सुपौलक कथा-गोष्ठी सृजन-पर्व (रिपोर्ट) — डा. तारानन्द वियोगी

इतिहासक ज्ञान रहब आवश्यक

09 जनबरी,1993 केँ सुपौलमे कथा-गोष्ठीक आयोजन कयल गेल। ‘सगर राति दीप जरय’ नामसँ आयोजित कथा-गोष्ठी-संयोजनक ई तेरहम आयोजन छल, जकर संयोजक केदार कानन छलाह। संयोजक स्वतंत्रताक उपयोग करैत केदार कानन एहि बेर एहि आयोजनक नाम रखने छलाह ‘सृजन केर दीपपर्व’। एहि आयोजनक अध्यक्षता प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी बुद्धिनाथ झा कयलनि आ संचालक छलाह -प्रभास कुमार चौधरी ।

कथा-गोष्ठी-आयोजनक प्रारम्भ जहियासँ भेल, (मुजफ्फरपुर,21जनबरी,1990) एहि बातक आवश्यकता निरन्तर अनुभव कयल जाइत रहल जे सहरसा-सुपौलक प्रतिनिधित्व एहिमे होइक आ ई आयोजन एहू क्षेत्रमे कयल जाइक। मुदा, समूचा आयोजनक क्रममे सहरसा- सुपौल दुखद रूपसँ अनुपस्थित रहल आ बारहममे आबि केँ (पटना, 18.10.1992) सहरसा-सुपौलक प्रतिनिधित्व पहिल बेर भेल, जखन महाप्रकाश आ अरविन्द ठाकुर कथाक पाठ कयलनि। एहि आयोजनमे अगिला गोष्ठी सुपौलमे कयल जायब तय भेल। एकरा अवश्ये सुखद मानल जयबाक चाही जे उत्तर प्रदेश आ नेपालक सुदूर क्षेत्रमे आयोजनक बाद ई आयोजन किसुन-राजकमलक उर्बर साहित्य-प्रदेशमे प्रवेश कयलक। अपन संयोजकीय वक्तव्यमे केदार कानन अन्यान्य बातक संग एहू तथ्यक दिस ध्यान दिऔलनि ।

नियमानुसार सात वजे साँझमे गोष्ठी प्रारम्भ भेल आ साढ़े सात बजे भोर धरि चलैत रहल। कथाकार तथा कथा-आलोचक-सहित करीब सत्तरि गोटे उपस्थिति दर्ज कएल, यद्यपि भोजनावकाशक बाद उपस्थिति थोडेक कम भेल । गोष्ठीमे पन्द्रह गोट मैथिली कथा तथा एक गोट हिन्दी कथाक पाठ कयल गेल, जकर क्रमानुसार विवरण निम्नवत अछि – 1, मुँह मारी एहन भोंटके -बदरी नारायण वर्मा 2.. शेष चिह्न – रा. ना. सुधाकर (गौरीनाथ द्वारा पाठ) 3. आब – रामनरेश सिंह 4. टूटा हुआ आईना (हिन्दी)- अशोक अंशु, 5. भोरुकवा – पद्मसंभव, 6. पिआसल पानि- अरविन्द ठाकुर, 7. स्मृतिशेप – अरविन्द चौधरी, 8. एक फॉक इजोरिया-गौरीनाथ 9. धन/खाट (लघुकथा)- नारायणजी,10. चांगुर – शैलेन्द्र कुमार झा, 11. कतय पड़ायत सुलेमान – तारानन्द वियोगी, 12. कर्फ्यूमें ठाढ़ (ल.क.) – विभूति आनन्द, 13. उग्रास-प्रदीप बिहारी, 14 परलय – सुभाषचन्द्र यादव, 15. अघटना-राजमोहन झा आ 16. जीवनरेखा – बुद्धिनाथ झा।

एखन धरिक गोष्ठी सभमे एक बात देखबामे आयल छल कि जखन पाठ कयल जायबला कथाक संख्या बढ़ि जाइत छैक (एखन धरिक सर्वाधिक संख्या-३२) तँ कथा सभपर समीक्षकीय चर्चा बहुत कम भ’ जाइत छैक । थोड़-बहुत जे चर्चा होइत छैक, से हड़बड़ीक कारण गंभीरता धरि नहि पहुँचि पबैत अछि। तें स्वाभाविक जे जतेक कम कथा पढ़ल जाय, आलोचकीय चर्चा ततबे महत्त्वपूर्ण होइत छैक। सुपौलक एहि गोष्ठीमे ई बात बहुत सफलतापूर्वक देखल। अपन गंभीर आलोचकीय चर्चाक हेतु ई गोष्ठी स्मरण कयल जायत।

गोष्ठीमे पठित कथा सभक ब्याजें समकालीन कथाक रचना-प्रक्रियापर जे गंभीर चर्चा भेल, ताहिमे सँ थोड़ेक देखि लेब रुचिकर होयत। शैलेद्र कुमार झाक कथा ‘चांगुर’’ पर बेस चर्चा भेल। अनेक तरहें एक नीक कथा होयबाक अछैत किछु समीक्षक एकरा लम्बा होयबापर दुःख प्रकट कयलनि। एहि क्रममे राजमोहन झा एहि विषयपर अपन विचार दैत बजलाह जे वस्तुतः कोनो कथा लम्बा होइत नहि अछि, लगैत अछि। किछु कथाक लेल लम्बा होयब अपरिहार्य होइत छैक । आब कथाकारकेँ ई देखबाक चाही जे एहि क्रममे कथा परसँ ओकर पकड़ तँ नहि छूटि रहल छैक । कथा जखन पाठककेँ बान्हि नहि पबैत छैक, आ उबाउ भए जाइछ, तखन लम्बा लगैत छैक। लेखकक लेल ई चिंता व्यर्थ थिक जे कथा लम्बा हो कि नहि हो, ओकरा एक्के टा बात सोचबाक चाही जे कथा उबाउ नहि हो, आ ओहि परसँ लेखकक पकड़ नहि छुटैक।

पद्मसंभवक कथा ‘भोरुकवा’ एक महत्त्वपूर्ण कथा छल, जे कि सभ दिससँ सभक ध्यान आकृष्ट कयलक। ई कथा अपन धारदार कथ्यक कारण तँ महत्त्वपूर्ण अछिए, कथाकारक शिल्पचिन्ता सेहो एकरा स्मरणीय बनबैत छैक। तारानन्द वियोगी एहि दिस उपस्थित रचनाकारक ध्यान आकृष्ट करैत देखौलनि जे मैथिली कथाक नवागन्तुक पीढ़ी कतेक जीवंतताक चिन्ताक संग लेखनमे उतरि रहल अछि। एहि रचनापर विचार करैत प्रभास कुमार चौधरी नवीनतम कथाशिल्पपर गप्प उठौलनि। हुनक कहब छलनि जे आइ जीवनकेँ जाहि तरहें खंड-खंडमे बाँटि कें जीयल जा रहल छैक, ओकर जीवन्त अंकनक हेतु आब कथामे ‘प्लाट’क आवश्यकता नहि रहि गेल छैक। ‘प्लाट’ वस्तुतः एक बनाओल बाट होइत छैक, जाहिपर चलि केँ लेखकक सन्देश पाठक धरि पहुँचैत छैक। जें कि आजुक कथाकार शैल्पिक दृष्टिसँ अपेक्षाकृत बेसी समझ रखैत अछि, प्लाटक बनल-बनाओल बाटहि टा पर चलि केँ अपन बात पाठक धरि पहुँचायब एकमात्र विकल्प नहि रहि गेलैक अछि।

अरविन्द ठाकुरक कथा ‘पियासल पानि’क प्रसंग गप्प करैत डॉ. रमानन्द झा ‘रमण’ एहि बातपर जोर देलनि जे कथाकारितामे शीर्षकक महत्त्व आइयो कम नहि भेलैक अछि। कथाक शीर्षक चुनैत काल लेखककेँ बेस सावधान रहबाक चाही, कारण एकर अनेक उदाहरण प्राप्त अछि जे उचित शीर्षक पाबि, साधारणो कथ्यक कथा महत्त्वपूर्ण अर्थवत्तासँ भरि जाइत अछि। शीर्षककें प्रतीकात्मक होयबाक चाही, से भेने एकदिस जँ कथामे आस्वादनक नवीनता विद्यमान रहैत छैक तँ दोसर दिस रचना अपन समयक बहुआयामी संदर्भमे ग्रहण करबाक शक्ति हासिल करैत अछि । एहि संदर्भमे डॉ नवीन कुमार दासक ई कथन सेहो महत्त्वपूर्ण अछि जे हल्लुक आ उत्थर कथ्यक जटिल आर भीमकाय शीर्षक दए देने रचनाक हास्यास्पदता बढ़ैत छैक। कुल बात यैह जे लेखक यदि प्रतिभाहीन होअए तँ कोनो टा उपकरण ओकरा महत्त्वपूर्ण नहि बना सकैत छैक। हँ, ई बात फराक जे ओकरा साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ विभूषित कर देल जाइक।

अशोक अंशुक हिन्दी कथा ‘टूटा हुआ आईना’ पर थोड़ेक काल बेस विवाद भेल। हिन्दीक अकहानी आन्दोलन कालक मानसिकतामे लिखल एहि कथाकेँ तारानन्द वियोगी मरणबोधक दृष्टि ग्रस्त कथा बतौलनि आ सावधान करैत बजलाह जे कथामे पात्रकेँ बजबाक चाही, घटनाकेँ बजबाक चाही, कथा-समयकेँ बजबाक चाही, आ एहि सबकेँ बौक बना केँ यदि लेखक स्वयं बाजए लागय, आ अपन पोसुआ शब्द सभक बाजीगरी देखाबए लागय तँ एहन कथा समकालीन परिदृश्यमे कतहु उपादेय आ प्रासंगिक नहि अछि । ओ ईहो प्रश्न उठौलनि जे कथा रचनामे काव्यात्मक भाषाक मायाजालसँ उबरल जयबाक चाही। दुनू सर्वथा भिन्न प्रकारक वस्तु तँ अछिए, दुनूमे प्रभावक अन्तर सेहो होइत छैक आ निश्चित रूपसँ कविताक भाषा धारण कए, एक नीक कथा नहि लिखल जा सकैत छैक। डॉ. शिवेन्द्र दास ई महत्वपूर्ण विचार रखलनि जे लेखक जँणकोनहु पुरान कथा-वस्तु पर रचना कए रहल होअय तँ ओकरा लेल ई बाध्यता किन्नहु नहि छैक जे ओ पुरने शिल्प आ भाषाकेँ अंधकार करय। अजुका समयमे लेखन कयनिहारकें ई सदति व्यान रखबाक चाहियनि जे पुरनको प्रतिमानकें नव आँखिसँ देखल जायबाक चाही ।

रामनरेश सिंहक कथा ‘आब’ पर ई विचार राखल जायब (तारानन्द वियोगी द्वारा) महत्त्वपूर्ण मानल गेल जे लेखक अपन बात कहबाक लेल जे खिस्सा शुरू करैत छैक, जरूरी अछि जे ओ ओतवे धरिक घटनावलिमे अपना कें ओझराबय, जतबामे ओ अपन बात सफलतापूर्वक कहि लैत अछि। घटनावलिक ताना-बानासँ जँ लेखक एक विशाल महल गड़ि लेमय तँ फेर ओ बात महलक दरबान सन तुच्छ भए केँ रहि जाइत छैक, जकरा कहबाक लेल ओ कथा शुरू कयने छल। ई लेखकक सभसँ पैघ स्खलन थिक, जकरासँ ओकरा बचबाक चाही। कथाक कैनवास कथ्यक चारू दिस घुमैत बनल जयबाक चाही । एकाग्र दृष्टिसँ कथ्य पर केन्द्रित भेने कथा लेसर किरण सन अचूक प्रभावी होइत छैक ।

प्रदीप बिहारीक कथा ‘उग्रास’केँ जतय एक दिस खिस्सागोइक प्रतिमान मानल गेल, उपभोक्ता संस्कृति द्वारा पसारल जा रहल अपसंस्कृतिक खतराक अंकनक लेल एक जरूरी कथा ठहराओल गेल, ओतहि एहि पर किछु नवतुरिया रचनाकारक – अरविन्द कुमार चौधरी, निर्भय, प्रकाश द्वारा अश्लीलताक आरोप सेहो लगाओल गेल। एहि प्रसंगमे प्रभास कुमार चौधरी ई दृष्टि-सम्पन्न विचार रखलनि जे श्लीलता-अश्लीलता वस्तुतः कथामे कोनो वस्तु होइते नहि छैक आवश्यक होइत छैक ई देखब जे लेखक ओहि प्रसंगक विवरण कोन सन्दर्भमे देलक अछि, आ ओकर दृष्टि कतय छैक। कथाक कथ्य धरि पहुँचक हेतु जँ एहन प्रतिबन्धित ( ? ) शब्दक प्रयोग अपरिहार्य हो तँ एकरा अश्लीलता कहब अनुचित थिक। पद्मसंभक ई कथन सेहो अवसरानुकुल छल जे अश्लीलता शब्दमे नहि होइत छैक, ओ हमरा – अहाँक दृष्टिमे होइत अछि आ संस्कारमे होइत अछि। हालक हिन्दू-मुस्लिम दंगापर लिखल गेल तारानन्द वियोगीक कथा ‘कतय पड़ायत सुलेमान’ गोष्ठीक सर्वाधिक विवादास्पद कथा रहल, जाहि पर एक दिससँ किछु गोटे उत्तम कथा होयबाक विचार रखलनि तँ दोसर दिस एकरा एक परम संवेदनशील विषयपर लापरवाहीसँ लिखल रचना घोषित कएल गेल । महाप्रकाश अपन ई महत्त्वपूर्ण विचार रखलनि जे एहन कथा अपन अभीष्ट प्रभावसँ चुकि गेने एक साम्प्रदायिक रचना बनि रहि जाइत अछि। आवश्यक अछि जे एहि तरहक कथाकेँ एहि तरहक जीवन-स्थितिक बीचसँ उठाओल जयबाक चाही, जकर विवरणक परिणामस्वरूप अनिवार्य रूपसँ करुणे मात्र उपजैक। करुणाक बदला रोष उपजय अथवा ग्लानि उपजय, तँ मानल जयवाक चाही जे ई एक असफल रचना थिक। रोष वा ग्लानि – दुनू साम्प्रदायिकताकेँ पढाबैवला तत्त्व सिद्ध होइछ। एही प्रकारक विचार राजमोहन झा, प्रभास कुमार चौधरी, सुभाषचन्द्र यादव आ पद्मसंभव सेहो व्यक्त कयलनि । डॉ. नवीन कुमार दासक आरोप छल जे सभ वस्तुक अछैत ई कथा एक प्राणहीन रचना थिक आ निश्चित रूपसँ, प्राणवन्तता रचनाक सभसँ महत्त्वपूर्ण गुण थिक । डॉ. महेन्द्र बरोबर एहि बाता पर बल दैत रहलाह जे कथाकारकेँ सदतिकाल सन्तुलित दृष्टि रखबाक चाही आ से नहि भेने रचनाकेँ दुरि होयबासँ बचाओल नहि जा सकैछ ।

राजमोहन झाक कथा ‘अघटना’कें आजुक संदर्भमे एक महत्त्वपूर्ण कृति मानल गेल। कारण जीवनसँ निरंतर लुप्त होइत आशा एवं विश्वासकेँ स्थापित कयल जयबाक आवश्यकताकें ई रचना बहुत संवेदनशीलता आ गम्भीरताक संग उकेरैत अछि ।

सुपौलक गोष्ठी अपन किछु विशेषताक लेल स्मरण कयल जायत । सभसँ महत्त्वपूर्ण छल – श्रोता लोकनिक एकाग्र भागीदारी। किसुन जी द्वारा गाओल गेल साहित्यक जागरण-राग जेना भरि राति गुंजैत रहल। बाहरोसँ आयल कोनो रचनाकारक निनमे निसभेर नहि देखल गेलाह। संभवतः रात्रि विश्रामक हेतु गोष्ठी मे आबयवला रचनाकार एहि बेर आयले नहि छलाह । प्रायः आठ घंटा धरि कॉफी आ चाहक दौर अविरल चलैत रहलैक -मने क्रम भंग भेबे नहि कयल। पूरा गोष्ठी कक्ष मैथिलीक कविता, विचार, आ देश-विदेशक चिन्तक द्वारा कथापर कहल गेल उद्धरण सभक पोस्टरसँ सजाओल गेल छल – जे बेर-बेर रचनाकार लोकनिक ध्यान आकृष्ट करैत रहल।

साहित्य अकादेमी द्वारा वर्ष 1992 मे मैथिलीक हेतु घोषित विवादास्पद पुरस्कारक भर्त्ससनाक अनुगूंज समय-समय पर एहि गोष्ठीमे सुनल जाइत रहल ।

विभूति आनन्दक कविता-संग्रह ‘पुनर्नवा होइत ओ छौड़ी’क विमोचन एहि गोष्ठीमे वरिष्ठ कवि महाप्रकाश द्वारा कयल गेल। महाप्रकाश विभूतिक काव्य-चेष्टापर प्रकाश देलनि आ संग्रहक किछु कविताक पाठ सेहो कयलनि।

आ डॉ. नवीन कुमार दास द्वारा धन्यवाद ज्ञापनक उपरान्त गोष्ठी समाप्त भेल।

‘अगिला गोष्ठी’ 20 सँ 25 अप्रैलक मध्य बोकारोमे आयोजित होयब निश्चित भेल अछि। एकर संयोजक होएताह – बुद्धिनाथ झा। सुपौल गोष्ठीक अध्यक्ष बोकारो-निवासी बुद्धिनाथ झा बहुत आत्मविश्वासक संग ई घोषणा कयलनि जे बोकारो कथा-गोष्ठीमे जे कथा सभ पढ़ल जायत, तकर एक संग्रह ओ अपन संस्थाक दिससँ प्रकाशित करौताह ।