हम कोसिकन्हाक एकटा कवि — अजित आजाद

हम कोसिकन्हाक एकटा कवि

जाहि कालखण्डमे
भरनापर विचार
आ बन्हकी लागल कलम अछि
ओही कालखण्डमे
देशद्रोहीक तगमा लेने
हम लिखि रहल छी इन्कलाब

जीह कटाक’ पद्मश्री लेबाक होड़मे
किन्नहुँ नहि छी हम शामिल
बरू अहाँ पिबैत रहू आमिल
कोसी-कमलाक चुरू भरि जल
अपन देहपर नहि
मुँहमे लेब
आ गरारा करैत फेकि देब अहाँ दिस
आ जोरसँ चिकरब जिंदाबाद
आ काँपि उठत दिगन्त
आ मारि देब अहाँ हमरा
से मंजूर

हम कोसिकन्हाक एकटा कवि
अपन गति रणमे देखैत छी
चारणमे नहि।

जनता कर्फ्यू

पेट डेंगबयबला जनता
पीटि रहल अछि थारी
विरोधकेँ आभारमे बदलि देबाक कलाकारीपर
मुग्ध जुनि होउ भाइ
कुर्सी पर बैसल अछि कसाइ
डिक्शनरीसँ निकालिक’ लॉक-डाउन
साटि देलक जनता-कर्फ़्यू ओही संग
यद्यपि कर्फ़्यूक अभ्यस्त रहल ई देश
अवधारि चुकल अछि सायरन
धुइयांक प्रायोजित गंधसँ आब नहि फुलैत छैक दम
अदभुत अछि ई दृश्य जे आन ठाम
नहि देखि सकब कहियो
चिनिया रोगक प्रतिकारमे
चिनिये मोबाइल पर भ’ रहल अछि मैसेज टाइप–
‘हाथ जुनि मिलाउ ककरोसँ’
सत्ताक व्यापारमे भय एकटा विज्ञापन थिक
मनुष्यताक पहिचानमे बदलि गेल अछि मास्क
ठोर पर पसरल कुटिलताकेँ
कोना परखि सकब आब
कोना बाजि सकब जोरसँ
कोना सोर करब बिपतिमे ककरो

कोरोनासँ बाँचि सकैत छी अहाँ
मुदा चुप्पीसँ नहि
जखन कि विरोधक सभटा अस्त्रकेँ
बनाओल जा रहल अछि बेराबेरी
प्रशंसा करबाक औज़ार

धन्यवाद राजा, धन्यवाद
हम पीटि रहल छी थारी तैयो…।

लुतुक

बिसुखल महिंस थिक सत्ता
दुहबाक लुतुकमे बरु तिरैत रहू थन
सोन्हबैत रहू डाबा
ठोकैत रहू सुइया पर सुइया
मुदा दूधक एकटा धार देखबाक सेहन्ता
नहि होयत पूर
दुसैत रहत मुह छाँछी-मटकूड़

खुट्टापर अछि त’ करहि पड़त घूर-धुआँ
खोलहि पड़त भिनसर-साँझ
लगबहि पड़त सिंघमे तेल
हाड़ जागल जँ देखत कियो त’ होयत हिनस्ताइ
लाजे-पच्छे लगबैत रहैत छी सानी
बिनु नमौने पड़ैत नहि अछि चैन
पियबैत रहैत छी औखद रहरहाँ
रखने छी काँड़
हमरा थारी छुच्छ भात
एकरा आगू गूड़ा-माँड़

बिसुखल महिंस थिक सत्ता
एकरहि निमेरामे गुदस्त भेल नवारी
बुढ़ारी सेहो कटि जायत
तिरैत-तिरैत थन एकर
दूध होइक वा नहि होइक
एकटा अनमना त’ अछिये ने…!

ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंगसँ दाहबोह भेल अंटार्कटिका
बदलि-बदलिक’ नाम
अबैत रहल समुद्रमे चक्रवात बनि
मुदा हमरालोकनि
जाड़मे गुमारक समाधान ताकि लेलहुँ ए.सी.
झड़की लागल जजातपर उठा देलहुँ कर्ज-माफ़ीक कन्नारोहटि
चाह दुकानक बेंचसँ आगू
बढ़ि नहि सकल विमर्श मुदा
गप्पक खेतीसँ मेटबैत रहलहुँ क्षुधा

जाहि भाषा-साहित्यमे
स्त्री आ दलित धरिकेँ
नहि बनाओल जा सकल अछि विमर्शक मुद्दा
ओहि भाषा-साहित्यमे
जँ कतियायले रहि जायत ग्लोबल वार्मिंग
त’ हर्जे कोन छैक यौ प्रणव नार्मदेय
अकादमी बनबौक वा एक आदमी
सेमिनारीय विषय सभसँ आछन्न रहैत छी भेल
आब त’ मुद्रोक नहि रहि गेल अछि महत्व ओतेक
तखनो जँ पुरस्कारमे
अटकल छनि प्राण सभक
त’ लिखबाक रहिये की गेल अछि प्रयोजन
जनवरी घुसकि गेल मार्चमे
मार्च घुसकि गेल जूनमे
मुदा ठामक ठामहि छथि पड़ल
सकल साहित्यसेवी समाज
यथास्थितिपर करैत आबि रहल छथि राज

यौ प्रणव
ई बुझितो जे एक पन्ना जँ लिखैत छी
त’ कटि जाइत अछि गाछ एकटा
तैयो लिखैत छी एहि विश्वासपर—
एकटा कविता हज़ार गाछक हरियरी थिक
पनिसोखा नहि थिक हमर शब्द
विमर्शक खतियान थिक
कहबे करत एक दिन बेंच परहक लोक।

धनखौआ

तेरहम मास बीतैत-बीतैत
पाहुन बनि आबि जाइत छल धनखौआ
गामसँ सहटिक’ बसा लैत छल अपन बस्ती

माँगल-चाँगल नार-पुआर आ बाँस-बत्तीसँ बनल
नान्हि-नान्हि खोपड़ी सभक आगू
पजरि जाइत छल एकचुल्हिया-दुचुल्हिया
घूरमे पकैत अल्लू आ नबका चाउरक भातसँ
कननमुह भेल कातिक
लागि जाइत छल अगहनक अगबानीमे
जाँत आ ढेकी लग उठि बैसैत छल लगनी
आमा माइक सोखर पसरि जाइत छल
एहि अँगनासँ ओहि अँगना
साँझ होइत-होइत खरिहानमे
सोहरि जाइत छल पाँज
बोनिबला बोझ देखि मुसकि उठैत छल गिरहत

कोन देसकोसक नागरिक छल ई धनखौआ सभ
कतयसँ अबैत छल ई साले-साल
ठेकनायल कोना रहैत छलनि गिरहत सभक गाम
कोना मोन रहैत छलनि एकर-ओकर सभक नाम

कतय निपत्ता भ’ गेलथि एकबैग
कतोक बर्खसँ नहि आयल अछि
ई धनखौआ समाज
कियो किछु कहि त’ नहि देलकनि
आ कि दिन घुरि गेलनि हुनका सभक
हाँ, सैह भेल होयत किनसाइत
नहि त’ मनरेगासँ पतियबैत हेताह मोन

एम्हर
अगहन सेहो फेरि लेने अछि मुह
रब्बी-राइक मोनमे सेहो
आबि गेलैक अछि दूनेती
ओह सत्ते, धनखौआ छलैक त’ छलैक धनखेती!

कमरसारि

हरिशक नासीमे
ठोकि देल जाइत छल फार
सेरि क’ देल जाइत छल तरक
नेहाइपर कुटाइत रहैत छल हाँसू
कोदारिक बेंटमे पच्चर ठोकाइत काल
मुसकि उठैत छल गिरहत
ढेकीक मुसरामे साम लगितहि
गमकि उठैत छल अरबा-अरबानि
मैंयाँ एही लेल जीबैत छलीह दिन गानि-गानि

कुट्टीकट्टाक बेंटमे बाझल रुखान
कनखीसँ कहैत छल चौखटिमे आर पड़त रंदा
खखसि उठैत छल खंती
कहकह आगिमे पड़ितहि
भाथी कियैक हकमैत छह हौ महगू ठाकुर
आ कि पाथर पर पिजाओल जाइत चक्कू
चमकि उठैत छल हँसीमे सभक
खन एहि हाथ, खन ओहि हाथ
कूदफानमे व्यस्त रहैत छल
छेनी, हथौड़ी, चुट्टा
कमरसारि नहि, छल ई गामक खुट्टा

एहि खुट्टामे आइ लागि गेल अछि घुन
आब एतय के ककरासँ माँगत खैनी-चून
ने माल छैक, ने थैरि छैक
ने सरिसो, ने ख़ैरि छैक
एक चोत गोबर लेल
फेकली-फेकली भेल रहैत छथि गिरहतनी
ई त’ धनि कही पतंजलिकेँ जे
भेटि जाइत अछि गोंत
छठिक खरना लेल त’
आबिये गेल अछि चुल्हा-चीपड़ी मॉलमे
आमेज़नपर सामा अछि
तैयो गाम हमर गामा अछि

बटाइपर खेत, भाँजपर हर छल
एहीसँ कहियो चलैत सभक घर छल
मुदा आब त’ सीर पंचमियोक भ’ गेल अछि पंचदान
ठुट्ठ भेल महिखामे हति रहल अछि प्राण
गोधन आ गोपाष्टमीकेँ हथियाय लेलक अछि गौशाला
जाहिमे गाय कम, गैबार बेसी अछि
एक घर कमार अछि एखनो
मुदा गामक टोपे बीमार अछि अपनो
उपटल अछि खेती, बिलटल अछि गाम
कमरसारिक भाथी अछि सटक सीताराम।

टिनही चार

मथहटपर कुम्हड़क पँतियानी देखि
ललचाइत अछि सगरमाथा
बर्फ छोड़ि की छैक ओकरा लग
सजमनिक लत्तीसँ छाड़ल सगर चार
लदबद करय लगैत अछि बरखामे
मुदा ताहिसँ की
सखुआ बरोबरि तिल्लैक कोड़ोपर
टेकने रहत पहाड़
मचकल बड़ेरीकेँ अँड़ाचने अछि मानिथम
मुसहनिसँ जँ नहि भसकल रहैत दाबा
त’ दुनू कातक कोनियाँ सेहो रहैत उतान
ओलतीक कोनपर एकटा मूड़ी आर
बढ़ि रहल अछि चार दिस
सजमनि उतरितहि चढ़ि जायत कदीमा
मुदा थम्हु भाइ
एहि खेड़हामे नहि रहि गेल अछि जान
पुरना बातपर कतेक गुमान

कोसिकन्हामे कहियो अफरजात रहैक खढ़
आब ने मोथी छैक आ ने पटेर
खढ़हीक अढ़ मे नुआसँ
चौरकाँटी छोड़बैत स्त्रिगनक सेहन्तामे
सन्हियाय गेलैक अछि चदरा
सिमेंटक खुट्टापर टनाइत जा रहल अछि टीन
दू नम्मरक पजेबासँ बनल कुर्सीपर बैसि
पदुराइत छथि गिरहतनी
मुदा कुम्हरौड़ी लेल रकटल छनि मोन
करचीपर सुरुंग भेल लत्ती
चदराकेँ छुबितहि झड़का लैत अछि मुह
रौदक धाहीसँ तबधल
एहि टिनही चारसँ छहोछित्त भेल
कोसिकन्हाक जीवनमे आब
ने कुम्हड़ छैक आ ने कदीमा
सुआइत एहेन जिनगीक नहि भेल कोनो बीमा!

लॉकडाउन

जहल काटिक’ आयल छी पाँच मास

साँझ पड़ितहि बन्न क’ देल जाइत रही वार्डमे
दस बजैत-बजैत बत्ती गुल
बहरिया इजोतक भरसबे मेटाइत छल शंका-लघुशंका
भोरका घंटीक संग छुटैत छल ओछानि
खुजैत छल ताला
चाहक पँतियानीसँ निकली त’
ठाढ़ भ’ जाइ प्रार्थनामे
सुरतामे सुर्ती आ आँखिमे प्रेमिकाक मूर्ति लेने
डरे जोड़ने रहैत रही हाथ
फोकला बदाम आ एक ढेकुरी गुड़पर
दाबि लैत रही सभटा सेहंता

घास-पात नोचैत-बिछैत बाजल जहाँ कि बारह
टनटना उठैत छल घंटी
एक लप भातपर
छिड़िया जाइत छल एक करौछ तरकारी
भरि बाटी दालि पिलाक बाद
मरि जाइत छल तरास
हराठसँ छूटल बड़द जकाँ
घुरैत रही थैरिमे आ लागि जाइत छल ताला
कैदी सभक खेड़हामे बीति जाइत छल बेरिया
चारि बजे चाह, पाँच बजे भोजन, छह बजे बन्दी
जेलर महादेव, हमरा सभ नन्दी

तहिया नहि बुझैत रहियैक लॉकडाउन
चेरा फाड़ैत, रोटी बेलैत, कबडी खेलाइत
छनगले रहैत छल मोन
कखन कोन बातपर झड़ि जायत पोन
अजबारले रहैत छल सेल एकटा सदिखन
एक्केटा पत्तीसँ भरि जहलक खोखराइत छल दाढ़ी
हजामकेँ सुनझा देल करी गाल
चिल्लरसँ बाँचब त’ खेपि लेब साल
जमानतिक एकटा कागज लेल
लगले रहैत छल उचाट
नाम पुकारलापर दौड़ि जाइ गेटपर
आइ फेर कियो आयल हैत अप्पन

ओहने सन स्थितिमे पड़ल छी आइ
रच्छ अछि जे एहिठाम
नहि अछि जेलर कसाइ।

अगिलग्गी

झड़किक’ मुइल मालक पतियासँ ग्रस्त पित्ती
धर्मशास्त्रीक ओहिठाम मारने रहथि दड़बड़
उतरीसँ भारी रहनि पतिया
पिपरक धोधरिमे जराओल जयबाक डरे
गछि लेलनि सभटा उनटा-सीधा
डीहपर उठा लेलनि जरसिमन
सुड्डाह भेल घरमे कनमो भरि जँ रहितनि चाउर
त’ एतेक नहि दितथि चकभाउर
सिमरियासँ घुरलाह त’ बेचि लेलनि नादि
किसानक यैह अंत, यैह थिक आदि

अगिलग्गीक होहकारा सुनितहि
ढारय लगैत छी तुलसीमे जल
नेन्ना रही त’ करैत रही चौड़ाक तिरपेच्छन
धुआँनि-धुआँनि भ’ जाइत अछि घर
जखन देखैत छी जंगलमे लागल आगि टीवीपर
तुलसीमे ढारैत छी जल मुदा
धधकिते जा रहल अछि ऑस्ट्रेलिया
झड़किक’ मुइल अछि जे एतेक जीव-जंतु
के अछि एकर दोखी
ककरा लगतैक पतिया
कोन गंगामे नहेताह ओ
कोन धर्मशास्त्री लग देताह धड़फड़न

अगिलग्गीक होहकारा सुनाइत अछि एतय धरि
चौड़ामे जल दैत-दैत सर्दियाय गेल तुलसी

पित्ती रहथि बाजल–
आगिसँ नहि
पतियासँ मरैत अछि लोक
माल मुइल हम्मर आ अफ़सोच करतैक धर्मशास्त्र
देखलहक अछि एहेन अततः कत्तहु
अगिलग्गीक होहकारामे के सुनलक हमर हुकरब
नादि बेचलोपर सुनैत रहैत छी चुकरब
अँय हौ, केहनो अगिलग्गीमे
कियैक ने जरैत छैक धर्मशास्त्र
की ओहू देशमे जरलकेँ जरबैत छैक एहिना

जंगलक आगिपर
भारी छल
साकिन भेल पित्तीक प्रश्न
पितियानिक हाथक तम्मामे
भरैत जा रहल छल धुआँ!

निमुच्छा

पहिल बेर कटौने रही मोंछ

गमछासँ मुह झाँपि घुरल रही अँगना
कनछी काटि घोसियाय गेल रही घरमे
कटने फिरी छीह

मुदा कतेक काल

खाइ बेरमे टोकिये देलक माय–
बाप छौक जीविते

मरकओरमे बदलि गेल छल कओर
राताराती जँ जनमि जाइत मोंछ
आब कोन मुहें बैसब पिता संग दलानपर

पिता नहि छथि आइ
राखि लेल करैत छी मोंछ मुदा कोनो-कोनो बेर
पिताक रहबाक बोध नहि भेल मुदा
मोंछ रहने

एहि खेड़हाक अंत मुदा नहि अछि एहिठाम

एक दिन एक्कहि सैलूनमे
अगल-बगल कुर्सीपर
हम आ पुत्र हमर
कटौने रही मोंछ संग-संग
अयलापर अँगना
कहने रहय माय बिहुँसैत–
दुनू गोटे अनमन
लगैत छें बापे सन निमुच्छा!

उधारी

मास बीतैत-बीतैत भ’ जाइत छी बेमाक
मकानक किरायासँ किराना दुकान धरि
बुलि अबैत छी अगुरबार
दूध, पान, अखबार पहिलीक प्राते
खटैत छथि जे संग हमर
यथासमय हुनको अदाय

बकियौतामे बकियौता
रहि जाइत अछि लांछन
गारि, श्राप, गंजन छोड़ि किछुओ नहि रहल उधार
सोचैत छी सभदिन–
एहि मास, ओहि मास क’ देबनि चुकता
मुदा एकर बादो की ओ लोकनि रुकता

एतबो उधारी जँ नहि ल’ जायब संग
कोना मोन रखता ताजिनगी हमरा…!

वायरस

जल बोझिक’ नहि
बोझ उठाक’ भेल रहथि विदा
बोलबम नहि, चीत्कार छनि ठोरपर
कान्हपर कामर राखि
जिलेबिया मोड़ कटैत
चढ़ल जँ रहितथि सुइया पहाड़
त’ नहि रहितनि अबिनखेद ओतेक
गोढियारीमे मोड़ि लितथि गोड़
देखितहि दर्शनियाँ उतरि जइतनि ठही
किन्तु ई नहि थिक
सुल्तानगंजसँ बाबाधामक यात्रा
एखन त’ हुनकहु कपाट छनि बन्न
गुम अछि चारूधामक सिट्टी-पिट्टी
सरदार बमसँ नहि
सरकार बमसँ भेल छथि तबाह
माथपर मोटरी राखि
सय कोस चलता कि हज़ार कोस
बुझल छनि एतबा जे जयबाक अछि गाम
आयल रहथि कहियो एहने सन जिदपर
तहिया मुदा बस छल, ट्रेन छल
आइ पैर तर पीच छोड़ि किछु नहि

भागल छथि कि भगाओल छथि
गुनधुन मे छथि भरि बाट
कोरोनासँ नहि
पेटमे अलगि रहल फोंकासँ छुटतनि प्राण

लॉकडाउनसँ सकदम भेल एहि समयमे
जत्र-कुत्र देखाय रहल अछि विकास
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रपर
इतरायबला गाम
एम्सक रोदना सुनि बन्न क’ दैत अछि टीवी
बंद छथि वैह जिनका छनि घर
रस्ता परहक लोक लेल रस्ते टा आस

नहि जानि ई लोकनि
कहियाधरि पहुँचताह गाम
जानि नहि ई बंदी चलैत रहतै कहियाधरि
कहियाधरि खुजतैक घुरतीक बाट
दिल्लीक खेलमे ओझरायल रहताह कहियाधरि
कहियाधरि बुझताह वायरस थिक राजनीति
रंगबैत रहताह भाषण-आश्वासनपर कहियाधरि नह
जानपर खेलाइत रहताह कहियाधरि, कहियाधरि?

आगूक बाट

अँगनामे सुखबैत रही मेरचाइ
सुड़सुड़ीसँ तबाह रही दिन भरि
आँखिसँ बहैत रहल नोर कड़ुआइन
रोटीपर गुड़बाक़ लेल नोन-तेल संग
पकौने रही राति
झाँसमे गेल रही माति
तृप्तिक ढेकार संग पीने रही पानि

डीहपर मेरचाइ रोपैत काल
टोकने रहथि बाबा–
कड़ुआहटिसँ भरल रहतह मोन
पछुएतमे केरा, अगुएतमे सुपारी
नहि रोपियह कहियो
एकटा फकरा सुनाक’ सम्पुष्टि देने रहथि बाबा

कलक खत्ता लग
केराक पौच रोपने रही मनोरथे
छोड़ने अछि कोशा
तकैत छी हियास भरि
दलानपर सुरूंग भेल अछि सुपारी गाछ
अनने रही हाटसँ चारि बर्ख पहिने

कौखनकेँ सोचैत छी
टारने जँ नहि रहितहुँ टोकार
त’ मोन-प्राणक तृप्तिकेँ
भोगि सकितहुँ की एना भ’

कड़ुआइत आँखिमे
केराक मिठाउंस उतरितहि
छट द’ भ’ जाइत अछि दू फाँक
दाँत तरक छलिया

कटने छी बाट मुदा
बनौने छी बाट आगूक
अयाचीक बाड़ीमे सागे टा नहि
जिनगीक राग सेहो
उपजाओल जा सकैछ भाइ
केरा-सुपारीक संग मेरचाइ!

असगर

भोगि रहल छी असगरे रहबाक दंड

झपसी लाधल रातिमे
बेसम्हार भ’ जाइत अछि भय
कुकुरमारा लाठीक अछैत
ड्योढ़ी धरि जाइत-जाइत ल’ लैत छी थस
धड़कीक गोटी निंघटि गेल रहय काल्हिए
कनेको जँ होइत बुनछेक त’ झटकारि दितहुँ डेग
कमानी टूटल छत्तामे भूर अछि बहुत
एतयसँ दुकानो दूर अछि बहुत

तक्खापर राखल अछि
गोटी सभक खलिया पात
उठबैत छी बेराबेरी सभटा
कोनो टा पात जँ कहि दिय किनसाइत– हैय्या एकटा

लुकझुक इजोतमे
ओछानिपर दैत छी हँथोड़िया
भयसँ सर्द भेल जा रहल अछि देह
कतहु जँ बाँचल रहैत उमेदक रेह

कटल अछि लाइन भोरहिसँ
उड़ि गेल छल ट्रांसफार्मर आवाज करैत
फ्रिज खोलितहि भभकि उठैत अछि घर
भिनकल मोने उठबैत छी पावरोटी
भूखलमे खायलो नहि जाइछ गोटी
से मुदा अछिये कहाँ

एतेक रातिमे कहबैक हम ककरा
दुकानो त’ आब नहि होयत खुजल

एही तरहेँ गुनधुनमे
बीति जाइत अछि राति
खेपैत छी दिन एहिना बिनु दोसराइत!

वेंटिलेटर पर देश

होमक धुआँसँ भरि गेल अछि आइसीयू
मंत्रजापसँ गर्दमगोल अछि सगर वातावरण
अनुलोम-विलोम, कपालभाति, प्राणायाम
किछुओ टा नहि लेलक सुनबाहि
शवासनक मुद्रामे पड़ल एहि देशकेँ
सुताय देल गेल अछि वेंटिलेटरपर
जोतखी जीकेँ छनि ज्ञानक दाबी–
टिप्पणिमे लिखल अछि औरदा
पहिराय दियनु पुखराज एकटा
गोदानक नहि अछि बेर एखन

सिरमा सोझे लगाओल टीवीमे
शुरू भेल अछि रामायण
अन्तिम अछि उपाय यैह टा
एहि देशक आब रामे रखबार
मंदिर सेहो पास भेल अछि
बनबे करतैक अगहनसँ
के अलगाओत मूड़ी कोर्ट लग
आबि गेलाह अछि राज्यसभामे जज साहब

लग्गीसँ अलगाओल अछि शेयर
रुपयाकेँ बैलूनमे भरिक’
उड़ा देल जायत डॉलरसँ ऊपर
झाँपि देल जायत कोरोना किटसँ
रिजर्व बैंकक दरिद्राकेँ
बीतय दियौ मार्चकेँ एहिना
विपक्षी सेहो शांत एखन अछि

वित्त मंत्रीक तर्क सुनिते
देश खोललक आँखि अपन
चमकैत बजलाह जोतखी जी–
थारी सभ मिलि पिटैत जाउ

दुविधामे अछि ई देश एखन
धुआँसँ मरत कि झरसँ
बाजि नहि होइत छैक डरसँ।

मैथिली मे बहुत कम कवि छथि जिनका मादे कहि सकैत छी जे ओ ‘मैथिलीक कवि’ छथि। एखन मैथिली मे चुट्टा सँ शब्द पकड़ि कविता मे सन्हिया क’ एकटा अनावश्यक प्रभाव उत्पन्न करबाक चलनिसारि उफान पर अछि। दिनानुदिन चमत्कृत करबाक प्रयास करय बला कविक सभक लिस्ट बेस नमहर भेल जा रहल अछि। शब्दजाल गढ़बाक हिस्सक बढ़ल अछि। पुरखा सब जाहि वस्तु केँ दुरूह सँ सरल बनओने रहथि तकरा पुनः दुरूह बनेबाक बाट ध’ रहलाह अछि कवि लोकनि। कोनो शब्द मे बिनु भिजने ओकरा प्रयोग क’ लेबाक साहस बढ़ि रहलैक अछि। एहना सन परिस्थिति मे श्री आजादक कविता एकटा भरोस दैत अछि। ‘चेतना’क स्तर पर श्री आज़ाद बहुत मारुक कवि छथि। छोट-छोट बात केँ अपन चेतना आ  पाठकक चिंतनक उच्च स्तर पर ठाढ़ करब हिनकर विशेष गुण छनि। लगभग 20 टा पोथी प्रकाशित छनि। कविता पढ़ि इच्छा भेला उत्तर +91-9304349384 पर कवि केँ नीक-बेजायक जनतब देल जा सकैत छनि।