मैथिली साहित्य मे भूमिका-लेखनक स्थापित परम्परा आ शैलीक स्वरूप-परिवर्तन भ’ गेल अछि। भूमिका-लेखनक पारम्परिक शैली कालातीत भेल जा रहल अछि। करीब-करीब भइये गेल अछि कालातीत। भूमिका-लेखनक जाहि जाहि स्वरूप आ प्रारूपक उद्घाटन जीवकांतजी, डॉ. भीमनाथ झा, उदयचन्द्र झा ‘विनोद; रमानन्द झा ‘रमण’ अथवा उपरका खाढ़ी मे सुमनजी, अमरजी इत्यादि केलनि, से सभ प्रारूप आब ‘स्टीरियोटाइप्ड’ भ’ गेल अछि। स्थापित अवधारणा सभ, जे भूमिका-लेखन नकारात्मक आ आलोचनात्मक नहि हेबाक चाही; ‘भूमिका’ पोथी अथवा रचनाकार केँ सुस्थापिते करबाक लेल लिखल जाइत अछि; भूमिका लेखन मूल्यांकनपरक नहिएँ हेबाक चाही; ‘भूमिका बला आलेख’मे कविताक उद्धरण गाँथले हेबाक चाही, समीक्षकीय शैली आ दृष्टिकोणक ‘झाँखीयो दर्शन’ भूमिका मे नहि हेबाक चाही, आदि-आदि खण्डित भ’ नंड-भंड भ’ गेल अछि। भूमिका-लेखकक ‘आशीर्वादी मुद्रा मे उठल हाथ’, लेखक आ पोथीक सम्यक् छवि स्थापित नहि क’ पबैत छल। उपकार भावेँ, झाँपि-तोपिक’ काज चला लेबयबला प्रवृत्ति, रचनाकारक क्षतिए करैत छल।
भूमिका-लेखन वरिष्ठताक सम्मान नहि थिक, वरीय-दायित्व थिक। वस्तुतः भूमिका-लेखन पोथी आ लेखक केँ साहित्य वा भाषा-संसार सँ, मात्रा औपचारिक परिचय करायब नहि थिक। साहित्य मे जेना पुरान परम्पराक अंत आ नव परम्पराक आरम्भ एकटा शाश्वत परम्परा थिक, तहिना भूमिका लेखनक स्वरूप आ शैलीक परिवर्तन, एकटा स्वागतेय आ स्वस्थ परम्परा थिक, जे भूमिका-लेखन केँ बेसी सार्थक बना देलक अछि। से परिवर्तन अनायासहि नहि भेल अछि । पं. गोविन्द झाक भूमिका-लेखन सँ फराक भेनाइए छल मोहन भारद्वाजक, कुलानन्द मिश्र वा डॉ. सुभाष चन्द्र यादवक भूमिका-लेखनक। से बेसी तर्कसंगत, अपारम्परिक आ आधुनिक छल। सोमदेव आ डॉ. धीरेन्द्रक भूमिका-लेखन अमरजी आ डॉ. रामदेव झाक भूमिका-लेखन सँ फराक हेबे करितय । तथ्यक उपस्थापन तँ सभ भूमिका-लेखक सँ अपेक्षित रहिते अछि। मुदा उपस्थापनक शैली, दृष्टिकोण, निष्पत्ति आ पोथीक स्थापना लेल चयनित दिशा, बेसी महत्वपूर्ण भेल करैत अछि। तेँ आजुक भूमिका लेखन, पूर्वक भूमिका-लेखनसँ एकदम्मे आ अलगट्टे फराक, एकटा दायित्वपूर्ण लेखन थिक । आजुक भूमिका-लेखक वरीयताक बड़प्पन लेल नहि, अनुज-अनुजापर उपकार करबाक लेल नहि, अपन एकटा स्वतंत्रा रचना आ आलेख बूझि क’ कोनो पोथीक ‘गंभीर भूमिका’ लिखैत अछि । एकपेजी, दूपेजी मुँहछुआब केनाइ, स्वस्तिवाचन, शुभाशंसा, आशीर्वचन देनाइ आजुक भूमिका-लेखनक उद्देश्य नहि थिक।
अजित आजाद सन पूर्व-स्थापित आ जुआँठ-कविक, नव काव्योपविधाक पहिल पोथीक ई भूमिका ताही नव-अवधारणा-अन्तर्गत लिखल जा रहल अछि। ताहि तरहक नव शैलीक भूमिका-लेखन, ई प्रथमहि नहि भ’ रहल अछि। डॉ. कमल मोहन चुन्नूक ताहि शैलीक भूमिका-लेखन संज्ञान लेब’ योग्य अछि। भूमिका-लेखकक ‘भूमिका’, कोनो नव धारा केँ स्थापित क’ सकैत अछि। ततेक दायित्वपूर्ण काज थिक ‘भूमिका-लेखन’। आ से छुतिया छोड़ेबाक लेल जँ लिखल जाय, तँ से ‘औपचारिक लेखन’ साहित्यक प्रवाह केँ स्थगिते करैत अछि। ‘अगंभीर भूमिका-लेखन’ मैथिली साहित्य, अनेकानेक पोथी आ अनेक रचनाकारक बहुत क्षति केलक अछि। तेँ आजुक भूमिका-लेखकक भूमिका-लेखनक नीति, प्रक्रिया आ स्वरूप, सुस्पष्ट, अपारम्परिक, सार्थक व्याख्या-विश्लेषण सँ भरल-पुरल, तर्कपूर्ण, युगसत्यक संग भाँज पुरैत, युगधारा केँ चिन्हैत, पोथीक लेखक केँ तकर संकेत करैत, अपना कालखण्डक नेतृत्व करैत, हेबाक चाही । विकृतिविहीन आधुनिकता, वैज्ञानिकता आ तर्कपूर्ण स्वस्थ्य परंपराक पक्ष मे हेबाक चाही। सही आ आजुक भूमिका-लेखक ‘मंच परहक पाग’ सँ बेसी महत्व ‘विमर्शक मंच-निर्माण’ केँ दैत अछि आ से हेबाको चाही । तेँ आजुक भूमिका-लेखनक ‘चाही’ बदलि गेल अछि। आजुक भूमिका-लेखन ‘सोङर’ नहि, ‘सङोर’ थिक । नव धारा, नव पोथी, नव प्रवृत्ति, नव विधा, उप-विधाक सार्थक सङोर आ तकरा स्थापित करबाक प्रयास थिक। वस्तुतः कोनो भूमिका-लेखक अनुशंसाक वाग्जाल निर्मित करथि अथवा परोपकार करथि, अपन व्यक्त विचार आ चतुर शैली मे फँसले रहैत छथि। काव्य-उद्धरणक महाजाल सँ ककरो कल्याण नहि भ’ पबैत अछि।
अजित आजाद अपना पीढ़ीक आइ अविवादित मुख्य-स्थानीय छथि। ई नाम कोनो नव नहि थिक। मुदा हिनकर कविक निर्झर लेखिनी अथक अवश्य अछि। विवाद सँ नहि डेरयबाक कारणेँ, बहु-विवादित हैब हिनका पसिन्न छनि आ से हिनकर कवि आ कवित्तक, हिनका हिसाबें सकारात्मक पक्ष थिक। जाहि कविक अदहा दर्जन काव्य-पोथी छपि चुकल हो, तकर परिचय देब, कोनो तेहेन जरूरी नहि अछि। ओ (पूर्व-स्थापित अर्थ मे) प्रगतिशील वैचारिकता केँ प्रतिनिधित्व करैत, अथक काव्य-यात्राक बटोही छथि।
विषय-केन्द्रित काव्य-लेखनक परम्परा मैथिली मे क्षीण आ नगण्ये जकाँ रहल अछि, जखन कि आन भाषा-साहित्य मे से काज खूबे भेल अछि। जेना कोसी-क्षेत्राक पीड़ा आ संस्कृति-तत्व-केन्द्रित काव्य-पोथी ‘कोसी घाटी सभ्यता’ (रमेश) आयल, तेना फेर ‘हम कोसिकन्हाक एकटा कवि’ (अजित आजाद) टा दीर्घ अन्तरालपर आबि सकल। तखन फेर स्त्री-जीवन केन्द्रित, मुस्लिम-समाज केन्द्रित, निम्न-वर्ग-केन्द्रित, शहरी जीवन-केन्द्रित, पिछड़ल-वर्ग केन्द्रित, बेरोजगारी वा अशिक्षा-केन्द्रित, कोनो सम्पूर्ण काव्य-पोथी नहि आयल। यद्यपि एहि सभ विषयक गोटपगरा कविता, मिझहर-साँझर भ’ क’ काव्य-पोथी सभ मे छपैत रहल। दीर्घ अन्तरालपर, कहियो-काल, कृषक-जीवन-केन्द्रित ‘एकसरे ठाढ़’ (विवेकानन्द ठाकुर) वा ‘परती टूटि रहल अछि’ (अरविन्द ठाकुर) छपिक’ ताहि धाराक अस्तित्व-भान कराबैत रहल।
विषय-केन्द्रित ताही स्वस्थ्य आ प्रगतिशील परम्परा सँ सन्दर्भित अछि, गाम-केन्द्रित काव्य-सृजन परम्परा। सत्य तँ ई थिक जे, एखन धरिक मैथिली कविता गाम-प्रधान रहल अछि, नागर जीवन-प्रधान नहि। ग्राम्य-जीवन मैथिली कविता मे नब्बे प्रतिशत भेटत। मुदा गाम-केन्द्रित सम्पूर्ण कविता-संग्रहक संख्या थोड़ अछि। ‘गामक सिमान पर’ (चन्दनकुमार झा) अथवा ‘ग्लोबल गाम सँ अबैत हकार’ (कृष्णमोहन झा ‘मोहन’) हेबनिएँ मे आयल अछि। तखन एतबा अवश्य जे, ई सभ संग्रह गाम-विमर्शक आरम्भ जरूर करा देलक अछि। गाम-विमर्शक आरम्भ मोहन भारद्वाज ओना विवेकानन्द ठाकुरक ‘एकसरे ठाढ़’ पोथी सँ क’ देने छलाह आ तकरा ‘ग्राम्य-दोष-रहित’ कविता-संग्रह हेबाक साटीपीकट सेहो देने छलाह। मुदा से साटीपीकट सेहो विवादित अछि। कारण, ‘सुरम्य’ ग्राम्य-काव्य होइतहुँ, ठाकुरजीक ने तँ कविता मे चित्रित गाम ‘आधुनिक’ छल, आ ने कविता छल ‘ग्राम्य-दोष-रहित’। काव्य-व्याख्याक स्वरूप हुनकर स्मृतिदोष-पीड़ित आ पारम्परिक छल। हुनकर किसान सेहो पारम्परिके रहल, वैज्ञानिकता आधरित नहि। हुनकर कविता मे चित्रित ग्रामीण जीवन सेहो, रमनगर चित्रा-काव्य मे, रमणीक खाँटी मैथिली मे, एकदम्मे पारम्परिक रहल।
मुदा ताहि गाम-विमर्शक स्वरूप केँ चन्दनकुमार झा, कृष्णमोहन झा ‘मोहन’ आ आन कएटा कवि आधुनिकता-स्वरूपक अग्रिम काव्य-पड़ावपर अवश्य ल’ गेलाह। अपन समकालीनताक संग भाँज पुरैत एहि दुनू कविक विमर्शित गामक अपेक्षाकृत मुदा, अजित आजादक ‘गाम सँ बहराइत गाम’ मे नव-विमर्श उद्घाटित आ स्थापित करैत अछि वा नहि, से पड़ताल करब एहि भूमिका-लेखनक एकटा मुख्य उद्देश्य थिक। ओना आनो कएटा तँ उद्देश्य अछिए तैओ, मुख्ये जकाँ।
मैथिली कविता मे गाम विमर्शक अवधारणा आ तकर सम्यक् विश्लेषणक अभावे जकाँ रहल अछि। एकदम्मे सँ अपेक्षाक प्रतिकूल। जखनकि गाम-विषयक काव्य-लेखनक प्रधानता रहल। जीवकांतजी, विनोदजी, भीमनाथ झा, कुलानन्द मिश्र, उपेन्द्र दोषी, सुकांत सोम, अग्निजीवी पीढ़ी आ हमरो लोकनिक पीढ़ी मे धुरझाड़ ग्राम्य-काव्य लिखयल। मुदा, गाम-प्रधान-काव्य-केन्द्रित सम्पूर्ण पोथीक अभाव, तद्विषयक नामकरणबला पोथीक अभाव, मान्य आलोचकगाणक ध्यानाकर्षण नहि क’ सकल। गामक स्वरूप-आधारित, गाममे भेल आ होइत नकारात्मक आ सकारात्मक परिवर्तन-आधारित; गामक सामाजिक आ सामासिकता आधारित; गामक प्राचीनता-मध्यकालीनता आ आधुनिकता आधारित काव्य-सृजन आ तकर विवेचन; स्वस्थ परम्परा आधारित विश्लेषण; संघर्ष-चेतना आधारित गाम, ग्राम्य-काव्य आ तद्विषयक विमर्श; वैज्ञानिकता-आधारित स्वप्निल गामक कविता मे सर्जना आ तकर विमर्श, आइयो ने तँ मिथिलाक गाम मे आ ने मैथिली आलोचनाक जमीन पर स्थापना ल’ सकल अछि, जखनकि कविता मे से सभ अनेक तत्व कमोबेस आयलो अछि। ताहि तरहक ‘अद्यतन गाम-विमर्श’ आजुक मैथिली कविता आ आजुक समयक माँग थिक आ तकर बेरो उनहि रहल अछि।
श्रृंखला-काव्यक सृजन मैथिली मे नव नहि अछि आ अनेक कवि केलनि अछि। विभूति आनन्द, नारायणजी, सत्येन्द्र कुमार झा, श्याम दरिहरे आ अनेकानेक कविक छिटफुट बहुतो श्रृंखला-काव्य प्रकाशित भेल अछि। मुदा पोथीरूपेण प्रथमहि ‘गामसँ बहराइत गाम’ अजित आजादक आयल अछि। सम्पूर्ण पोथी श्रृंखलाबद्ध काव्यक एकटा काव्य-श्रृंखला! जकर परम्परा तँ मजगूत नहियें रहल, मुदा एतहु, तकर उप-विधा-रूपेण संज्ञान नहि लेल गेल, समीक्षा-आलोचना-संवर्ग द्वारा। कविगण सेहो आन-आन कविताक संग फेंट-फाँट क’ क’ छापैत रहलाह। आइ एहि पोथीक संग एकटा नव परम्परा आकार ल’ रहल अछि। सम्पूर्ण पोथीक पचासी टा कविताक श्रृंखलाक एकहि टा शीर्षक ‘गामसँ बहराइत गाम’! सभ कविताक संख्या-अंकन फराक-फराक! मुदा शीर्षक-विहीन! शीर्षक मात्रा पोथीक! कविता सभक फराक-फराक शीर्षक नहि, उप-शीर्षको नहि।
मुदा की श्रृंखलाबद्ध काव्य, दीर्घकविता थिक? नहि, तँ तखन ओकरा कोना बेरायब दीर्घकविता सँ? वस्तुतः श्रृंखलाबद्ध काव्यो मे एक केन्द्रीय कथ्यक, अनेकानेक उप-कथ्य सँ सम्पुष्टि कयल जाइत अछि आ सभ उप-कथ्य फराक-फराक रहितहुँ, एक केन्द्रीय कथ्यक अन्तर्गते रहैत अछि। सेहो शीर्षक आ उप-शीर्षकक बिना! मात्रा कविता संख्या… अमुक…अमुक..सँ अहाँ मोन पाड़ू अथवा सन्दर्भ दिय’। ई एकटा विधागत तकनीकी दिक्कत छैक! कविता संख्या-60 केँ अहाँ कोन उप-शीर्षक सँ मोन पाड़ब आ उद्धृत करब अथवा समीक्षा-अनुसंधान मे सन्दर्भ देब? ओइ कविताक विषय आ कथ्य अहाँ केँ केना स्मरण रहत? कारण, कथ्य, उप-कथ्य दुनू केँ तँ पोथीक शीर्षके परिचय लेल प्रतिनिधित्व करैत अछि? मुदा से दिक्कत अजित आजादक अथवा आनो कविक नहि थिक, अपितु एहि नव उप-विधाक आ समीक्षक-आलोचकक थिक। आ रचनाकार, आलोचकक सुविधा सोचि क’ रचना करत किऐक? आलोचक रचनाक मूल्यांकनक रस्ता निकालथु। कवि रचलनि श्रृंखलाबद्ध काव्य, संख्याक श्रृंखला मे, कथ्य आ तकर उप-कथ्यक श्रृंखला मे! कथ्ये बेसी महत्वपूर्ण, तेँ शिल्प मे शीर्षक, उप-शीर्षकक कोनो समावेशक बेगरता नहि।
जखनकि दीर्घकविता मे एक केन्द्रीय कथ्यक, प्रकारान्तर सँ, बहुआयामी विश्लेषण, उप-शीर्षकयुक्त अथवा उप-शीर्षकविहीन, दुनू प्रकारक कवित्त रहैए। मुदा कोनो संग्रह मे सातटा दीर्घ कविता हो, सातोक शीर्षक फराक-फराक हो! जेना ‘यथास्थितिक बादक लेल’ केर कविता सभक अथवा एकहिटा दीर्घकविताक पोथी हो आ तकर एकहिटा शीर्षक हो! जेना ‘हमः एकटा मिथ्या परिचय’ (डॉ॰ गंगेश गुंजन), ‘ओकरे नाम’ (रमानन्द रेणु), ‘अन्हारक विरोध मे’ (रामचैतन्य धीरज) अथवा ‘धारक ओइ पार’ (जगदीशचन्द्र ठाकुर ‘अनिल’) अथवा आन कोनो। मुदा से सभ विधा, उप-विधा श्रृंखलाबद्ध काव्य नहि थिक, ताहि सँ फराक थिक। दीर्घकविता मे प्रकारान्तर सँ पाठक केँ बहुविधि काव्यानन्द-यात्रा करबैत, केन्द्रीय कथ्य दिस आनल जाइत अछि।
मुदा श्रृंखलाबद्ध काव्यक अविरामता आ एकतानताक संरक्षण हेतु उप-शीर्षक/शीर्षक सँ परहेज करैत, मात्रा कौमा-अल्प-विराम-शैली मे संख्या-अंकन करैत, काव्य-श्रृंखला पूर्ण कयल जाइछ। एहि सभ प्रकारक विधा आ काव्योपविधाक रचना-प्रक्रियामे, किछु-किछु छोटछीन आ मेंही अन्तर आबि सकैछ। मुदा से तँ कवि-कवि मे सेहो किछु-किछु रचना-प्रक्रियागत अन्तर रहिते अछि। मुख्य प्रयोजन रहैत अछि भावक स्तरपर कथ्यक अविरामता खण्डित नहि हेबाक कविक संकल्प! ताहू निकषपर, मैथिलीक एहि प्रथम श्रृंखलाबद्ध काव्य-पोथीक परीक्षण (सेहो) अभिप्रेत अछि। ताहि संकल्पक केहेन-की निर्वाह भ’ सकल अछि? श्रृंखलाबद्ध काव्य हेबाक कारणेँ ‘स्पॅान्टेनियस फ्लो’ आ ‘र-च-ना-प्र-क्रि-या-क तिलिया-फुलिया’क कतेक-की गुंजाइश अछि आ से कतेक-की वस्तुतः भ’ सकल अछि, एहि काव्य-पोथी मे? एक केन्द्रीकृत विषय, एक केन्द्रीय कथ्य-थीमक संग अनुशासित, मुदा अनेक प्लॉटक बहुविधि यात्रा करैत, निरंकुश स्वतंत्राता लैत, की कवि काव्य-श्रृंखला-बन्धन मे अनुशासनक आनन्द लेलनि अछि? अथवा निर्वाह केलनि अछि काव्यानुशासनक?
विचारणीय ईहो अछि जे अजित आजादक कविक काव्य-लेखन-आधारित वैचारिकता अछि, कि वैचारिकता आधारित काव्य-लेखन अछि? हिनकर वैचारिकता निजी प्रतिबद्धता आधारित अछि वा सामाजिक मूल्यक प्रति अथवा युगचेतना आ युगसत्यक प्रतिबद्धता आधारित? हिनकर विषय-चयनक प्राथमिकताक आधार की अछि। कविक निजी प्रतिबद्धता अथवा अद्यतन नव्यताक प्रति प्रेम?
मुदा ई कविता-संग्रह केहेन गाम सँ निकलैत, केहेन गामक स्वरूप निर्धारण आ विवेचना करैत अछि? यथास्थितिबला गामक स्वरूप केँ खण्डित करैत, संघर्ष-चेतना आ ताहिसँ निकसइत अजित आजादक सपनायल गाम, की वस्तुतः कविक ग्राम्य-दृष्टि आ ग्राम्य अवधारणा केँ बेकछाबैत अछि?
पचासी टा कविताक पोथी मे सभटा कविता स्वतंत्रो अछि आ श्रृंखलाबद्धो अछि। एकर ‘स्टॉप-पाठ’ आ ‘नन-स्टॉप पाठ’ दुनू संभव अछि। आर जे हो, श्रृंखलाबद्ध कविताक एहि दीर्घ संग्रह सँ, पोथी मे गाम-विमर्श जरूर जड़िया जाइत अछि, सु-स्थापित भ’ जाइत अछि। गाम-विमर्श केँ चरमात्कर्ष देनाइ, संघर्षक दिशा देनाइ, एहि काव्य-पोथीक मुख्य प्रयोजन थिक।
कथ्यक संज्ञान लेल जाय तँ, पोथी मे बहु-आयामी काव्य-भंगिमाक प्रदर्शन भेल अछि। गामक विविध स्वरूपक उद्घाटन सेहो आ गामक अनेकानेक विरोधाभासी स्वरूपक नीक काव्याभिव्यक्ति सेहो भेल अछि। माटिपानि दिस अग्रसर कविक काव्य-यात्रा, गाम लेल ‘बेकल-बेकल’ भेल अछि। गामक पोखरि मे डुबकुनियाँ मारिक’ माटि पकड़ैत कविताक श्रृंखला थिक। ‘गाम सँ बहराइत गाम’!
ग्रामीण समाज, तकर परिवेशक अध्ययन, ग्रामीण कलछप्पन केर कविक अध्ययन, गामक गम्भीर आ सटीक मूल्यांकनक कविक क्षमता, बरमहल मोहन भारद्वाजक महत्वपूर्ण कथन मोन पाड़ि दैत अछि, जे ‘लेखक केँ समाज-अध्ययनक गहींर अध्येता हेबाक चाही’। गाम-41 (नवाहक बहन्ने गामपर लिखल कविता) अथवा गाम-43 (धार्मिक पाखण्डपर टिप्पणी करैत कविता)मे कविक से मूल्यांकन-क्षमता देखल जा सकैछ। गामक नागरिक शास्त्राक दसो टा छल-प्रपंचिया अध्याय, मिथिलाक सभ गामपर एक समान लागू होइत अछि। मुदा नवाह-कीर्तनक राति मे फोंफ कटैत घवाह गामक बजाय कवि द्वारा संकल्प व्यक्त करब (जे, अबाह समय केँ सेहो खेपि लेत गाम) कविक गामक प्रति माश्चर्ज तँ छीहे, कविक हृदय मे गामक अस्तित्व-जिद्द (गाम-40) सेहो थिक। से सकारात्मक आ गामक लेल न्यायसंगते थिक। कारण, गामसँ बिलाइत स्नेह-सौजन्यक ग्रामीणता गामक स्वरूपमे नकारात्मक परिवर्तन आनि रहल अछि। ताहि सँ व्यथित कविक ग्राम-काव्य मिथिलाक जनमानस केँ परचारि रहल अछि जे गामक अस्तित्व बिलायल जा रहल अछि, शहीरकरणक अन्ध घोड़-दौड़ मे। आ स्मृति-मात्रा अवशेष-रूप मे बाँचि रहल अछि, कविक माथ, हृदय, कविता आ कचोट मे। स्मृति मे गाम, स्मृतिमे खेती, संस्कृति पर दिन राति चलि रहल रेती (गाम-53,54) तहिना श्रृंखला काव्य-45 टन-टन बजैत अछि जे, शहर गाम मे प्रवेश नहि करय, यद्यपि शहरी सुविधा गाम मे जयबाक पक्ष मे हम अवश्य छी। गाम केँ आधुनिकता सँ आ वैज्ञानिक साधन-सोच सँ वंचित रखबाक पक्ष मे हम नहि छी। मुदा शहरी विकृति, संस्कार आ सोच सेहो, भाया शहरीकरण प्रवृत्ति, गाम मे प्रवेश नहि करय। तकर काव्य-चित्रा आ चित्रा काव्य केँ अजितक कवि आगू ल’ गेलाह अछि। विवेकानन्द ठाकुरक चित्रा-काव्य परम्परा केँ जड़ परम्परा सँ मुक्त करैत, अग्रतर मजगूत चरणक स्थापना भेल अछि एतय। नकारात्मक दिशा मे गामक सक्रियता आ सकारात्मक दिशा मे निष्क्रियता (गाम-46) अपना समय आ समाज केँ संकेत क’ रहल अछि, जे परिस्थितिए टा नहि, गामक लोको दोषी अछि, कएटा परिस्थिति लेल (गाम-46)।
गाम केँ आ गामक लोक केँ, मैथिलीक प्रायः सभ लेखक चिन्हबाक आ तखन कलम उठेबाक कोशिश केलनि अछि। दृष्टिकोण सभक फराक-फराक हेबे करतनि। शिवशंकर श्रीनिवासक कथाकार अपन कथा-संग्रह ‘गामक लोक’मे गामक लोक केँ चिन्हबाक कोशिश केलनि अछि आ अजित आजाद ‘गाम सँ बहराइत गाम’ मे। गाम आ गामक लोकक मूल्यांकन-दृष्टि दुनूक अपन-अपन छनि। गाम तँ मोटामोटी सभटा आ सभक एक्के रंग होइत छै। कहबीयो छै, गाम दू, लोक एक्के रंग। तखन अजितजीक ग्रामीण जीवनक भोगल गहिंराइ, गहींर भ’ क’ यथार्थ, परिवर्तन आ जन-आकांक्षा बनिक’ अवश्य आयल अछि काव्य-पोथी मे। जीवनक दर्द सँ बनैत कविता मे, दर्द आ संघर्ष सँ एहेन काव्यमय गाम-विश्लेषण, सम्भव अछि। आ से भ’ सकल अछि।
गाम अपन क्षमता केँ चिन्हैत अछि। अजित जीक गाम बजैत अछि जे ‘गाम छी हम/ एक चूल्हि आ एक दीपक बलें/ जरा सकैत छी असंख्य दीप आ चूल्हि।’ (गाम-42) मुदा एहेन आदर्शबला गाम मिथिला मे ‘विरल’ अछि। अरुणाभ सौरभ केँ समर्पित ‘गाम-58’मे चैनपुर (सहरसा) केँ साहित्यिक आदर्श-ग्राम बनाक’ तँ प्रस्तुत कएल गेल अछि। मुदा तथ्य तँ ई थिक जे तथाकथित संस्कार बचैने तारानन्द वियोगीक ‘बाभनक गामक’ संस्कारे वस्तुतः जड़ अछि। कारण, आभिजात्य-संस्कार, जन ‘संस्कृतिक तत्व नहि थिक।’ (प्रसंग गाम-53 आ 54) अजित आजादक जे गाम, गाम सँ बहरा रहल अछि, तकर हृदय मे बहुत जग्गह अछि, अन्तर्राष्ट्रीयतावादक लेल। उग्र-राष्ट्रवादक एहेन समय मे, भारी जनसंख्या विस्फोटक बावजूद, सिरियाइ आ रोहिंग्या मुसलमान लेल जँ हिनकर कल्पित गामक हृदय मे जग्गह अछि, तँ तकरा हिनकर ‘विजातीय उदारता’ आ विधर्मिक प्रति सहनशीलता मानल जा सकैत अछि (गाम-60)। मुदा एहि आदर्श-भावनाक एखन देस मे विरोध चरम पर अछि, जकर परबाहि अजितक कवि केँ नहि अछि।
कविता मे ‘स्मृति-तत्व’ रहब ‘स्मृति-दोष’ (नॉस्टेल्जिया) नहि थिक। ई एकटा मुख्य अन्तर अछि विवेकानन्द ठाकुरक कविता आ अजित आजादक कविता मे। अजित आजादक कविता मे स्मृति-तत्व, अपन सांस्कृतिक जड़ि आ प्रासंगिकताक संग अबैत अछि। से आयब जरूरी अछि, कोनो माटि पर ठाढ़ कविक लेल। कविता मे स्मृति तत्वक, सांस्कृतिक तत्व आ उपादान सभक उपयोग करब आ नॉस्टेल्जिक भ’ क’ रचनाशील हैब, दुनू दू बात थिक । बाँचबाक से कौशल हुनकर कविता मे आबि पबैत अछि! कारण, ओ परिवर्तन, आधुनिकता आ वैज्ञानिकता दिस कविता केँ ल’ क’ चलि जाइत छथि। ग्रामीण जीवनक सौन्दर्य-बोध हिनकर हृदय आ माथ दुनू मे भरल अछि आ भोगल अछि। ककरो जीवन, कविता आ भाषा तीनू मे ग्राम्य-तत्व, बिना ग्राम्य-दोषक भेनाइ विरल बात अछि। जँ हिनकर कविता मे चित्रित गाम प्राचीन जड़ गाम होइत आ तकर चित्रांकन हिनकर काव्योद्देश्य होइत, तँ ग्रामीण सांस्कृतिक तत्व, ग्राम्य-दोष आ नॉस्टेल्जिया मे अवश्य बदलि जाइत। मुदा ई तँ प्राचीन गाम केँ (गाम-16मे) ‘दूरहि सँ प्रणाम’ करैत छथि । देखबाक हेतनि कहियो ओबला साबिकक गाम, तँ ‘डिस्कवरी चैनल’ पर देखि लेताह । गाम सँ ग्रामीण जीवनक सौन्दर्य-बोधे हेरा गेल अछि। गाममे गाम नहि रहल, गामे हेरा गेल अछि। अपन नाम धरि मे गाम, गाम नहि रहि गेल अछि । तकरा हेरबाक लेल कवि गूगल केँ पुछैत छथि, ‘की हमर गाम केँ अहाँ ताकि सकैत छी?’ ई गामक लेल स्नेह आ आर्तनादे नहि, ‘उगना रे मोर कतय गेलाह’ सेहो थिक (गाम-2) आ भूमंडलीकरणक प्रौद्योगिकी केँ चुनौती सेहो।
कोनो कविता मे प्रेमक सौन्दर्य-बोध केँ चटैत आ झाँझड़ बनबैत, छिनरझप केर (गाम-4) भूआक यथार्थ (गाम-7) अछि, तँ गामक सौन्दर्य अलोपित अछि। मुदा स्वादबला गामक स्मृति कचोटबाक लेल बाँचल अछि (गाम-3)। स्मृति सँ बाहर जे गाम देखाइत अछि, से बिना बँसबिट्टीबला गाम, गाम नहि थिक हमर (गाम-6)।
गामक विकृति त्रासदायक यथार्थ थिक, कारण नीक गंधबला स्मृति समाप्त भेल जा रहल अछि । से हमर-अहाँक, सभक गामक मधुर स्मृतिक सैह हाल । खाली अजित आजादक नहि । सभ गाम मे घर-सुन्न, अँगना मसान, टुक-टुक तकैत तुलसी चैड़ा…’(गाम-8)
गाम-कविता मे गामे विम्ब-प्रतीक, गामे खलनयाक । गामक अभगदशा आजुक गामक यथार्थ थिक । गाम गेल अछि गाम/ गाम सँ जहिया आओत गाम/ गाम सन नहि लागत गाम’ (गाम-9)! ढन-ढन करैत ठाढ़ घर सँ भरल गामक (गाम-10) आजुक यथार्थक सर्वोत्कृष्ट काव्योदाहरण प्रस्तुत करैछ ई श्रृंखला-काव्य । ‘मोबाइल पर टपकैत घरनीक नोर, गामक संसद उजरा हाथी जकाँ दाँत निपोर’, पलायन-दर्दक करुण चित्रा उपस्थित करैछ (गाम-11)।
पंडाक गाम बनल गाम मे, यौन-हाहुती चरम पर अछि। तकरा पोखरि मे जाठि गाड़िक’ पोखरिक विवाह बनाम कौमार्यक सांस्कृतिक दृश्य उपस्थित करब, संस्कृति-काव्यक, काव्य-संस्कृति मे योगदान करैत अछि (गाम-12)।
पहिने खाली गाम सँ रोजगार लेल पुरुष-पातक पलायन होइत छल, आब शिक्षाक बहन्ने शहरी-सुख लेल गामक घराड़ी बेचि शहर मे गृह-निर्माण धड़ाधड़ी भ’ रहल अछि। ‘शहर एक हाथ आर आगू बढ़ैत अछि, गाम एक हाथ आर पाछू हटैत अछि’ कारण, गामक घराड़ी पर मॉलक नक्शा पास होइत अछि (गाम-13) । ई थिक गामक अद्यतन स्थिति । कागत पर गजगज करैत गाम, मात्रा मतदाता सूची मे बसैत अछि (गाम-14) । गाम वीरान अछि, भोज मे लोक नहि अछि । गाम मे मसुआइक हिंसक प्रवृत्ति अछि (गाम-15) । छागर के कहय, पाठीयो सुरक्षित नहि अछि। बलिप्रदान के कहय, बाड़ी-झाड़ी मे पाठी पिटा जाइत अछि । आब की गुणवान गाम, आ की विकृत गाम? मुदा तकर तुलना-काव्य (गाम-17) कतहु टूटल एकचारीक दोग मे सुटकल कदीमाक बतिया देखाबैत अछि, तँ कतहु मुखियाक बोलेरो पर चढ़बा लेल अपस्याँत वार्ड-सदस्यक झलझली देखाबैत अछि (गाम-18) । डि-रेल भेलाक बावजूदो, गाम जनसाधारण एक्सप्रेस मे कोंचायल अछि (गाम-19) ।
आब एकटा निम्नवर्गीय समाजक विशिष्ट काव्य-चित्रा कथाकाव्य मे देखल जाय। माइन्जन यौन-शुचिता आ समाज-व्यवस्था बनाबक लेल अपस्याँत आ नव पीढ़ी समन्ध, सगाइ-भताइ, बहुछोड़ा-साँइछोड़ीक यौन-स्वातंत्रय लेल कटिबद्ध अछि। तेहेन परिस्थिति मे ‘मड़र’ ढ़ूसि तँ लड़ैत छथि/ मुदा फूसि लड़ैत छथि (गाम-20) ।
गाम बनि गेल अछि तिमनचक्खा स्वभाव बला लोकक गाम । ‘एकादशी मे जीबयबला, एकादशा मे जीबैए । द्वादशीक बहन्ने, द्वादशाक नोत तकैए’, परान्न पर पड़िकल, अहाँ कोन गामक छी, भाइ? अपना घरक साग-रोटी अयाची मिश्रक स्वाभिमानी गामो मे नहि अरघैए? (गाम-21)। तखन तँ’ ई अजित आजादक व्यक्तिक गाम भेल, कविक नहि? एहेन क्षरण भ’ गेल गामक लोकक स्वाभिमान मे, जे चल घोंघरड़िया, पेट्टे पर?’ ठीके, गाम आब रहि गेल अछि, माय-बापक श्राद्ध लेल गाम (गाम-24)! भोजखौक गामक मुट्ठी फोंक भ’ गेल अछि। गाम उसरन भ’ गेल अछि । कवि-टाइप-लोक पंचकठियाक लकड़ी लेल बौआ रहल अछि । ई गामक किलोल नहि, मानवताक आत्र्तनाद थिक । से श्रृंखलाबद्ध भ’ क’ असमाप्त भेल जा रहल अछि, अजितक गाम आ कविता दुनू मे(गाम-22)।
गामक दशा भयावह अछि । ने कठियारी जाइ बला लोक अछि । ने पोखरि अछि, ने हजाम अछि । गामक लोक की करत? (गाम-25) । देवघरक धरियाधसान बोलबम यात्रा मे अपन समस्याक समाधान ताकत, जकर आलोचना कवि अजित आजाद यात्राीजी जकाँ करैत छथि (गाम-26) । अजित गामक तापमान नापबाक लेल थर्मामीटर लगाबैत छथि‘गाम नदी नहि थिक, किन्तु बहि रहल अछि खतराक निशान सँ ऊपर’ (गाम-35) । ‘छोटी पटना बनैत गाम’ (गाम-37), डिहबार-थान बनेबाक लेल धुरझार गाछ काटैत अछि (गाम-38)। असल मे, मिथिलाक गाम अमतीक काँट पर सूतल अछि (गाम-46) । चाक पर गढ़ल गेल छल गाम, चाके टूटि गेल। आबा मे पकाओल गेल छल गाम, आबा-परम्परा क्षीण भ’ गेल (गाम-47) । तेँ बिस्फी-उच्चैठ चिन्हाइते ने अछि, हटनी केँ के चीन्हय? कलम घँसनाइ सँ नीक अछि, कलम लगेनाइ । लोक कविजीक सारा तँ चीन्हत कम-सँ-कम! कलम लगौलाक बदौलत चीन्हत, कलम चलौनाइक बदौलत नहि । कारण, गाम मसुआइक ‘स्वाद’ मे जिबैत अछि, गोमुख मे हाथ देने (गाम-63) ।
गाम मे श्रम आ शृंगारक बीचक अन्तर बढ़ि रहल अछि । लहठी बला हाथक चुटकी नहि सुनैत अछि, कुरहड़ि चलबैत मरदाबाक कान (गाम-49) । गाम इंजनहीन-नेतृत्वविहीन भेल अछि (गाम-55) । जनसाधारण एक्सप्रेस मे यात्रा करैत-करैत जेनरल बोगी बनि गेल अछि। कोरोना-सन्देह सँ भरल गाम अपने परदेशी पूतक उपेक्षा करैत अछि (गाम-52) ।
नव पीढ़ी गामसँ विमुख अछि । पिकनिक-भावना सँ अयबो करत त’ तुरंते आपस जेबाक जिद्दो करत । कारण, गामक निर्मिति अथवा नव पीढ़ीक निर्मिति अथवा दुनूक, किछु एहेन अछि, जे मोहभंग आ माश्चर्ज समाप्ति मे एकदम्मे समय नहि लगैत अछि। छोटकी टा कविता (गाम-68) तकर नीक चित्रा-काव्य उपस्थापित करैत अछि।
अजित आजादक काव्य-ग्राम सँ जे गाम बहरा रहल अछि, ताहि मे छगरागोत्राी ‘छिनरधपक’ बढ़ैत प्रतिशत, काम-विस्फोट सँ समाप्त होइत यौन-शुचिता, तथा बढ़ैत गर्भ-निरोधक साधन सँ महिलाक मुँहपर सँ हेराइत पानि, बरमहल द्रष्टव्य अछि (गाम-69)। छिनरझप्प केँ से प्रतिशत, गामक सभ जातिक सभ वर्गक समाज पर लागू होइत अछि। जेना महजिदक पछुऐति मे रहैत ल्यूकोरियाग्रस्त जनानाक घरबला, गफ्फार मौलवी जकाँ थुथून रगड़घस्स करैत छै आ मौलवी अपना सुविधे ओइ जनानाक घरबला बनि जाइत अछि । एहेन अराजकता, एक्के समुदाय केँ नहि, समस्त गाम केँ आलोच्य बना दैत अछि । मुसलमानी जीवन पर लिखल विवेकानन्द ठाकुरक बाद, ई कविता मुस्लिम महिलाक अभगदशाक शीर्ष चित्राण केलक अछि । वीभत्स-रसक प्रयोग आ काम-विस्फोटक चाण्डालत्वक चित्राण, धार्मिक पाखण्ड केँ देखार करैत, विश्वसनीयताक संग गाम-65 मे केलनि अछि अजित आजाद। एहेन सड़ल-गलल आलोच्य आ पतनशील गाम केँ लोक दूरहि सँ प्रणाम करबे करत।
मुदा बच्चा-पीढ़ी की अनायासहिं अपन गाम आ जड़ि सँ कटि गेल अछि? अथवा ओकर माता-पिता (पूर्व-पीढ़ी) सेहो तकर पृष्ठभूमि-निर्माण केलक अछि? गाम सँ दूरी बढ़ाक’, शहरक फ्लैट-प्रेमी तँ पहिने माता-पिता बनल? जड़ि सँ कटबाक संतापो भोगलक (गाम-71) आ गामक अस्तित्वहीनता मे योगदानो देलक । नवागत पीढ़ीक मोहभंगो केलक।
समकालीन समस्याक नीक काव्य-चिकित्सा थिक ई काव्य-श्रृंखला । मुदा साहित्य मात्रा चिन्ता-चिन्तन धरि सीमित रहैछ । भौतिक रूपे, वास्तविक इलाज तँ गाम आ समाज केँ, अपने केनाइ छै । कवि-लेखक बेमारीक लक्षण कहैत, डाइग्नोसिस क’ सकैत अछि । दवाइ ओ ने तँ बनाओत आ ने कीनि क’ असंख्य रोगी केँ खुआ सकैछ । हँ, गाम मे रहत, तँ अपन व्यक्तिगत योगदान इलाज मे अवश्य करत ।
जन-संस्कृति बँचेबाक ‘मेंही प्लॉट’पर काव्य-लेखन सभ कविक पैरुख सँ बाहरक बात थिक । मिथिलाक महिला-समाज, सामा-चकेबाक भास आ विद्यापतिक गीत-भास, संस्कृतिक अनेक तत्वक संरक्षण अपना कंठ मे केलक अछि । एहेन जड़ि पकड़ने/माटि पकड़ने संस्कृतिक स्वरूप मे सामयिक आ सकारात्मक परिवर्तन तँ भ’ सकैछ, किन्तु विलोप नहि । अइ काव्य-श्रृंखलाक गाम-70, उत्तर-आधुनिकतावादी घोषणा (संस्कृति-विलुप्ति) केँ अजित आजादक कविक जवाब थिक । शोकगीत गबैत शहरी जीवन सँ फराक ग्रामीण गाछी-बिरछीक खेल-धूपमय मनोरम जीवनक चित्रा, श्रृंखला-काव्य (गाम-72) मे अंकित करब, ओही जनपक्षीय संस्कृति तत्व केँ साहित्यिक-संरक्षण देब थिक ।
तहिना संस्कृति-चिन्ता आ चिन्तन थिक ग्रामीण जीवनक विधि-व्यवहारक विकृत यथार्थ केँ देखार करब आ ओकरा पर काव्यात्मक टिप्पणी करब । कोन विधि-व्यवहार संस्कृति-तत्व रहि गेल अछि आ कोन अन्धविश्वासी स्वरूप ग्रहण क’ लेने अछि अथवा शोषणक औजार बनि गेल अछि, से देखबाक आ परीक्षण करबाक लेल कोनोटा समाजशास्त्राीय विद्वान मैथिली मे (प्रो. हेतुकर झाक देहावसानक पश्चात् मिथिला लेल सेहो) सक्रिय नहि रहि गेल छथि। तेँ संस्कृति-चिन्तनक छार-भार मिथिला-मैथिली मे लेखकेगणक रहि गेल छनि। अजित आजादक कवि गाम-73 मे, एकदिस बिआहक महुअक मे वरक रूस्सा-फुल्ली (विदाइ लेल) आ महिला द्वारा दरोगनी बनि हँसेबाक विधि पर टिप्पणी करैत छथि (जखनकि जमायक रूस्सा-फुल्ली आ मँगबाक परम्परा आब कालातीत भ’ गेल अछि) आ दोसर दिस गाम-74 मे शय्यादान कालक (श्राद्ध-कर्मक आँगनक विधि) पंडीजीक दानबला खिलबट्टी दान मे भेटलाक बावजूदो, हुनका हाथ नहि लगबाक, परिवारक समधि केँ द’ देल जेबाक पाखण्ड सन मेंही प्लॉट केँ काव्य-ट्रीटमेंट दैत छथि।
समाज-अध्ययन मे अजितजी सन निष्णात आ जमीन सँ जुड़ल तेहने कोनो कवि, विधि-व्यवहार मे अन्तर्निहित पाखण्ड केँ देखार करैत, काव्यक सामाजिक दायित्वक निर्वाह क’ सकैछ, जकरा समाज आ कविता दुनूमे गहींर धरि डुबकुनियाँ मारबाक सामथ्र्य हो! कविता-78 तहिना कविक बेटी विवाह मे दहेजक चिन्ता-आधारित अछि । कालातीत होइत बरियातीक ऐंठ खेबाक परम्परा, जे सभदिन विकृति छल, मुदा संस्कृति जकाँ बनि गेल छल मिथिला मे, से काव्यक प्लॉट गाम-79 मे बनैत अछि। गाम-80क संस्कृति-चिन्तन, मिथिला मे साबिक युग मे खेलाएल जा रहल परसियन थिएटरबला नाटक आ आजुक कैसेट-डांस पर उधियाइत वस्त्राहीनताक तुलना करैत, मिथिलाक प्रसिद्ध मैथिली-हिन्दी-नाटकक नामावली कविताक शिल्प मे गँथैत, पूर्वकालीन नाट्य-परम्पराक समर्थन कयल गेल अछि। मुदा आजुक नाटकक चर्चा तुलना मे छोड़ि देल गेल अछि। पूर्वकालीन नाटक स्वस्थ मनोरंजक आ संदेशपरक अवश्य होइत छल। मुदा नाट्य-कलाक हिसाबे, आधुनिकता आ समकालीनताबला नाटक सँ मंचगत परिवर्तन भेनाइ जरूरीयो छल । परसियन थिएटरबला नाटक-युग मे नहि राखल जा सकैत छल, आधुनिकता लेल छटपटाइत मिथिला समाज केँ । सांस्कृतिक विशृंखलनक ताही परिवेशक परिणाम थिक, असगर मैं मैआँ सँ कौआ, मैना, बगड़ा, पोताक रूसब, जे करैत छथि एकादशी, मँगैत छथि एकादशा! वरिष्ठ नागरिकक अभगदशा, मिथिला मे (गाम-81)।
देहाती अविकसित अशिक्षित समाज मे डाइनपनक दुष्टनीति (गाम-83), दाहा, जुलूस मे हिन्नू-मोसलिम-सौहार्द्र (गाम-84), टीशनक कातक गामक लोकक टिकस नहि कटेबाक, रेलगाड़ीमे साइकिल बन्हबाक आदति (गाम-85), परेदसी केँ कमौआ मुल्हा बूझि गाममे ओकरा सँ खर्चा करेबाक, ग्रामीण जीएसटी असूलबाक प्रवृत्ति (गाम-76), गाममे डोमिनक पिटाइ डोमभाइ द्वारा कयल जेबाक विरोध (गाम-82), गामक अपेक्षा वसंतक देसक संसद मे एबाक आह्वान (गाम-75), कवि अजित आजाद केँ नव दुनियाँ बनेबाक आग्रही आ आकांक्षी प्रमाणित करैत अछि।
अजितजीक श्रृंखला-काव्य मे सरकारी योजना सबहक अराजक क्रियान्वयनक खूबे व्याख्या भेल अछि । से स्वाभाविको थिक । कबीर अन्त्येष्टि योजना, मनरेगा, इन्दिरा आवास योजना, एकपेरिया बनाम एन.एच.फोरलेन (गाम-29, गाम-50, गाम-61) पंचायतीराज संस्था आदिक आलोचनात्मक काव्यकरण स्वाभाविक रूपेँ श्रृंखला-काव्य मे आयल अछि।
कारण, कोनो दायित्वपूर्ण लेखक लेल अपन समकालीनता सँ परहेज करब असम्भव अछि। मुदा ओ सरकारी योजना सभक संज्ञाने टा नहि लैत छथि आ आलोचने टा नहि प्रस्तुत करैत छथि, तकर सहज काव्यकरण सँ, पद-लालित्य बढ़ा दैत छथि (गाम-22), जे श्रृंखला-काव्य केँ वास्तविकरूपेण काव्य-श्रृंखला बना दैत अछि ।
तखन एहनो बात नहि अछि जे, कोनोटा कविताक कथ्य आ तथ्य सँ असहमतिक एकदम्मे गुंजाइश नहि हो । भनसाघरक गैसीकरण (गाम-48) भले उज्ज्वला योजना सँ हो, कवि केँ नापसिन्न छनि । शहरीकरणक विरोध तँ गामक प्रसंग मे उचित अछि। मुदा ‘आधुनिक कवि’ विकास- विरोधी नहि होइत अछि, अनियोजित आ अराजक क्रियान्वयनक विरोधी होइत अछि। साहित्यक उद्देश्ये थिक, आम जनजीवन केँ, नीक, सुन्दर, आसान आ सुविधापूर्ण बनायब।
आमजन केँ सड़क, गैस, पेयजल, बिजली भेटब आजुक कवि केँ नापसिन्न नहि भ’ सकैछ। ग्लोबल वार्मिंग बाँटयबला गैस-चुल्हाक नापसिन्नी, कविक छवि केँ आधुनिकता विरोधी बना देत । आधुनिकता मे आधुनिक विचार आ आधुनिक साधन, जीवन शैली, सभ किछु सम्मिलित अछि, जे प्रगतिवादक आधार-तत्व थिक आ तकरा सँ मिथिला-समाज केँ वंचित नहि राखल जा सकैछ । एहि मे वैज्ञानिक जीवन-दृष्टि आ व्यावहारिक वैज्ञानिकता सेहो शामिल अछि । जरूरति अछि, विकृति सँ बाँचबाक । से पारम्परिकताक आ आधुनिकताक, दुनूक विकृतिक निषेध जरूरी अछि । दुनूक तर्कसंगत आ वैज्ञानिक तत्व स्वीकार्य अछि, संरक्षण-योग्य अछि मिथिला-समाजक जीवन मे । तखने ‘ग्लोबल भिलेज’क विकृतिक चुनौती सँ ठठत, मिथिलाक गाम । अन्यथा, एक दिन विश्वग्राम गीड़ि जेतैक, साधारण गाम केँ । जेना विश्वग्राम नोएडा आ ग्रेटर-नोएडा हजारो साधारण गाम केँ गीड़ि गेल । ओकर चकमकी मे विलुप्त भ’ गेल हजारो गाम । तैं जड़-प्राचीनतायुक्त । प्राचीन-मध्यकालीन मूल्यबला पारम्परिक गाम, स्वीकार्य नहि अछि । ‘बीजीपुरुष’क ओहेन गाम मे नातिक पेंपी कोना (गाम-59) पनपतै? आजुक तिथि मे माय-मैंयाँ केँ टकुरी पकड़ायब, आब कुटिर उद्योगक अनमना नहि, पाश्र्वगामिता थिक (गाम-27)।
तहिना गाम-51 मे चित्रित पारम्परिक हरबाहक आब कम्मे-काल दर्शन होइत अछि । कारण, चारूभर ट्रैक्टर-कल्टी भेटैत अछि । श्रम-पलायनक कारणेँ हरबाह कहाँ भेटैत छै आब? हरबाहक बाप-दादा गाममे बुढ़ारी काटि रहलैए । परम्पराक चित्राण सँ परहेज अथवा आधुनिकताक परिप्रेक्ष्ये मे परंपराक चित्रण करबाक चाही । तखनहिँ कविताक स्वरूप आ मर्म अद्यतन (अप-टू-डेट) भ’ सकैछ । तहिना किसान-आन्दोलनक प्रसंग मे, मिथिलाक गिरहत आ हरबाह, दुनू पर असहभागिताक कारणेँ व्यंग्य-प्रहार (गाम-66) भेल अछि, जखनकि आब हरबाहो राजनैतिक चेतनाविहीन आ पारम्परिक छविबला नहि अछि । आब नारा आ जुलूसक नाम पर बिकाइ लेल, सभ हरबाह तैयारो नहि होइत अछि। से आइ लालो रंग आ आनो रंगक झंडा लेल बड़का समस्या थिक।
अइ श्रृंखला-काव्यक कएटा कवितामे वक्तव्य हावी भ’ जेबाक कारणेँ, सहजतावादक प्रतिशत बढ़ि जेबाक कारणेँ काव्य-अभिव्यंजना-कला कनियें कमजोर पड़ि गेल अछि आ कविता मे कविताक प्रतिशत थोड़ेक घटि गेल अछि (गाम-31, 32, 33, 34, 28, 23, 30, 39, 56, 62) । मुदा से धारणा बनबाक ईहो कारण भ’ सकैछ, जे पाठकक दिमाग-हृदय मे ‘पेनड्राइव मे पृथ्वी’, ‘मृत्यु थिक विचार’ अथवा ‘हम कोसिकन्हाक एकटा कवि’ केर कएटा निस्सन कविता सभ बैसल-जड़िआयल अछि । तथापि, रचना-प्रक्रियाक तेसर चरण बला ‘फिनिशिंग टच’ देबाकाल, किछु परिश्रम कपचल गेल अछि अवश्य, उपरिउल्लिखित कविता सभ मे।
मुदा पचासी टा कविता मे पाँच-सात टा तेहेन कविता तँ करीब-करीब सभ कविता संग्रह मे रहिते टा छै । आ से स्वाभविको छै । कारण, काव्य-सृजन मे मानसिकता, मूड आ धैर्यक प्रतिशतक प्रभाव रचना पर पड़नाइ अवश्यंभावी अछि । प्रथम चरणक ‘स्पॉन्टेनियस फ्लो’ मे दोसर-तेसर चरणक काव्यकरण-कौशल आ काव्याभिव्यन्जनाक परिपाक/संगम, वैचारिक पाचन, स्वांगीकरण पर सेहो निर्भर करैत अछि । वैचारिक आवेग-नियंत्राण, विचारक चयापचय (मेटाबोलिज्म), काव्याभिव्यंजनाक प्रतिशत केँ प्रभावित करैत छै मुदा से विपरीत प्रभाव, अइ काव्य-श्रृंखलाक आङुरे पर गनल कविता पर पड़ल अछि । अधिकतर कविता मे वैचारिक स्वांगीकरण (एस्सीमिलेशन) आ चयापचय (मेटाबोलिज्म) काव्याभिव्यंजना केँ परिपाक मे योगदान क’ रचनाक प्रसाद-गुण आ पद-लालित्य बढ़ा देलक अछि । कथ्यक भाव, काव्य-संवेदना आ वैचारिकताक नीक संगम भेल अछि। काव्य-श्रृंखला मे कविताक ‘अन्डरटोन आ…ओभरटोन’ दुनू उचिते आयल अछि । से चित्रित परिस्थितिक अनुकूलहि भेल अछि। ‘अन्डरटोन’क सीटल व्यंग्य, कथ्य केँ सार्थके बनबैत अछि।
पोथीक अनेक कविता विचार-प्रधान अछि, तँ भाव-संवेदना-प्रधान सेहो । मुदा दुनू कोटिक कविता मे आन-आन काव्य-तत्व सभक सहज परिपाक सेहो भेल अछि। संगमक से सहजता काव्य-कलाक मौलिकता थिक । सहज अभिव्यक्ति प्रणाली केँ आत्मसात् क’ क’, पाठक केँ सम्मोहित करबाक जादू जनैत छथि, अजितक कवि।
सभ कविता मे फराक-फराक कथ्य-प्रवाह आ अन्तर्लय रहितो, सम्पूर्ण पोथीक सभ कविताक कथ्यगत, एकीकृत, निरंतर अन्तर्लय आ तकरा संग अर्थक लयात्मकता, काव्य श्रृंखला केँ सार्थक आ चिरस्मरणीय बनौलक अछि । पिकलो भेल ग्रामीण लोकक जीवनक, मनोरम शब्द-विन्यासक संग, करुणा आ आत्र्तनाद, श्रृंखला-काव्य मे सुगठित माला जकाँ गाँथल अछि । सेहो राजनैतिक चेतनाक संग । अद्भुत शब्द-छटाक संग । शब्द-कारीगरी सँ आगूक शब्द-बाजीगरी!
अइ पोथीक कविता सभ ‘भ्यूज’(वैचारिकता-प्लॉट) आधारित अछि, ‘न्यूज’(खबरि-आधारित शाहीन-बागबला हिनके कविता) टाइप नहि । खाहे कविता काम-विस्फोटबला हो अथवा किसान-आन्दोलनबला । कविता जे सामाजिक परिवर्तनक संज्ञान लैत अछि, ताहि कविता केँ समकालीन-सोच सार्थक बना दैत अछि, भलेँ पाठक कतहु कवि सँ असहमतो किऐक ने भ’ जाय!
पोथीक कविता सभ ग्रामीण जीवन आ ग्राम्य-कविता मे आत्म-निरीक्षणक उमंग भरैत अछि। प्रकारान्तर सँ ग्राम्य-जीवनक काव्यकरण करैत, आलोचना-मूल्यांकन, टिप्पणी आ मंथन करैत, नव-नव स्वरूपक गामक, प्राचीन आ जड़ स्वरूपक गामक, नाना आयामक काव्योद्घाटन करैत, हरेकृष्ण झाक अवसाद-स्वर सँ अपना ग्राम-काव्य केँ बँचाबैत, अजित आजाद एकटा नव उप-विधा(श्रृंखला-काव्य) केँ श्रृंखलाबद्ध करैत, स्थापित करैत छथि ।
अजित आजादक कवि शब्दक तुकमिलानी केँ अपैत नहि मानलनि अछि । मुदा तुकबन्दी लय-ताल, जे कविताक सतह पर रहैत अछि, तकर जरूरति ने हमरा लोकनि केँ आब अछि, आ ने अजित केँ अथवा आगत पीढ़ी केँ । मुदा भरोस कयल जा सकैछ, जे मंचीय आ मंच-गीत-लेखन-मोह सँ मुक्त होइतहिँ, ओ अपन कविता केँ थोड़ेक आर गद्यात्मक बनौताह । अभिधात्मकताक प्रतिशत घटाबैत आ काव्य-तत्वक अभिव्यंजनाक प्रतिशत बढ़ाबैत ! जकर कविताक अन्तर्लय प्रवहमान छै, से सतही शाब्दिक तुकमिलानी पर ऊर्जा किए व्यय करत? सक्षम कवि नव-नव काव्यशिल्पक अन्वेषण मे ऊर्जा किऐक ने खपाओत? से कएटा कविता मे नव शिल्पक अन्वेषणक कछमछी देखेबो केलनि अछि कवि अजित । धरगर कथ्यबला कविता मे प्रहार करबाक लेल जाहि शिल्प दिस ओ यात्रा करैत छथि, से संगीतात्मक भ’ सकैत अछि, गीतात्मक नहि । नवकविताक सर्जक केँ थोपड़ी-प्रेम आ मंच-मोह केँ निर्ममतापूर्वक त्याग करैत, सर्जनाक क्षण मे कम-सँ-कम, गीत-गजलक शाब्दिक ‘रबानगी’ बिसरि जेबाक चाही । अन्यथा, नवकविताक ‘खास गम्भीरता’ खण्डित हेबाक सम्भावना बनि जाइत अछि । मुदा, कहब अप्रासंगिक नहि हैत, जे ई सभ बात असगरे अजितजी लेल नहि प्रासंगिक अछि ।
अजित आजादक कविक भाषा-नीति, राजभाषा हिन्दीक लेल उदार रहैत, मातृभाषाक चेतना सँ ओत-प्रोत तँ अछिये । मुदा जनोन्मुखी आ तृणमूलीय ‘काव्य-भाखा’क पक्ष मे अछि, से हिनकर कविता केँ जनपक्षीय बनबैत, जन-संस्कृतिक प्रेमी बनबैत अछि । एहेन कविता अपना समय आ समाजक व्याख्या-आलोचना करैत, जनाकांक्षा केँ सेहो द्योतित, आलोड़ित आ प्रतिबिम्बित करैत अछि । ग्रामीण काव्य-भाखाक हिनकर सौन्दर्य-बोध अद्भुत जनोन्मुखी अछि । जखनकि हिनकर विपुल शब्द-सम्पदा खाँटी जमीनी, वाक्य-विचार आ कविताक विचार, जटिलता सँ बाँचि सकल अछि । मैथिलीक ई काव्य-भाखा कोनो कवि लेल ईष्र्य भ’ सकैछ आ हेबाक चाही । अइ काव्य-श्रृंखलाक एहेन तृणमूलीय भाखा नहि होइत, तँ ई काव्य-श्रृंखला गहनमरु नेना सन पाण्डुरोगी बुझाइत । ग्राम्य-काव्यक श्रृंखला लेल यैह ‘भाखा’ उपयुक्त अछि, जकर अंतरात्मा मे समकालीनता आ आधुनिकता पचल हो ।
ते अजित आजादक ग्राम्य-काव्य, विवेकानन्द ठाकुरक काव्यक स्मृतिजीविता सँ मुक्त अछि, हरेकृष्ण झाक अवसाद-स्वर आ हुनकर ‘ग्राम्य-भाखाक जटिलता’सँ मुक्त अछि। सहजहिँ, आजुक ‘नवागत पीढ़ीक सहज काव्य’ मे बिम्ब विधान पर विशेष ध्यान आ ऊर्जा नहि खर्चल जाइत अछि ।
गाम-विमर्श चन्दनकुमार झाक ‘गामक सिमान पर’ सेहो ठाढ़ केलक अछि, कृष्णमोहन झा ‘मोहनक’ ‘ग्लोबल गाम सँ अबैत हकार’ सेहो आ मैथिलीक सैकड़ा सँ बेसी काव्य-पोथी सेहो । चन्दन ‘गामक सिमान पर’ ठाढ़ भ’ क’ मलकोका-काव्यक सौन्दर्य-बोध कयलनि अछि आ कृष्णमोहन झा ‘मोहन’ तथाकथित ग्लोबल-गामक संग नागर परिवेशक भयावहता देखौलनि अछि । मुदा अजित आजादक ‘गाम सँ बहराइत गाम’ अपन अस्तित्व आ संस्कृति पर आत्र्तनाद करितो, ताल ठोकिक’ अपन संघर्षजीविताक जिद्द प्रदर्शित करैत अछि । अजित आजादक काव्य-सौष्ठव ‘मलगोबाक कओर’ थिक, जे अपूर्व स्वादक संग, माथ आ हृदय, दुनूपर जादू करैत अछि।
अजित आजाद गाम-विमर्श केँ चरमोत्कर्ष देलनि अछि । सेहो अनुपम काव्य-छटाक संग । हिनकर काव्य सर्वतोभावेन निर्दोष नहियो रहैत, ग्राम्य-काव्य, श्रृंखला-काव्य आ ग्राम्य-भाखाक एकटा फराक प्रतिमान तँ स्थापित करिते अछि, मिथिला-समाज केँ आ अपना कालखण्ड केँ, ‘अष्टपष्ट चित्राबला अयना’ सेहो देखाबैत अछि । संगहि अपना समयक, अपना पीढ़ीक काव्य-लेखनक समक्ष, चुनौतीक काव्य-शृंखलो प्रस्तुत करैत अछि । अजित आजादक कविताक कतओक पक्ष, मैथिलीक कतओक कवि लेल ईष्र्य भ’ सकैत अछि, कविता मे व्यक्त वैचारिक सहमति-असहमतिक बावजूद । विश्वास अछि, अइ विषय-केन्द्रित, गाम-केन्द्रित, रमणीक श्रृंखलाबद्ध काव्यक पहिल पोथीक, हृदय सँ पाठक द्वारा स्वागत हेबे करत ।
रमेश
साहित्य-संस्कृति आ समाजक इतिहास ओ वर्तमानक गम्भीर अध्ययन, जिनगीक विशद अनुभव, चौंचक विवेक-सम्मत ओ प्रगतिशील दृष्टि-बोध एवं फरिछायल वैचारिकता सँ जाहि कोटिक लेखक बनैत छैक, से छथि रमेश। मैथिली साहित्य मे पछिला सदीक आठम दशकक आमद एहि बहु-विधावादी लेखकक यू.एस.पी. छन्हि – हिनक प्रयोगधर्मिता। हिनक गजल होनि, कविता होनि वा कि कथा, कथ्य, शिल्प-शैली आ भाषा सभ स्तर पर ई नव-प्रयोग करबाक चुनौती आ जोखिम लैत रहलाह अछि। नवतूरक लेखन पर धुरझार समीक्षा लिखनिहार एहि विधाक ई विरल लेखक छथि। एखन धरि हिनक जमा पन्द्रह गोट मूल-पोथी प्रकाशित छनि, जाहि मे गजल संग्रह (नागफेनी), कविता संग्रह (संगोर, कोसी-घाटी सभ्यता, पाथर पर दूभि, काव्यद्वीपक ओहि पार, कविता-समय), गद्य-कविता संग्रह (समवेत स्वरक आगू), दीर्घ-कविता संग्रह (यथास्थितिक बादक लेल), कथा संग्रह (समाँग, समानान्तर, दखल, समकालीन नाटक, कथा-समय) आ समीक्षा संग्रह (प्रतिक्रिया, निकती) सभ अछि। हिनक सम्पादन-सहयोग मे सेहो विभिन्न विधाक पाँच गोट पोथी प्रकाशित अछि। हिनक दू गोट कविता संग्रहक हिन्दी-अनुवाद प्रकाशित भेल अछि। डॉ. इन्द्रकांत झा सम्मान (विद्यापति सेवा संस्थान, दरभंगा), तिरहुत साहित्य सम्मान (मिथिला सांस्कृतिक परिषद, हैदराबाद) आ मिथिला जनचेतना सम्मान (मिथिला लेखक संघ, दरभंगा) सँ सम्मानित लेखक रमेश सम्प्रति दरभंगा मे रहैत छथि । हिनका सँ +91-7352997069 पर सम्पर्क कयल जा सकैछ ।
*प्रस्तुत आलेख श्री अजित आज़ादक कविता-संग्रह गाम सँ बहराइत गाम क भूमिका थिक