जनउ (कथा) — रमेश

समस्त प्रदेश विखाह हवा स’ सविक्ख भेल छल।
लोक त्रस्त आ आतंकित छल,जे कहीं अपने मे ने गृहयुद्ध शुरु भ’ जाइ!
तकर लक्षण स्पष्टो भ’ रहल छलैक।
आरक्षण-समर्थित आ आरक्षण-विरोधी आन्दोलन,अपन निकृष्टतम आ घिनाउन रूप मे चलि रहल छल आ जातिवादक नांगट-वीभत्स रूप, जत्र-कुत्र व्याप्त आ दृष्टिगोचर भ’ रहल छल ।
एहना स्थिति मे,हमरा जरूरति भेल,दरभंगा स’ पटना जयबाक।
बात एना भेलैक जे, चेतना समितिक विद्यापति पर्व पटना मे आयोजित छलैक। सोचैत रही जे कएटा आप्त-मित्र स’ भेंटो भ’ जायत ओत’।आ ताहू स’ बेसी जरूरी काज, पोथीक कवर छपायब,सेहो पूर्ण भ’ जायत। पर्वक अवसर पर पोथीक लोकार्पणक, एकटा विशेष महत्व रहै छै।
तें हम औनायल रही पटना जयबाक लेल। कवर छपलाक पश्चात् फेर पोथीक ‘बाइन्डिंग’ कराब’ मे समय लगितैक। कोनो स्थिति मे पर्वक अवसर पर पोथी प्रकाशित करबा लेल, हम आर्त्त रही। आ कवर दरभंगा मे छपायब संतोषप्रद नहि होइत।तें पटना जयबाक कोनो दोसर विकल्प नहि छल।
हमरा एमएलएसएम कौलेजक अग्रजतुल्य प्रो.उमा बाबू चेतौलनि-‘जिनगी बाँचत, त’ बहुत किताब छपायब।हाजीपुर मे आरक्षण-समर्थक सब बहुत अत्याचार करैत छै।बसक संख्यो बहुत कम भ’ गेल छैक। जत्तहि मौका पबैत छै,बस लूटि लैत छै,आगि लगा दैत छैक,शीशा फोड़ि दैत छै। बी.सी.-एफ.सी.बला झंझट, चरम सीमा पर छै। हाजीपुर मे बैकवार्ड सभ बहुत दिक्कत करै छै।’
हम थोड़ेक सहमि गेलहुँ ।
फेर हमर दुस्साहसी मोन कहलक -‘नो रिस्क,नो गेन’!
एकबार मे पढ़ने रही,जे पटना मे कर्फ्यू लागल छैक।
तें अत्यन्त विषम परिस्थिति छैक!
हम विचारमग्न भ’ गेल रही आ मोन ततमत करए लागल रहय जे,की करी,की नहि ?
हम वर्ण-व्यवस्था आ तकर पृष्ठपोषक सभ कें मोने- मोन गारिए जकां पढ़’ लागल रही।
जातिवादी राजनीति खेलाइबला नेता सभ कें गारि पढ’ लागल रही,जे देश कें बेर-बेर शताब्दीक-शताब्दी पाछू ठेलि दैत अछि।
मुदा से समाधान नहि छल।
हम एहि सँ पूर्व,अतीतक बात कहैत छी,कए बेर प्रगतिशील विचारक प्रभाव मे आबि जनउ तोड़बाक प्रयास कयने रही।मुदा जनउक उपयोगिताक पक्ष मे कएटा तर्क हमरा मानसतल मे उभरि आबय आ हम फेर सोची जे,बिना गंभीरतापूर्वक विचारने,ई नहिं करबाक चाही।
गंभीर विचारक क्रम मे हम पाबी,जे जनउ कोनो दुर्घटनाक दशा मे (जेना साँप कटला पर) कखनो आ कतौ दंशबला जगह के बान्ह’ मे बहुत उपयोगी अछि।
एहि मे हम अपना लेखनबला कोठलीक तालाक कुंजी लटकबैत छी आ काव्य-सृजनकालीन क्षणक अनमना मे,जनउक कुंजी नचाबैत रहैत छी। पुनः गर्मीक दिन मे जनउ स’ पीठ कुड़िअयबाक अपन खास आनन्द छैक।
तें धार्मिक-सामाजिक महत्वपूर्णता अथवा महत्वहीनताक बावजूदो,एकर अन्य उपयोगिता कें, नकारल नहि जा सकैछ।
तें हम कहियो जनउ तोड़ि क’ फेकि नहि सकल रही।
आइ मुदा, हमर अवसरवादी मोन एकरा समाधानक रूप मे देखि रहल छल आ ‘आत्मरक्षा परोधर्मः’ कहि, हमरा एहि लेल उकसा रहल छल।
हमरा मोन मे जनउ तोड़’ सम्बन्धी अन्य बात सब,आब’ लागल,तँ आदरणीय स्व.किरणजी मोन पड़लाह।
आब प्रसंगवश सेहो सुनाइये दैत छी।
एक बेर हम सभ आ.किरणजी सं भेंट कर’ गेल रही।ओत’ हुनकर उप-समाहर्त्ता पुत्र श्री केसरीनाथ झा सेहो रहथि ओहि दिन।
गप्पक क्रम मे,हम आ.किरणजी सँ जनउ पर,किछु गप्प कर’ लागल रही, तँ श्री केसरीनाथ झा कहलनि जे,ओ जनउ तोड़ने छथि आ आब नहिं पहिरैत छथि। ताहि लेल हुनका कोनो पश्चात्तापो नहि छनि।
आ.किरणजी एकर समर्थन कयलनि आ जनउ कें समाजिक सामंजस्य स्थापित करबा मे,एकटा बाधक तत्व मानलनि ।
हमर दिमाग मे जनउ तोड़बाक पक्ष मे,किरणजीक तर्क आ श्री केसरीनाथ झाक उदाहरण नाचि गेल।
हमर हाथ जनउ दिस बढि गेल। मुदा कुञ्जी जनउ मे बान्हल देखि,जनउ नहिं तोड़बाक पक्षबला एकर उपयोगिता सभ, हमर हाथ कें रोकि देलक।
हम किंकर्त्तव्यविमूढ जकां खौंझा गेलहुँ।
देस कें जातिवादक गर्त्त मे झोंकनिहार नेतृत्ववर्ग कें, पुनः पुनः खूब धिरकारलहुं मोने-मोन!
फेर निर्णय कयलहुं जे प्राय: सभ आदमी,कोनो-ने- कोनो स्तर पर,कहियो- ने-कहियो,समझौतावादी होइतहिं अछि!
तें एतेक समझौता कयल जा सकैछ,जे जनउ कें, जनउक रूप मे नहिं पहिरि,एकरा डोराडरिक रूप मे संग मे राखल जाय।
से केला सं तत्कालिक संकट सं प्रायः मुक्त भ’ जायब। बेर पड़ला पर हम जनउहीनता अथवा जनउयुक्त प्रदर्शित क’ सकै छी आ जनउक कएटा उपयोगिताक लाभ सेहो उठा सकैत छी।
ई हमरा देशक दुर्भाग्य आ हमर सभ्यताक पतधक लक्षण थिक, जे ककरो जनउ देखि क’ बैकवार्ड-फरवार्ड बूझल जाइ छै आ तदनुकूलहिं प्रतिष्ठा-घृणा आ इनाम-दण्ड देल जाइत छै।
हमर मोन ई सोचि,अवसाद स’ भरि गेल।
उमा बाबू कहने छलाह जे,हाजीपुर मे जनउ देखि, बस सं उतारि लैत छै आ दुर्व्यवहारो करैत छै। हमरा अविचंक ल’ लेने रहय।
तें हम जनउक मादे एतबा सोचने रही आ अवश्यंभावी संकट सं त्राण पेबा लेल,कोनो रास्ता ताक’ लागल रही।
तत्काल हम डोराडरिक रूप मे जनउ के, डांड़ मे लेपटा लेलहुं आ अत्यंत भयग्रस्त मानसिकता मे,पटना विदा भ’ गेलहुँ।
से मुदा भइये गेलहुँ। किताब छपयबाक निशां कोनो नव लेखक लेल साधारण निशां नहिं ने होइत छै!
संग मे दू हजार टाका ल’ लेने रही, जे ल’ लेब आवश्यक छल।
आ बस स्टैण्ड चलि देने रही, टेम्पू पकड़ि क’ । बस मे बैसि हम संभावित परिस्थितिक कल्पना कर’ लागल रही।
हमरा टैगोरक एकटा पांती मोन पड़ि गेल रहय-हे प्रभो,हमरा पाशविक बल आ मानवी बुद्धि,दुनू दीय’,जाहि स’ हम आततायीक सामना सक्षमतापूर्वक क’ सकी।
आजुक परिस्थिति मे, कोनो नीक लोक कें, दुनू चीज परमावश्यक छैक। हमरा दुःख अछि जे पाशविक बल हमरा नहिं अछि। हमरा एहेन लोक कें, कत्तहु अपमानित हेबाक,इज्जति अथवा जान चलि जयबाक,हरदम खतरा बनल रहैत छै।
बस अपना गतिएं बढ़ल जा रहल छल।
लोक चुप छल आ एक-दोसर कें सन्देहक दृष्टि सं देखैत छल। कियो कोनो चर्चा उठाब’ सँ पूर्व आइ-काल्हि सोचैत अछि जे बगलबला कोन जातिक हैत, कोन जातिक ने! बैकवार्ड हैत,कि फॉरवार्ड? हिन्दू हैत,कि मुसलमान? कतौ चर्च शुरू करब, बेउरेब ने भ’ जाय…?
लोक कें अनेक आधार पर, एतेक ने बांटि देल गेलैक अछि,जे लोक लोकत्त्वहीन भ’ गेल-ए। एहना स्थिति मे, निष्पक्ष विचार निर्भीकतापूर्वक व्यक्त करब, खतरा सं खाली नहिं अछि।
बस मुजफ्फरपुर सँ आगाँ बढ़ि चुकल छल। सड़क सुनसान छल। साढ़े सात बाजि चुकल छल। हम सोचलहुँ, ठीक-ठाक आ समय सं पहुँचि गेलहुँ, तँ सोझे प्रेसे जायब पहिने। काज प्रारंभ करौलाक बाद,भेंट-घाट होइत रहतैक।
ता ‘ठाईं’ सं एकटा रोड़ा आबि क’ खिड़की मे लगलैक आ शीशा चूड़-चूड़ भ’ गेलैक। खिड़की लग बैसल एकटा महिलाक गाल मे, शीशाक चुन्नी उड़ि क’ लहूलुहान क’ देलकै।
फेर ‘ठाईं-ठाईं’,तीन-चारि टा रोड़ा बसक पाछू मे लगलैक।
मुदा बस आगू बढ़ि गेलैक।
लोक,जे आँखि-तांखि मूनि क’ सहसा आबि गेल विपत्ति कें अवधारि लेने छल,विपत्ति सँ तात्कालिक त्राण भेटबाक निसास छोड़लक।
कन्डक्टर ‘फस्ट एड’बला बक्सा मे सँ, तूर आ डिटौल निकालि, ओहि महिला कें देलक ।
बस फेर भाग’ लागल ।
कन्डक्टर सभ के साकांक्ष रहबाक चेतौनी देलक आ खिड़की सभ कें बन्द करबा देलक ।
फेर ड्राइभर सं विचार-विमर्श कर’ लागल,जे कोना पटना पहुँचल जाय? रस्ता बदलबाक कोनो टा उपाय नहिं छलैक।
हम सूटकेस सं तौलिया निकाललहुँ आ रोड़ा-शीशा सं सुरक्षाक लेल माथ झांपि लेलहुँ ।
सभ सकदम छल,कारण,बस हाजीपुर पहुंच’ पहुंच’ पर छल।
हम सोचैत रही जे, कोन स्थिति मे कोना-की करब? एना हैत, त’ एना करब,आ ओना हैत, त’ ओना करब? आ जं एना-ओना सं इतर, कोनो तेसर तरहक परिस्थिति आयल,तँ,की करब ?
जेना मड़ुआ-रोटी बक् द’ गांड़ा लागि गेल हो, आ लग मे पानि नहिं हो…?
हमर हाथ कंठ ससारबाक अभिनय कर’ लागल रहय।
मुदा बक् द’ ठीके गांड़ा लागि गेल रहय… आ लोक बसक आगू मे बीच सड़क पर बांस लागल देखि अकबका गेल रहय,जे ई की भ’ गेल?
बस रोक’ पड़लै।
रुकैत देरी फटाफट आठ-दस टा सड़क- छाप गुण्डा सब बसक गेट खोलि अन्दर ढ़ूकल आ बाजल-
-‘के सब बैकवार्ड है?हाथ उठाइये!’
एकोटा हाथ नहिं उठल। सभ खाली बलिदानी छागर जकां, टुकुर टुकुर तकैत रहल।
-‘अरे देख रे, के- के तागधारी हउ! देख रे पपुआ…!’
हमरा भेल जेना, दसो टा लफुआ पपुआ’ हमरे दिस अबैत हो,आ पूरा बस टप्पा खाइत, नियंत्रणहीन कोनो यान जकां, उलटैत- पलटैत हो!
हम गम’ लगलहुँ,जे ई छौंड़ा सभ बी.सी छी,कि एफ.सी…? बैकवार्ड कें मारतै,कि फॉरवार्ड कें… ?
मुदा आश्चर्य!
छौंड़ा सभ ककरो किछु नहि कहलकै आ जनउ देखबाक बहाने लोहाक पेस्तौल नचबैत आ छूरा चमकबैत, सबहक लग मे जाइ आ घड़ी-औंठी खोलबा-खोलबा क’ रखने जाइ! फेर सबहक अगिला-पछिला जेबी
ताकि-ताकि क’,सभ रुपैया ल’ लैक ।
ने त’ क्यो बैकवार्ड,आ ने फारवार्ड!
जे लुटा गेल,से बैकवार्ड!जे लुटलक,से फारवार्ड!
तहिना महिला सीट पर बैसल यात्री सभक अंग-अंग स’ गहना सभ उतरबा लेलकै।
जे कनियों आनाकानी केलक,तकरा देह मे हाथ लगाब’ मे,ओकरा सभ कें कोनो दिक्कत नहिं भेलैक।
एकटा महिला अपन औंठी बेलाउज मे नुका लेने छलि, से कोना- ने- कोना एकटा लोफरबा देखि लेलकै।
ओ तुरंत ओकर बेलाउज मे हाथ घोंसिया क’ औंठी निकालि लेलकै।
महिलाक चेहरा विवर्ण भ’ गेलैक,आ आंखि मे नोर डबडबा गेलैक।
ओकर पति उठल,त’ एकटा अन्य गुण्डा,हाथ पकड़ि क’ बैसा देलकै आ छूरा देखा देलकै ।
क्यो किच्छु नहि बाजल।
अन्त मे, बेरा-बेरी सभ हथियार देखबैत,बस सं उतर’ लागल आ नारा लगब’ लागल-
– ‘वी. पी. सिंह जिन्दाबाद!’
– ‘लालू यादव जिन्दाबाद!’
– ‘अटल बिहारी जिन्दाबाद!’
– ‘राजीव गाँधी जिन्दाबाद!’
हम दंग रहि गेलहुँ !
सभ दंग रहि गेल!
ओ सभ बसक गेट बन्द क’ देलकै आ पाछू सँ ठोकि क’ बजलै – ‘जाओ बढ़ा के,हचका बचा के..!’
ड्राइवर तुरंत आगू बढ़ौलक बस!
यात्री सभ दाँते अंगुरी काट’ लागल,जे अंतत: ई सभ छल के…?
बैकवार्ड/फॉरवार्ड/कोन पार्टीक समर्थक…?
हमर हाथ,अपन डाँड़ टटोल’ लागल।
जनउ ओहिना डोराडरि जकाँ,लेपटायल छल!
मुदा दू हजार रुपैया नहि छल!

 

                                                                                    रमेश

साहित्य-संस्कृति आ समाजक इतिहास ओ वर्तमानक गम्भीर अध्ययन, जिनगीक विशद अनुभव, चौंचक विवेक-सम्मत ओ प्रगतिशील दृष्टि-बोध एवं फरिछायल वैचारिकता सँ जाहि कोटिक लेखक बनैत छैक, से छथि रमेश। मैथिली साहित्य मे पछिला सदीक आठम दशकक आमद एहि बहु-विधावादी लेखकक यू.एस.पी. छन्हि – हिनक प्रयोगधर्मिता। हिनक गजल होनि, कविता होनि वा कि कथा, कथ्य, शिल्प-शैली आ भाषा सभ स्तर पर ई नव-प्रयोग करबाक चुनौती आ जोखिम लैत रहलाह अछि। नवतूरक लेखन पर धुरझार समीक्षा लिखनिहार एहि विधाक ई विरल लेखक छथि। एखन धरि हिनक जमा पन्द्रह गोट मूल-पोथी प्रकाशित छनि, जाहि मे गजल संग्रह (नागफेनी), कविता संग्रह (संगोर, कोसी-घाटी सभ्यता, पाथर पर दूभि, काव्यद्वीपक ओहि पार, कविता-समय), गद्य-कविता संग्रह (समवेत स्वरक आगू), दीर्घ-कविता संग्रह (यथास्थितिक बादक लेल), कथा संग्रह (समाँग, समानान्तर, दखल, समकालीन नाटक, कथा-समय) आ समीक्षा संग्रह (प्रतिक्रिया, निकती) सभ अछि। हिनक सम्पादन-सहयोग मे सेहो विभिन्न विधाक पाँच गोट पोथी प्रकाशित अछि। हिनक दू गोट कविता संग्रहक हिन्दी-अनुवाद प्रकाशित भेल अछि। डॉ. इन्द्रकांत झा सम्मान (विद्यापति सेवा संस्थान, दरभंगा), तिरहुत साहित्य सम्मान (मिथिला सांस्कृतिक परिषद, हैदराबाद) आ मिथिला जनचेतना सम्मान (मिथिला लेखक संघ, दरभंगा) सँ सम्मानित लेखक रमेश सम्प्रति दरभंगा मे रहैत छथि। हिनका सँ +91-7352997069 पर सम्पर्क कयल जा सकैछ।