एक टा भव्य विवाह भवन। रंग-रंग केर खान-पीनक ओरियाओन। बरियाती सभ जलपान , चाह मे मगन। जयमाल कराओल जेतैक ताहि लेल कनिआँ – ब’र केँ चकरी जकाँ घूमैत स्टेज पर चढ़ाओल गेलैक । लाउडस्पीकर पर गीत बाजि रहल छल “जेहने किशोरी मोरी तेहने किशोर हे, विधना लगाओल जोड़ी केहन बेजोड़ हे ”। ब’र कनिआँ एक दोसरा केँ माला पहिरौलनि कि बड़ी जोर सँ फटक्काक अवाज भेल। हम चेहाय उठलहुँ । बड़ अजगुत लागल । ई की सभ सपनाय लगलहुँ हम ? मोबाइल मे समय देखलहुँ त’ साढ़े तीन।एखन दू घंटा देरी छल फरिच्छ हेबा मे।बाथरूम सँ आबि फेर सँ सुतबाक प्रयास करय लगलौं।मुदा एक बेर निन्न टुटि गेल त’ फेर सँ निन्न पड़ब कठिन हमरा लेल। धियान चलि गेल ओहि बौक-बहीर बालिका पीहू पर । कोना ओकरा सँ सिनेह जुड़ि गेल रहय , से सभटा बितलाहा आँखिक सोझाँ आबय लागल ।
जाड़क मास छल । भोरे-भोरे बालकोनी मे बैसलि रौद तपैत रही । आठ बजैत-बजैत देखलहुँ बगल बला चारि मंजिला घरक बाहर जे पोर्टिको सन बनल छैक ताहि मे सात-आठ बरख सँ ल’ क’ पनरह- सोलह बरख धरिक बहुत रास बच्चा सभक जुटान भेल अछि । एकहि रंगक परिधान। बुझबा मे आबि गेल जे ई सभ कोनो विद्यालयक विद्यार्थी अछि ।
ई अपने टहलबाक लेल पार्क गेल छलथि । घर मे पैर धरितहि हम एक्कहि संग दू-तीन टा प्रश्न क’ देलियनि- ” इंजीनियर साहबक घरक बाहर बच्चा सभ कियैक जमा छनि ? कोनो विद्यालय खुजलैक की ? अहाँ केँ त’ भेंट-घाँट होइत रहयै हुनका सँ , किछु कहने नहि छलथि ? बड्ड गहीँर लोक छथि मुदा इंजीनियर साहब ।”
”- हँ-हँ, कहने छलथि । मास दिन पहिनहि कहने छलथि । अगिला चौबट्टी पर ओ मूक-बधिर बच्चा सभक सरकारी स्कूल जे छैक ताहि मे किछु मरम्मतिक काज करेबाक छैक , त’ हिनका सँ साल भरिक लेल भाड़ा पर लेलकैक अछि विभाग। छओ मास सँ खालीये पड़़ल छलनि , द’ देलखिन निचाँक तीनू तल्ला ।”
”- ऐँ यौ ! अहाँ केँ मास दिन सँ बूझल छलय आ हमरा किछु टेर नै लागल ! अहूँ नै कहलहुँ ! केहेन विचित्र लोक छी ! धुर जाउ…।”
” -अहाँ कखन हमरा लग बैसैत छी थिर भ’ क’, जे अहाँ केँ हम कोनो बात कहब । जखन देखू तखन कथे कि निबंधे । ई कोन नबका रोग उपड़ि गेल अछि से नहि जानि !”
”- आब छोड़ू ई सभ बहन्ना , हमरा जँ कतहु सँ कोनो नब समाचार सुनबा लेल भेटैत अछि त’ हम सभ सँ पहिने अहीँकेँ सुनाबय लेल आतुर रहैत छी । हमरा सँ प्रेम रहत तखन ने हमरा किछु कहब ।”
”- अहाँ बात केँ कतय सँ कतय ल’ जाइत छी , ओह ….. अहाँ सँ बात मे हम जीतब कहियो ।”
हुनका संग बहस करैत बुझलहुँ जे पड़ोस मे आब किछु दिन मूक वधिर विद्यालय चलत ।
ओना तँ भोरका उखड़ाहा मे सभदिना हमर बेसी समय बालकोनी मे बीतैत छल । मुदा जाहि दिन सँ ई मूक-बधिर विद्यालय बगल मे चलय लागल ताहि दिन सँ त’ जेना नियम बनि गेल छल जे जा धरि विद्यालय मे प्रार्थना संपन्न भेला उत्तर सभ विद्यार्थी अपन अपन कक्षा मे नहि चलि जाइत ताधरि हम बालकोनी सँ टस-सँ-मस नहि होयब ।बालकोनी मे बैसलि अखबार पढ़ैत , बागवानी करैत , तरकारी कटैत वा आनो काजक संग मूक-बधिर विद्यार्थी सभक गतिविधि पर सेहो धियान रहैत छल हमर । देखैत रहैत छलहुँ ओहि मूक-बधिर विद्यार्थी सभक विद्यालय आयब , अपना मे हाथ आ मुँह-कान चमकाबैत , सांकेतिक भाषा मे बतियायब ।
सभदिन देखैत सुनैत एतबा बुझबा मे आबि गेल छल जे कोन बच्चा अपन बाप संग विद्यालय आबैत अछि आ ककरा माए छोड़य आबैत छैक । कोनो-कोनो संपन्न घरक बच्चा चरिचक्का सँ ड्राइवर संग आ कोनो कोनो बच्चाक संग त’ ड्राइवरक अलावे कोनो स्टाफ वा माय / बाप सेहो , तेना ओरिया-पोरिया क’ विद्यालय अनैत छलैक , जेना जरैत दीप केँ बिहारि सँ बचबैत होइक । सभ बच्चाक अपन-अपन भाग्य । हेंजक हेंज विद्यार्थी सभ वैन ,जीप सभ मे सवार भ’ अबैत छल । ओहि मूक-बधिर बच्चा सभक प्रत्येक गतिविधि केँ देखैत हमर बाल मनोविज्ञानक प्रायोगिक ज्ञान बढ़ैत गेल ।
ओहि मूक- बधिर विद्यालयक बच्चा सभ जेना मोन मे बसैत चलि गेल । ओहि घरक खिड़कीक सोझाँ हमर घरक खिड़की सभ रहबाक कारण घरे बैसल ओहि बच्चा सभ संग हमहुँ रमय लगलहुँ। हम खिड़की लग जखन-जखन जाय पाँच-सात टा बच्चा सभ हमरा दिस बड़ सिनेह सँ ताकय जे सभ खिड़की लग बैसैत छल । कक्षा मे शिक्षिका रहैक तैयो आ नहि रहैक तखन त’ कोनो बाते नहि ।
ओहि बच्चा सभ मे सँ एक बच्चीक नजरि थोड़ेक बेसीये हमर खिड़की पर रहय लागल । ओकर उमेर मोसकिल सँ दस बरखक रहल हेतैक । कतेक बेर हम दुनू तरहत्थी जोड़ि वा कखनो बामा हाथक तरहत्थी केँ कागत आ दाहिना हाथक औंठा आ तर्जनी सटाय कलमक संकेत करैत , लिखबाक संकेत करैत कहैत छलियैक पढ़य-लिखय। मुदा कथी लेल ओ सुनत । ओकर धियान पढ़ाइ दिस कम आ हमरा पर बेसी ।
हमर खिड़की दिस टकटकी लगओने बैसलि ओ बालिका सदिखन पाछाँ घूमल रहय । ई क्रम कइयैक दिन देखला उत्तर शिक्षिका खिड़की बन्न करबाक आदेश द’ दैत छलखिन कोनो विद्यार्थी केँ । कतेक बेर हम स्वयं हटि जाइक ओकरा सोझाँ सँ, ई सोचि जे ओकरा पढ़बा मे मोन नहि लागि रहल छैक हमरा कारणेँ ।
दिनानुदिन हमरा आ ओहि बालिकाक मध्य सिनेहक डोरी तते सक्कत सँ बन्हाइत चलि गेल जे आइ धरि बन्हायल अछि । आब ओकरा मोन होइक जाधरि ओ कक्षा मे रहैत अछि ताधरि हम ओकर सोझाँ अपन खिड़की लग ठाढ़ि ओकरा सँ सांकेतिक भाषा मे बतियैत रही । जखन-जखन कक्षा मे शिक्षिका नहि रहैक ओ खिड़कीक ग्रिल दुनू हाथेँ पकड़ि ,ओहि मे अपन मुँह सटओने हमर घरक खिड़की दिस ताकैत रहैत छलि । ई स्थिति एहन सन लगय जेना जहल मे बन्न अपराधी बाहरक दुनिया देखि रहल होइक ।
हम कतेको बेर आँखि गुड़रि क’ डरेबाक प्रयास करी । पढ़बा-लिखबा लेल कहियैक । हाथ उठाय थापर मारबाक संकेत करियैक । मुदा, कथी लेल ओकरा पर कोनो प्रभाव पड़ितैक । भोरे स्कूल अबितहि कक्षा मे बस्ता राखब आ खिड़की मे सटि जायब ओकर दिनचर्या भ’ गेल छलैक ।
हमर सेहो सएह हाल । विद्यालयक समय सारणी स्मरण रहैत छल सदिखन । भानस भात मे ओझरायल रहितहुँ तैयो दिमाग मे रहैत छल जे ओ कक्षा मे आबि गेल हेतीह । ओ खिड़की पकड़ि ठाढ़ हेतीह । ओ हमर प्रतीक्षा क’ रहल हेतीह ।
एक दिन भोरे स्कूल अबितहिँ सभ दिन जकाँ ओ बालिका खिड़की लग ठाढ़़ छलि । जहाँ अपना खिड़की दिस हमरा आबैत देखलक प्रसन्नता सँ ओकर आँखि चमकि उठलैक । फेर ओ झटपट अपन बस्ता खोलि एकटा ड्राइंग कॉपी निकाललक । हाँइ-हाँइ पन्ना उनटबैत कॉपी दुनू हाथेँ पसारि खिड़की मे सटाए हमरा देखबा लेल संकेत करैत बड़ गौरव सँ अपन छाती ठोकि संकेत केलक जे हम बनओलहुँ । ओ ततेक उत्साहित छल कॉपी पसारने जे तुरन्त हम थोपड़ी पीटि आ औंठा – तर्जनीक माध्यम सँ बहुत नीक बनल छौक से ओकरा सूचित क’ देलियैक। फेर धियान सँ ओकर बनाओल ड्राइंग देखलहुँ । ड्राइंग देखितहि जेना करेज फाटि गेल । मोन भेल जे खिड़की बाटे बहरा ओहि छौंड़ी केँ करेजा मे साटि खूब दुलार मलार करी मुदा से… ।
ओकर बनाओल ड्राइंग झकझोरि देलक हमरा । ओकर बनाओल ड्राइंग मे बीच मे दू टा चोटी बनओने एकटा छौंड़ी जकर एक हाथ शर्ट पैंट पहिरने एक पुरुख पकड़ने आ दोसर हाथ साड़ी पहिरने एक महिला पकड़ने ठाढ़ छलि । पाछाँ बैकग्राउंड मे गाछ , बादल , गोल सन सूर्य भगवान बनाए सजओने छल । माने बएसक हिसाबेँ बहुत नीक कलाकारीक प्रदर्शन कएल गेल छल आ भाव त’ जे छल तकर वर्णने की कयल जाय ।
ओहि ड्राइंग केर माध्यम सँ सभ किछु कहि देने छल ओ हमरा। ओकर ई सेहन्ता कहियो पूरा नहि भेल छलैक प्राय: जे माय-बाप दुनू दिस सँ हाथ पकड़ितैक आ कतहु ल’ जइतैक । हमर जिज्ञासा आब ओकरा विषय मे सभ किछु पता लगओने बिनु शान्त होमयबला नहि छल ।
बालकोनी सँ बैसल-बैसल आब विशेष रूप सँ एहि छौंड़ीक एबा-जेबाक गतिविधि पर धियान देमय लगलहुँ हम । धियान देबाक क्रम मे देखबा मे आयल जे सभदिन एक टा खूब चमचमाइत गाड़ी सँ ओ छौंड़ी आबय विद्यालय । आगाँ मात्र ड्राइवर आ पाछाँ ओ छौंड़ी आ साधारण वेश-भूषा मे एकटा जनानी रहैत छलैक जे उतरि क’ हाथ पकड़ि ओकरा विद्यालयक गेटक भीतर प्रवेश करा दैक आ फेर गाड़ी मे बैसि आपस चलि जाइक ।
बुझबा मे कोनो टा भांगठ नहि रहल जे ओ छौंड़ी सुखी- संपन्न परिवार सँ संबंध राखैत अछि आ ओ जनानी एकर परिचर्याक लेल राखल गेल छैक। विद्यालयक छुट्टी काल सेहो ओ गाड़ी निश्चित समय पर आबि क’ ठाढ़ रहैत छलैक आ गाड़ी मे ओ जनानी सेहो ।
जाहि दिन सँ ओ छौंड़ी ड्राइंग बनाय देखओलक ताहि दिन सँ हमरा उद्बेग लागल छल ओकरा सँ भेंट करबा लेल। मुदा, कोनो संयोग नहि बनि रहल छल । एक दिन हम हिम्मत बटोरि निचाँ उतरलहुँ । पहिनहि बालकोनी सँ देखि नेने छलहुँ । ओकर गाड़ी आबि गेल छैक । एक रत्ती डर भेल जे जँ बेसी पूछताछ करय लगबै त’ की सोचत की नै सोचत! तथापि , ओहि छौंड़ीक माया तेहेन घेरने छल जे अछताइत-पछताइत ओकरा गाड़ी धरि पहुँचिए गेलहुँ ।जनानी गाड़ी सँ बाहर निकलि छुट्टीक घंटीक प्रतीक्षा मे छलि।
हम ओकरा लग जाए अपन घर देखबैत बजलहुँ — “ हम एहि मकान मे रहैत छी । ? ”
ओ हाथ जोड़ि प्रणाम कयलक।
हमर छातीक धुकधुकी थोड़ेक कम भेल। पुछलियन्हि — “कोन मोहल्ला सँ अबय छी ?”
— “पटेलनगर।”
— “मालिक अहाँक की करैत छथि ?”
— “मकान बनबाबैक काज।”
— “ओ! बिल्डर।”
— “तखनहि त’ एतेक पाइ बला छथि!”
— “एहि ठाम रहैत छथि?”
— “हँ। पूरे परिवार एहि ठाम रहैत छैक ।”
— “आरो के सभ घर मे छनि”
— “मम्मी, डैडी आ एक छोट भाइ ।”
— “अच्छा ! अइ बच्चीक नाम की अछि ? ”
— “पीहू ।”
एहि तरहे शुरू कयल गेल गप्पक क्रम प्राय: दस मिनट धरि चलल हमरा आ ओहि छौंड़ीक परिचारिकाक मध्य । ताधरि पीहू विद्यालयक गेट सँ बहरायल । अपन गाड़ी लग हमरा ठाढ़ देखि खूब प्रसन्न होइत दुनू बाँहि पसारने दौगल आयल आ भरि पाँज पकड़ि लेलक । हमरो नहि रहल गेल। ओतबे आबेस सँ ओकरा पँजियबैत माथ पर हाथ फेरैत , दुनू गाल सहलबैत दूटा डेयरीमिल्क चॉकलेट पीहूक हाथ मे राखि देल । ओ प्रसन्न भ’ पुन: हमरा पँजिया लेलक । परिचारिका ओकरा गाड़ी मे बैसबा लेल हड़बड़ाबय लगलैक मुदा ओ फेर हमरा भरि पाँज पकड़ि लेलक जेना घर जेबाक मोन नहि होइक । अंततः जखन हम ओकरा सांकेतिक भाषा मे बुझओलहुँ जे आब घर जाह , फेर काल्हि अयबह स्कूल त’ हम तोरा खिड़की बाटे देखबह , तखन ओ बैसलि गाड़ी मे ।
भेंटघाँटक ई क्रम चलय लागल। ओ जनानी सेहो हमरा सँ खूब घुलि-मिलि गेल।ओकरा सँ भेल गप्प सँ ई बात स्पष्ट भेल जे पीहूक पिता एकरा अपन संतान रूप मे स्वीकार नहि क’ सकलथि कहियो । एकरा अपन प्रतिष्ठा पर एक कलंक मानैत छथि। तैं पीहू केँ कहियो कोनो पाबनि-तिहार वा कोनो तरहक सामाजिक कार्यक्रम मे अपना संग कतहु ल’ क’ जेबा सँ परहेज करैत छथि । हुनकर व्यवहार एहेन सन जेना हुनक संतान मात्र हुनकर बेटे टा । पत्नीक विवशता जे ओ पतिक कोपक भाजन बनि बेटीक प्रति ममताक प्रदर्शन कोना करथि तैं बेटी केँ पूर्णरूपेण परिचारिकाक हाथ मे सुपुर्द क’ ओहो निश्चिन्त भ’ गेल छलीह ।
मोन पड़ि गेलथि हमरा अपना गामक भट्ठीसेर बाली काकी । हुनकर दू बालक मे सँ एक टा बालक अक्षम , कनि दिमाग सँ सेहो कनि हाथ पैर सँ सेहो । दरभंगा, पटना सँ ल’ क’ दिल्ली धरि ल’ गेलथिन , डागदर- वैद्य , ओझा- गुनी , पूजा – पाठ , जे जे लोक कहलकनि सभ कराय थाकि गेलथि , किछु सुधार देखबा मे अयलनि मुदा ततबा योग्य नहि भ’ सकलनि बेटा कहियो जे बिनु मायक सहयोग केँ अपन नित्य-क्रिया सँ सेहो निवृत्त भ’ सकितनि । देह बढ़ल जाइक मुदा ज्ञान बुद्धि जस के तस । ओहि पितियाइनक चर्चा बड़ सुनने छलहुँ हम , लोक कहयै जे कहियो केओ हुनका ओहि बच्चा पर खिसियाइत / खौंझाइत नहि देखलकनि । हुनकर जीवन ओहि बच्चाक लेल समर्पित छलनि , हुनकर जीवनक उद्देश्य ओहि बच्चाक सेवा करब । दोसर स्वस्थ बेटा सँ बेसी ओहि बेटा लेल बेहाल जे शारीरिक मानसिक रूपेँ दुर्बल छलनि । ओ त’ जेना ओही अक्षम बेटाक लेल जीवित छलीह । भरि गामक लोकक आ सर कुटुम्बक आश्चर्यजक कोनो ठेकान नहि रहलैक जखन ई समाचार सुनलक लोक जे ओहि अक्षम पुत्रक देहावसानक उपरान्त ओ जे सेज धेलनि से फेर नहिएँ उठलीह । मास दिनक भीतर मायक सेहो देहावसान भ’ गेलनि जेना हुनकर जीवित रहबाक उद्देश्य समाप्त भ’ गेल होनि ।
एक टा माय भट्ठीसेर बाली काकी छलथि आ एकटा माय पीहूक अछि । सोचि-सोचि व्यथित होइत रहलहुँ ।
पीहूक मादे सभ बात बुझला उत्तर हमर व्यग्रता बढ़ैत चलि गेल। बीच-बीच मे भेंट क’ अबियैक । किछु-किछु खेबाक वस्तु ल’ जइयैक । ओकर प्रसन्नता देखि हमरा जे सुख भेटय से की कहू !
अखियासय लगलहुँ जे सोझाँ अबिते पीहू ‘माँ…माँ’ करैत हमरा पाँजर मे सटि जाइत । धीरे-धीरे हमरा लेल पीहू एकटा अनिवार्य आवश्यकता बनि गेल छल।
कैलेंडरक पन्ना उनटैत रहल। साल पुरैत-पुरैत मूक-बधिर विद्यालय अपन पुरनका जगह पर चलि गेल। तकर बाद पीहू सँ एक सँ दू बेर भेट भेल हैत। हँ , खिड़की लग जाइ त’ कहियो काल पीहूक स्मरण भ’ आबय। मुदा,आन कोनो खोज खबरि नै। समयक प्रवाह मे हमर दिनचर्या सेहो बदलि गेल।
आइ लगभग दस बरिस केर बाद सपना मे पीहू आयल रहय आ सेहो कनिआँक रूप मे। रहि रहिक’ बालकोनी मे जाय सड़क पर निहारी जे कोम्हरो सँ पीहू अभरि जाय । भरि दिन मोन उचटल रहल। कोनो काज करय मे मोन नहि लागल।
साँझ मे चाह पीबैत ओ टोकि देलनि — “की बात छैक ! आइ भोरे सँ अहाँ परेशान सन लागि रहल छी? फेर कोनो कथाक प्लॉट तैयार भ’ रहल अछि की ?”
की कहियनि से सोचि नहि पाबि रहल छलहुँ । फेर टोकलनि।
“—पीहू मोन अछि।” चाहक कप रखैत बजलहुँ हम ।
“—हँ। वएह बौकी लड़की।”
“—हँ। आइ दस बरिस बाद सपना मे पीहू केँ देखलहुँ आ सेहो दुल्हिनक भेष मे।”
“—त’ एहि मे परेशानीक कोन गप्प छैक ।”
“—हमरा होइयै जे सपना, सपना नै। ओ सच होअए।”
“—तेँ हम कहैत रहै छी जे अहाँ बेकार मनोविज्ञान पढ़लहुँ।”
“—मनोविज्ञान नहि पढ़ने रहितहुँ त’ राजनीति विज्ञान संग तालमेल कोना बैसितय ?”
“—अहाँ सँ कहिया जितलहुँ जे …..!”
“—मुदा हम निश्चित रूप सँ आइ जीतल महसूस करय छी।”
“—एहि अति आत्मविश्वासक कारण?”
“—आजुक सपना मे बरक बापक कुर्सी पर अहाँ बैसल रही।”
कल्पना झा स्थायी रूप सँ पटना मे रहैत छथि । हिनक शिक्षा मनोविज्ञान सँ भेल छनि आ संप्रति हिन्दी विषयक संग स्नातकोत्तर क’ रहल छथि । हिनक रचना नियमित रूप सँ मैथिलीक पत्रिका सभ मे प्रकाशित होइत रहल अछि । हिनका सँ Kalpana Jha पर सम्पर्क कयल जा सकैछ ।