देवशंकर नवीनक किछु कविता

बिज्जू स्त्रीवाद

इजलास पर जज बैसल छथि
कठघरा मे एक दिश राम
आ एक दिश जानकी ठाढ़ि छथि
ऋषिक कुटी मे सम्मन पहुँचल रहनि
जानकी केँ मोआबजा दियेबाक लेल
कोनो नारीवादी ओकील मोकदमा केने छलखिन
जिरह भ’ चुकल अछि

जानकी चौंकि उठलीह
बजलीह-
नै श्रीमान
हमरा एहि पुरुष सँ नै चाही मोआबजा
हिनका सँ मोआबजा ल’ क’ हम हिनकर अहं केँ आओर ऊँच नै करय चाहैत छी
हिनकर कमाइ खा क’ हम अपन आत्मा आ सम्मान केँ
आहत नै करय चाहैत छी…

परित्यक्त छी, परित्यागी छी
मुदा सम्मान बचा क’ राखय चाहै छी
रामराज्यक कर्तापुरुष आ दुनियाँ भरिक मर्द केँ
देखा देबय चाहैत छी
जे कोनो स्त्री
धन, सुरक्षा, सेना आ राज-पाटक बलेँ पैघ नै होइत अछि
ओ पैघ होइत अछि अपन सृजन सँ
लव-कुश सन वीर सन्तानक जननी बड़ पैघ होइत अछि
रामराज्यक राजा राम सँ बड़ पैघ
दुनियाँ केँ ई बुझक चाही जे
जानि नै कतेक हजार बर्ख धरि वंश परम्पराक टेमी उत्पन्न करय वाली
आ तकर लालन पालन करय वाली
स्त्रीक परीक्षा लेबय काल हरेक पुरुष
ओहि सँ पैघ परीक्षा स्वंय दैत रहैत अछि
हुनका बुझल रहक चाही जे
विवाह सँ पूर्व कोनो पुरुष एसगर रहैत अछि
आ विवाहक बाद आधा भ’ जाइत अछि
मुदा स्त्री ?
ओ त’ सर्वदा पूर्ण रहैत अछि
परित्यागक बाद पुरुखक पितृत्व छिना जाइत अछि
मुदा स्त्रीक मातृत्व आ ममता ओकर संग रहैत छैक
हजूर
अहाँ हिनका सँ मुआवजा हमरा जुनि दिआउ !

उखड़ल गाछ

विश्वग्रामक धारणा,
वसुधैव कुटुम्बकम सँ उन्नत लगैत अछि एहि देश मे
चूल्हा, चिनबार, खेत, खरिहान,
ह’र, फाड़, ढोइस, करीन
दलान-चौपाल, धूर-धुँआ, गोबर-करसी
भदेस आचरण थिक एहि देश मे
संग्रहालय मे बन्न भ’ गेल लोक-कला
एहना मे
ईस्ट इण्डिया कम्पनी जँ एक बेर फेर सँ आबिये गेल एहि देश मे-
त’ की करबैक अहाँ
1857 अथवा 1942 क स्मरण ठीक होयत
मुदा मोन राखू
विद्रोहक आधार भाषा आ संस्कृति होइत अछि
से अहाँ बिसरि चुकल छी

मजूर

अगबे फूही सँ हमर काज नै चलत मेघ !
कने जमि क’ बरसू !
ई फूही त’ महल-अटारीक अलस-भाव ओछाओन
आ पार्क-विलासी जोड़ी लेल सुखकर भ’ सकैयै
हमरा त’ मूसलाधार बरखा चाही
मेघ ! बरसू ने
ई आत्मा, ई शरीर
ईट्टाक छाहरि मे नै
अहाँक थपकी सँ तृप्त होइत अछि
तन, मन, प्राण आ पेट धरिक तृप्ति त’
हमरा अहीं द’ पबैत छी
रोपनीक मौसम छैक
कने जमि क’ बरसू ने !

दुनियाँ-दारी

दाही-जारीक कारणें
हमरा गामक किसान आत्महत्या क’ लेलक
बेतला वनखण्ड मे कोनो अवर्ण, सवर्ण स्त्रीक संग दुराचार भ’ गेल
थाना मे रपट लिखैत पुलिस ओकर ‘अनुभव’ बढ़ौलक
गामक सरपंच अपन पुतौह केँ जरा देलनि
दहेज दंश मे किछु युवती आत्महत्या क’ लेलक
बेटी नै बियाहि सकबाक सन्ताप सँ कोनो नागरिक बताह भ’ गेल
ई स’बो टा समाचार निरर्थक छल
बिकाऊ नै छल
रेडियो, दूरदर्शन, अखबार, पत्रिका
एखन पुनीत काज मे लागल अछि
महाबलीक वैवाहिक आ व्यापारिक चिन्ता सँ बेसी पुनीत काज
आन किछु नै
भूख, बोझ, रोग, शोक सँ हत, आहत, मर्माहत
आदिवासी स्त्रीक निस्तेज चित्र
अखबार, दूरदर्शन केँ की देत
मुख्यमंत्रीक चरणामृत लैत, आदिवासी स्त्रीक मुस्कान
अहूँकेँ रमणगर लगैये
एहि मे अखबारक कोन दोख ?

समाचार

निर्णय लेल गेल अछि
जे पीपरक एकटा पात पहिरि क’
मात्र एकटा पात, आन किछु नहि
निर्णय लेल गेल अछि
जे पीपरक मात्र एकटा पात पहिरिक
भारत देशक शीलवती युवती
महाबलीक संग मंच पर नचती
महाबली आ दर्शक लोकनि तकर रस लेताह
महाबली ओहि युवती केँ चुम्मा लेताह
आ युवतीक नक्षत्र जागि जायत
युवती, सामान्य कन्या सँ नगर-कन्या
फेर राज-कन्या आ ब्रह्माण्ड कन्या भ’ जेतीह
अखबार, रेडियो, दूरदर्शन पर युवतीक इंटरव्यू लेल जायत
ओ विशिष्ट युवती अहाँ लोकनि केँ
आ देशक सामान्य कन्या केँ अकादमिक उपदेश देतीह
एक पात सँ झाँपल दैहिक भूगोल
आब शील-सभ्यताक सीमा निर्धारित करत
आ संस्कृति-मन्त्री दूरदर्शन पर ई दृश्य देखैत
कृत्य-कृत्य हेताह

देवशंकर नवीनक जन्म (2 अगस्त 1962) सहरसाक मोहनपुर (नौहट्टा) गाम मे भेल छलनि। श्री नवीन मैथिली आ हिन्दी मे समान रूप सँ कथा, कविता आ आलोचनात्मक निबन्ध लिखैत रहलाह अछि। मैथिली-हिन्दी मिला क’ संकलन, संपादन आ मूल लेखनक दर्जनों पोथी प्रकाशित छनि। ‘राजकमल रचनावली’क (हिन्दी) संपादन सेहो हिनके द्वारा भेल छल जे ‘राजकमल प्रकाशन’ सँ प्रकाशित अछि। “चानन काजर” (कविता संग्रह) “किसुन संकल्प लोक’ , आधुनिक साहित्यक परिदृश्य (आलोचना) “अन्तिका प्रकाशन” सँ, “हाथी चलय बजार” (कथा) “चतुरंग प्रकाशन” सँ आ “मैथिली साहित्य : दशा, दिशा आ संदर्भ” (मैथिली) “नवारम्भ प्रकाशन” सँ प्रकाशित छनि। सम्प्रति श्री नवीन दिल्ली मे रहैत छथि आ देशक प्रतिष्ठित विश्विद्यालय जे.एन.यू. मे प्रोफेसर छथि। प्रोफेसर नवीन सँ संपर्क एहि लिंकक (https://www.jnu.ac.in/content/deoshankar ) माध्यम सँ कयल जा सकैछ।