बालमुकुन्दक आठ गोट कविता

बालमुकुन्द समकालीन मैथिली कविताक न’ब खेपक कवि छथि। हुनक कविता मे एक दिस अपन निर्माता समय सँ एकटा खास तरहेँ संवाद आ सम्बन्ध स्थापित करबाक चेष्टा सहजहि देखार दैत अछि त’ दोसर दिस ओहि प्रदत्त समय के प्रश्नांकित करबाक कवियोचित आचरण सेहो देखल जा सकैत अछि। निम्नलिखित कविता सब मे एकैसम शताब्दीक मारक यथार्थक बीच मे बाझल एवं आजुक जीवन-स्थितिक भयावह परिदृश्य सँ विचलित युवा मोनक असुरक्षा, प्रेम, संशय ओ प्रतिवादक अलग-अलग रंगक अभिव्यक्ति एकरा जीवंत आ बेस विश्वसनीय बनबैत अछि। एहि कविता सभक बाट पर चलैत ईहो बुझबैत अछि जे कोनो नब कवि के वांछित भाषा ओहिना उपलब्ध नहि भ’ जाइत छैक, ताहि लेल ओकरा संघर्ष कर’ पड़ैत छैक। बालमुकुंदक कविता मे ओहि संघर्षक चेन्ह देखार दैत अछि।

— कृष्णमोहन झा

1. भास

वर्षक अंतिम पक्ष मे
समयक विकृति पसरल जा रहल अछि चहुँदिस
ठीक जेना मुँह पर पसरैत अछि सिहुलीक दाग

गाम जाय बला अंतिम ट्रेन
प्रस्थान क’ चुकल अछि टीसन सँ
अभिलाषाक शोणित मे डूबल अछि सभ शहरक चौबटिया

ओसारा पर राखल मिझाएल हुक्का सँ
जीवनक अंतिम सोंट खींचि चुकल अछि बुढ़िया
ओकर आँखि सँ एकटा चिन्हार प्रतीक्षा हुलकी मारि रहल अछि एखनहुँ

चिड़ै-चुनमुन्नीक अंतिम स्वरक बादक चुप्पी
दिवस बीति जयबाक घोषणा क’ रहल अछि

एकटा भास जे शेष अछि स्मृति मे
हमरा सोर पाड़ि रहल अछि अतीतक आँगन सँ
की हम जाय सकब, एकटा प्रश्नचिन्ह अछि डिमहा पर…

2. जेएनयूक संगी सभक लेल

अहाँ लग —
सत्ता अछि
लाठी अछि

अहाँ –
डेरा सकैत छी
मारि सकैत छी
जहल पठा सकैत छी

मुदा, जाधरि
जीवित अछि हमर आत्मा
अन्याय आ अहाँक तनाशाहीक विरुद्ध
लड़ैत रहब हम ताधरि

भलहिं खाइत रहब लाठी
जाइत रहब जहलक कोठरी
मांगैत रहब अपन अधिकार आ न्याय, सदिखन ।

आओर
अहाँक लाठी
अहाँक सत्ता
अहाँ केँ अपने
तुच्छ नजरि आएत सभटा
अहाँ बैसि रहब हाथ पर हाथ राखि –
निःसहाय, निरुपाय !

3. एक्स

ओ जे ‘कियो’ छल
से छोड़ि गेल अछि हमरा
क’ लेलक अछि बाट अपन फराक
चुनि लेलक अछि अपना लेल आन कोनहुँ सहयात्री
एना हम नहि, लोक कहैत अछि
मुदा, तकर अर्थ ई किन्नहुँ नहि
जे कि ओ बिसरि गेल अछि हमरा
सद्यः भ’ गेल अछि हमरा सँ फराक
ओकर मोन,
हैत एखनहुँ हमरा प्रेम सँ प्रेमानुरक्त
ओकर हृदय हमरा स्मृतिक संग कंपित
आ जखन कोनो कृष्णपक्षक राति
पड़ैत होयत ओ अकासक सम्मुख
ओकर स्याह हृदय पियासल पाखी जकाँ अपस्याँत भ’ जाइत हैत
आ कखनो-कखनो
एकटा बीमार युवाक अस्पष्ट आकृति
द्रुतगामी अकास मे
ओकर दुहू पहाड़क मध्य
पाँखि पसारैत
उड़ैत हैत..उड़ैत हैत..।

4. एहि नव भारत मे

भाइ, की ताकि रहलहुँ अछि नक्शा मे !

एहि देशक नक्शा मे नहि अछि कोनो देश
ने इलाहाबाद आ ने मुगलसराय
जेम्हरे ताकू — 
भेटता दीन दयाल उपाध्याय

कतए बौआय छी ! 
रेस कोर्स रोड नहि जाइछ आब प्रधानमंत्री निवास
सच कही त’ पीएम सेहो पीएस छथि, प्रधानसेवक
डलहौजी रोड, औरंगजेब रोड आब भ’ गेल इतिहास

भला फिरोज शाहक की छनि योगदान
कहू तँ, क्रिकेट मे के कएलक अरुण जेटली सँ फाजिल अवदान 

अहाँ नव भारत मे छी भाइ
एतए जनताक नव नाम अछि भक्त
आ राजाक नाम भगवान
नित गारि सुनैत छथि गाँधी आ
गोड्सेक होइछ गुणगान 

युवा केँ नहि चाही रोजगार
‘वन्दे मातरम’ आ ‘जय श्री राम’ सँ ओ चला लेतैक अपन काज
पार्लियामेंट मे पोर्न देखैछ नेता
आ बलत्कृत होइछ स्त्री समाज

देश मे एक्कहि टा अछि पार्टी आ एक्कहि टा निशान
राजा छथि देश आ वैह संविधान
आ जे छथि विपक्षी से देशद्रोहीक संतान

ई नव भारत छी भाइ
जाउ बेच आउ अपन नैतिकता
ल’ जाउ अपन आत्मा बागमतीक किनछरि मे
क’ दियौक अंत्येष्टि
भरि लिय’ अपन दिमाग मे धर्म आ राष्ट्रवादक अफीम

ई नव भारत छी भाइ
शीघ्र पूरा करू नागरिकताक नव अर्हता…
जूनि करू कोनो सवाल
नहि रहि गेल अछि ई कोनो सवाल बला देश!

5. अहाँक वास्ते

जतबा बचैत रहलहुँ हम अहाँ सँ
ततबा खिंचाइत गेलहुँ अछि अहाँ दिस-ताहि सँ फाजिल ।

अहाँ कोनो पहिलुक स्त्री नहि, जकरा सँ
हमरा होइत रहल अछि मेल-मिलाप, गप्प-सरक्का, बात-बेवहार…
ई जनैत जे की हमहुँ कोनो पहिलुक किंवा अंतिम पुरुख नहि
जे बढ़ैत गेल होएब अहाँ दिस, जेना बढ़ैत अछि बटोही –
कोनहुँ अनचिन्हार बाट पर ।

दूर-दूर धरि जतए पहुँचैत अछि नजरि, लगैत अछि
सभ अनभुआर, सभ परिष्कृत ।
स्वप्नक सिनेमाघर मे एक गोट समुद्रक लहरि बढ़ैत अछि हमरा दिस,
हम बेरु बेरु छुबय चाहैत छी तकरा दुनू ठोर सँ आ प्रत्येक बेरू असफल होइत छी ।

दूर गामक सिमान पर, कियो छल –
जे प्रस्थान कए चुकल अछि, तखनो हमरा देखैत छी
ओकर डबडबाएल आँखि-लटकल मुँह आ हृदय मे उमड़ल बेसम्हार अनुराग ।

सभटा चीज जे छूटि गेल अछि
बेरू-बेरू घुमरैत रहैत अछि मोन मे
जेना पढ़ित प्रत्येक नीक कविता

बेसी किछु नहि, बस अहाँ सँ ओतबी अनुराग-ओतबीए प्रेम
जखन टुकड़ी-टुकड़ी भए जाए मोनक सभटा उत्कट अभिलाषा
तहन पकड़ि सकी अहाँक हाथ
कए सकी अहाँ सँ भरि पोख गप्प
देखि सकी स्वयं केँ अहाँक मोनक अएना मे ।

6. विदा कहबाक क्रम मे

एक दिन सभ छूटि जाओत
ईर्ष्या, प्रेम, घृणा, उदासी ।

विदा कहबाक क्रम मे
कतबा किछु अछि जे रहि जाइछ शेष
हमरा-अहाँक हृदय मे ।

रहरहाँ लोक विदा लैत अछि
आपस पुनः भेटबाक आश्वासनक संग

एहि तथ्य सँ दूर की जीवन
मकड़जालक एकगोट तन्नुक ताग
कौखन भखरि जाइ कोन ठेकान ।

पीपरक गाछ सँ झरैत पानि संग
स्मृति सम्हारू
एक दिन विदा कहबाक समय आओत !

दू गोट शीर्षक विहीन कविता

7.

छोड़ि दैत छी सभकिछु –
निरंतर गतिशील समयक नदी केर वेग मे ।

आवश्यक अछि यात्रा
होमहिं पड़त बाहर
करहि पड़त अपन-अपन हिस्साक यात्रा, समय-समय पर ।

दूर-दूर जाइत रहलहुँ हमरादुनू
घुरैत रहलहुँ आपस बेर-बेर
घुरब नियति छल वा प्रेम ? — निराशा मे नहि, आश्चर्य सँ पुछैत छी!

सब खत्म —
कतेक हल्लुक आ अगम्भीर अछि ई कहब
तुअल पात सेहो बता जाइछ गाछक पता— नष्ट होयबा सँ पहिने ।

अहाँ खत्म क’ सकैत छी हमरा, की नीपि सकब हमर स्मृतिक आँगन!

थाकि गेल छी उघैत-उघैत अपन लहास
हृदय मे एखनहुँ शेष अछि अहाँक घुरबाक आस
जेना घुरैत रही पहिनहुँ

की सद्य: घुरब अहाँ ? वा छोड़ि देब हमरा, हमर यात्राक अंतिम बिंदु पर ?
ई प्रेम टा सँ नहि, डर सँ सेहो पुछैत छी ।


8.
कतबा किछु अछि जीवन मे-
बेर-बेर घुरय चाहैत छी अहाँक आँखि मे
जेना घुरैत अछि सुग्गा सांझुक बेर अपन खोंता मे ।

कतबा किछु अछि
जे पकड़ि लैत अछि लोक कें-गिड्डह सन, किछु छोड़बाक क्रम मे ।

कतबा दुख-कतबा बेथा
नहि टूटल मुदा कहियो निन्न
एम्हर होइत रहल सुड्डाह-स्मृतिक दाह मे देह । सभ समानांतर ।

कतबा राति-कतबा स्वप्न
सभ स्वप्न मे एक मिलन कथा आओर कतबा किछु…

पाकक एक गोट पोखरि अछि प्रेम-
जतबा चेष्टा करब बहरेबाक, ओतबा धँसब भीतर-आर गहींर ।

सोझ सोझ चलबाक बादहुँ
फँसैत जाइत छी अहाँ आर बेसी विपत्ति मे
बीतैत एकहेक मोड़ टपलाक बाद ।

दूर अकास मे देखैत छी बुलैत चान-
एकहेक मेघक चुम्मी लैत
कतेक रास पानि छल जे बहि गेल हमरा-अहाँक मध्य सँ
शेष चहुँदिस मात्र स्मृतिक देबाल
जे करैत अछि फराक दिनुक इजोत आ रातुक भयाओन चुप्पी सँ ।

कतबा किछु अछि,

अहाँक जतबा स्मृति अछि हमरा लग
अहाँ ओतबा बेसी दूर छी हमरा सँ

एक दिन मरि जाएब हम-
मुदा तहनो जीवित रहब अहाँक हृदय मे । 

  • बालमुकुन्दक सबटा कविता हुनक फेसबुक वाल सँ संग्रहित अछि आ हुनक फोटो फोटोग्राफर आ उद्यमी मित्र अविनाश कुमार सँ प्राप्त भेल अछि। बालमुकुन्द सँ  सम्पर्क हुनक ईमेल mukund787@gmail.com पर कयल जा सकैछ। 
  • श्री कृष्णमोहन झा सम्प्रति असम विश्वविद्यालय , सिल्चर मे हिन्दीक प्रोफ़ेसर छथि।  हिनका सँ jha.krish@yahoo.com पर सम्पर्क कयल जा सकैछ।