डॉ. निक्की प्रियदर्शिनीक दस गोट कविता

1. इयह थिक जीवन !

सजल साजल कनियाँ
कोबर टुह-टुह
छलैक अहिबात पुरहर आ डाला भरल
जरैत अहिबातक अखंड दीप
ओकरा बिलहबाक लेल
नहि छलैक बिधकरीक हाथ शुद्ध
किएक त’ चतुर्थिए दिन
मरि गेलथि नुनू कक्का
कन्ना-रोहट पसरल चारूकात

मेहिया बड़द जकाँ ठाढ़ नबका वर
मनक उद्वेग ओहने जागृत
जेना खेतिहर केँ कोदरिकट्टा मेघ देखि
वृष्टिक होइत छनि संतोष

एक दिस मृत्युक सत्यता
आ जीवनक दोसर सत्यताक ओरियाओन
जेना भेल हो बेस मेघवृष्टि
आ दहा जएबाक डर पैसल
बान्हक कोरा मे बसनिहार केँ

मृत्युशय्या पर
विदा होएबा लेल
घर सँ बाहर कएल गेल शरीर
अंतिम यात्रा दिस बढ़ैत
चिताक अग्नि सँ पूर्ण भेल जीवन-यात्रा

संगहि बेदीक आगिक संग चतुर्थीक तैयारी
पूर्ण भेल विवाहक पद्धति
जे माइग्रेशन सर्टिफिकेट थिक
नैहर सँ सासुरक

मृत्यु केँ अबडेरैत
जीवन केँ अंगेजैत
चलैत रहबाक अछि सदिखन
इयह थिक जीवन।

(ई कविता आदरणीय प्रिय कवि हरेकृष्ण झा केँ समर्पित)

2. उदघोष : एकटा प्रेम कविता

हे प्रिय!
मोन मे जे चलैत अछि,
उयह थिक हमर सर्वस्व
नहि आनि ठोर पर भाव
जीबैत रहलहुँ अभाव मे
छोड़ि देल जीवन जीयब
मुदा अपन कर्तव्य बुझि
शरीरक भार सहि
झुकबैत रहलहुँ शरीर केँ
प्रेम केँ बचा राखब
ओहिकेँ स्वभाव बुझि

हे प्रिय!
देहक आगि सँ
बचबैत रहलहुँ देह केँ
हिलैत डारिक झूला केँ
बयारक प्रहार बुझि
प्रकृतिक परिवर्तन मानि
अपना पर अंगेजैत रहलहुँ
सांस केँ तेज देखि
कियो भेद देलक मनकेँ बुझि
सपनाक रंगीन संसार देखि
धौजनि हम मनबैत रहलहुँ
झुकल नयनकेँ फेर देखि
जिनगीक बाटपर हम
आस ओछबैत रहलहुँ

हे प्रिय!
मुदा कियो ल’ लेत परीक्षा
मोन केँ परखि
मोनक कैनवास पर
नवका चित्र बनायब कहियो
जीवन अछि बहुमूल्य हमर
से झाँकि क’ देखि लेत कियो
असीम अनन्त धरि
संग उड़बाक लेल
आब घर सजायब हम
सत्य ओ भाव थीक जे
अभरैत रहत तर्क बुझि
टूटी नहि जानि से बंधन मे
आब बन्हाय लागल छी
सभक जीवन सजल जीवन
अपन एहि मनोरथ मे।

हे प्रिय!
ई कोन उद्द्घोष कयल जाहि मे
हमर जिनगीक गहन अन्हार सेहो
चमकय लागल अछि
जाहि मे हम देखय लागल छी
अपन बिझायल सपना सभ केँ
फड़ैत फुलाइत
जाहि मे एहि मौलायल सिंगरहार
आ ठूट्ठ मालदहक हरियरी
लौटि रहल छैक।

हे प्रिय!
ई कोन उदघोष कयल
जाहि मे हेलैत चुभकैत आब
कहियो थाकय नहि चाहैत छी।
ई कोन उदघोष कयल प्रिय!

3. ओजन

मिझायल घूरक कातहि बैसल कुकुर
पूसक कनकनी मे
ओकर देह मे लटकल बच्चा सब
करैत स्थिर अपन पेटक संग-संग कोढ़क भूख
चारि बीतक गरम जगह मे
समटल सौँसे परिवार
जेना सूर्यक ताप सँ सम्पूर्ण सृष्टि।

जाड़क कनकनी
अछि बुझबाक त
ओहि कनकिरबा आ कनकिरबी सँ सेहो पुछियौ
जकर गरदनि मे
चरखनिया लुंगीक बान्हल गाँती
घूरक धुइयाँ आ छाउर सँ कारी भेल देह
ओहि शीतलहरी मे देहक सभटा रोइआँ
ठाढ़ भ गेल अछि ओहिना
जेना अदौ सँ
बर्फ़क कनकनीक ओजन थम्हने
उज्जर भेल ठाढ़ अछि
देवदारुक गाछ ।

4. चोट

मोन पाड़ैत अछि भराठ
कोनो बड़का खाधिक
जे समयक ग’र पाबि
भोथ भ’ गेल छैक
मुदा जीवित छैक एखनो
ओ आ ओकर टीस
जिओने अछि ओकरा
आ खोदैत रहैत अछि ओहिना
जेना कोनो निरीहक
घुट्ठी परहक घावपर
चारुबगली सँ लुबधल मांछी
कनेक कनेक स्वाद लैत शोणितक

कि तहिना कोनो सिनेही
नेभासेल्फ़ पाउडर ओहिपर छींट
ओकरा झंपबाक करैत अछि प्रयास
मुदा समयक कुचक्र
आ तकर संतति मांछी
फेर ओकरा खोदैत
आ चोभैत
क’ दैत अछि जीवित आ
जीवनभरिक लेल दुःखित।

5. अकादारुन      

(दीर्घ कविता)

राति

पिता द्वारा मूल्य द’
क’ देल गेल दान
मंदिरक दनपेटीमे
पड़ल कतेको टाका
ओ रहैत छैक लावारिस
लागल छैक ताला
आ कुंजी छैक हाथमे
धर्मक ठेकेदारक
इच्छा नहियो रहैत
ओहि पेटीमे पड़ल टाका सँ
कीनल जाइत छैक रंग-विरंग
वस्त्र-आभूषण आ सजाओल
जाइत छैक सूंदरतम मूर्ति जकाँ
कोबरा घरमे बैसल ओहि बेटी केँ

भ गेल अछि प्रात
भोग विलासक लेल तैयार
पूछल नहि गेल ओकरा
कोनो बात-विचार
पठा देल गेल
पोटरी मे बान्हल
ओहि सनेस जकाँ
जेना चंगेरा केँ पोटरी बनाय
बान्हल अछि
टिकरी, खाजा, बालूमशाही
अपना भीतरक सब
उन्माद आ इच्छा केँ दबौने
बिजली जकाँ छटकबैत दांत
ओहि नव आँगन मे
राति होयबाक डर पैसल
आँखि मे ओ नोचब ओ घीचब मोने अछि
तइयो समेटि अपना भीतरक
अग्नि केँ नितदिन

अयना लग ठाढ़ होइत
आ लगबैत माथमे जखन सिंदूर
सोझाँ नाचय लगैत अछि
ओ अकादारुन राति
ओहि अकादारुन रातिक घमासान।

इच्छा

झहरैत मेघ उत्तेजित अछि
कामोत्तेजनाक आगि
पसरल सभतरि
नहि क’ पाबि रहल छनि शांत
ओकरा ब्लिजार्ड

गुलाबक फूल जकाँ
सब उम्र केँ
तोड़बाक रखने छथि इच्छा
रुटलेस सन घुमैत
स्ट्रीट डॉग सँ बदत्तर
जीवन जीबाक लेल
बाध्य बनौने छथि अपना केँ
कलयुगक भोक्ता

जकरो भ’ गेल छैक जियान
अपना भीतरक कस्तूरी
ओकरो गमक सँ
झनकि जाइत छनि
हुनक विकृत मोन
ओकर गमक लए
निकलैत अछि जखन ओ
उन्मादी शिकारी जकाँ

राग-द्वेष, ऊंच-नीचक
रत्तीओ भरि नहि रहैत छनि
कोनो ज्ञान
कोनो विचार
मात्र रखने छथि अपना भीतर
ओकरा भोगि लेबाक
अकादारुन इच्छा।

दुख

कोनो सुनामी सँ पहिने
निश्चय अनुभव करैत होयत समुद्र
एकटा हमरे सन बेचैनी

रामक तीर मे आब कहाँ छै दम
ओ त’ परास्त छै स्वयं
रावणी दम्भक पाछू।

बेचैनी सँ उठैत नव उन्माद
बना रहल छै प्रबल
विनाशक ओहि आवेग केँ
आच्छादित क’ रहल छैक
वाड़वानल केँ

उठैत छै घमासान
मोन आ मस्तिष्कक बीच
होयत की फेर महाभारत
मुदा एहि बेर नहि हेतीह द्रोपदी
तकर कारण

आब सक्षम छथि ओ
अपना केँ नहि बनेती
कोनो युद्धक कारण
आबि जाओ बरू कतबो
अकादारुन दुख
लागि जाऊ बरू
कतबो दुःखक अमार।

निर्वाह

धर्मक निर्वहन मात्र युधिष्ठिर नहि केलनि
ओ त’ एखनो स्त्री क’ रहल अछि
पिताक लेल
भाइक लेल
मित्र लेल
पुत्र-पुत्रीक लेल

एकयुगक उदाहरण एखन तक प्रचलित
मुदा सब युग मे कयल गेल जे निर्वाह
छैक कहाँ ओकर कोनो चर्च!

हमरे दुआरे, हमरे चलते, हमरे सँ
कियो जरूर हेतैक
कतेक दिन चलतैक
ई अली बे ते सेक एकरंगाह राग

चिन्हौक गृहपति केँ
प्रजापति कहौनिहार
बड़का-बड़का बुधियारिक मठाउत बन्हने
कलयुगी पुरखाहक
अकदारुन पुरखौत।

रीति

छैक ई विडंबना
जखन भगवती पर फूल चढ़यबाक लेल
छैक नहि कोनो हाथ शुद्ध
लगैत छैक अशौच
जन्माशौच आकि मरणाशौच

ओ बियाहलि धियाक फूल
कोना छैक योग्य
जे समयक घिरनी मे पिसाइत
जातक कीलक सबसँ लगक अन्न जकाँ
सटल अछि एखनो जन्मदात्री संग

खाइत ओकरे
सोचैत ओकरे
जोगैत ओकरे
छैक तैयो वएह शुद्ध
मात्र पूजाक लेल
अंधयुगक ई अकदारुन रीति
भोकैत रहैत छैक ओकरा
जेना फाटल केँ सिबैतकाल
खच द’ गड़ल होइक
छोटकी सुइयाक नोक
बहुत काल धरि
टिहकैत रहैत अछि
आ रहैत अछि सोचैत
समाजक एहि अकदारुन रीति संग
भोगैत रहैत अकदारुन टीस केँ।

6. प्रीत

दूधबला जरल
खकसियाह बासन जकाँ
मोन सिहरैत अछि
महकैत अछि
टिहकैत अछि
कोनो स्नेह सँ आसक्त भेल
हाथक झामा सँ
अपना केँ खोखरेबाक लेल

खस-खस, खर-खर करैत
झामक आवाज सँ
निकलैत अछि संगीत
जे शांत क’ दैत अछि
जरलाहा मोनक ओहि आगि केँ
आ चमका दैत अछि
ओहि बासन केँ
जे समयक देरी होयबाक चलते
भ’ गेल छल खकसियाह

मुदा कतबो मजलाक बाद
रहि जाइत अछि जरलाहा अंश
झखबैत रहैत अछि मोनकेँ
जेना गाछी मे लटकल
अंतिम आम केँ
झखबैत अछि पैकार

बेचैनीक संग
झोखरि मे खसल आम केँ
लुबधल आ तकैत
भेंट गेला पर पूरा गाछीक आमक बरोबरि खुशी
आक्रांत भेल मोन केँ
ओहिना दैत अछि
जेना सहेजबाक
आ सम्हारबाक अनुभूति लेने
प्रेममे आसक्त भेल हाथ सँ
चमकए लगैत अछि बासन
आ बिहुँसए लगैत अछि मोन।

7. परिणाम

ओकर जे बात छलैक
से अद्भुत
सब किछु बीछैत आ बुद्बुदाईत-
‘हमर की दोष, हमत’ नीक छलौं’
बुढ़िया गए बुढ़िया बजैत ओ
पेटो भरिगर लगैत छल ओकर
ककर कोखि छलैक ओकरा

गए पगली!
कोना बुझतै ओ
के भोगलक ओकरा
ओ त बस एतबे बजैत-
बुढ़िया गए बुढ़िया!
आगू राखल भोजन पर भिनकैत माछी
ओहिमे सँ बीछि-बीछि खाइत
शांत करैत अपन पेटक भूख
एकटा पोटरी मे बान्हल
किदन-कहाँदन के सहेजने
जेना अमूल्य निधि हो ओकर

ककर भूख आ प्रताड़नाक
परिणाम छल ओ पगली?

8. मजदूर नहि मजबूर छी 

प्रवासी मजदूर कही
कि कही अपन गर-गिरहतक
कखनो दुलरुआ आ कखनो
खयबा लेल जिद्द करैत
गिरहतनिक ओ जोनपिटटा
जे छोड़ल अपन गाम-घर, चर-चाँचरि
घनकटनी करैत ओहि सुखियाक संग
आयल ओकर गामबाली
काटि क’ पसारि दैत भरि बाध
जाहि सँ भरल जायत
पैघ-पैघ बखारी
कनकिरबा आ कनकिरबी
खेतक ओहि पसरल जजात पर
लोढ़ि-लोढ़ि ढेरियौने धानक शीश
ओकरे पर निर्भर छलैक
खेत आ खरिहान
बाबाक दलान

निर्भर छैक आब कल-कारखाना
चलबैत ओ कतेको के घर
आ पोसबैत कतेको के पेट अछि
आबहु गामक ओ परसादी ओ ठिठर ओहने छैक
छैक ओहने ओकर अपन गिरहतक प्रति प्रेम
मात्र भ’ गेल छैक आब ओ धृतराष्ट्र
सेहो अपन पूतक लेल
तेँ भ गेल अछि ओकर बेटा आब प्रवासी मजदूर
छलैक जे परसादी अपन गिरहतक समांग
भ’ गेल छैक ओकर बेटा आब प्रवासी मजदूर
कहाँ छैक ओ समांग
अपन चेनाहसी केँ मिटबै लेल
छैक स्वयं तैयार

मुदा
की मेटा सकत
ओ अपन ई पकिया सम्बोधन
एहि स्वतंत्र देशक
मजदूर आ कि मजबूर नागरिक?

9. यथार्थ

ओहि ऊँच महल बनबाक पाछू
बहैत अछि कतेको पसेना ओकर
बिल्डरक आमदनीक पाछू
रहैत अछि कतेको खर्च
ताहिमे कतेको झूठ
आ कतेको ढगी सेहो
मुदा ओकरे पसेना सँ
भरैत अछि कतेको के पेट
आ पुरबैत अछि आस
ओही पसेना सँ भेटि जाइत अछि
कतेको के अपन चास आ बास
ओहि चासबासक संग लागल अबैत छैक
चुप्पहि अपना सँ दूर होयबाक फलाफल
पसेना आ ख़र्च सँ ठाढ़ भेल
ओ दू आ तीन बीएचके
हंसोथि लैत अछि अपना भीतर
कतेको के पुरुषार्थ
आ बीघाक-बीघाक मालिकक मालिकौत केँ,
पिताक पुत्र केँ,
आ बचैत अछि
अपन कहबा लेल मात्र दू गोटे,
कहाँ बुझैत अछि मर्म
जाहि सँ छहोछित होइत छनि पिताक भावना
जकरा जोहने रहथि ओ
पुत्रक जन्महि सँ ।

10. भरोस ? 

हेतैक फेर ओहने समय ?
एतैक फेर हेँजक हेँज
टेम्पू आ बस पर मनुख
जेना ढेरियायल रहैत गोदामक ट्रक पर
दुमोनियाँ बोरा
रहत मनुख एक-दोसरा सँ
सटिक ठाढ़
निकलैत रहत ओ
गुमसड़ाइन पसेनाक गन्ह
फेर ठाढ़ रहत कोरा मे चिलका लेने
कोनो गामबाली
बेर-बेर सम्हारैत अपन आँचर केँ
होयत ओहने धमगिज्जर सीटक लेल
देल जायत बैसलहा केँ
कतेको निकहा संबोधन
गाड़ीक खलासीक गरजब
हेरा गेल अछि जे एखन किछु दिनसँ ?
फेर हेतैक
भोरे भोरे फेर अफरातफरी उठत
कमौआ स्त्रीक मोनमे
दस हाथ लए फेर तैयार रहतीह दुर्गा
पिता-पुत्र आ अपन पेटक जोगारमे
सांझुक हॉर्नक प्रतीक्षा मे ठाढ़ बालकोनी मे
फेर होयतीह गृहिणी

मॉलक आगू लागत
चाट-चाउमीन-गोलगप्पाक ठेला
उमजत फेर
ओहि पर सुन्दरि बाला
कसल जायत फेर फब्ती
सरकारक कन्या योजना सब सँ साइकिल पर चढ़ल युवती पर
हियाओल जायत फेर डूबा धरि ओहि चानकेँ
भेटत जे कॉलेज सँ बाहर
घर जयबा लेल
फेर रोडक कात मे ठाढ़
माँ-दादा-दादी-नानी-नाना
ठेकानैत अपन बाबू आ बुच्चीक बसक नम्बर
गामक डगहरक कात जाइत भेटत
काँख तर दबने कॉपी-किताब
कतेको ननकिरबा आ ननकिरबी
निधोख थारी लए दौड़ैत खिच्चड़ि लेल
गुलबिया स्कूल धरि

फेर आबि जायत दूरी
बाँचि जायत मात्र अपना कहबा लेल समांग
ढुकि जायत आँखि फेर हस्तयंत्र मे
भ’ जायत समयक अभाव ?

बदलि जायत फेर ई निकहा स्वभाव ?

श्री उग्रतारा भारती मण्डन संस्कृत महाविद्यालय मे मैथिलीक सहायक प्राचार्य डॉ. निक्की प्रियदर्शिनीक दू गोट पोथी देखल जा सकैछ (निबन्ध -संग्रह ) आ समय-सापेक्ष (कविता-संग्रह) प्रकाशित- प्रशंसित छनि। अंग्रेजी आ मैथिली मे एम. ए. डॉ. निक्कीक घनेरो साहित्यिक मंच पर अपन कविता, आलेख आदिक पाठ कयने छथि आ ऋत्विक सोनम साहित्य सम्मान (2014 मे देखल जा सकैछ पोथी पर ), मिथिला विकास मंच, भागलपुर द्वारा सर्वोत्तम आलेख सम्मान आ मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति,गुवाहाटी द्वारा आलेख सम्मान सँ सम्मानित छथि। हिनक मैथिली अनुवाद एवं विवेचन पोथी शीघ्र प्रकाश्य छनि। हिनका सँ nikky0283@gmail.com पर सम्पर्क कयल जा सकैछ।