‘स्मृति-यात्राक एकान्त मे’ संस्मरणक शिलालेख लिखैत कीर्त्ति नारायण मिश्र — रमेश

अपना लेखनक जीवन-काल मे सक्रिय, साहित्य आ साहित्येतर बुद्धिजीवीक जीवनी आ व्यक्तित्वक संस्मरण लिखब कोनो रचनाकार लेल, ओहि भाषा आ साहित्यक लेल, आत्यंतिक महत्वक, इमानदार आ जोखिम भरल साहसिक लेखन थिक। आत्म-संस्मरणक प्रतिशत केँ नियंत्रित करबाक संस्मरण-लेखकक क्षमता, ओकर संस्मरण-लेखन केँ वस्तुनिष्ठ बनबैत छैक आ संस्मृत व्यक्तित्वक सर्वोत्तम क्रियाकलाप आ रचनाशीलता केँ, समाजक समक्ष अनुकरणीय बना प्रस्तुत करैत अछि।

मैथिली मे यात्रा-संस्मरण सेहो छपैत रहल अछि आ साहित्यिक-आन्दोलनी कर्मपुरूषगणक जीवनी आ कर्तृत्वक संस्मरण सेहो। आब मैथिलीक संस्मरण-साहित्य ततेक कमजोर नहि अछि, यद्यपि कविता- कथा -उपन्यासक अपेक्षा एखनहुँ कमजोर अछि। हेबनि मे, संस्मरण-लेखन निरंतर समृद्ध भ’ रहल अछि। 2018 ई. मे मैथिलीक पैघ कवि-आलोचक कीर्त्ति नारायण मिश्रक ‘स्मृति-यात्राक एकान्त मे’ प्रकाशित होयब, मैथिली संस्मरण-लेखन मे आत्यंतिक महत्वपूर्ण घटना थिक। संस्मरण-लेखनक एहि पोथीक स्तरीयता आ गंभीरता उपमेय आ अनुकरणीय अछि। कीर्त्ति नारायण मिश्रक स्मृति-यात्रा, एकान्तिक आ चिरस्मरणीय अछि।

कीर्त्ति नारायण मिश्र मैथिली आ हिन्दी मे समानान्तर रूपें काव्य-सृजन केलनि अछि, जे ताही जमीनक ‘मिथिलाक सपूत’ राष्ट्रकवि दिनकरजी अपन फराक भाषा-नीतिक चलतें, नहि क’ सकलाह। कीर्त्ति बाबू नामी-गिरामी काव्य-पोथी सबहक संग फरमाइशी कथा-लेखन, महत्वपूर्ण पत्रिका ‘आखर’क आ अन्यान्यक संपादन-कार्य आ आलोचना-ग्रंथ सेहो मैथिली के देलनि अछि। हिनकर पाँचटा कविता-संग्रह तदर्थवाद आ अकवितावादक (Non -poetry) काव्य-दर्शन प्रतिपादित करैत अपन एकटा शैलीक स्थापना केलक अछि, यद्यपि ‘अकविता’ शब्द सँ बेसी तर्कसंगत ‘प्रति-कविता'(Anti-Poetry) होइत। कारण, अकविता मे कविताक अस्तित्वे पर प्रश्नचेन्ह लागि जाइत अछि।

तथापि, कविता मे एकटा दीर्घ कालखण्डक भारतीय आ मैथिली-जीवनक मनोरम व्याख्या प्रस्तुत केलाक बावजूद, यात्री, राजकमल, सोमदेव, प्रो. राधाकृष्ण चौधरी, प्रो. राम शरण शर्मा सन-सन वामपन्थी व्यक्तित्वक घनिष्ठतम सान्निध्य प्राप्त भेलाक बावजूद, हिनकर कवि ‘लेखकीय स्वतंत्रताक शर्त्त’ पर ‘वैचारिक प्रतिबद्धताक बान्ह-छेक’ केँ स्वीकार नहि कयलक, यद्यपि अपन सम्पूर्ण लेखन मे सामाजिक मूल्य, प्रखर चेतना आ आधुनिकताक निर्वाहो करबाक कोशिश कयलनि ओ। काव्य- लेखनक ई सब निजी शर्त्त, हिनकर फूट आ फराके छवि बनबैत अछि।

किन्तु एक-सँ-एक, मैथिली हिन्दीक अनेकानेक सम्मान- पुरस्कार सँ अलंकृत लेखक कीर्त्ति नारायण मिश्र, अपन समकालीन साहित्यिक क्रियाकलापक आ अपना कालखण्डक आन व्यक्तित्व सबहक जीवनक क्रियाकलापक निरंतर संज्ञान लेबा सँ, स्वयं केँ कहियो रोकि नहि सकलाह। अर्थात् आन-आन विधाक रचनाशीलताक संग, विशिष्ट-विशिष्ट संस्मरण लिखैत रहलाह, जे हुनकर हृदयक अन्तस्तलक ‘एकान्त सेवनक’ थोंका थलकमल छल। ओ सबहक संग मुसकिआइत सम्बन्ध निमाहलनि, मुदा ककरो घनिष्ठताक कोनो प्रभाव अपन विचार आ लेखन पर पड़य नहि देलनि। से विशिष्ट संस्मरण-संग्रह ‘अपन एकान्त मे’ जखन 1995 ई. मे, बारह मनीषीक जीवनी आ उपलब्धि ल’ क’ आयल, त’ प्रथमे संस्करण खूब चर्चित भेल। चर्चित त’ पहिनहि, पत्रिके मे छपिक’ भ’ जाइत छल, हिनकर संस्मरण-आलेख। ओही चर्चित पोथीक दोसर परिवर्द्धित संस्करण जखन 2018 ई. मे कुल्लम पचीस मनीषी पर, चौंतिस टा आलेख, एक सिंगापुरक विदेश-यात्रा-संस्मरणक संग आयल, त’ मैथिली संस्मरण-लेखन मे एकटा विशिष्ट शिलालेख लिखा गेल।

ओना त’ संस्मरण-लेखनक आधार , स्मृति होइतहि अछि। मुदा लेखक ‘नौस्टेल्जिक’ भ’ क’ जँ लेखन नहि करय, त’ तखने संस्मरणक यथार्थपरकता ओकरा सार्वकालिक महत्वक साहित्य-विधा बना पबैत अछि। कीर्त्ति नारायण मिश्र सएह करैत, मैथिली संस्मरण-लेखन केँ समृद्ध बनबैत, नव पीढ़ीक समक्ष एकटा अनुकरणीय उदाहरण उपस्थापित केलनि अछि। कखनो ‘अपन एकान्त मे’ स्मृतिक मनोमंथन,कौखन लेखन-कक्षक एकान्त मे आलेख-लेखनक यातना-भोग, कखनो अपन कालखण्डक एकान्त, अपन चलन्त एकान्त मे स्मृति टीपैत, ओ अपन समानधर्मा आ आनो क्षेत्रक बुद्धिजीवीक प्रति, साहित्य-निष्ठा आ मानवीय गरिमा सँ ओत-प्रोत रहैत छथि। सेहो आत्मश्लाघा आ अहम्मन्यता मे डूबिक’ नहि, अपितु वैयक्तिक-निष्पक्षता आ निरपेक्ष भावें। वैयक्तिकताक संग रहितो, संतुलित आ निर्वैयक्तिक भ’ क’।

भावनासिक्त वैयक्तिक जुड़ाव के बावजूद, वस्तुनिष्ठ संस्मरण तखने लिखल जा सकैछ, जखन लेखकक न्यायशीलता शत-प्रतिशत हो। ईर्ष्या-आमर्ष आ आत्म-प्रशंसा पर पूर्ण नियंत्रण हो। पूर्वाग्रह सँ ऊपर उठि क’ संस्मृत व्यक्तित्व केँ, मूल्यांकन केँ उचित स्थान आ आदर देब जरूरी रहैत अछि। से कीर्त्ति नारायण मिश्रक अपन जीवन-निर्माण मे, हुनकर साहित्यिक जीवनक धारा मे, विशिष्ट भूमिका अदाकर्त्तागणक, समाजक अनेक क्षेत्रक बुद्धिजीवीक व्यक्तित्वपरक आ कृतित्वपरक, वस्तुत: मूल्यांकनपरक संस्मरण लिखलनि अछि लेखक।

ओ अपन कालखण्डक भरिसक्के कोनो लेखक केँ छोड़ने हेताह, एहि पोथी मे। तत्कालीन आनो क्षेत्रक बुद्धिजीवीक व्यक्तित्व, कृतित्व, हुनका संग अपन अंतरंगताक संस्मरण, स्मृतिक प्रवहमान यात्रा करैत, एकान्त भावें लिखलनि अछि। तहिना तकर संकलन आ प्रस्तुति मे संस्मृत लेखक आ विद्वानक कालखण्डीय क्रमानुसारिताक ध्यान राखब, ऐतिहासिक-वैज्ञानिक दृष्टिकोणक परिचायक थिक। एतेक धरि जे जाहि कोनो लेखक पर स्वतंत्र संस्मरणात्मक आलेख नहियों अछि (जेना मैथिली आन्दोलनी सम्पादक बाबू साहेब चौधरी), तिनको संस्मृति पर प्रसंगवश प्रचूर प्रकाश-प्रक्षेपण भेल अछि।

संस्मरण-साहित्यक सन्दर्भ मे प्रगतिशील आ उदार अवधारणा अछि जे, संस्मरण-लेखक सँ बेसी महान संस्मरणीय मनीषी होइत छथि। तकर नम्र स्वीकारोक्ति एहि लेखक केँ महान बनबैत अछि। संस्मरण-लेखनक अवश्यंभावी जोखिम उठा क’, जीवित आ मृत, दुनू तरहक लेखकगणक संस्मरण-लेखन केलनि अछि। से साधंस प्रशंसनीय अछि। तकर कारण जे अभिव्यक्तिक बेबाकी कतहु कमजोर नहि भेल अछि। लेखक समाजक विविध क्षेत्र सँ चयनित व्यक्तित्व सभक जीवनक संस्मरण लिखलनि अछि, मात्र साहित्ये-क्षेत्रक नहि। एहि मे मिथिला समाजक सम्पूर्ण चित्र आयल अछि। अपन शिक्षक, गुरु, मित्रगण, मैथिली आन्दोलनक उन्नायकगण, प्रखर चिन्तक आ इतिहासकार, राष्ट्रकवि(मिथिला निवासी हिन्दीक दिनकरजी)समाजक बहुरंगी व्यक्तित्व सबहक आख्यान, मनोरम संस्मरण मे लिखलनि अछि।

संस्मृत व्यक्तित्वक जीवन-शैली, चिन्तन, लोक-व्यवहारक उद्घाटन, हुनकर जीवनक निजता आ रचनाक बाह्यावरण भेदन क’ क’ करब, लेखकक उद्देश्य छनि। संस्मृत व्यक्तित्वक जीवन आ उपलब्धिक संग हुनकर क्रियाकलाप आ चिन्तनक संगति बैसा क’ आलेख प्रस्तुत करब कीर्त्ति नारायण मिश्रक विशिष्टता थिकनि। अतीतक भावपूर्ण स्मृतिक स्थायी एवं विशिष्ट चित्रण भेल अछि पोथी मे। लेखकक अपन जीवनक आत्म-संस्मरण सेहो स्वभावत: आयल अछि, आलेख सब मे। मुदा तकर प्रतिशत उचित आ संतुलित अछि।

लेखकक अपन पारिवारिक, सामाजिक, जीविकाबला जीवन, अपना जीवनक साहित्य-लेखकक तथ्य सबहक प्रसंगवशात चर्चा करितो, संस्मृत व्यक्तित्व केँ अत्यंत सम्मान दैत, निरपेक्ष भावें, एकटा सामान्य मनुक्खक विशिष्ट साहित्यिक गुण-अवगुणक संकेत करैत, उचित गरिमाक संग विश्लेषण भेल अछि। ने त’ देखार करब आने झाँपन देब, हिनकर शैली थिक। ई बस समाजक समक्ष व्यक्तित्वक विभिन्न पक्ष आ कृतित्वक गंभीर परिचय राखि दैत छथि। हिनकर कालखण्ड मे जतय लेखकगणक मध्य प्रतिस्पर्द्धो छल, त’ से स्वस्थ आ लोक-कल्याणकारीये छल। ईर्ष्या-द्वेष-विहीन छल। से आजुक लेखकगणक मध्य असंभव जकाँ लगैत अछि। जीवकांतजी अथवा सोमदेवजी आधारित संस्मरण तकर आदर्श उदाहरण थिक।

मैथिली सँ इतर दू भाषाक दूटा साहित्यकारक संग भेल सम्पर्कक संस्मरण पोथी मे संकलित अछि। हिन्दीक, राष्ट्रकवि दिनकरक आ बंगलाक कालीपद कोनारक। कालीपद कोनारक संस्मरणक आधार अछि, हुनका संग भावनात्मक निकटता आ हुनकर साहित्यिक सक्रियता। ओ मैथिलीक कविगणक कविता सबहक अनुवाद बंगला मे क’ क’ एकटा प्रतिनिधि संग्रह छापि क’ मैथिली कविता केँ बंगला मे पठौलनि। हुनकर सहज आ उदार व्यक्तित्वक संस्मरण भावपूर्ण भेल अछि।

ततहि दिनकरजीक संस्मरणक आधार, संस्मरण-लेखकक भौगोलिक निकटता, साहित्यिक सम्पर्क आ दुनूक हिन्दी-प्रेम सेहो अछि। दिनकर मिथिलावासी रहैत ‘मिथिलाक सपूत’ त’ भेलाह, राष्ट्रकवि हेबाक गौरव त’ भेटलै मिथिला केँ, मुदा मैथिली केँ ओ किछु नहि द’ सकलखिन। कीर्त्ति नारायण मिश्र जकाँ दुनू भाषा केँ दितथि, त’ दोसर बात होइत। तेँ एहि संस्मरण-लेखक जकाँ आन मिथिलावासी गंगा, तुलसी आ विद्यापतिक उपरांत, दिनकरजीक भक्ति नहि करैत अछि (जेना कि लेखक लिखलनि अछि)। से स्थान मिथिलावासी उचिते यात्रीजी केँ देने अछि(नागार्जुनो केँ नहि)।

तथापि ई संस्मरण-आलेख दिनकरजीक व्यक्तित्व आ कृतित्वक विस्त्रृत परिचय त’ दितहि अछि। मिथिलावासी केँ ई गौरव त’ छन्हिए जे, एकटा राष्ट्रकवि मिथिलो सँ भेल छथि। भलहि हुनकर ‘साहित्यिक भाषानीति’ मे ‘कट्टरतापूर्वक’ राष्ट्रभाषा हिन्दीक स्थान छल आ ‘उदारतापूर्वक’ मातृभाषा मैथिलीक नहि। हुनकर उग्र राष्ट्रवादी चेतना आ अकास ठेकैत महत्वाकांक्षा, तत्कालीन राजनैतिक अनुकूलता, मातृभाषा मैथिलीक सेवा सँ हुनका दूर रखलक। लेखकक संग, हुनका द्वारा ,हिन्दी मे कयल गेल पत्राचार सेहो सएह संकेत करैत अछि। तथापि, हुनकर आलोच्य भाषानीति सँ असहमत होइतहुँ, हुनकर उपलब्धिक आ व्यक्तित्वक विराट्ता केँ, अवडेरल नहि जा सकैछ, कारण ‘राष्ट्रभक्ति’ केँ ‘राष्ट्रप्रेमक’ स्तर धरि त’ प्रगतिशीलो विचारक’ लोक केँ स्वीकार करबाक चाही। आ हुनकर समयक चीनक साम्राज्यवादी युद्धनीति सेहो, हुनकर उग्र राष्ट्रवादी काव्य-लेखन लेल जवाबदेह छल।

एहि संस्मरण-पोथी मे अनेक साहित्येतर व्यक्तित्वक संस्मरण सेहो अछि। जेना ‘हमर गुरु, प्रेरक आ मित्र प्रो. आनन्द नारायण शर्मा’, ‘हमर आदर्श शिक्षागुरु मुकुरजी’, ‘मिथिला मैथिलीक महान विभूति : प्रो.राधाकृष्ण चौधरी’, ‘शान्त-सौम्य-क्रांतिदर्शी पीताम्बर पाठक’, ‘मैथिल समाजसेवी पं. जगदानन्द झा’, आदि आलेख, सम्बन्धित मनीषी सबहक चारित्रिक उदात्तता, उपलब्धि आ समाज- निर्माण मे हुनकर योगदानक बखान त’ करिते अछि, संस्मरण सँ आगू बढ़ि प्रेरणादायी साहित्य-लेखनक प्रतिमान सेहो बनैत अछि।

प्रो. राधाकृष्ण चौधरी मिथिलेक इतिहासकार नहि, भारतोक प्रसिद्ध इतिहासकार छलाह। सेहो राष्ट्रवादी आदर्श-धाराक नहि, वामपंथी धाराक। जहिना ओ ‘मिथिलाक गौरव छलाह,तहिना पीताम्बर पाठक क्रांतिदर्शी- चेतनाक विचार रखैत, मिथिला-मैथिली आन्दोलनक, कोलकाता सँ मिथिला धरि ताजिनगी नि:स्वार्थ भावें अलख जगबैत रहलाह। पाठकजीक आन्दोलनी चेतना आ साहित्य-प्रेम, कीर्ति बाबूक कवि सँ कथा लिखबा लेलक, (बाबू साहेब चौधरीक ‘मैथिली दर्शन’ लेल) से हुनकर उदात्त मैथिली-प्रेम छल। एहि आलेख मे मैथिली- मिथिला लेल अपन जिनगी उसरगि देनिहार बाबू साहेब चौधरीक जीवनी आ आन्दोलनकारी व्यक्तित्व पर सेहो प्रसंगवश खूबे प्रकाश पड़ल अछि आ खूब नीक विवेचन भेल अछि।

मैथिली आन्दोलनकारीगण, बाबू साहेब चौधरी, हरिश्चन्द्र झा ‘मिथिलेन्दु’ पं.देवनारायण झा, प्रबोध नारायण सिंह, प्रो.मायानन्द मिश्र , मृत्युंजय नारायण मिश्र, कमलेश झा, चुनचुन झा, बैद्यनाथ चौधरी बैजू, राज नन्दन लाल दास, रामलोचन ठाकुर, लक्ष्मण झा सागर आदिक जाज्वल्यमान सूची ताधरि पूर्ण नहि भ’ सकैछ, जाधरि पीताम्बर पाठकक नाम ओहि सूची मे नहि जुड़ि जायत। मैथिली आन्दोलन मे कोलकाताक योगदान आ राजकमल चौधरीक मैथिली उपन्यास ‘आन्दोलन’ दुनू नव पीढ़ी केँ जरूरे बूझल-पढ़ल रहबाक चाही।

तहिना जगदानन्द झा पर केन्द्रित संस्मरण, हुनकर मैथिल समाजक वैवाहिक ‘कथाक’ घनघोर चिन्ता आ तकर निराकरणक प्रयास रूपें वर-कन्याक परिचयक ‘कथा-कोष’ छपायब, ‘मैरेज-ब्यूरो’ सँ छोट समाज सेवा नहि छल, से साबित करबा मे सफल भेल अछि। चेतना समिति, पटनाक सचिव रहैत, हुनकर ई कयल काज हुनकर जीवन केँ धन्य करैत, समाजो केँ नि:स्वार्थ भावें नीक काज करबाक अभिप्रेरणा देलक अछि। संस्मृत एहि व्यक्तित्व सबहक चारित्रिक विशेषता सबहक उद्घाटनक संग, जीवन-उपलब्धिक क्षेत्रक गंभीर परिचय दैत, उपलब्धिक सारभूत आ संक्षिप्त मूल्यांकनो प्रस्तुत करैत अछि। मिथिला-मैथिलीक उन्नायकगणक गंभीर परिचय दैत, जीवनी-टाइप संस्मरणे नहि, आन्दोलनी क्रियाकलापक अपना कालखण्डक साक्ष्यो बनि गेल अछि।

एहि पोथी मे कीर्त्तिनारायण मिश्र एहू लेखन-रूढ़ि केँ तोड़लनि अछि ,जे संस्मरण-लेखन मात्र गद्ये मे संभव अछि। ओ काव्यांजलि मे श्रद्धांजलि नहि द’ क’, संस्मरण लिखलनि अछि। अर्थात् संस्मृत लेखकक जीवन, चिन्तन, चरित्र, क्रियाकलाप आ उपलब्धिक मूल्यांकनपरक विश्लेषणो प्रस्तुत केलनि अछि। जेना, ‘कविवर भागवत प्रसाद सिंह केँ काव्यांजलि’, ‘अहाँ कोमहर नुका गेल छी प्रभासजी'(प्रभास कुमार चौधरी), ‘ड्यौढ़क माँछ’, ‘अनेरे ढ़ाही लैत'(जीवकान्त) , ‘ओ जनमि गेल छथि'(जगदानन्द झा) आदि काव्य-संस्मरण मे भाव-प्रवणताक संग व्यक्तित्वक घनिष्ठतम संस्मरण आ कृतित्वक मूल्यांकन सेहो अछि। ‘अनेरे ढ़ाही लैत’ मे त’ जीवकांत जीक ढ़ूसि लड़बाक प्रवृत्तिक बेबाक चित्रणक संग, कवित्तक छटा कमाले अछि। सेहो एकटा समकालीन साहित्यिक समानधर्माक द्वारा।

ई पुस्तक कतओक अर्थ मे विरल आ चिरस्मरणीय अछि। पत्राचार-शैली मे संस्मरण लिखब, एकटा अपना शैलीक संस्मरण-लेखनक लीक बनायब थिक। से ओ अनेक आलेख मे केलनि अछि। यात्रीजी, आरसी प्रसाद सिंह, किसुनजी, राजकमल चौधरी, हंसराज, कुलानन्द मिश्र, आदि पर संस्मरण लिखैत, एतबा पत्राचारक उपयोग कयल गेल अछि, जतबा आन कोनो एहेन पोथी मे विरल अछि। पत्राचार प्रासंगिक आधार-भूमिये बनि गेल अछि। मुदा पत्राचार-शैली मे हेबाक कारणे, संस्मृत व्यक्तित्वक जीवनी, कृतित्व, उपलब्धि, तकर विश्लेषण-मूल्यांकन, कतहु सँ उपेक्षित आ अमूल्यांकित नहि रहल अछि।

यात्रीजी पर कुल्लम तीनटा आलेख अछि। ‘पत्रक दर्पण मे यात्री-नागार्जुन’, ‘कालजयी यात्री-नागार्जुन’ आ ‘हमर पिता, गुरु आ मित्र यात्री-नागार्जुन’। तीनू आलेख तथ्यात्मक रहैत व्यक्तितगत संस्मृतिक संस्पर्श दैत अछि। मुदा संस्मरण-लेखकक नजरि मे पिता, मित्र, गुरु आ कालजयी कवि रहलाक बावजूद, यात्री-नागार्जुन सँ मात्र एकटा भाषा-नीति (व्यक्तितगत उपलब्धिक लेल) ल’ पबैत छथि। लेखक हुनका अपन ‘काव्यगुरु’ नहि बना पबैत छथि। ने त’ हुनकर ‘वैचारिक प्रतिबद्धता’ ल’ पबैत छथि आ ने ‘काव्यक बाह्य लय ताल यति’ लेबाक बेगरता छनि हिनका। यात्री-सुमन-अमरक छन्द लय ताल यतिक त्याग त’ राजकमले चौधरी ‘स्वरगंधा’क भूमिका मे उचिते क’ चुकल छलाह। तखन हुनकर समकालीन ई लेखक तकरा कियैक लितथि ? से दुनू तत्व सोमदेवजी लेलनि यात्री-नागार्जुन सँ। से सोमदेवजीक हिनकर संस्मरण सँ सेहो सुस्पष्ट अछि। मुदा सोमदेवक लय ताल यति बला काव्य, काव्य-गीतिका, गीति-काव्य, सोम सतसइ, इत्यादि हुनके नवकविताक शिल्पक समानान्तर सक्षम नहि बनि सकल। जेनाकि कुलानन्द मिश्र अपन एक पत्र मे लिखलनि जे ‘सोमदेवजी केँ नव पीढ़ी केँ ‘मिसलीड’ नहि करबाक चाहियनि। तकरा नवकविता मे लय ताल यतिक प्रसंगो मे आ ‘ब्रह्मपिशाच’ वा ‘होटल अनारकली’ (पौकेट बुक्सबला उपन्यास)क प्रसंग मे सेहो लेल जेबाक चाही ।

कुलानन्द मिश्र लोकप्रियता आ पाठक-निर्माणक नाम पर उपर्युक्त दुनू बातक पक्ष मे नहि छलाह। संगहि स्तरीयता घटेबाक आ मंच-रस लेबाक पक्ष मे सेहो नहि छलाह। मुदा सोमदेवजी मंच-रस-मुक्त भइये नहि सकैत छलाह। हुनकर निर्मितिये मंचवादी आ थोपड़ी-प्रेम कुलान्द मिश्र सँ फराक छल। तथापि, यात्री-केन्द्रित तीनू आलेख यात्री-नागार्जुनक व्यक्तित्वक विराटता अवश्य प्रमाणित करैत अछि। आ सोमदेवजीक शैल्पिक-लेखन-नीतिक सम्यक आलोचना सेहो प्रस्तुत करैत अछि।

तहिना रामकृष्ण झा ‘किसुन’ पर केन्द्रित तीनू आलेख ( ‘किसुनजी’, आखर’क सन्दर्भ आ हुनक पत्र, ‘किसुनजी सत्त केँ सत्त कहैत रहथि’ आ ‘किसुनजी, आगि, सुमन-मधुप-अमरक भनसाघरक चूल्हि, आओर…..’) किसुनजीक साहित्यिक इमानदारी, हुनकर सत्यनिष्ठा, साहित्यिक सक्रियता-समर्पण, नवकविता लेल हुनकर उत्साह आ आन्दोलन, सुपौल मे नवकविता पर विशिष्ट विचार-गोष्ठीक आयोजन आदि पैघ उपलब्धि केँ फरिछा दैत अछि। किसुनजीक समयक साहित्यिक क्रियाकलापक साक्ष्य आ उपलब्धिक महत्व, एहि तीनू आलेखक माध्यमे, अनेक पीढ़ी बूझैत रहत।

संस्मरण-आलेख सबहक शीर्षक आ नामकरण विमर्शक योग्य अछि। अनेक शीर्षक काव्यात्मक पुट लेने अछि। एतेक धरि जे तकरा संग कविता मे लीखल संस्मरण, संस्मरणात्मक गद्यात्मकता बनाम काव्यात्मकता पर आलेख सब विमर्श ठाढ़ करैत अछि। मस्तिष्क, वैचारिक विश्लेषण, तथ्य-संयोजनक वर्चस्व त’ गद्य मे अछिये। मुदा गद्य आ काव्यात्मकताक संतुलन निश्चय गद्यक लालित्य केँ बढ़ा देबाक आ निखरबाक अवसर देलक अछि। भाव-परिपाक आ काव्यात्मकता सँ वस्तुनिष्ठता प्रभावित नहि भेल अछि। अर्थात बान्ह सँ खत्ता ऊँच नहि भेल अछि। शीर्षक आ नामकरण मे विशेषणक खूबे सटीक प्रयोग भेल अछि, जे संस्मृत व्यक्तित्वो केँ आ आलेखोक प्रतिनिधित्व, सम्पूर्णता मे केलक अछि।

जेना म.म. डॉ. उमेश मिश्र केँ ‘मिथिलाक ज्योति-स्तम्भ’ कहल गेल अछि, त’ से तकरा आलेख मे तर्कपूर्वक साबित कयल गेल अछि। आचार्य रमानाथ झा केँ ‘साहित्यक उद्यानपाल’ कहल गेल अछि, त’ से ओ छलाहे। प्रो. हरि मोहन झा केँ लोकप्रियताक आधार पर ठीके ‘जन-जन केर हृदय-सम्राट्’ कहल गेल अछि। मणिपद्मक व्यक्तित्व केँ ‘ऊर्जस्वल’ कहब, पूर्णत: समीचीन अछि। सम्पादकजी, सुधांशु शेखर चौधरी केँ ‘संवाद सेतुक’ विशेषण देब एकदम सटीक अछि। से भूमिका हुनकर मिथिला मिहिरक कार्यालय ‘मे’ आ ‘सँ’ रहितहि छल। डॉ. जयकान्त मिश्र शत-प्रतिशत ‘मिथिला मैथिलीक यायावर भविष्यद्रष्टा’ छलाह। पं. गोविन्द झा ‘मैथिलीक सफल साधक’ निस्संदेह छथि। सोमदेव निश्चिते लेखकक ‘अग्रज आ सहयात्री’ छथि। जीवकांतजी कखनो राजमोहन झा सँ, कहियो प्रभास कुमार चौधरी सँ आ कहियो मोहन भारद्वाज सँ ‘अनेरे ढ़ाही’ अबस्से लैत छलाह। आरसी प्रसाद सिंह ठीके ‘विस्फोटक ढ़ेरीपर फूलक गाछ'(सूर्यमुखी, पूजाक फूल) रोपैत छलाह। रमानन्द रेणु त’ लेखकक ‘कवि-मित्र’ रहबे करथिन। जीवकान्तजी असमय प्रस्थान क’ लेखकक ‘संवाद केँ एकालाप मे’ बदलिये देलनि। हंसराज लेखकक ‘अन्तरंग सखा’ छलखिन, से आलेखो आ पत्राचारो कहैत अछि। प्रभासजी पर लिखल संस्मृति, ठीके सक्रियता मे हुनका ‘अतुलनीय’ बनबैत अछि।

सत्त पूछी त’ संस्मृत व्यक्तित्वक जीवनी, उपलब्धि, वैचारिकता आ जीवन-शैलीक वाचन मे संस्मरण-लेखक इमानदार, निष्पक्ष आ निर्दुष्ट रहलाह अछि। रचनाकार आ बुद्धिजीवीक व्यक्तित्व आ जीवनी पर महत्वपूर्ण टिप्पणी अंकित करैत, व्यक्तित्वक कोनो उल्लेखनीय पक्ष केँ अनायास अथवा सायास छोड़ै़त नहि छथि। संस्मृत व्यक्तिक आ लेखकक दून्दु, द्वैध, चिन्तना, सबहक तथ्यात्मक संज्ञान लैत, विश्लेषणो करैत छथि। सेहो बेबाकीक संग। मुदा विनम्र भावें। वस्तुत:अपना कालखण्डक प्रामाणिकताक संग, साक्ष्य अंकित करैत, ‘अतीत’केँ ‘सार्थक इतिहास’ मे बदलि दैत छथि कीर्त्ति नारायण मिश्र।

कालखण्ड- विशेषेक नहि, क्षण-विशेषोक प्रासंगिक आ मुख्य सांस्कृतिक-साहित्यिक क्रियाकलापक नीक संस्मरण प्रस्तुत केलनि अछि लेखक। अपना समयक साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक अन्तर्धारा सबहक नीक उपस्थापन क’, मैथिली साहित्यक जीवन्त दस्तावेज बना देलनि अछि, एहि पोथी केँ। अपना समयक समकालीन साहित्यक सभ प्रकारक प्रासंगिक क्रियाकलापक साक्ष्य, विश्वसनीय ढंग सँ व्यास जकाँ बखानलनि अछि। संस्मृत मनीषीक जीवन-चरित आ मूल्यांकनक तर्कपूर्ण संयोजन, आलेख केँ वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करैत अछि। गप्पबाजी सँ विश्वसनीयता खंडित नहि भेल अछि। आंकड़ा, स्मृति-तिथि, वर्षक उल्लेख, रचनाकालक प्रसंग, पोथीक विश्वसनीयता बढ़ा देलक अछि।

सिंगापुरक विदेश-यात्राक एकमात्र संस्मरण, पोथीक अंत मे डायरी-शैली मे संस्मृत आ संग्रहित अछि। यात्राक मनलग्गू, रोचक आ छोट -छोट वर्णन, तकर तिथिवार प्रस्तुति रमणीक भेल अछि। सिंगापुरक क्षेत्रीय, भौगोलिक देस-संरचना, मिश्रित संस्कृति, राष्ट्रवादक भावना, विकासक चमत्कारी उपादान सबहक वर्णन, पर्यटन-व्यवस्था आ प्राकृतिक उपादान सबहक अद्भुत आ जीवन्त चित्रण भेल अछि। स्थानीयताक विवरण आ विकासक चकचोन्ही पाठक केँ सिंगापुर मे उत्सुकता जगा क’ ज्ञानवृद्धि करैत अछि। पाठक घरे बैसल सिंगापुरक गहींर परिचय आ आनन्द ल’ क’ अपना देस आपस भ’ जाइत अछि। सेहो स्थानीय संस्कृतिक चेतनाक संग।

वस्तुत: ‘स्मृति-यात्राक एकांत मे’ मैथिलीक संस्मरण-लेखनक एकटा प्रतिमान थिक। स्मृतिक ई यात्रा देखा देलक अछि, जे लेखक आ बुद्धिजीवीक कृतित्व सँ कम महत्वपूर्ण ओकर जीवन आ व्यक्तित्व नहि होइत अछि। नव पीढीक लेल ई पोथी, मैथिली साहित्यक समकालीन इतिहासे जकाँ अछि, जकर पाठ सँ कोनो नव लेखक, नवीन पीढ़ी वा प्रतियोगी परीक्षाक छात्र, अपन न्यो मजगूत करैत, अपन अस्त भ’ गेल वा अस्ताचलगामी पीढ़ीक सूर्यगणक, गंभीर परिचय प्राप्त क’ सकैत अछि।

रमेश

साहित्य-संस्कृति आ समाजक इतिहास ओ वर्तमानक गम्भीर अध्ययन, जिनगीक विशद अनुभव, चौंचक विवेक-सम्मत ओ प्रगतिशील दृष्टि-बोध एवं फरिछायल वैचारिकता सँ जाहि कोटिक लेखक बनैत छैक, से छथि रमेश। मैथिली साहित्य मे पछिला सदीक आठम दशकक आमद एहि बहु-विधावादी लेखकक यू.एस.पी. छन्हि – हिनक प्रयोगधर्मिता। हिनक गजल होनि, कविता होनि वा कि कथा, कथ्य, शिल्प-शैली आ भाषा सभ स्तर पर ई नव-प्रयोग करबाक चुनौती आ जोखिम लैत रहलाह अछि। नवतूरक लेखन पर धुरझार समीक्षा लिखनिहार एहि विधाक ई विरल लेखक छथि। एखन धरि हिनक जमा पन्द्रह गोट मूल-पोथी प्रकाशित छनि, जाहि मे गजल संग्रह (नागफेनी), कविता संग्रह (संगोर, कोसी-घाटी सभ्यता, पाथर पर दूभि, काव्यद्वीपक ओहि पार, कविता-समय), गद्य-कविता संग्रह (समवेत स्वरक आगू), दीर्घ-कविता संग्रह (यथास्थितिक बादक लेल), कथा संग्रह (समाँग, समानान्तर, दखल, समकालीन नाटक, कथा-समय) आ समीक्षा संग्रह (प्रतिक्रिया, निकती) सभ अछि। हिनक सम्पादन-सहयोग मे सेहो विभिन्न विधाक पाँच गोट पोथी प्रकाशित अछि। हिनक दू गोट कविता संग्रहक हिन्दी-अनुवाद प्रकाशित भेल अछि। डॉ. इन्द्रकांत झा सम्मान (विद्यापति सेवा संस्थान, दरभंगा), तिरहुत साहित्य सम्मान (मिथिला सांस्कृतिक परिषद, हैदराबाद) आ मिथिला जनचेतना सम्मान (मिथिला लेखक संघ, दरभंगा) सँ सम्मानित लेखक रमेश सम्प्रति दरभंगा मे रहैत छथि । हिनका सँ +91-7352997069 पर सम्पर्क कयल जा सकैछ ।