माया आइ छत्ता ल’ गेनाइ बिसरि गेल छल। बस स्टॉप सँ डेरा तक अबैत-अबैत पूरा भीजि गेल।
माया अपन परिवारक संग बैंक कॉलोनी मे रहैत छल। किछु नै त’ आधा किलोमीटर दूर हेतै कैम्पसक गेट सँ ओकर डेरा। ओहि कॉलोनीक भीतर दुबगली गुलमोहर आ अमलतासक गाछ सब सिहकैत ठाढ़ रहैत छैक, आबै- जाइ बला सब केँ छाहरियो दैत छैक आ कखनो काल जँ फूही परल त’ ओहू सँ बचाव भ’ जाइत छैक। जाहि दिन उबेर रहलै, त’ माया गाछ बिरिछ केँ देखैत, कान मे इअरफ़ोन लगौने गीत सुनैत डेरा चलि अबैत छल। मुदा, आइ से नहि भेलै।
पछिला दू साल सँ माया इंजीनियरिंग कॉलेज संस्थानक बस सँ जा रहल छल। मैकेनिकल मे छल ओ। यैह ओकर यातायातक प्रबन्ध छलै। बड्ड आराम सेहो। नगरक यातायात मे लागल बस सब मे जखन तिल रखबाक जगह नहि देखाइत छैक, त’ लोक कत’ सँ सन्हियाओत। मुदा उपाय नहि रहने, ताहू मे लोक घुसियाइये जाइए। कोना क’ लोक साँस लैत अछि ओहि कोचमकोच भेल बस मे, माया केँ आश्चर्य होइत छलै।
ओहि पियरका बस मे कॉलेजक छात्र सब जाइत छैक, जे नगरक विभिन्न स्थान मे रहैत छैक। इंजिनीयरिंगक सब सालक अलग- अलग डिपार्टमेंटक सीनियर- जूनियर सब अबैत जाइत रहैत छल ओहि बस सँ। आपस गप्प-सरक्का करैत लोक कॉलेज पहुँचैत छल। अपन- अपन अभिरुचि आ व्यवहारक अनुसार सब विद्यार्थीक अपन-अपन मित्र आ मित्रता सेहो यात्रा करैत छल ओहि बस मे।
ओकर कंडक्टर भोला बड्ड नीक लोक। बयस यैह करीब 18 साल। मात्र स्कूल धरिक शिक्षा भेटल छैक ओकरा। आगाँ पढ़ि नहि सकल।बापक मुइलाक बाद ओकरे स्थान पर अनुकम्पाक आधार पर ई नोकरी भेटल छलै ओकरा। एहि कॉलेज मे कोनो वोकेशनल कोर्स मे नाम लिखेबाक जोगार सेहो भ’ गेलै रहै ओकरा। ओ अपन काजो करैत छल आ ओकर बात बनबैक कलाकारी सँ सभक मोन सेहो लागल रहैत छलैक। एहि मे ओकरा मात्र बसक पास चेक करबाक काज रहैत छलैक, सेहो रोजाना नहि। ओकरा सबहक पासक वैधता खत्म होयबाक तिथि मुँहजबानी मोन रहैत छैक।
माया आ अरविन्द संगहि बैसल करैत छल। पहिने मायाक स्टॉप अबैत छलै आ तकर दू स्टॉपक बाद अरविन्दक।
आइ कॉलेज सँ घुरबाक काल, अरविन्द संगे नहि आयल छलैक। माया असगरे बस पर चढ़ल छल। मेघ मात्र बाहर अकासे पर नहि लागल छलैक, अपितु ओकर चेहरा सेहो श्यामवर्णी भेल छलैक। ओकरा ओकर संगी किछु पुछलकै, मुदा जेना माया किछु सुनबे नहि कयलकै। ओ बस पर चढ़ि, यंत्रवत अपन जगह पर बैसि रहल।
भोला सेहो पुछलकै, ” दीदी, अरविन्द भैया नहि अओथिन की? बस केँ कनी काल रोकियौ की?”
“हमरा नहि बूझल अछि,” कहि माया दोसर दिस तकबाक चेष्टा कयलक।
साँझ भेल जाइत छलैक। एक्स्ट्रा क्लासेज सेहो समाप्त भ’ चुकल रहै, आ प्रायः सब विद्यार्थी सब बस मे बैसि चुकल छल। मात्र किछु गोटेकेँ छोड़ि क’ , जकरा कॉलेज सँ कतहु आन-ठाम जयबाक विचार रहैत छलैक , से पहिने सँ भोला केँ कहि देल करैत छलैक। आइ अरविन्द भोला केँ कोनो समाद नहि पठौने छलै आ माया सेहो किछु नहि कहलकै, त’ बस चलि पड़लै।
मायाक आँखिक सोझाँ अन्हार भेल छलैक। कहुना क’ ओ अपना भीतर उठैत बवंडर केँ शांत रखबाक चेष्टा क’ रहल छल। ओ विश्वास नहि क’ पाबि रहल छल, जे आइ भेलै से की सत्ते भेलैक आ कि ओकर स्वप्न मात्र छलैक? हाथ पर जखन नोरक बुन्न खसलैक, त’ ओकरा ज्ञान भेलैक जे ओ कानि रहल छल। जल्दी- जल्दी ओ चारू कात देखलक जे किओ ओकरा कनैत देखलकै त’ नहि। ओ आँखि पोछि क’ फेर बाहर देख’ लागल, आ कहुना क’ अपना केँ संयत कएलक।
बस सँ आब बाहर नहि देखा पड़ि रहल छलैक। मूसलाधार बरखा शुरू भ’ गेल रहैक, खिड़कीक शीशा पर मायाकेँ अपनहि प्रतिबिम्ब देखा रहल छलैक। ओ सोच’ लागल जे कोना क’ प्रकृति सेहो ओकर मोनक हाल बुझि ओकर हृदयक अयना बनि गेल छलैक। अरविन्दक कहल बात सब आ अपन मोनक संशय सब मे ओझरायल ओकरा सोह नहि रहलैक जे कखन ओकर स्टॉप आबि गेलै।
भोला ओकरा टोकलकै आ कहलकै, “माया दीदी, अहाँक स्टॉप आबि गेल। डेरा नहि जेबै की?”
त’ जेना ओ निन्न सँ जागल।ओकर ध्यान एखनहुँ अरविन्द आ गणेशक बात मे ओझरायल छलैक।
“हँ, हँ, जेबै की,” नहुँए सँ कहैत ओ अपना सीट सँ उठल।
“दीदी, बहुत जोर बरखा भ’ रहल छैक, अहाँक छत्ता आइ संगे नहि अछि की? एना मे त’ भीज जायब !” भोला सस्नेह कहलकै। भोला देखने ओकर भीजल आँखि देखने रहैक आ ओहि सँ बहैत नोर सेहो। ई दुनू दीदी आ भैया ओकरा बड्ड मानितो छलैक, ताहि सँ भोला केँ ओकरा सबपर बड्ड स्नेह रहैत छलैक।
माया कनि सम्हरल आ बाजल,” नै कोनो बात भोला, हम चलि जायब। बेसी दूर नहि छैक। कहियो काल बरखा मे भीजब सेहो नीक होइत छैक। भीजल मोन बरखा मे नहि देखार होइत छैक।”
एकटा बनावटी मुस्कान ठोर पर सटने, माया बस सँ उतरि डेरा दिस बढ़ि गेल छल। आब बरखा मे भीजैत ओकर आँखिक बान्ह सेहो टूटि गेलै। बरखाक पानि कनेक नोनगर भेलै आ ओकर आँखि ओहि नोन सँ लाल भ’ गेलैक।
डेरा पहुँचैत देरी माय सोझाँ पड़लखिन। माया केँ देखि पुछलखिन,” बेटा, छत्ता नहि ल’ गेलहिन आइ? देख त’, पूरा भीज गेलें। तोहर आँखि किए एतेक लाल छौ? बोखार त’ नहि छौ, देखियौ, एम्हर आ त’!”
माया एखन मायक कोनो प्रश्नक उत्तर देबाक स्थिति मे नहि छल। ओ बाजल, ” माँ, हम ठीक छी। बोखार नहि अछि। ओ बरखा मे भीजैत एलियै ने, से पानि आँखि मे गेल अछि, तैं लाल बुझाइत हेतौ।”
माय ओकरा गमछा दैत कहलखिन,” जो कपड़ा बदलि ले, नहि त’ सर्दी भ’ जेतौ।”
“माँ, अपन हाथक स्पेशल कॉफ़ी बना दे, माथ दुखा रहल अछि। से पीलाक बाद हम ठीक भ’ जायब। बस कनी थाकि गेल छी, तू चिंता नहि कर,” कहैत ओ अपन कमरा दिस आगाँ बढ़ि गेल।
कपड़ा फेरि ओ ओछाओन पर बैसल। ओ एखनहुँ अरविन्दक कहल बात सबकेँ ठीक सँ आत्मसात नहि क’ पाबि रहल छल। एना कोना सब बात एतेक बदलि गेलैक, आ कहिया? कहाँ देखेलैक ओकरा ओ सब कहियो, जे आइ ओकरा सोझाँ एना क’ एलैक, आ ओकर जीवन मे बिर्रो उठा देलकैक।
ओकर मोन अप्सियांत जकाँ लागि रहल छलैक। ओ खिड़की खोलि क’ ठाढ़ भेल। चारिम तल्ला पर सँ दूर धरि देखा पड़ैत रहै। क्षितिज धरि पसरल बुझाइत छलै तखन कॉलोनीक अंदर बनल ओ मैदान, जाहि पर बरसैत पानि केँ ओ देखि रहल छल। ओकरा भेलै जेना ओकर जीवन एखन एहने खाली मैदान सन भ’ गेल छैक।
माय कॉफी ल’क’ एलखिन। “ले, हइये पी ले, तोहर पसिन्नक कॉफी। की भेलौ? एना मुंह किए सुखायल छौ? अरविन्द सँ कोनो बात पर झगड़ा भेलौ फेर की?” माय बिहँसैत पुछलखिन।
” नै माँ, एहि बेर बात छोट- छिन नहि छैक।”
“बेटा, ओ बड़ समझदार बच्चा छैक। तोहीं किछु ने किछु बचकाना बात सब सँ ओकरा तंग केने रहैत छहीं। मोन शांत क’ क’ विचारहि। हमरा पूरा विश्वास अछि जे ओ कोनो अनर्गल बात नहि कहने हेतौ। कॉफी पी, आ कनेक काल सुति रह, हम रतुका भोजनक ओरिआओन मे लगैत छी।” माय ओकर माथ केँ चूमि क’ उठि गेलखिन।
माया मायकेँ जाइत देखैत रहल। कतेक सोझ आ सहज जीवन छैक ओकर मायक । कोनाक’ बुझि सकतै ओकर सुमति माय, जे जीवन आ समाज एतेक सहज कहाँ रहि गेल छैक। आजुक दिनक पूरा प्रकरण ओकर आँखिक सोझाँ मे फेर सँ नाचि उठलैक।
अरविन्दक संगे कतेक उल्लास सँ ओ भोर मे कॉलेज गेल छल। बस सँ उतरैत देरी ओ देखलकै जे बस डिपो पर सब दिन जकाँ गणेश अरविन्दक प्रतीक्षा मे ठाढ़ रहै। दुनू एकहि स्ट्रीम मे, अर्थात इलेक्ट्रिकल मे पढ़ैत रहै। दुनू ओकर सीनियर, मुदा गणेश माया केँ बड़ मानैत छलैक। अरविन्द आ ओकर बीच जँ कोनो नोक-झोंक होइ, त गणेशहि रेफरीक काज करैत छलैक। तीनू एकहि संगे कॉफी शॉप जाइत छल, सिनेमा आ नाटक इत्यादिक प्रोग्राम संगहि बनबैत छल।
अरविन्द एकटा विशिष्ट व्यक्तित्वक मालिक छल। पढ़’- लिख’ मे तेज, वाक्-पटु आ सहृदय लोक। एहि सब गुणक कारणे ओ कॉलेजक छात्र-संघक सचिव सेहो छल। सबकेँ अपना दिस आकर्षित करबाक लेल ओकरा किछु अलग सँ नहि क’र’ पड़ैत छलैक। ओ बस अपन सहज रूप मे सबकेँ प्रभावित करैत छलैक।
माया सेहो ओहि व्यक्तिक जादू सँ प्रभावित भेल बिना रहि सकल छल। दुनू गोटेकेँ नीक लगै एक-दोसराक संग। गणेश अरविन्दक अभिन्न मित्र रहै, सब समय संग। पढ़ब – लिखब मे ओहो बड़ तेज। माया केँ नीक लगै गणेशक बात सब, ओ अरविन्दक जीवनक अनेक बात सब कहैत रहैत छलैक ओकरा आ अरविन्द बिहुँसैत देखैत रहैत छल।
आइ गणेश बेस प्रसन्न छल, आ बस सँ उतरैत देरी अरविन्द ओकरा भरि पाँज पकड़ि मुबारकबाद देलकै। माया देखैत रहल, मुदा बुझि नहि सकल जे बात की छैक। ओकरा त’ अरविन्द एहन कोनो बात नहि कहने रहै जे ओ एहि आह्लादक कारण बुझि सकितय । ओ पुछकै, ” की बात छैक? कनि हमरो कहियौ मित्रगण, हमहूँ अहाँक सभक प्रसन्नताक सहभागी बनी।”
“हँ, हँ, किएक नहि। की अहाँ समाचार नहि सुनलियैए, जे सर्वोच्च न्यायालय धारा 377 केँ निरस्त क’ देलकै? गणेशकेँ आब अपमानित नहि हुअय पड़तैक, मुँह नुकयबाक काज नहि छैक आब! ससम्मान जीवन जीबाक बाट खोलि देलकैए सर्वोच्च न्यायालय,” बिहुँसैत बाजल छल अरविन्द।
माया भौंचक रहि गेल छल। इ की कहि रहल छलैक ओकर अनन्य मित्र? धारा 377? ओ बात बुझबाक प्रयत्न क’ रहल छल। की गणेश समलैंगिक अछि? अरविन्दकेँ ओकरा प्रति एतेक स्नेह किएक छैक? की दुनू एकहि संग छल, एतेक समय मे ओकरा किएक नहि देखेलैक एहन सन किछुओ? की ओकरा संग छल भेल रहै? ओकर माथ घूम’ लगलैक। ओकर मुँहक भाव देखि, गणेश परिस्थिति बुझि गेल रहै।
ओकरा दिस बढ़ल, ओ संयत भावे पुछलकै, “की भेल? अहाँ ठीक छी कि ने?”
माया किछु नहि बाजल, ओकरा जेना बकौर लागि गेल रहै। ओ बाजल, ” हम ठीक छी, हमर क्लासक समय होइए, हम जाइत छी,” कहुना अपन नोर केँ बान्हि ओ विचित्र भाव सँ अरविन्द दिस एक बेर तकलक आ आगाँ बढ़ि गेल।
अरविन्द कहैत रहलै,” अरे, की भेल? हमर बात त सुनू एकबेर… एना केना किछु सुनि, किछु बुझि क’ अहाँ…”
गणेश ओकर पाछाँ दौड़ल मुदा माया ओकरो बात नहि सुनलकै।
ओ चलि आयल अपन प्रेम केँ पाँछा छोड़ि क’, अपन मित्र गणेश केँ त्यागि क’। ओ कतहु भागि जाय चाहैत छल। ई की भ’ रहल छैक, ओकरा समझ सँ बाहर छलै। तखने ओकर ओकर फोन पर अरविन्दक एकटा मैसेज एलै।
‘ क्लास भ’ जाए, त’ कैंटीन मे आउ। किछु गप्प करबाक अछि। हम प्रतीक्षा मे छी।’
माया फोन बन्द क’ देलक। ओ ककरो सँ भेट कि कोनो बात नहि कर’ चाहैत छल। मुदा एहन मानसिक अवस्था मे ओ की पढ़ि सकैत छल? ओकर आँखिक सोझाँ मे अरविन्द आ गणेशक चेहरा नाचि रहल छलैक। ओकर मोन घोर भ गेल रहै। अपमानित होयबाक अनुभव क’ रहल छल। ओ क्लास सँ बाहर आबि गेल।
नहुँए- नहुँए ओ कैंटीन दिस बढ़ल। आइ जे भेल से ठीके भेलै, ओ सोचलक। नहि त’ ओ अन्हारे मे रहितय।
पहुँचि क’ ओ देखलक जे अरविन्द असगरे ओकर सबहक सबदिनका ठेही पर अरथात कोन बला टेबुल पर बैसल छल। हाथ मे बड़का कॉफीक मग छलैक, आ ओ ओहि मे किछु देखि रहल छल। ओ नहि बुझि सकल कखन माया आबि क’ ओकर सामने बला कुर्सी पर बैसि गेल रहैक।
अरविन्द केँ जखन भान भेलै, ओ ऊपर तकलक, आ बिना कोनो तरहक लाग लपेट के ओकरा दिस अपन कॉफीक मग बढ़ेलकै,” लिय’ पीबू। अहाँकेँ पसिन्न अछि ने?”
“हम आब ई नहि पीबि सकैत छी। एहि पर हमर कोन अधिकार अछि?” दोसर दिसि देखैत, ओ नोर भरल आँखि झाँपि लेलक।
“अहाँ की बात करैत छी? की भेल? की अजुका बात सँ अहाँ ई बुझलहुँ जे गणेश आ हमरा बीच कोनो अन्य तरहक सम्बन्ध अछि? ओकरा हम जाहि बातक लेल बधाइ देलियै, तकर अहाँ यैह मतलब निकाललहुँ?”
” त’ की बुझबाक चाही हमरा? अहाँ हमरा कहि दितहुँ, हम अन्हार मे त’ नहि रहितहुँ? हम ठकायल सन त’ नहि रहितहुँ? गणेश अहाँक मित्र छथि से त बुझले छल, मुदा एहन ‘अंतरंग’ मित्र छथि से हम कोना बुझितहुँ?”
“अहाँ जेहन बात बुझि रहल छियै, तेहन कोनो बात नहि छैक। अहाँ हमर बातक विश्वास करू।”
” कोना विश्वास करू हम अहाँक? एतेक दिन मे कहियो किछु नहि कहलहुँ अहाँ। आइ जे हम देखलहुँ आ सुनलहुँ, हम की बूझू?”
” जँ हम किछु कहितहुँ त’ अहाँ मानि लितहुँ की? आइ जँ अहाँकेँ हमरा पर अविश्वास भ’ रहल अछि, त’ ओकरा हम दूर नहि क’ सकैत छी। अहाँ स्वतंत्र व्यक्तित्वक स्वामिनी छी, आ हमरा एहि बातक गर्व अछि। अहाँक सोच संकुचित विचारधारा सँ अलग लगैत रहल अछि हमरा। अहाँ अपन विचारक लेल स्वतंत्र छी। आब अहाँ हमर बात सुनू। आ तकर बाद आराम सँ विचारब जे अहाँक व्यवहार कतेक तर्कसंगत अछि आ अहाँक मोन आ प्रेम कतेक व्यापक।”
एकटा अल्पविरामक बाद अरविन्द पुनः बाजल, “गणेश एकटा बड्ड व्यवहारिक आ बुझनुक लोक अछि। हमरा ओकरा सँ बहुत दिनक मित्रता अछि। ओ बहुत घृणा आ अवहेलना सहिचुकल अछि जीवन मे। ओकर परिवारो ओकरा मात्र तिरस्कार देलकै। किओ ओकर जीवनक अलग ढंग सँ जीबाक लिलसा केँ बुझि नहि सकलै। ओ बहुत हिम्मत कय परिवार मे कहने रहै जे ओ किछु अलग अछि। समलैंगिकताक बात बुझितहि ओकर पिता ओकरा घर सँ निकलि जाय लेल कहलखिन। हुनका एहि बातक विश्वासे नहि होइन जे हुनकर पुत्र एहन कोना भ’ सकैत अछि। एतेक निर्लज्ज आ संस्कारहीन! गणेश निकलि गेल। माय बुझबैत रहलखिन जे ओ जिद छोड़ि घर आपस भ’ जाय। मुदा ओकर कहब रहै जे पिताक आँखि मे जे भाव छलन्हि तकरा ओ कोना क’ सहितय।
ओकर माता -पिता आइयो ओकरा सँ गप्प नहि करैत छथिन। लोक केँ कहैत छथिन बुझि लेल, एकटा बेटा छल, ओ मरि गेल। एहन कुलबोरन केँ ल’क’ कोन पाप काटब।
ओ बड्ड सहलक अछि। ओ जखन हमरा ई बात सब कहलक, हम ओकरा कहलियैक जे ओ हमर मित्र अछि, आ सबदिन रहत। ओकर समलैंगिक भेनाइ कोनो तरहेँ हमर मित्र होयबा मे बाधक नहि भ’ सछैक। हमरा दुनूक बीच जे प्रेम आ विश्वास अछि ताहि मे कोनो तरहक बदलाव नहि भेल।
हमर विश्वास आ प्रेम देखि ओ कानल छल, माया। आजुक परिवेश मे लोक केँ मनुष्य बुझाबक खगता छैक। नीक- बेजायक नपना हमर-अहाँक आ समाजक बनायल छैक।
हम, अहाँ कि किओ आन, के होइत छैक ओकर जीबाक अधिकार छीन’ बला? कतेक बेर सरकार सँ, समाज सँ ओ आ ओकर सनक लोक सब अपन अधिकारक मांग कयलक अछि, मुदा हमसब हृदयविहीन समाजक हिस्सा छी। अपना सँ बाहर कहाँ किछु देखाइत अछि हमरा सबकेँ?
ओ हमर मित्र अछि, आ सब दिन सैह रहत। हँ, एक बात आओर, हम ओकर प्रेमी नहि छी। ओकर प्रेमी चण्डीगढ़ मे मेडिकल फाइनल इयरक छात्र छैक। हम ओकरो जनैत छियैक। नीक लोक छैक, समाजिक लोक छैक ओहो।
हम गणेशक औनाहटि आ पीड़ा देखने छियै। लोकक नजरि मे, अपन परिवारक नजरि मे अपना लेल ओ वैह प्रेम आ आदर देख’ चाहि रहल अछि ,जकर ओ हकदार अछि। से मनुष्यक गरिमा आ ओकर सेहन्ता करबाक अधिकार केँ छीन’ बला हम कि अहाँ के?
आब बेसी किछु कहबाक खगता नहि बुझि पड़ैत अछि हमरा। अहाँ अपन जीवनक निर्णय लेबाक लेल स्वतंत्र छी।अहाँ बिचारू जे की सही आ की गलत अछि, आ समाज मे प्रत्येक प्राणीक की जगह होयबाक चाही। समाजिक मर्यादा आ मनुखक जीवनक सम्बन्ध मे आइ जे निर्णय न्यायालय लेलक अछि, से सर्वमान्य हेतैक कि नहि, हमरा नहि बूझल अछि, मुदा हम अपन मित्रक लेल प्रसन्न छी।”
एतबा कहैत, अरविन्द उठि क’ चलि जाइत रहल। माया सबटा सुनि लेलक, ओकर हृदय जमि गेल छलैक। की सही, की गलत? ओ ओझरा गेल छल। अरविन्द की सही नहि कहि रहल छलैक? वैह अरविन्द जकरा सँ ओ प्रेम करैत छल, जकर सब बात ओकरा दुनिया सँ फराक, आदर्श बुझाइत रहल छलैक आइ धरि, अचानक ओकरा लेल बदलि कोना गेलैक? की प्रेम पर, ‘सोशल कंडिशनिंग’ हावी नहि भ’ गेलैक?
कोना क’ ओ मानि लिअय अरविन्दक सबटा बात? कोना भरोस करए ओ सब बात पर? अपन प्रेम पर त’ ओकरा भरोसा छलै, मुदा…। ई केहन दुविधा छलैक? ओ किए स्वीकार नहि क’ पाबि रहल अछि गणेशक सत्य? कतेको बात ओकर मोन मे घुरियाइत रहलै। प्रश्नक अमार केँ उघैत माया जखन बाहर आयल कैंटीन सँ, देखलक जे अरविन्द गणेशक संगे क्लास दिस जा रहल छल।
दूर कॉलेजक पाछाँ सँ कारी मेघ उठि रहल छलैक। ओ अपन पर्स मे हाथ द’ छत्ता तकलक, मुदा से नहि भेटलै। ओ आइ छत्ता बिसरि गेल छल।
शारदा झा मूलतः कवियित्री छथि । मैथिली-हिन्दी दुनू मे लिखैत छथि । BHU सँ पढ़ल-लिखल शारदा झा दर्शनशास्त्र आ अंग्रेजी सँ स्नातकोत्तर छथि । हिन्दी मे एकटा कविता संग्रह ‘तेरे ख्यालों के धूप मे’ (क्रिएटिव कैंपस, हैदराबाद), मैथिली मे दू टा कविता-संग्रह क्रमशः ‘प्रेम कविताक बाद’ (क्रिएटिव कैंपस, हैदराबाद) आ ‘बीति जयबाक क्रम मे’ (नवारम्भ, पटना/मधुबनी ) आ एकटा अजित आजादक मैथिली कविता-संग्रह ‘मृत्यु थिक विचार’क अंग्रेजी अनुवाद ‘Death Is Notion’ (नवारम्भ, पटना/मधुबनी ) सँ प्रकशित-प्रशंसित छनि । हैदराबादक ‘गंगेज वैली’ विद्यालयक उच्च-माध्यमिक संकाय मे अंग्रेजीक HOD शारदा झा एखन सपरिवार ओतहि रहैत छथि । हिनक कथाक मादे नीक-बेजाय हिनक ईमेल jhasharda@gmail.com पर सम्पर्क क’ देल जा सकैत अछि ।