ठोस प्रश्न ई नहि जे कविता गामक अछि आ कि शहरक अर्थात् कविताक केन्द्रीय कक्ष मे गाम अछि किंवा शहर। ठोस प्रश्न ई होइछ जे ओहि गाम आ कि शहरक कविता मे जीवन कतेक अछि, जीवन सँ कविताक कतेक सम्पृक्ति छैक, संघर्ष सँ कतेक संयुक्त छैक। जीवनक तत्व कविताक जीवित रहबाक प्रमाण बनैछ आ संघर्षक तत्व कविताक जागृत रहबाक। अभिप्राय जे कविता केँ ने त’ मृत होयब अपेक्षित आ ने निस्तेज होयब अभीष्ठ। कविताक मृत होयब आ निस्तेज होयब प्रकारान्तर सँ पर्यायवाचीए बूझल जाइछ। स्तुतिगान, विरुदावली, गुण-कीर्तन, अतीतमुग्धता, दया-कृपाकांक्षा आदि तत्व मृत कविताक प्रमुख लक्षण गनल जा सकैछ संगहि जनपक्षीय सरोकार, नव चेतना, आधुनिकता-बोध, आक्रोश, असहमति, प्रगतिशीलता, प्रतिरोध, व्यंग्य, संघर्ष प्रभृति तत्व केँ कविताक जीवन-पक्षक लक्षण मानल जा सकैछ। कविता मे जीवन-तत्वक रूप-चित्रदि कविक जीवन-जगत सम्बन्धी अनुभव पर निर्भर करैछ। कविताक भूस्पर्शीय प्रवृत्ति जतेक ठोस होयत, कविता ततेक प्रखर होयत, तेजोमय होयत। वायवीय कविता किंवा अज्ञात लोकक यात्र करैत-करबैत रहबा लेल कृत संकल्पित कविता सँ आमजन आ कि सर्वहारा सभक सम्बन्ध-सरोकार शीघ्रहि समाप्त भ’ जाइछ। ओहि प्रकारक कविता त’ कुलीन-अभिजनक हाथ मे पड़ल एकटा एहेन हथियार सिद्ध होइत रहल अछि जकर प्रयोग ओ लोकनि आमजनक-सर्वहाराजनक संघर्ष-वृक्ष केँ पांगय-छोपय लेल करैत आयल अछि।
जँ कविकर्मक परम उद्देश्य किंवा एकमात्र उद्देश्य आनंद-हर्षातिरेक हो त’ हमरा बुझने ई बूझल जयबाक चाही जे ई कविकर्म मरनासन्न किंवा स्त्रैण (बौद्धिक रूपेँ) समूह द्वारा समाज केँ नपुंसक बनाओल जयबाक एकटा सुनियोजित-सुविचारित षड्यंत्र मात्र अछि। एहि षड्यंत्री नैपुंश्यक परम्परागत दीक्षाप्राप्त महानुभावलोकनि द्वारा विश्व-वाघ्मयक अधिकांश भाग केँ गीरल-उगिलल जा चुकल अछि। हमर पक्ष अछि जे ओहि कवितासभक जयजयकार करब एक प्रकारक हवाउर लूटब थिक। एहिए स्थिति ओ स्थल पर आबि कविताक प्रसंग आ प्रासंगिकता दुनूक प्रश्न नमहर भ’ उठैत अछि। एतहि आबि कविताक लोकपक्ष आ लोकप्रियपक्षक चयन कविकर्मक प्रतिबद्धताक रूप मे एकटा महत्वपूर्ण कारक बनय लगैछ। कविता केँ लोकप्रिय बनेबाक, अनावश्यक-अनपेक्षित लोकप्रिय बनेबाक क्रम मे कविक द्वारा कविता-सृजनक अभ्यन्तर कयल गेल रंग-विरंगक वांछित-अवांछित समझौता सँ ओ कवि आ कविता अपन निर्माणेकाल केँ अपन अवसानकाल बना लैत अछि। कविता केँ मात्र लोकप्रिय उत्पाद बूझब एकटा नव कुलीनतावादी सोच अछि जे अपन समस्त चारित्रिक गुणावगुणक संग अंततः जनसामान्यक निजगुत खगता ओ विकासक विपक्षे मे ठाढ़ होइत रहल अछि। वस्तुतः कविता कोनहु मनोरंजनक साधन-सामग्री आ कि ‘आइटम सौंग’ नहि अपितु रचनात्मक उद्देश्यक संग प्रतिरोधक एकटा समर्थ औजार अछि।
ई कहबा मे हर्ज नहि आ कोनहु असौकर्यो नहि जे ‘धरती सँ अकास धरि’क कवि चन्दन कुमार झाक ई तेसर कविता-संग्रह ‘गामक सिमान पर’ उपरोक्त समस्त आक्षेप ओ चिन्ताक यथाशक्ति-यथासम्भव प्रत्युत्तररूपेँ दृढ़तापूर्वक ठाढ़ होयबाक एकटा निस्सन प्रयास अछि। ‘धरती सँ अकास धरि’ कविता-संग्रहक उत्तराधिकार रूप ई संग्रह- ‘गामक सिमान पर’ पूर्वापेक्षा बेसी सुविचारित आ बेसी मजगुत अछि। से अपेक्षित सेहो। कवि एहि नव संग्रहक पवाहटिए करैत छथि गामक निर्धन सँ (जे कि अपन निजगुत अर्थ ओ अभिप्राय मे सर्वहारा अछि), ओकर जीवन-संघर्ष सँ आ संघर्षगत यथार्थ सँ। विकासक आस आ इजोतक उमेद भरने निरन्तर संघर्षरत श्रमिकक स्थिति-परिस्थितिक विवेकपूर्ण-सम्वेदनापूर्ण चित्रण एहि कवि आ हिनक कविता दूनू केँ ठोस करैत अछि। अपन गामक (विशेष ओ विराट अर्थ मे गामक) सरोकार-संवेदना केँ गामक खेती-पथारी, जोत-उपजा, सभ्यता-संस्कृति, शिक्षा-साहित्य प्रभृतिक चिन्ता ओ आशाक रूप मे चित्रित करैत जखन अपन नजरि सूक्ष्म करैत छथि त’ ओ देखैत छथि-निर्भया-दामिनीक दुर्गति, नारीक प्रति संवेदनहीन समाज, शहरी चकाचौंध आ एहि चकाचौंधक प्रति अविवेकी आकर्षण भरल सगर अचेतन समाज, स्खलित मानवता, धर्मक आडम्बरी कार्य-व्यापार, क्रमेण बे-इमान बनल जाइत समूह, गामक जोत-जमीन आ जोरू पर्यन्त दखल करबाक कुत्सित लिप्सा, खेतिहरक उपजा आ तकर अनुचित हाथ मे संरक्षण-उपयोग, व्यष्टि आ समष्टिक समस्त संधि-स्थल पर एकटा जालसाज तेसरातिक उपस्थिति, प्रत्येक वर्ग ओ स्तर पर सायास बहाल कयल जाइत एजेन्ट, संयुक्त परिवारक वि शृंखलन आ प्रकारान्तर सँ तकर अन्यान्य दुष्प्रभाव, बाल-मनसक संग घात-प्रतिघात, बंधुत्वक सवेग ”ास, अंधविश्वासक मकरजाल मे पड़ल लोक-समाज आ ताहि सँ विलुप्त होइत जीव-जन्तु, विकासक अपचेष्ट व्याख्या सँ तबाह होइ जनसमूह, राजनीतिक अभिप्राय मात्र लठैती, अगुआ बनि सदति लाभ लेबाक स्थायी कार्य-योजना, कुव्यवस्था-कुशासनक सोझाँ चिरनिद्रा-निभेर मिथिला सपनो मे अपन सर्वस्व दान करबाक बाल सुलभ उतकिरना पर मोहित-उल्लसित, अपन अय्यास भूतकाल केँ गर्व-भावक संग आइयो कन्हेठने निरीह आदेशपालक मुदा मे ठाढ़, मिथिलाक ब्रह्मोत्तर मे आलस्य-अकर्मण्यक पराकाष्ठा रूप जनमल सिक्कठि-जिम्मरिक गाछी, धर्मक नाम पर मूर्खता आ आसकति पसारबाक प्रवाचनी षड्यंत्र आदि।
गाम एकटा जनसमूहक मात्र नहि तथापि आजुक गाम अविकसित-अल्पविकसित भूखण्ड पर बसल कोनहु अशिक्षित-अल्पशिक्षित समूहक नाम त’ जरूरे अछि। एकर अपन सभ्यता-संस्कृति छैक, बंधुत्व-औदार्य छैक, जीवन-व्याकरण छैक आ चिंता-चिन्तन छैक जे एकरा शहर सँ फराक परिचिति दैत छैक। मुदा आइ प्रायः सभटा गाम अपन विकासक मॉडल लेल शहरक सोझाँ अमानी याचक सदृश ठाढ़ देखल जा रहल अछि। लगैए जे जँ गाम पूर्ण विकसित भ’ जाय त’ ओ शहर भ’ जायत! ई परिभाषा ने त’ गामे लेल उचित आ ने शहरे लेल उचित। की गामक ‘अल्टीमेट फॅार्म’ अछि शहर? की शहरक अविकसित रूप अछि गाम? की गाम शहरेक अनुकृति मे अपसियाँत रहत? सरकारी आँकड़ा सँ एहि स्थिति केँ जतबा समर्थन भेटौक मुदा ई चिन्ताक सामग्री किंवा विषय त’ अछिए जे की गाम केँ ओकर अपनहि रूप, सीमा, परिस्थिति ओ सौन्दर्यक संग विकसित नहि कयल जाय?
एवंक्रमे ई गछब सर्वथा आवश्यक अछि जे गामक सिमान पर ठाढ़ कवि चन्दन कुमार झा केँ गाम आ शहर दुनू देखाइत छनि मुदा अपना केँ शहरक राजपथक पथिकरूप मे कम आ गामक आरि-धूर, गली-कूची, खेत-खरिहान, गाछी-कलम, घाट-बाटक बटोहीरूप मे बेसी समर्थन करैत छथि। तैं चन्दनजीक कविता मे, कविताक वैचारिकता मे शहर आ शहरीक अस्तित्व लेल यद्यपि नकार-भाव नहि छनि मुदा जँ सकार भाव छनि त’ ओतबे जतबा कि गामक विकास हेतु ओ साधन अथवा सहायक सिद्ध भ’ सकैत अछि। तैं त’ कवि गामक शहरीकृत बोध, विकास आ सौन्दर्य सँ बेस चिन्तित छथि, सीदित छथि आ अपन गामक सिमान ओ वितान केँ दुरुस्त करय चाहैत छथि। हिनक कविताक ‘नैरेटर’ (प्रायः स्वयं कवि) बेस सुयोजनापूर्वक अपन एहि नाप-जोख केँ पकठोस करैत बेस चलाकी सँ अपन विचार बिलहि जाइत छथि। कविक एहि ‘नैरेटर’ केँ निधोख होयब, निर्दोष होयब आ उक्तिवैचित्री सँ अपन बात राखब प्रभृति बिन्दु निश्चये चमत्कृत करैत अछि। से चमत्कार हिनक विषय-परिधि सँ कथ्य-केन्द्र धरिक कविता-यात्र केँ बल प्रदान करैत अछि।
चन्दनजी अपन कविता लेल सदति सहजिया देखल जाइत छथि। सहजताक आग्रही एहि किवक कविता मे सहज शब्द, सहरजमीनी अनुभव, देशी निजता भरल बिम्ब-प्रतीकादि एहि संग्रहोक सहजताक उत्तम पक्ष अछि। अपन एहि प्रशंसनीय सहजताक संग हिनक कविता अपन प्रभावक स्तर पर प्रायः सभठाम बेस दमगर चोट करैत अछि से अपन तीक्ष्णता आ धार-धाराक संग। ई जखन प्रेम- कविता दिस अबैत छथि त’ समस्त ग्राम्यरूप ओ ग्राम्य सौन्दर्यक संग एकटा विश्वास, धैर्य आ दायित्व ल’ क’। परिणामस्वरूप कविताक अंतर्लय-अंतर्वस्तु बेसी पुष्ट होइछ। गुड्डी उड़बैत काल प्रगति पर विश्वास आ ताहि विश्वास केँ मिथिला-माटिक आधार-स्वर दैत कवि सड़कक कातक बजारक चित्र सँ दैशिक-वैश्विक समाजक किछु सत्य-चित्र आ किछु नग्न-चित्र अंकित करबाक साहस सेहो करैत छथि। सृजनक पीड़ा केँ अपना मे समाहित कए कवि अपना केँ कोनहु वाद विशेष सँ एकाते राखय चाहैत छथि। मुदा उपर-उपर ई निर्वाद स्थिति जतेक सामान्य आ सुविधाजनक बूझि पड़ैछ ततबे ई असामान्य आ खतरनाको अछि कारण ई प्रकारान्तर सँ परम्परावादिता-यथास्थितिवादिता प्रभृति केँ अप्रत्याशित रूपेँ सहयोगी बनि जाइत अछि। इमान केँ संग्रहालयक वस्तु बनि जयबाक दुःस्थिति सँ चिन्तित होइत कविक लेल विद्रोहक निरन्तर अभाव आ परिवारक धोकचैत परिधि दोबर चिन्ताक विषय छनि।
मुदा एहि सभ स्थितिक रहितहु गामक सिमान पर अपन प्रतिबद्धताक संग ठाढ़ एहि कवि मे जाधरि संघर्ष बुनबाक, पुरखाक प्रति आदर-श्रद्धाक, पॉजिटिभक स्थापना ओ निगेटिभक भर्त्सना करबाक, प्रतिरोध केँ जिया क’ राखि तकर निर्वाह करबाक, आत्मचिन्ता-आत्मचिन्तक प्रति आग्रही भ’ कोनहु संघर्ष केँ परिणाम धरि पहुँचेबाक, प्रकृतिक संग तादात्म्य रखबाक, खरिहानक दाउन-दोगाउनक पृष्ठभूमि मे संघर्षक मेह गाड़बाक, समाजक अथबली केँ व्यंग्य-वस्तु बनेबाक, नारीक दुर्गति-अधोगति लेल स्वयं तक केँ अपराधी बुझबाक, अक्खज सपना बुनबाक आ गामक बाघ-बोन-खेत-खरिहान-विरार-ब्रह्मोतर आदि केँ विशेष रूपें अर्थवान बनेबाक सन काव्यवस्तु भरल कविता अभरैत रहत ताधरि गामक सिमान आ ताहि सिमान पर जनमल-पनघल-लतरल-चतरल-फुलाएल-फड़ल गाछ आ गाछी केँ कुशकलेप नहि होयत।
कविताक रचना, चयन, क्रम, रूप, आकार, परास, प्रभाव आ शिल्प-विम्ब-प्रतीकादिक समीकरण प्रभृति केँ देखैत ई कहल जा सकैछ जे एहि संग्रहक प्रायः सभ कविता आमजनक बीच सँ उठल-उठाओल गेल आमेजनक पक्षक कविता अछि। कविताक वर्णित वस्तु बनल केन्द्रीय पात्र लग ओकर श्रम छैक, साहस छैक, धैर्य छैक, भूख छैक आ एकर साधन-उपकरणरूप मे कोदारि-खुरपी, बसिला-रुखान आ हर-पालो छैक। एहिए उपकरणक निर्माण, समावेश, उपयोगादि एहि कविता-पात्र आ कविता-संग्रहक कला ओ सौन्दर्य-पक्ष अछि। एहि संग्रहक प्रायः सभ कविता जीवनक कविता अछि जे संघर्षक सिंहनाद करैत अपन समस्त संघर्षोपकरण सहित अदम्य आशा, विश्वास आ जोशक संग उपस्थित होइत अछि। एहि कविता-संग्रहक यएह विशेषता अछि आ कवि ओ कवितारूप मे मैथिलीक उपलब्धि सेहो।
कोनहु रचना मे आलोचना हेतु ‘मैटर’ आ ‘स्पेश’ नहि हो से ने त’ सम्भव अछि, ने विश्वसनीय आ ने उचित। यएह ‘मैटर’ आ ‘स्पेश’ कविकर्मक विकास-क्रम मे एकटा सार्थक सोपान अछि। एकरा रचनात्मक नैरन्तर्यरूप मे सेहो देखल जा सकैछ। एकटा प्रतिबद्ध कविक प्रमाण-पत्ररूप ओकर कविताक ई लाक्षणिक गुण-धर्म होइछ जे ओ एकटा संघनित विमर्शक निरन्तर आग्रही बनैत रहय। ‘गामक सिमान पर’क कविता ताहिए विमर्शक केन्द्र मे आबय ताहि शुभकामना संग—
फाल्गुन, द्वादशी
02 मार्च 2015