, लोभ, महत्वाकांक्षा, मोह, असफलता, रोग…यएह त’ जीवन अछि । आ मनुख एहि सब सँ ग्रस्त । ककरो ने बूझल होयत अछि जे कतेक समय ओ एहि संसार मे रहय बला अछि, तैं एक-एक दिन एकटा नबका अवसर अछि, किछु नब करबाक लेल, किछु सिखबाक लेल, अपन मोनक काज करबाक लेल। एकरा नहि गमाउ। गेल समय फेर नहि आओत।” ओ कनि हकमि रहल छलाह। हम हुनका आराम कर’ कहलियनि। ओ हँसय लगलाह।

कहलाह, — “जएह बात भ’ जाइत अछि, सएह हमरा पर उपकार अछि।” हम किछु उत्तर नहि द’ सकलियनि, कण्ठ अवरुध्द भ’ गेल छल।

ताधरि बिजली आबि गेल, आ हम अपन स्मृतिक प्रवाह केँ रोकैत अपन पार्सल सब केँ सही पता पर पहुँचेबाक ओरियाओन मे लागि गेलहुँ। सबटा काज भेलाक बाद जहन पोस्ट ऑफिस सँ बहरेलहुँ त’ लागल जेना कोनो भट्टीक ताप सँ छुटकारा भेटल हुए। आब से खाली मौसमक ताप रहय कि पुरना बात सब मोन पड़ि गेल रहय, तकर ऊष्मा छल, किछु फरिच्छ नहि भेल। अस्तु, आपिस अपन घर दिस बढ़लौं।

बंगलौर मे सब प्रदेशक लोकक बास अछि। एत’ खाली लोक काज आ रोजगारे के चक्कर मे नहि अबैत अछि, अपितु सामान्य दिनानुदिनक मौसम सेहो नीक मानल जाइत अछि। हमहूँ सब काजेक चक्कर मे एत’ बसल छी। मुदा ग्लोबल वार्मिंगक कारणे या लोकक बेसी भीड़ बढ़ने, मौसम सेहो अपन रूप बदल’ लागल अछि। एतेक गर्मी एतय एहि मौसम मे कहियो नहि होइक, आ साँझ होइत होइत एक अछार बरखा भइये टा जाइत छल। मुदा आब से सब जेना कोनो और जमानाक बात होइक । हम पोस्टऑफिस सँ वापस आबि, अपन पुबरिया बालकनी मे एक मग कॉफ़ी ल’ क’ बैसलहुँ । बालकनीक सामने मे एकटा झील जकाँ छैक, जाहि सँ ठंडा बसात हमर बालकनी तक अबैत अछि, आ हम दूर-दूर तक पसरल हरियाली आ झीलक पानि पर हवा सँ खेलाइत आ लहरि उठबैत साँझ केँ देखैत छी। ई दृश्य हमरा बहुत आराम आ सुकून दैत अछि। आ ओतहि कहियो काल रंग-बिरंगक पक्षी सब घुमैत, हेलैत, चक्कर लगबैत देखाइ पड़ितै, त मोन मे इ विश्वास भरि जाइत त अछि, जे एखनो संसार सुन्दर अछि। एतय हम पढ़ितो छी, लिखितो छी, एकांत मे बैसि गीत सेहो सुनैत छी, अपन ओझरायल सोच-विचार केँ ठेकन’बै छी, मूलतः दार्शनिक भ’ जाइत छी।

आइ महिना भरि सँ ऊपर भ’ गेल छल जे हमर प्रथम पुस्तकक प्रकाशनक चर्च भेल छल। हमरा कहियो नै होइत छल जे हम कथा वा खिस्सा-पिहानी लीखि सकैत छी। इन्द्रनीले छलाह ओ पहिल व्यक्ति जे हमरा पर एतेक भरोस करैत छलाह। एहन विश्वास हमरा पर हुनका कियैक छलनि, से कहियो बुझि नहि सकलहुँ । ई पुस्तक हुनके विश्वासक लगाओल गाछक पुष्प थिक। आइ ओ बहुत मोन पड़ि रहल छलाह। हुनका सँ जुड़ल बीतल जीवनक सबटा परिदृश्य हमरा सोझाँ मे घुमि रहल छल। आ आइ हमरा लग हुनकर पता नहि अछि, जे हुनका पठा सकितियनि अपन पहिल किताब।
आब जहाँ पाछू घुमि क’ तकैत छी, त’ जीवनक गाड़ी बड्ड आगू बढ़ि गेल जेना बुझाइत अछि आ पाछाँ देखबाक अयना झलफल भेल अछि। मुदा, जहन समयक भाफ साफ करैत छी, त’ सबटा दृश्य ओहिना कोनो फ़िल्मी चलचित्र जकाँ स्पष्ट होमय लागल। हमर वर्तमान अतीत मे मिज्झर भ’ गेल।
नबके मकान सब बनल रहय ,सरकारी अवासक योजनाक तहत। सबटा मकान एकहि रंग रूप’क, खाली ब्लॉक सब फराक रहय। इंद्रनील सेहो हमरे सबहक संगे एकहि समय मे ओहि कॉलोनी मे आयल छलाह। हमर सबहक समवयस्क आ समतुरिया सभ सँ पूरा मोहल्ला अनघोल रहैत छल। सबहक पिता संगहि काज करथिन। सब बच्चा सब एकहि कॉलोनीक स्कूल मे जाय। कियो एक कक्षा आगू, कियो पाछू। साँझ मे कियो घर मे नहि रहितय, सब बहार मैदान मे रंग-बिरंगक खेला सब खेलाइत। आस-पड़ोस मे सब सबहक घर जाइत त, घुमि अबैत, सब केँ सब चिन्हैत। कोनो अनचिन्हार नहि लगैक।

इन्द्रनील हमरा सँ कने जेठ रहथि, हमर सीनियर।श्याम वर्ण, औंठीया केश, मध्यम कदकाठी, आ बहुत मृदुभाषी मुदा बहुत लजकोटरि।ककरो संगे अहिना गप्प बना क’ बजैत नहि देखलहुँ हुनका कहियो।अपन संगी साथी, स्कूल आ किताब, बस यएह हुनकर दिनचर्या रहनि।ओ आईआईटीक तैयारी करैत छलाह।कहियो काल साँझ मे बाहर टहलैत भेंट भ’ जइतथि, त हमर पढाई, आगाँक प्लान सब पुछैत रहैत छलाह।हुनके संग हुनकर एकटा संगी रहैत छल, प्रणव।दुनू खूब नीक पढ़निहार आ चन्सगर छात्र छलाह।प्रणव सेहो पड़ोसिये रहथि, मुदा हुनका सँ कहियो सोझे गप्प करक लाथ नहि लागल।इन्द्रनीले सँ कहियो काल हुनकर बारे मे बुझैत रहलहुँ।

समय बीतल, इन्द्रनील आईआईटी केलाह। हमहूँ अपन पढ़ाई करय लेल कॉलेज ज्वाइन कयलहुँ। हमरा सँ भेंट करय लेल, ओ अबैत रहैत छलाह। संयोग सँ हमर सबहक कॉलेज एकहि ठाम रहय। हम हुनकर बहुत आदर करियनि। हमसब सब रंगक गप्प करी। साहित्य, कला, इंजीनियरिंग, देश- विदेश, समाज, शिक्षा व्यवस्था आ की-की नहि।

ओ कहथिन, — “अहाँ सँ गप केनाइ कतेक आसान अछि। अहाँ कतेक मनोयोग सँ हमर सबटा बात सुनै छी।”

हम कहितियनि, — ” से त’ अहूँ सुनै त छी हमर बात सब, एहि मे कोन अजगुत बात भेलैक ? ताहि पर सँ अहाँ हमर कविता आ कहानी सब सेहो झेल लैत छी।” आ हम भभाक’ हँसि दैत छलियैक।ओ विस्मय सँ देखैत छलाह, से हम बुझियैक।
ओ कहथिन, — ” से नहि कहू। अहाँ बड्ड नीक लिखैत छी। हमरा नीक लगैत अछि अहाँक सब बात सुनब। ताहि पर सँ अहाँ मे धैर्यक कोनो कमी नहि अछि। बहुत कम लोक आब दोसरक बात सुनबाक धैर्य रखैयै, अहाँ एखन नहि बुझबै। अहाँ हमरा अपन ऋणी बना रहल छी।”
हम हँसी मे जवाब दितियनि, — ” से सब छोड़ू, चलू, आइ लस्सी पीबि मंदिर लग जाक’।”

अहिना साल बीति रहल छल। एक साँझ हॉस्टल मे खबरि आयल जे इन्द्रनील आयल छथि भेंट कर’। हम गेलहुँ, त देखैत छी जे संगहि प्रणव सेहो ठाढ़ छथि।मोन बेस प्रसन्न भेल। पता लागल जे ओ एहि ठाम कोनो प्रतियोगी परीक्षा देबय लेल आयल छलाह। आ अपन अंतरंग संगीक कॉलेजक रूम केँ ठिकाना बनौने रहथि। आ हमरो सँ भेंट कर’ अयलाह।बातचीत करैत, कॉलेजक गेटक बाहर जे शौपिंग काम्प्लेक्स छल, ओतहि साँझ चाह पिबैत, गपशप करैत बीति गेल।इन्द्रनील त सहजे रहथि, मुदा प्रणव सहज रहबाक प्रयास क’ रहल छलाह किन्तु मोन हुनकर विचलित रहयन से हम हुनका देखि क’ बुझि गेल रही।पुछबो केलियनि, त’ कहलाह जे “किछु नहि, ओहिना।हम ठीक छी।”

ओकर अगिला दिन, इन्द्रनील सँ पता चलल जे प्रणव त’ चलि गेलाह, मुदा हमरा लेल एकटा चिट्ठी छोड़ि गेल छथि।ओ हमरा चिट्ठी पकड़ाक कहलाह जे, — ‘बाद मे पढ़ब, आराम सँ’।हम कनि चकित होइत पुछलियनि —”ई की थिक ?”

त’ ओ कनि नजरि चोराइएक’ जवाब देलाह —”हमरा नहि बूझल अछि।” फेर दोसर दिन अयबाक बात कहि ओ चलि जाइत रहला।
हम किछु अंदाज त’ लगौने रही, मुदा जखन पत्र खोलि क’ पढ़लहुँ, त’ जे सोचने रही सएह बात निकलल।प्रणव हमरा नामे चिट्ठी लिखने छलाह।अपन प्रेमक अभिव्यक्ति करबा लेल ओहो बहुत परिश्रम कयने छलाह।हमरा सँ कहियो सामने-सामने गपशप नहि कयने छलाह, मुदा सब दिन सँ ओ हमरा पसन्द करैत रहलाह।एकहि कॉलोनी मे रहितो कहियो सामना नहि भेल रहय।तैं हमरा सँ अपन मोनक बात कहय लेल हुनका एतेक दूर आबि क’ चिट्ठी देबय पड़लनि ।
सबटा बात पढ़ि क’ हम तामसे लाल भेल, सेहो प्रणव पर नहि, इन्द्रनील पर।हुनका त’ बूझल छनि जे हम एहेन लोक मे सँ नहि छी, ई सब नहि क’ सकैत छी।माता-पिता बहुत भरोस आ विश्वास क’ एतेक दूर पठेलाह अछि।हुनकर विश्वास केँ ठेस हम कोनो तरहेँ नहि पहुँचा सकैत छलहुँ।ओ कियैक नहि कहलखिन प्रणव केँ जे ई चिट्ठी नहि लिखबाक चाही ? तामस त’ भेल, मुदा ककरा की कहितियैक ओहि समय मे।
दोसर दिन जखन इन्द्रनील अयलाह, हम हुनका पर बरसि गेलहुँ। हुनका एकर अनुभूति पहिने सँ रहयनि शायद, ओ किछु नहि बजलाह, सबटा सुनैत रहलाह। — “अहाँ कोना क’ ओ चिट्ठी ल’ क’ हमरा देबय अयलहुँ? अहाँ केँ बूझल रहय ने, जे ई नहि भ’ सकैए? ओ अहाँक अनन्य मित्र छथि, अहाँ हुनका एहि पीड़ा सँ बचा सकैत छलियनि।अहाँ कियैक केलियै एना ?”
—”से त’ ठीके ओ हमर बहुत अनन्य मित्र अछि, आ तैं हम ओकरा मना नहि क’ सकलियैक।ओ कहैत रहल जे आरती जँ मनो क’ देत, तइयो हम एकबेर ओकरा जरूर कह’ चाहैत छी जे हम ओकरा सँ सब दिन सँ बहुत प्रेम करैत छलियै, मुदा कहियो कहबाक हिम्मत नहि भेल।आइ तोरे संगे आ हिम्मत पर हम कहि सकबैक।हमर मदति क’ दे भाइ।”
—”हमरा बूझल अछि जे ओ नीक लोक छथि, मुदा हम अपन माता-पिता केँ देल वचन सँ बान्हल छी।हुनका हमर जवाब द’ देबनि,” हम बाजल रही।
—”अहाँ के दुःख भेल, ताहि लेल क्षमाप्रार्थी छी, मुदा संगीक लेल दुखी।चलू, चाय पिय’बैत छी ।”
मुदा हमर मोन सेहो दुखी भ’ गेल छल।” आइ नै, फेर कोनो दोसर दिन।हम चलैत छी।”

दिन बितैत रहल, ओहो अपन सेमेस्टरक परीक्षा सब दैत, अपन अंतिम साल मे छलाह।
हम सब फेर कहियो प्रणवक बात पर चर्चा नहि कयलहुँ।जहिया कहियो छुट्टी मे घर वापस गेलहुँ, प्रणव केँ देखलियनि त’ ज़रूर, मुदा कोनो बात नहि भेल।ओहो शायद बुझि गेल रहथि , जे प्रेम भेट’ बला नहि अछि, तकर जिद छोड़िये देनाइ उचित।कहियो काल साँझ मे दूनू संगी केँ टहलैत देखैत छलियनि ।
एहि बीच मे हमर बियाहो दानक बात शुरू भेल आ ठीको भ’ गेल। हम अपन स्नातकक अंतिम वर्ष मे रही। घर सँ दूर रही, त’ बेसी ध्यान नहि भटकल एहि बात सँ। हम अपन पढाई मे लागल रहलहुँ। जएह माता-पिताक इच्छा, सएह सही। हमर एतबे कहब रहय, जे हम बियाहक बादो अपन पढ़ाई जारी रखबाक शर्त रखने रही, जे मानि लेल गेल छल। तैं, बेसी परेशान नहि भेलहुँ। जीवन यन्त्रवत् चलैत रहल।
एक साँझ इन्द्रनील अयलाह। हुनका देखक’ बुझाइल जे ओ बेस परेशान आ अस्त-व्यस्त भेल छथि। हम पुछलियनि जे — ‘की बात छैक? कोनो परेशानी की ?’
ओ कहलथि जे, हुनकर कैंपस सिलेक्शनक समय आबि गेल छनि आ हुनका होइत छलनि जे इंटरव्यू मे ओ पास नहि क’ सकता। अंग्रेजी बजबाक हिस्सक नहि रहनि, से अपना पर कनिको भरोसा नहि होनि, जे कोनो कम्पनीक इंटरव्यू ओ पास क’ सकताह। हालाँकि, कोनो एहेन बेजाय अवस्था नहि रहनि, मुदा जहन अपना आसपास बेस अंग्रेजी माध्यमक पढल लोक सब चटपट क’ लोक सब केँ प्रभावित करबाक लुरि रखने हुअय, त हुनकर ई अवस्था देखि दयो आबि गेल आ संगहि हँसियो।
हम फुसिये तामस देखबैत बजलहुँ, —” मात्र एतबे टा बात लेल अहाँ एतेक कियैक परेशान छी? अहाँ मे कोन अंग्रेजी बजबाक लुरि नहि अछि, जे एतेक हताश भेल छी ? “

हुनकर मुँहक रंग उड़ल छल। हँसबाक चेष्टा करैत कहलाह, —” अहीं हमर मदति करू। प्रतिदिन किछु काल हमरा सँ विभिन्न विषय पर अंग्रेजी मे बात करू। तकनीकी ज्ञान त’ हम देखि लेब, लेकिन सामान्य बात सब मे हम कहीं हुसि ने जाइ ! अहाँ हमर मदति करब ने ?”
—” हँ’, हँ, कियैक नै करब। अहाँ इंजीनियर छी, एतेक ज्ञान रखैत छी। जहाँ अहाँ एतेक दूर धरि आबि गेल छी, त’ कहीं एतबेटा बात लेल कियो एतेक परेशान हुए? ” हम कहलियनि। हुनकर मुँह पर आब कनि रौनक घुरि आयल छल ।
किछु दिनक बाद ओ मिठाइक डिब्बा नेने आयल छलाह। एकटा नीक मल्टीनेशनल कम्पनी मे हुनकर नौकरी लागि गेल छलनि। ओ गदगद् छलाह। हमरा लेल एकटा ‘थैंक यू’ कार्ड अनने छलाह, जाहि पर लिखल छल ‘यू आर माइ फ्रेंड, फिलॉसफर एंड गाइड’।

—”इ की छैक? एकर कोन काज रहय। अरे, एहि सब सँ अहाँ पार्टी देबय सँ बचि नहि सकैत छी !” हम कनि बेसी उत्साहित होइत बजलहुँ।

—”इ कार्ड पार्टी देबय सँ बचय लेल नहि अनने छी। पार्टी त’ हेबे करत। इ त’ मात्र हमर मोनक बात अछि, जे हम आर कोना क’ कहू, से नै बुझायल त’ यएह ल’ अनलहुँ। अहाँ केँ नहि बूझल अछि जे अहाँ हमर कतेक मदति केने छी।” ओ भावुक होइत कहलाह।

—”ठीक छैक। आब इ बात सब छोड़ू। कत’ छैक पार्टी?” हम जिज्ञासा केलियनि।

—”ताज मे।” ओ देखैत बजलाह।
—”वाह, हेबाको चाही। आब अहाँ भेटबो कत’ करब। एतय छलहुँ त’ भेंट भ’ जाइत छल।” हम कहलियनि।

—” ठीक छैक, त’ काल्हि साँझ मे भेंट होइए।अपन डेट रहतै।” हुनकर आँखि चमकैत छल।

—”ओहो, डेट… वाह, से बेस कहलहुँ । सएह बूझि काल्हि हमहूँ अहाँ केँ एकटा नबका खबरि देब।” कहैत हम हॉस्टल दिस बिदा भेलहुँ।

दोसर दिन साँझ मे तैयार भ’ इन्द्रनील सँगे ताज होटल पहुंचलहुँ। इ ट्रीट हुनकर नबका जॉबक छल, हुनकर सफलताक ख़ुशी मे। हमसब नीक भोजनक संग नीक बातो सब कयलहुँ। हुनकर अगिला प्लानिंग सब सुनलहुँ। पता चलल जे छह महीनाक बादे कंपनी हुनका आयरलैंड पठा रहल छलनि।

—”अहूँ किछु खबरि देब’ बला रही। की अछि नबका खबरि से कहू? ” ओ पूछने छलाह।

—”हमर बियाह तय भ’ गेल अछि ।” हम हुनका दिस तकैत कहलियनि। ओ चकित होइत बजलाह, — “अरे, से की? इ त’ अहाँ सही मे हमरा अचंभित क’ देलहुँ।”

नजरि झुकाइएक’ कनि स्थिर भेल कहलखिन, —” अहाँ केँ आगाँ पढ़बाक विचार आ किछु करबाक प्लानक की होयत?”

—”सेहो बात भेल छैक। हम अपन पढ़ाई क’ सकैत छी, जाहि मे चाही से। हुनका सब केँ कोनो आपत्ति नहि छनि।” हम हुनकर प्रतिक्रिया देखैत कहलियनि।

—”वाह, बेस तहन त’। बड्ड प्रसन्नताक बात कहलहुँ अहाँ। आब आजुक ट्रीट मे अहाँक काज नहि चलत। से अलग सँ देबय पड़त।” ओ हँसैत बजलाह।

—”नाम त’ कहू ? आ कत’ जा रहल छी बियाहक बाद?” ओ पुछलथि ।

—”अहाँ जकाँ आयरलैंड त’ नहिये… बैंगलोर जायब हम। हुनकर नाम संजीव छनि।” हम जवाब देलियनि। तकर बाद मद्धिम इजोत आ मधुर संगीतक संग ओ साँझ बीति गेल आ हमसब वापस अपन अपन हॉस्टल आबि गेलहुँ।
समय बीतल। हमर बियाह भेल। इन्द्रनील एलाह बियाह मे। संजीव सँ खूब बात भेलनि। हमर सभक बहुत बात सब आ खिस्सा सब संजीव केँ सुनौलखिन। हुनका गेलाक बाद संजीव पुछलाह, —”इन्द्रनील अहाँ केँ बहुत पसन्द करै छथि।अहाँ केँ एकर आभास अछि की?”
—”एहेन कोनो बात नहि छैक। हम सब पड़ोसी छी, आ एकहि ठाम पढ़ने छी। ओ बहुत नीक लोक छथि। कहियो किछु अनर्गल बात नहि कयलाह हमरा सँगे। हम हुनकर बहुत आदर करैत छियनि।” हम हँसी मे बात उड़बैत संजीव केँ कहलियनि।

—”से त’ निश्चिते बहुत सीधा आ सरल प्रकृतिक लोक छथि। लेकिन हम कहैत छी, इ मात्र पसन्द नहि, प्रेम करैत छलाह अहाँ सँ।”

—” नै नै, एहेन कोनो बात ओ कहियो नहि कहलाह आ ने आभासित होमय देलाह हमरा। अहाँ कोना बुझि गेलियै ? बेसी बात नहि बनाउ।” हम खिसियाइत कहलियनि।

संजीव कहलाह, —”अच्छा बाबा, आब नहि कहब। गलती भेल।” ओ कान पकड़लाह आ हम हुनकर आलिंगन मे समा गेलहुँ।

हम अपन दिन-दुनियाँ मे रमलहुँ, आ इन्द्रनील सेहो आयरलैंड चलि गेलाह।कहियो नैहर आबि त आस-पड़ोसक सबहक खबरि पता चलय। एक बेर होली मे नैहर गेलहुँ त’ देखलहुँ जे इन्द्रनीलक बियाह भेलनि, आ कनिया सेहो इंजीनियर छथिन। देखहो मे भव्य लगलीह। प्रणव सेहो छलाह जहन हम हुनका डेरा पर सब सँ भेंट करय गेल रही। समय बितलाक पश्चात सब अतीतक बात आब धूमिल भ’ चुकल छल। हँसी ठट्ठा मे किछु घंटे बीति गेल। मोन प्रसन्न भेल सब सँ मिलजुलि क’। कालक्रमेण भेंटघाँट कम भ’ गेल रहय। सब अपन-अपन जीवन यापन मे लागल।
अहिना कइएक साल बीति गेल। ताबत जमाना इंटरनेट आ मोबाइलक आबि गेल रहय। फेसबुक सेहो नबका क्रांति जकाँ सगरे संसार केँ अपन जाल मे गछाड़ने जाइत छल। हमहूँ एमबीए क’ क’ एकटा अंतर्राष्ट्रीय कम्पनीक भारतीय शाखा मे मेनेजरक पद पर काज करय लागल रही। दू टा बच्चा आ परिवार केँ सबटा जिम्मेदारी उठबैत सफल जीवनक परिकल्पना केँ साकार करबाक चेष्टा मे अनवरत लागल रही। संजीव बहुत संग देबय बला लोक छलथि, त’ मिलजुलि क’ हम सब अपन रास्ता बनाबय मे लागल रही।
एक दिन काजक बीचे मे, गूगल मेसेंजर पर एकटा मेसेज अयबाक घण्टी बाजल। जखन चैट विंडो खोललहुँ त’ देखैत छी जे इन्द्रनीलक मेसैज आयल रहय। मोन प्रफुल्लित भेल हुनका एतेक साल बाद देखि क’। ऑफिस मे रही, तैं फ़ोन पर तुरत्ते बात नहि क’ सकलहुँ। चैट करैत-करैत पता चलल जे ओहि समय मे ओ इंग्लैंड मे रहथि, अपन कोनो असाइनमेंट आ प्रोजेक्टक कारणे । मकान नॉएडा मे कीनि नेने छथि, एकटा बेटी छनि जे आब एगारह सालक भ’ गेल छनि आ छठा क्लास मे एकटा नामी स्कूल मे पढ़ि रहल छनि। कनिया सेहो नोयडा मे काज करैत छथिन। हमहूँ अपन सबटा हाल समाचार सुनौलियनि । ओ कहलाह जे फेसबुक पर हमरा ताकि रहल छलथि बहुत दिन सँ।ओहि दिन हम अभरलियनि । हम कनिये दिन पहिने फेसबुक अकाउंट शुरू कयने रही। हमर फ़ोन नंबर लेलाह आ कहलाह जे फेर जखन समय हेतनि त’ फ़ोन करताह । बहुत नीक लागल ओहि दिन हुनका सँ गप्प क’ क’। डेरा पहुँचते देरी संजीव केँ सबटा बात कहलियनि। ओहो प्रसन्न भेलाह हुनकर खोज खबरि जानि क’।
करीब सप्ताह भरि बाद इन्द्रनीलक फ़ोन आयल। ओहिना मधुर आ शांत बोली आ कतेक प्राण छल ओहि आवाज मे। जेना कतेक समयक बाद कोनो प्रिय वस्तु भेटलाक बाद कोनो बच्चा हर्षित होइत अछि, तहिना। हम दूनु गोटे बहुत सालक बाद बात क’ रहल छलहुँ।बहुत जानकारी त’ पिछला चैट मे भेटिए गेल छल। आब पता चलल जे ओ करीब एखन नौ मास सँ इंग्लैंड मे छथि। पारिवारिक माहौल खूब नीक नहि छलनि। हुनकर कनिया आ माँ मे तालमेल ठीक नहि छलनि, जाहि कारणे मनमुटाव आ घर मे अशान्ति रहनि, तैं परिवार ल’ क’ अलग होमय पड़लनि। माता पिता हुनक छोटका भाय सँगे रहैत छलखिन। ओ बेस मानसिक अशांति आ अवसादक शिकार भ’ गेल छलाह।
हम हुनक मन बहटार’ लेल कहलियनि, —” ई सब त’ समाज मे होइते रहैत छैक, की करबै। माता पिता बुझैत छथिन आजुक समाज मे बहुत बेसी आशा रखनाइ दुखक कारण होइत छैक। सामंजस्य कहुना बनल रहय, आ सब ख़ुशी-ख़ुशी जीवन बिताबी, यएह बहुत छैक।”
—”हम बहुत कोशिश कयलहुँ, लेकिन अपन परिवार केँ संग नहि राखि सकलहुँ। हम दुनू पक्ष मे सँ ककरो ने बुझा सकलहुँ, आ ने हुनका सब केँ दुखी देखि सकैत छी। बुझाइए जेना हारि गेलहुँ हम।” ओ कननमुँह होइत बजलाह।
हम भरोस दैत कहलियनि, —”एतेक परेशान आ निराश होबाक कोनो प्रयोजन नहि अछि। सब ठीक भ’ जेतैक। कनि समय दियौक सब केँ , सब बुझि जेथिन जे की ठीक छैक आ की गलत।”
—”ई सबटा बात हमहूँ बुझैत छियैक, मुदा आइ एतेक साल पर अहाँ सँ बात क’ क’ बुझाइए जेना सही मे कतौ जीवन मे आशा केँ संचार हेबे करतै, सब ठीक भ’ जेतैक।” ओ हकमैत बजलाह।
—”की भेल, अहाँ केँ मोन ठीक नहि अछि की ? अहाँ हकमि कियैक रहल छी ? दवाई लेलहुँ ? अपन ध्यान राखू।कहिया आबि रहल छी भारत वापस ? एहि बेर आयब त’ भेंट हेबाक चाही। बैंगलोर आबहि पड़त। संजीव सेहो अहाँक बारे मे पुछैत रहैत छथि ।” हम उन्मादित होइत बजने जा रहल छलहुँ।
—”कनि बोखार भेल अछि, दवाई नेने छी, जल्दी ठीक भ’ जेतैक । अहाँ चिंता जुनि करू।” फेर बाद मे फ़ोन करबाक बात कहि ओ फोन काटि देलखिन। हमर मोन कनि विचलित जकाँ भ’ गेल। एहेन सोझ आ सुच्चा लोकक संग कतौ एहेन होइक । पारिवारिक कलह सँ परेशान भेल इन्द्रनील केँ एतेक दुखी देखि हमरो मोन दुखी भ’ गेल।
किछु दिन फेर फ़ोन नहि आयल, त’ चिंता भेल। गूगल मेसेंजर पर मेसेज पठेलियनि। ओकरो कोनो जवाब नहि आयल । भेल जे कोनो काज मे बाझल हेताह।जखन समय भेटतनि, जरूर खबरि करता। संजीव पुछलाह, जे इन्द्रनील केँ की हालचाल। कहलियनि जे ठीक हेथिन, एहि बीच मे कोनो बात नहि भेल अछि ।

करीब दू सप्ताहक बाद हुनकर मैसेज आयल जे ‘बीमार रही, आब ठीक छी। समय भेटिते फ़ोन करब।’ तखन जाक’ कनि मोन शांत भेल।
दोसर दिन हुनकर फोन आयल। आवाज एखनो भरियायल लागल। हम पुछलियनि— “आब कोना छी?”
—”आरती, हमरा अहाँ केँ किछु कहबाक छल। हमर मोन ठीक नहि अछि।”
—”अहाँ एतेक परेशान नै होउ, जल्दी ठीक भ’ जायब। कनि आराम दियौ अपने केँ।”
—”नहि, आराम कयला सँ आब किछु नै होयत। हमरा कैंसर अछि। पिछला किछु दिन सँ कीमोथेरेपी करबैत छलहुँ। बीच बीच मे डॉक्टर लग जाक’ एडमिट भ’ इलाज केँ जारी राख’ पड़ैत अछि।आ ओहन समय मे ने फ़ोन देखि पबइ छी ने कंप्यूटर। दर्द सेहो खूब रहैत अछि।”
ओ बजने जा रहल छलाह आ हम मूर्तिवत ठाढ़ भेल काठ भ’ गेल रही। कान मे जेना सीसा ढारि देलक कियो। की कहियौन हुनका से बकारे नै फूटय । धम्म सँ कुर्सी पर बैसलहुँ, हाथ मे फ़ोन पकड़ने।
—”हेल्लो, आरती, अहाँ सुनि रहल छी ने ? हमरा माफ़ क’ दिय’ जे इ खबरि हम एना अहाँ केँ द’ रहल छी। हम नहि कहितहुँ , मुदा अहाँ सँ झूठ नहि बाजि सकैत छी।”
—”अहाँ माफ़ी कियैक मंगैत छी। हम की कहू, की पूछू। ई कहिया सँ भेल ? कतेक प्रश्न अछि, की कहू ? ” हम कानय लगलहुँ। हमरा ई विश्वासे नहि होइत छल जे जाहि व्यक्ति सँ हम एखन बात क’ रहल छी, ओ एहेन प्राणघातक रोग सँ ग्रस्त अछि, आ अपना जीवनक लड़ाइ असगरे लड़ि रहल अछि। ई कोना भ’ सकैत अछि। एखन हुनकर बयसे कतेक छनि। हुनका ई रोग कोना भ’ सकैत छनि। नहि , विधाता एतेक क्रूर कोना हेथिन। हुनका सनक सरल लोक, जे ककरो गलतियो सँ दुःख नहि पहुँचा सकैत छलाह, हुनका एहेन पीड़ाक अनुभव कियैक ? हमर माथ मे कतेको बात एकहि सँगे घूमि रहल छल।ओम्हर ओ फोनक ओहि कात सँ हमर मनोदशाक अनुभव क’ नेने छलाह शायद।
—”अहाँ एतेक अधीर नै होउ आरती, हम ठीक छी, शारीरिक त’ नहि, मुदा मानसिक रूपेँ हम कमजोर नहि छी। एहि बात केँ आब अंगीकार क’ नेने छी, आ एहि रोगक देल दर्द आब हमर जीवनक अंग भेल अछि। हमरा लग बहुत बेसी समय नहि अछि, आ बहुत काज करबाक अछि। अहाँ केँ ताकब आ अहाँ सँ गप्प करब अनिवार्य छल, से भेल, ताहि लेल हम परमात्मा केँ धन्यवाद दैत छियनि।”
—”अहाँ जँ हमरा नहि तकने रहितहुँ , हम कोना बुझितहुँ ई बात सब।”
—”अहाँ केँ ताकब हमर जरूरत छल। हमरा एकटा बात कहबाक अछि अहाँ केँ । आशा करैत छी जे सबटा बात सुनलाक बाद अहाँ हमरा क्षमा करब। लेकिन आब एहि बातक बोझ ल’ क’ हम अपन बचल किछु दिन नहि बिता सकैत छी।”
—”की बात छैक, अहाँ ई पहेली कियैक बना रहल छी। अहाँ केँ क्षमा मांगक कोन प्रयोजन? साफ़ साफ़ कहू।”
—”हम अहाँ केँ सबदिन सँ प्रेम करैत रहलहुँ, मुदा कहियो कहबाक साहस नहि भेल। हमरा होइत रहल जे यदि ई बात हम कहलहुँ, त’ कहीं अहाँक मित्रता सेहो नै गमा दी, आ से हम कोना क’ सकैत छलहुँ।अहाँ आइयो कहीँ हमर मित्र होबाक सौभाग्य सँ वंचित क’ देब, त’ हम शिकायत नहि करब। कम सँ कम आब हम अपन मोनक बात अहाँ केँ कहि देलहुँ, चित्त कनेक शांत भेल।”
हमरा मोन मे संजीवक कहल बात घूमय लागल। हम कहियो ई अंदाज नै कयने रही, मुदा संजीवक बात सुनलाक बाद, कतौ हृदयक कोनो कोन मे ई बात बैसि गेल रहय। आइ सएह बात सुनि रहल छी। हमरा चुप बुझि ओ हताश भ’ गेलाह, कननमुँह आ उदास भ’ गेलाह।
—”अहाँ परेशान नै होउ, अहाँ हमर मित्र छी, आ हमेशा रहब। अहाँ हमरा सँ प्रेम करैत रही, से हम त’ नहि बुझलहुँ, मुदा संजीव हमरा कहने छलाह। ओ कोना बुझलखिन, से नहि कहि ।”
—”ओह, हुनका पता चलि गेलनि, अद्भुत। आरती, अहाँ बहुत भागमन्त छी, जे एहेन प्रेम करय बला आ समझदार जीवनसंगी भेटल अहाँ केँ । हम ईश्वर केँ बहुत बहुत धन्यवाद दैत छियनि।अहाँ सनक शुद्ध हृदय लोक हम नहि देखलहुँ । आ यएह सरलता हमर मोन मोहि लेने छल। अहाँ सब बात केँ कतेक स्पष्ट तरीका सँ बुझि जाइत रहियैक, आ हमरो जीवन जीबाक कतेक सरल रास्ता सब देखेलहुँ। हम अहुँक आभारी छी। हमर बहुत रास स्वप्न अहीं दुआरे पूर भेल। अहाँ हमरा मे कतेक विश्वास देखेलहुँ। नहि त’ हम आइ एतेक सफल नहि भेल रहितहुँ, यदि अहाँ हमर मित्रवत संग नहि देने रहितहुँ । “
—”हम त’ किछु नहि कयने रही, अहींक भीतर सबटा गुण रहय, हमरा पूरा विश्वास रहय।”
ओ एकटा आर बात फरिछेला जे प्रणवक प्रेम पत्र लिखबा मे ओहो संग देने रहथिन, आ जहन हम ओहि बात पर रुष्ट भेल रही, त’ हुनका अपन संगीक लेल खराबो नहि लगलनि। स्वार्थी मोन, अपने लेल प्रसन्न भेल रहनि। आ जहन ताज होटल मे ट्रीट देने छलाह, तहन ओ अपन मोनक बात हमरा कहि देबाक लेल पूर्णतः तैयार रहथि, मुदा ओहि सँ पहिने हमर बियाहक बात सुनि हुनक मोनक बात मोने रहि गेल रहनि। आब हम सोचैत छी त’ बुझि पबैत छी, जे हुनका केहन लागल हेतनि, आ ओ हमरा बुझहो नै देलाह। हुनकर सँग बितायल अनेकोनेक क्षण आब ओहिना आँखिक सोझाँ घूमि रहल छल। लेकिन विधनाक लेख के मेट सकैए। जे हेबाक से हेबे करैत छैक। आइ दुनियाक दू कोन पर रहलाक बादो, ओ अपन मोनक शांति लेल एक गोट संगी केँ तकैत छलाह, आ हम ओहि तारक दोसर छोर पर हुनकर आस्था केँ , प्रेम केँ , मित्रता केँ थम्हने ठाढ़ छी।अपन एकटा अनन्य मित्र केँ टुटैत साँसक डोरी केँ , जे ओझरा गेल छल, तकरा कनि सोझराब’ मे ओकर मदति क’ रहल छलहुँ।
जहन संजीव केँ ई बात सब कहलियनि, हम अपन नोरक धार केँ रोकि नै सकलहुँ। ओ खाली मुस्काइत रहलाह, आ हमरा अपन बाँहि मे भरने बैसल रहलाह जाबत हम संयत नहि भ’ गेलहुँ। हम ईश्वर केँ मोनहि मोन धन्यवाद देलियनि, जे हमर संगी ,साथी , मित्र हमर संजीव हमरा सँगे छलथि। संगहि इंद्रनीलक प्रेमक एहन शांत, शिष्ट मुदा प्रखर रूपक आभास सेहो भ’ रहल छल। शब्दक सिमान सँ बाहर छल ओ अनुभूति।
हम पुछला पर जे एहेन अवस्था मे परिवार सँगे कियैक नहि रहय छी, ओ कहलाह जे ओहि परिवार मे जहन सबटा देखला,सुनला आ बुझलो पर कलह होइक, त’ शरीर सँ ह्रास होइत जीवन सँ बेसी मानसिक आ हार्दिक दुःख हुनका झेलब कठिन भ’ गेलनि। इलाजक बहन्ने , आ सब सँ दूर रहबाक रास्ता तकनेहे ओ वापस इंग्लैंड चलि गेल रहथि। अपन कंपनी केँ मेडिकल इनश्योरेन्स पर नीक इलाजो होइत छलनि ओहि ठाम आ किछु काज कयने पाइ सेहो होनि, जाहि सँ अपन बेटीक भविष्य ओ सुरक्षित कर’ चाहैत छलाह। कनियाँ आ बेटी लेल एकटा घर कीनि देने छलखिन। ओना त’ हुनकर कनियाँ नीक कंपनी मे ऊँच पद पर कार्यरत छलखिन, मुदा तखन इलाजो मे खूब खर्च होइत छलनि। जीवनक किछु दिन बढ़ाब’ लेल, बचल दिने आ समय बेचय पड़ैत छैक, से हुनका बूझल रहनि। जीवन हुनका लेल, एकटा युद्ध जकाँ भ’ गेल रहनि।
आब कहियो काल ओ फ़ोन करैत रहैत छलाह।हमर लिखलाहा कविता आ कहानी सब द’ सेहो पुछैत रहैत छलाह।जखन हम कहलियनि जे आब समय कहाँ भेटैत छैक, आ हमरा बुते आब नै होइए लिखल। की लिखू।
तखन ओ कहने छलाह, —” नै कहू जे समय नै भेटइयै।सब सँ बेसी भागमन्त छी, जे जीवन अछि।जे क’ सकैत छी, से जरूर करी। अपना केँ कहियो कमतर नहि बूझि, से त’ अहीं हमरा कहैत रही। अपने कोना बिसरि गेलियैक ? अहाँ केँ जरूर लिखबाक चाही। लोक केँ उपकार हेतैक।”
हमरा अपने बात सब मोन पड़य लागल छल । हम हँसि देलियनि । ओ वचन लेलाह, जे हम ई काज करबे करब। कहलाह, “जँ कियो नहि भेटय, त’ हमरे जीवनक खिस्सा लीखि देबैक । कतहु हमहूँ रहब अहाँक किताब मे, जीबैत सब दिनक लेल, अनंत तक।” हम वचनक पालन करबाक निश्चय कयने रही। ओ अपन उधार चुका देने छलाह।
एक दिन पता चलल जे ओ भारत वापस आबि गेल छथि, आ मोन बहुत ठीक नहि छनि।हमरा कहलाह जे यदि एक बेर भेंट होइतैक त’ खूब नीक लगितैक।हम गेलहुँ नॉएडा, हुनका डेरा पर । जीर्णशीर्ण तृषकाय भेल देह, केश सबटा झरि गेल कीमोथेरेपीक कारणे, डोका सन दूनू आँखि झलकैत, मुदा मुस्कान नहि बदलल रहनि, आँखि मे भरल अपनत्व एखनो ओहिना रहनि ।
ई ओ इन्द्रनील त’ नहि बुझाइत छलाह, जिनका बारह बर्ख पहिने देखने रही, लेकिन जखने ओ कहलाह —”आरती, आबि गेलहुँ ? हमरा बूझल रहय जे अहाँ सँ हमरा भेंट जरूर होयत।” एखनो आँखिक सोझाँ मे वएह भव्य चेहरा, घुमरल केश बला इन्द्रनील ठाढ़ भेल बुझाइत छलथि, मुदा कोनो आर दर्पण मे।एखनो ओहने आपकता, ओहने प्रेम आ आदर सँ भेंट भेलाह।हुनक कनियाँ कहलथि जे हमर खूब बात सब हुनका सुनौने रहथिन।बिना हमरा देखने ओ हमरा चिन्हैत छथि।हुनका कहने रहथिन जे आरती हमर बहुत अनन्य मित्र अछि।ओ हमरा भेंट करय एबेटा करत।
ओ दिन हुनकर पड़िवार आ हुनका सँगे खूब नीक बीतल।हँसी- ख़ुशीक बीच मे मोन मे जेना कोनो फाँस गड़ल हुए, जे लगातार हृदय केँ पीड़ा द’ रहल छल।मोन मे लगातार ई बात घूमि रहल छल जे आजुक भेंट शायद हिनका सँ अंतिम भेंट होयत।मुदा हुनकर चेहरा पर कोनो शिकन नहि छल।एकदम शांत आ स्मित हास्य, अद्भुत सन्तोषक भाव।शब्द शायद पर्याप्त नहि होइतनि।हुनकर आँखि मे कृतज्ञताक भाव देखि सकैत छलहुँ।
अपन अश्रुधारा केँ कहुना रोकि सकलहुँ, जखन ओ कहलाह, धन्यवाद, हमर बातक मान रखबाक लेल।हम खाली यएह बुझबाक प्रयास क’ सकलहुँ जे प्रेमक ई केहन पराकाष्ठा अछि। ओ हँसैत हमरा विदा कयलाह, आ हम नोरायल मोने बहरेलहुँ हुनकर डेरा सँ।
किछु दिनक उपरान्त, एक दिन हम हुनका फ़ोन केलियनि।फ़ोन नहि उठेलाह।भेल जे कहीं हॉस्पिटल ने गेल होथि।साँझक पहर हुनकर फोन आयल त’ हम पुछलियनि, — “कत’ रही ? भोर सँ कोशिश क’ रहल छी, फ़ोन नै उठबै छलहुँ।कोना छी आइ?”
त’ दोसर दिस सँ अनजान आवाज सुनलियै।ओ हुनकर पिता छलखिन।कहलथि जे ओहि दिन भोरे इंद्रनीलक हालत बहुत खराब भ’ गेलनि आ हुनका अस्पताल ल’ जाइत गेलखिन आ आब ओ नहि रहलाह।हम सन्न भ’ गेलहुँ।जखन हम हुनका फ़ोन करैत छलियनि, हमरा होइत रहय जे हुनका बात करबाक छनि, आ ओहि समय मे देह त्यागि देने छलाह।नोर सुखा गेल छल, किछु बाजियो नै सकलहुँ।आँखि मुनि क दिवंगत आत्मा केँ शांति लेल प्रार्थना कयलहुँ।
अपन ललका डायरीक पछिलका कोनो कागज पर एतबे टा लिख सकलहुँ, “आइ एकटा आत्मा अनंत आकाश मे तारा बनि चमकय लेल विदा लेलाह।-5/3/2012″।
संजीव हमरा सब तरहेँ हमर संग देलाह आ कहलाह जे समयक सँगे सब केँ जीवनक सत्यक सामना करैए पड़ैत छैक।किछु दिन हम बहुत व्यथित रहलहुँ।मुदा फेर हुनकेँ बात मोन पड़ल, जे जीवनक ध्येय केँ कखनो नै बिसरबाक चाही।हमरा हुनका देल वचन केँ पालन सेहो करबाक छल।अपन लेखन मे निरन्तरता अनलहुँ आ हमर कथा संग्रह किताबक रूप मे सेहो आबि गेल।
आब जहन ई किताब सब संगी-साथी केँ पठेलहुँ, त’ हुनकर स्मृति केँ बिसरि जायब असम्भव छल।ओ अपन ऋण उतारि चुकल छलाह, आ हमरा प्रेमक अनन्य रूप सँ अवगत करा गेल छलाह।
हमर तन्द्रा भंग भेल टिटहिक पिहकारी पर, जे झीलक काट मे कोनो गाछ पर अनघोल मचेने छल।सूर्य अस्ताचलगामी भेल डूबि चुकल छल आ दुतियाक चान दूरहि सँ साँझक आगमनक सूचना दैत जेना मुस्किया रहल होइक।अकाश मे सद्यः एकटा तारा खूब झलफल भ’ चमकि रहल छल।ई दृश्य हमर मुस्की वापस अनबाक लेल बहुत रहय।काफीक मग नेने हम ठाढ़ रहलहुँ कनि काल, ओहि तारा केँ देखैत ।

शारदा झा मूलतः कवियित्री छथि। मैथिली-हिन्दी दुनू मे लिखैत छथि। BHU सँ पढ़ल-लिखल शारदा झा दर्शनशास्त्र आ अंग्रेजी सँ स्नातकोत्तर छथि। हिन्दी मे एकटा कविता संग्रह ‘तेरे ख्यालों के धूप मे’ (क्रिएटिव कैंपस, हैदराबाद), मैथिली मे दू टा कविता-संग्रह क्रमशः ‘प्रेम कविताक बाद’ (क्रिएटिव कैंपस, हैदराबाद) आ ‘बीति जयबाक क्रम मे’ (नवारम्भ, पटना/मधुबनी ) आ एकटा अजित आजादक मैथिली कविता-संग्रह ‘मृत्यु थिक विचार’क अंग्रेजी अनुवाद ‘Death Is Notion’ (नवारम्भ, पटना/मधुबनी ) सँ प्रकशित-प्रशंसित छनि। हैदराबादक ‘गंगेज वैली’ विद्यालयक उच्च-माध्यमिक संकाय मे अंग्रेजीक HOD शारदा झा एखन सपरिवार ओतहि रहैत छथि। हिनक कथाक मादे नीक-बेजाय हिनक ईमेल jhasharda@gmail.com पर सम्पर्क क’ देल जा सकैत अछि।