मनोज शाण्डिल्यक दस टा गजल

1.

बात की छै जे एना अथबल करैए
सत्य सँ परिचय किए बेकल करैए

आर किछु कहितय किओ तँ मानि लैतहुँ
ई कोना मानी जे जिनगी छल करैए

नहि चिता भेटलै सड़क पर लाश भिजलै
आगि केर जे काज छै से जल करैए

मरि चुकल विश्वास धरि मानी कोना हम
राति-दिन नित माथ पर नाचल करैए

भ्रम छलय जे दूर भ’ बिसरा सकत ओ
पैसि सपना मे मुदा पागल करैए

अ’ढ़ मे जे हँसि रहल से आबि सोझा
जानि नहि झुट्ठे किए कानल करैए

ई उतरबरिया पड़ोसी ‘भाइ’ कहि क’
पीठ पाछू वार समधानल करैए

2.

देश केर जे हाल छै से की पुछै छी
मृत्यु तक बेहाल छै से की पुछै छी

ओ तँ जीबा ले’ तड़पि रहलए मुदा ई
जीवनहि जंजाल छै से की पुछै छी

हम दुनू तैयार छी जे मेल क’ ली
बीच तत देबाल छै से की पुछै छी

शत्रु तँ देबे करत किछु घाह उचिते
मीत केर की ताल छै से की पुछै छी

की कहू जे बुद्धिजीवी की करै छथि
बुद्धि केर हड़ताल छै से की पुछै छी

मति हेरेलै, भ’ गेलै चोरी विवेकक
आ हृदय कंगाल छै से की पुछै छी

माछ केर ओकाति की जे बाँचि जायत
पोखरहि महजाल छै से की पुछै छी

3.

की की खेरहा सुनि रहल छी
आँखि-कान सभ मुनि रहल छी

कोविड-गाथा कते सुनू से
अगबे माथा धुनि रहल छी

सबहक बात सुनै छी लेकिन
अपन हिसाबे गुनि रहल छी

ढेरीक ढेरी आँकड़ मे सँ
पाभरि खुद्दी चुनि रहल छी

छौंड़ी केर सपना रोपबा ले’
नमहर खत्ता खुनि रहल छी

कहलनि स्वनिर्भर होयबा ले’
अपन कफन तेँ बुनि रहल छी

4.

मापदंड सभटा ओझरेलै देखियौ ने
सत्ता केर भट्ठा गरमेलै देखियौ ने

अपन-आन मे आब कहाँ अंतर कोनो
छुआछूत सँ जाति बिलेलै देखियौ ने

कोना मनाओत दीपक उत्सव ओ जक्कर
आसक डिबिया-दीप मिझेलै देखियौ ने

धिया-पुता छै खाली पेटे बिलखि रहल
विश्वासक खखरी उधियेलै देखियौ ने

नबका पद्धति तेना बन्हलकै मुट्ठी मे
पुरना सभ रस्ता बिसरेलै देखियौ ने

पक्ष-विपक्षक राजनीति केर चुलहा पर
रोटी कत्ते रास सेकेलै देखियौ ने

चढ़लै नाम जखन ‘पॉजिटिव’ खाता मे
लॉकडाउन केर अर्थ बुझेलै देखियौ ने

5.

खुसुर-फुसुर अधिकारक चर्चा
कुल-टोटल बेकारक चर्चा

जखन बाट अपनहि बनबय के
तखन कथी सरकारक चर्चा

कनफुसकी मे चुप्पे चापे
भ’ रहलए हुंकारक चर्चा

पहुँचि गेल छथि शांतिदूत सभ
आब हेतै हथियारक चर्चा

भक्षक सबहक हूलिमालि मे
कोना हुअय अभिसारक चर्चा

6.

तों बँटलही नेह तोरहि घाह देलकौ भाइ रौ
नीक द’ क’ नीक भेटतौ के कहलकौ भाइ रौ

जेठ तोरा राखि लेलकौ छोट रखलक माय केँ
घर-घराड़ी संग तोरहु बाँटि लेलकौ भाइ रौ

अ’ढ़ मे ल’ जा तोहर ईमान जे कीनल गेलौ
कान मे चुपचाप कहि दे की बुझेलकौ भाइ रौ

जाति-धर्मक नाम पर जँ भोट केँ बेचलें तखन
दोष ओकरा दै छही से के ठकलकौ भाइ रौ

आब कननहि की हेतौ जँ छोड़ि खोंता उड़ि गेलौ
तों सिखेलही जे ओहो ओतबे सिखलकौ भाइ रौ

कान मे द’ तूर निर्माणक कथा अंठा देलें
ध्वंस केर खिस्सा कहै जे के सुनेलकौ भाइ रौ

जीवनक ई न्याय छै जहिए बिसरलें माटि केँ
माटिअहि पर धप्प द’ तहिए खसेलकौ भाइ रौ

7.

अछि इरादा काटि हमरा भीड़ मे बाँटब अहाँ
हाथ मे खंजर नुका छाती अपन साटब अहाँ

ढोल पीटै छी अपन से लोक तँ बुझबे करत
डाह केर धधरा मे फाटत ढोल आ फाटब अहाँ

बात सभ गगनक करै छी गोँति मूड़ी माटि मे
जे बोकरने जा रहल छी सएह धरि चाटब अहाँ

हाथ मे हथियार हम्मर, लेखनी मे जीह अछि
न’ह धरि पहुँचब असंभव हाथ की काटब अहाँ

आँकड़क ओकाति ओतबे जे फटकि क’ छाँटि ली
पाथरक संकल्प हम्मर, जाउ की छाँटब अहाँ

8.

राति फेरो स्वप्न मे रोटी एतै विश्वास अछि
आर एक दिन फेर छौंड़ा जी जेतै विश्वास अछि

नहि पराजय केर हिस्सा क्यो बँटलकै तँ कथी
श्रेय जीतक लूझि क’ सभटा लेतै विश्वास अछि

बेस छौंड़ीक माँसु केर हिस्सक भेलैए तेँ बुझू
आर किछु नोचबाक छै जीबय देतै विश्वास अछि

भूख केर स्थायी निवारण लेल ल’ ऐंठार सँ
भात मे अगबे मिला माहुर खेतै विश्वास अछि

जे भेलैए ताहि सँ बदतर कहू जे की हेतै
आब जे किछुओ हेतै नीके हेतै विश्वास अछि

9.

की छलै सपना ओकर आ ई किदन की द’ गेलै
आँखि मे किछु नोर द’ क’ स्वप्न सभटा ल’ गेलै

के छुरा भोँकलक आ के गरदनि उड़ौने छल हमर
आब छोड़ू बात ओ सभ जे भेलै से भ’ गेलै

सीँथ भरि क’ जे नोचलकै से चिता पर छै चढ़ल
ई कोनो अन्याय तँ नहि दर्द किछुओ जँ गेलै

की हेतै खिस्सा-पिहानी की हेतै कविता-गजल
जे ओकर अरुदा घटेलकै काज बढियाँ क’ गेलै

जे बेचलकै मान ओक्कर से कते ईमान सँ
गानि क’ किछु नोट हरियर हाथ पर क’ ध’ गेलै

10.

आब देशक नीक दिन लगले एतै देखबै अहाँ
अन्न मुइलक पेट मे सेहो जेतै देखबै अहाँ

दम्भ मे ओ भरि रहल अछि घैल अतिचारक जतय
गाढ़ जन-विप्लव ततहि कहियो हेतै देखबै अहाँ

साहेबक आदेश पर तत आत्मनिर्भर भ’ गेलए
आगि ओ अपनहि चिताकेँ द’ देतै देखबै अहाँ

बड़ पसरलै हाथ ओक्कर हाकिमक दरबार मे
आब सभ अधिकार अपनहि ल’ लेतै देखबै अहाँ

स्वादि क’ दुनियाँ बहुत हड्डी चिबेलकैए ओकर
जे खुएलकै आब ओ अपनहु खेतै देखबै अहाँ

मैथिलीक साहित्यक एखन बहुत रास कवि सब मे सँ जे बहुत थोड़ कवि छथि ताहि मे मनोज शाण्डिल्यक नाम एकटा आश्वस्तिदायक नाम अछि। मनोज शाण्डिल्यक जन्म (12 दिसंबर, 1972) हिनक पैतृक गाम नागदह, मधुबनी मे भेल रहनि। मूलतः मातृभाषा मैथिली मे लिखनिहार मनोज जी हिन्दी आ अंग्रेजी मे सेहो लिखैत छथि। मूल रूप सँ कवि मनोज शाण्डिल्य कथा, लेख आ गजल सेहो लिखैत अछि। गजल मे त’ जेना विशेषाधिकार छनि हिनका। हिनक दू गोट मैथिली कविता-संग्रह ‘सुरूजक छाहरि मे’ (वर्ष 2015 मे मैलोरंग, दिल्ली द्वारा), ‘औनायल रातिक भोर’ (वर्ष 2018 मे नवारम्भ, पटना-मधुबनी द्वारा) आ हिन्दीक सहयोगी कविता-संग्रह ‘100 कदम'( हिन्द -युग्म द्वारा) प्रकशित छनि। ‘यात्री पुरस्कार’ (मैथिल समाज, रहिका) आ ‘कीर्तिनारायण मिश्र सम्मान’ (चेतना समिति, पटना) सँ सम्मानित मनोज शाण्डिल्य एखन HSBC बैंक हैदराबाद मे कार्यरत छथि। साहित्यक अतिरिक्त संगीत, क्रिकेट आ फोटोग्राफी मे विशेष रूचि रखनिहार मनोज शाण्डिल्य सँ हुनक मोबाइल नंबर +91-9866077693 वा हुनक फेसबुक यूआरएल manoj.shandilya.71 पर सम्पर्क कयल जा सकैत छनि।