सब भाषा के अप्पन फराक गुण-धर्म होइत छैक। हेबाको चाही। मैथिली के सेहो छैक। मने जे मैथिली मे ततेक ने लालित्य छैक जे एकर सबटा भाषाइ संरचना अपनहिं एकटा गेयधर्मिताक के संग चलय लगैत छैक। मने जे एकरा गीतमय होबय मे कोनो दिकदारी नै होइत छैक। सबसँ बेसी गीते उजियायत एहि मे।
जौँ इतिहासक परिपेक्ष मे देखी त’ मैथिली साहित्यक आरंभ आ भकरार होयबा मे सबसँ बेसी योगदान गीतेक छैक। ओना त’ ‘धूर्त-समागम’ सँ शुरू भेल अछि मैथिली साहित्यक इतिहास लेखन। हालांकि अपभ्रंश साहित्य सब सेहो सबटा गीते जकाँ थिक। आ एहियो नाटक मे गीतक प्रयोग भेल छल मुदा चूंकि ई नाटक छलैक तैं बेसी जनता धरि नै पहुँचि सकलैक। जौँ पहुँचबो करैत त’ नाटक जनता बस देखि-खेला सकैत छल। आ दोसर पक्ष जे नाटकक आयोजन निसदिन त’ होइत नै छल। वा भइयो नै सकैत छल। तैं निश्चिन्ती मे अपना के एहि बाटे व्यक्त नहि क’ सकैत छल तत्कालीन जनमानस। कहि सकैत छी जे जनताक हिसाबे अकलबेरा रहैक साहित्य मे।
एहने सन समय मे अएलाह बाबा विद्यापति। आ हुनकर गीत। ऐत्तहि सँ साहित्य के गीत-विधा जनताक कंठ मे आबय लगलैक। मुदा ताहि दिन लोक सब गीत के साहित्यक विधा नहीए जकाँ मानैक। मुदा ई लोकप्रिय खूबे रहैक। विद्यापतिक गीत श्रृंगार प्रधान हेबाक कारणे जनता के खूबे रुचय लागल रहैक। हमरा हिसाबे मैथिलीक पहिल जनकवि विद्येपति भेलाह।
विद्यापतिक गीतक एकटा सबसँ पैघ जे योगदान छैक से ई जे ताहि दिन मिथिला पर बौद्ध धर्मक प्रभाव बढ़ल जाइत रहैक। जम-मानस ओहि सँ प्रभावित भ’ ओम्हरे जाए लागल छल। विद्यापति अप्पन सुमधुर गीतक माध्यम सँ जनमानस के अपना दिस वा ई कही जे मिथिला दिस झिकलनि। विद्यापतिक गीतक सब सँ बेसी जे प्रभाव देखायल से छल जे हुनका सँ पहिने जे नाटक छल (धूर्त-समागम सेहो) ताहि मे गीत के समाबेश नहि छल मुदा हुनका बादक जे नाटककार सब भेलाह (जीवन झा आदि) से अपना नाटक मे गीतक अटाँबेश करय लगलाह। एकटा बात आर जे देखबा मे अबैत छैक जे मैथिली साहित्यक आरंभिक इतिहास प्रायः उपन्यास, कथा, कविता, आलोचना आदि सँ शून्य वा बिहीन सन अछि। ओहि समय मे दुइये टा विधा छल मुख्यतः। एकटा नाटक आ दोसर गीत। नाटक के शुरू ज्योतिरीश्वर आ गीतक विद्यापति। दूनु अगाध। दूनु भकरार।
शनै:-शनै: गीत भकरार होइत गेल। मुदा साहित्यक एकटा अनिवार्य विधा नहिए सन मानल जाइत छल। विद्यापतिक बाद कियो ओहेन लोकप्रिय गीतकार भेबो नहि केलाह। 1948 मे हज़ारीबागक जेल मे भेल विद्यापति पर्व समारोह के शुरू होयब गीत के लेल एकटा वरदान सन भेल। सन उनचास मे समारोह जेल सँ बाहर आयल आ गीत के मंच भेटय लगलैक।
असलक मे आजादीक लगीचक समय मे सामान्य जनमानस मे ई धारणा पसरय लागल रहैक जे मैथिली सिर्फ सवर्णक भाषा थिक। तकर कैकटा कारण रहैक। जाहि मे प्रमुख रहैक सवर्ण सब के अंग्रेज सब सँ ठेहुन-छाबा होयब। एहि विपरीत सन परिस्थिति मे मैथिलीक किछु क्रांतिकारी आ भाषानुरागी लेखक जे अप्पन भाषा के सामान्य जनमानस धरि पहुँचाबय चाहैत छलाह से लोकनि गामे-गामे जाय लगलाह। जाहि मे किरण जी, चंद्रभानु सिंह, भोलालाल दास, इत्यादि प्रमुख छलाह। हिनका सबहक संग सब सँ बेसी दिक्कत होइन्हि गमैया लोक मने सवर्ण सँ इतर जे लोक सब छलाह तिनका मे मिझ्झर होयब। ई समाजक ओहि श्रेणिक जनता छल जकरा भरिगर साहित्य सँ कोनो माने-मतलब नहि छलैक। बिकट स्थिति भेल। एहि परिस्थिति मे हिनका लोकनि के बाबा विद्यापति मददि केलखिन। हुनके गीत गाबि ई सब गाम मे मिझ्झर होबय लगलाह।
मुदा विद्योपतिक गीत लोक कतेक दिन सुनैत। कान के सुनले बुझि पड़ै सबटा। ठीक एहि कालखंड मे मैथिली मे एकटा निस्सन गीतकारक उदय भेल। ओ छलाह मधुप जी। हिनकर गीत जनता मे जाय लगलैक। मधुप जी फिल्मी तर्ज पर लिखय लगलाह। शुरू मे जनता एकरा हाथोहाथ लेलक। मुदा फिल्मी पैरोडी के नशा कने कम भेलैक अस्थिरे-अस्थिरे। मधुप जीक फिल्मी पैरोडी गीत सँ जतेक मैथिलीक साहित्य पक्ष के लाभ भेलैक, ततबे मैथिली गीतक सांगीतिक पक्ष के हानि सेहो भेलैक। मैथिली मे लगभग नहिए सन असलका धुन अबैक। एहि समस्या के हटौलनि मैथिली गीतक-संगीतक प्रसिद्ध जोड़ी ‘रविन्द्र-महेंद्र’।
रविन्द्र मने रविंद्रनाथ ठाकुर। रविन्द्र जी लिखथि आ महेंद्र जी गाबथि। रविन्द्र जी सेहो संग देथिन। धीरे-धीरे ई जोड़ी ज’म’ लगलैक। ‘के छथि मैथिल, की थिक मिथिला’, तांगा चलल अलबेला सिमरिया मेला, हे रे रॉल नंबर एक जी शिरिमान, चारि पाँति सुनू राम के नाम सँ, इत्यादि गीत अप्पन खाँटी मैथिलीपन आ ओरिजिनल ट्यूनक कारणे खूबे लोकप्रिय भेल। जनता के एहि गीत सब मे अप्पन सुआद बदलबाक बाट देखेलैक। वा ई कही जे मैथिली गीतक सुआद बदलैक। एहि बदलैत सुआद मे कतेको गोटे अयलाह। डॉ. धीरेन्द्र, मायानंद मिश्र, सरस-रमेश, चंद्रमणि, शशिकांत-सुधाकांत, नीरज-धीरज, नवल-नंद, सुनील-धीरेन्द्र, राजेन्द्र विमल, जगदीशचंद्र ठाकुर ‘अनिल’, बुद्धिनाथ मिश्र, अरविंद अक्कू,इत्यादि-इत्यादि। गीतकार-गबैयाक जोड़ी सब अप्पन-अप्पन फराक परिचिति गढ़लक। हिनका सबहक गीत मे जे खास बात रहैक से रहैक आम जनताक गप्प। समाजक हासिया परहक लोक अपना के उपस्थित पबैत छल एहि गीत सब मे। आ तैं मैथिली मे गीतक स्वर्णकाल कहय जाए बला समय उपस्थित भ’ जनताक मुँहे बहराय लागल। किछु साल के बाद ई सब बिलाय लागल। बड्ड कम्म गोटे बाँचलाह। जे रहथि वा छथि से अपन सम्पूर्ण प्रयास करैत रहलाह।
वर्तमान मे त’ गीतक स्थिति आरो खराब अछि। गोटपगड़ा युवा गीत लिखब जनैत छथि। ओकर लालित्य बुझैत छथि। अधिकांश गोटे आइ गीतक बाजारीकरण आ अनुवादीकरण मे लागल छथि। एहन सन अकलबेरा मे किछु युवा आस जगबैत छथि। जेना अमित पाठक, मैथिल प्रशांत, बौआभाई आदि।
एहि युवा गीतकार सबहक गीत-रचना, रचनाप्रक्रिया पर दोसर खेप मे गप्प होइत अछि।
ताबेत एतबे!