दीपकक संग कने बेसीए समान छलैक। प्लेटफॉर्म पर टेनक प्रतीक्षा करैत ओ सोचय जे कत’ आ कोना सैंतत समान? बीचक टीसन पर टेन पकड़ने एहन होइत छैक। पहिनेसं जे यात्री अबैत रहैए, ओ बेसी जगह ओगरने रहैए। बीच बला टीसन पर टेन पकड़िनिहार यात्रीक कहियो काल झंझटि सेहो भ’ जाइत छैक।
मुदा, दीपकक संग एहन झंझटि नहि भेलैक। साइड लोअर बर्थ जे ओकर आरक्षित नहि रहैक, के नीचांमे पूरा खाली भेटलैक आ ओ अपन सभ समान पसारि क’ राखि लेलक। पत्नी दिस तकलक। ओहो सामानक प्रति आश्वस्त भ’ मुस्किअयलीह।
आब समस्या रहैक के सीट कोना बदलत? ओकरा दुनू प्राणीक अपर आ साइड अपर बर्थ छलैक। साइड लोअर बर्थक एकदिस बैसल युवककें देखि बूझि गेल जे ई ओकरे बर्थ हेतैक। शेष यात्री सभ दिस नजरि खिरौलक। ककरा कहत? चाउर द’ क’ के लेत मरुआ?
मुदा, तेहन लोक बहरयलै ओ युवक। लोअर बर्थक एक भागमे डांड़ मोड़नहि छल कि ओ युवक ओकरा दुनूक सीटक मादे पूछि निस्तुकी भेल। ओना, पूछब सेहो गप शुरू करबाक प्रयास छलैक युवकक। आठ सीटमे छओ गोट सीट बला लोक पहिनहिसं छल, तं शेष सीटक निस्तुकी सहजहि छलैक। गपकें आगां बढ़बैत बाजल, “अंकल! अहां दुनू गोटे साइड बला दुनू सीट ल’ लिअ’। हम अपर बर्थ पर चलि जाइत छी।”
दीपककें बुझयलैक जे युवक मुंहक बात छीनि लेलकैक अछि। ओ मुस्किआइत युवककें धन्यवाद देलक।
युवक अपन ओछाएन-कम्मल ल’ उपरका खाली बर्थ पर चलि गेल। दीपक दुनू प्राणी सेहो अपन पसार ठीक कयलक।
शेष सीट पर दू टा बंगाली परिवार छल। दू प्राणी आ एकहक टा बच्चा। दुनू बच्चाक बीच क्विज चलि रहल छलैक।
युवक फोन पर बतिया रहल छल, “माइ गे। काल्हि भोरे पटना पहुंचबौ। सांझ तोरिक गाम। बाबू के कहियही से काल्हि दुपहर मे टटका बथुआ साग तोड़ि क’ आनि देथुन। टेन सं बाहर बला देहात सब अपने गाम सन लगै छै।”
“…….”
“हं, ओकरा समझाइए सकै छियै ने। दोसर कोनो उपाय कहां देखाइ छै? बेस, तों चिन्ता नञि कर। सबटा सम्हरि जेतै।” युवक मायसं बतिया रहल छल।
दीपक देखलक जे बथुआ साग लेल कहैत काल युवकक हुलसल मोन पर एके क्षणमे जेना पानि पड़ि गेल होइक। जानि नहि, माय की कहलकै?
युवक फोन बन्न क’ मौन भ’ गेल।
ओकरा कलीम मियां मोन पड़लैक। कलीमकें कका कहय ओ- कलीम का। कलीम एकटा सिलाइ मशीन रखने रहय। वैह सिलाइ मशीन ओकरा दुनू प्राणीक अन्नदाता रहैक। कलीम ओकरा बड़ मानैक। भरि गाममे ओ कलीमे संग रितिआयल रहय। माय-बापक एकमात्र संतान, तें दुलारू सेहो छल। हांटन-डांटन कम पड़ै आ तें पढ़ब-लिखबसं दूर होइत गेल। हठी होइत गेल। मुदा, कलीम ओकरा समेटि लेलकै। पहिने तं ओकरे सन गप कहलकै। ओ कलीमकें कपड़ा सिबैत देखय, तं अचरज होइक। पुछने रहैक- “कलीम का! कुरता-कमीज-सर्ट-पेंट कोना सीबि लैत छहक? सेहो एकदम नापक नाप।”
कलीम कहने रहै, “ई हुनर होअ’ हइ। सिख’ पड़ै हइ। लहेरा जैसन घुमबहो तो कहां सीख सक’ हो।”
“हमरा सिखा देबहक?”
“सीख’ ले’ पढ़हू पड़’ हइ। ना पढ़बहू त’ कपड़ा के नाप कैसे बुझबहू हिसाब-किताब कर’ पड़’ हइ। कोइ पूछ’ हइ जे केतना कपड़ा लगिहे, त’ कैसे बतेबहू? पढ़ल-लिखल रहबहू, तब न। कम-से-कम एतना त’ सिखिहे पड़त’।”
कलीमक गप ओकरा मोनमे खप्पा जकां बैसि गेल रहैक। ओकरे कहने स्कूल जाय लागल। कलीम लग काज-बट्टम सीख’ लागल। कलीमक वैह तालीमक कारणें आइ श्रीनगरमे ओकरा जगह भेटल छैक। श्रीनगर मे फौजी सभकें देखलाक बाद ओकरा मोनमे एकटा गप उपजै जे ओहो फौजमे भर्ती भ’ सकैत छल। ओकरो देह दशा तं फौजिए सन छैक। मुदा, किछुए दिन ठीकेदारक मातहत काज कयलाक बाद बुझा गेलै जे ओ फौजी नहि बनि सकैए।
तखने ओ एकबेर मूड़ी हिला क’ साकांक्ष भेल। की सोच’ लागल? बर्थसं नीचां आयल। दीपक दुनू प्राणी घुसकि क’ बैस’ कहलकै। मुदा, ओ लोअर बर्थक कोन पर बैसि गेल।
दीपकक पत्नी अपन जिज्ञासा रोकि नहि सकलीह, “कत’ जायब?”
“ई टेन त’ पटने तक जेतै। तकर बाद अररिया।” युवक बाजल।
“घर ओत्तहि अछि?”
“नहि, अररिया टीसन सं पांच किलोमीटर पड़ै छै।”
“तखन त’ मैथिले छी। की नाम अछि?” दीपक पुछने रहै।
“फेकन राउत।”
“कत’ स’ अबै छी?”
फेकनकें प्रश्नक फुलझरी नीक नहि लगलैक। ओ बाजल, “खराप नञि मानबै त’ एगो बात बोलै छी। अपने दुनू कका-काकी नाहित छियै। तखन हमरा ‘अहां, अहां’ बोलै छी, से नीक नञि लगै हय। हम श्रीनगर स’ अबै छी आ अररिया जायब। ओत्तै एगो ठीकेदार के अन्दरमे सिलाइ के काज करै छी। माने दर्जी के।” कने थम्हैत बाजल, “हमरा फेकना कहि सकै छी। बाबूओ सेहे कहै हय। ठीकेदारो। आ कलीम का कहै हय- फेकू।” फेकन हंस’ लागल। सहयात्री सभ ओकरा दिस तकलक।
“वाह!” दीपक बाजल।
“कलीम का? माने?” दीपकक पत्नी पुछलनि।
“कका छै। हमरे गाम के। ओकरे कारण हम मनुक्ख बनल छियै।” फेकन कलीमक संग अपन सम्बन्धक खिस्सा-पेहानी कहि देने रहय।
तखने चाह बिकाय अयलैक। फेकन चाह कीनलक। दीपक दिस बढ़ौलक। दीपक नहि लेलक, “हम दूध बला चाह नञि पीबै छी।”
मुदा दीपकक पत्नी ओ चाह लेलनि। फेकन दोसर कप लेलक। फेकन पुछलक, “अहां सब कत’ जेबै?”
दीपक उतारा देलक, “पटना।”
ओ चाहक दाम देब’ लागल तं फेकन मना कयलकै, “नञि, औडर हम देलियै, त’ पाइयो हमहीं देबै। एकबेर बुतरुओ के आग्रह मानियौ।”
पत्नी दीपकक हाथकें स्पर्श क’ संकेत कयलनि जे फेकनक आग्रहकें मानल जयबाक चाही।
“तखन पटना तक जौरे चलबै।”
“हं, श्रीनगरमे कोनो टेरलिंग हाउस मे काज करै छह।” दीपक पुछलक।
“नञि, हं। ओकरो से मानि सकै छी। हम फौजी सब लेल उरदी सिबै छियै । आब ई काज ठीकेदारी पर चलै छै। हम सब सिबै छियै आ ठीकेदार सप्लाइ करै छै। मुदा, रहै छियै बैरेक के सटले।”
“तखन तं मोन डेराएले रहैत हैत’?” दीपक पुछलक।
“नञि, सुरक्षित छै। हमरा सब के जत’ राखने छै, तत’ स’ बाहर जाइ के औडर बहुत कम भेटै छै। महीना मे एकाध बेर बाहर गेलौं, त’ राशन जकां गुटका-तुटका ल’ लेलौं। फेर बन्द। ठीकेदार खाइ आ रह’ के सुविधा भीतरे केने छै।” फेकन बाजल, “ओत्ते दिन पर बाहर निकलै छियै, त’ बड़ नीक लगै छै।”
“ओत’ त’ बरोबरि आतंकी सभ सं सेनाक मोकाबिला सभ सुनैत रहै छियै। आइ ई तं काल्हि ओ।” दीपकक पत्नी बजलीह।
“से सब त’ सोहाग-भाग छै। बुझियौ जे किरकेट के मैच चलै छै।” फेकन बाजल, “कखन केकर विकेट खसि पड़तै, से केओ ने जनै छै। तैयो अपना सब के सेनाक जवान छाती चौड़ा केने मोकाबिला लेल डंटल रहै छै।”
दीपक गपक क्रम बदललक, “कते दिन पर गाम जाइ छहक?”
“ओना छह मास पर पनरह दिन के छुट्टी दै छै। मुदा, अइ बेर तीने मास पर जा रहल छियै।”
“से किए?”
“बाते किछ तेहन छै।”
“की? सभ ठीक ने?” दीपकक मुंहसं बहरा गेलै।
“हं, ठीके कहक चाही। नहियो त’ ठीक भ’ जेतै।” बजैत फेकन मुस्किआयल।
दीपकक पत्नी पुछलनि, “हम तोरा देखलियह जे माय संग बथुआ सागक गप करैत प्रसन्न छलह। आ क्षणेमे गंभीर भ’ गेलह। कोनो विशेष बात?”
“कहलौं ने जे नञियो आ हंओ।” फेकन बाजल, “बड़ी टा बात छै। उपाय भेटिते ने छै।”
दीपक दुनू प्राणी प्रश्नदृष्टिएं फेकन दिस तकलक। फेकन बजैत रहल, “हमरा पत्नी के रहि-रहि क’ सनकी चढ़ै छै।”
“माने?”
“पढ़ल-लिखल त’ नहिए सन छै, मुदा गप-सप पढ़लाहा सन करै छै। तकरे हमर माय कहै छै- सनकी।”
“आ तों की कहै छहक? तोहूं त’ सनकिए कहलहक।”
“हं, ऊ जेहन-जेहन गप करै छै, तेकरा आइ-काल्हि के भाखा मे सनकले कहै छै।”
“माने?” दीपक पुछलक।
“एगो बात ओकरा मोन मे किछ-किछ दिन पर हौंड़’ लगै छै, त’ कतेको दिन धरि गुम्मी लाधि लै छै। खाली सब स’ प्रश्ने पुछ’ लगै छै। माय-बाबू ओकर प्रश्न सुनै ने चाहै छै।”
“से ओ पूछै की छै?” दीपकक पत्नी पुछलनि।
“तकर एकटा खिस्सा छै।”
दीपक दुनू प्राणी फेकन दिस तकलक। सहयात्री बंगाली परिवार सेहो।”
“हमर पत्नी कुमारिए रहै, त’ ओकर जेठकी बहिन के किछ गोटे उठा क’ ल’ गेलै। आ तकर बाद…”
फेकन चुप भ’ गेल। लगलै जेना ओकर मोन हदमदा गेल होइक। सभ साकांक्ष भ’ गेल। कोठरीमे बड़ीटा प्रश्न चेन्ह ठाढ़ भ’ गेलै।
किछुए क्षणक बाद फेकन बाजल, “हमर जेठकी सारि संग खराप काज क’ क’ मारि देलकै। सौंसे देह पर पेट्रोल ढ़ारि देने रहै। लहास एलै। गरीब लोक लेल थाना-पुलिस नञि ने होइ छै। हाञि-हाञि गौंआ सब लहास जरबा देलकै। मुदा, तकर बाद कहांदन टी भी पर समाचार एलै, त’ सब बुझलकै। थाना-पुलिस घर पर आबि पुछपाछ केलकै। हमर सासु-ससुर बौक भ’ गेल रहै। ककर नाम लितै? ककरा विरोध मे कल्ला अलगौइतै? टी भी बला सभ फुट्टे ओकरा सब के मुंह मे माइक ठुसि दै। मुदा दुनू परानी किछ ने बजलै। बजै खाली दुनूक आंखि के लोर। सब पाटी के नेता सब हुजुमक संग एलै। हमरा सासु-ससुरके भोल-भरोस देलकै जे तोरा न्याय हमहीं दिएबौ। मुदा…।”
वातावरण शान्त भ’ गेलै। सहयात्री सभ सेहो सकदम। डिब्बाक खिड़कीसं खाली गाम आ खेत-पथार नचैत देखाइक।
कनेकाल बाद मोन सोंठ भेलै तं फेकन बाजल, “हमर पत्नी हमरा सं एही दुआरे बियाह लेल तैयार भेलै जे ओकरा झुट्ठे कोइ कहने रहै जे लड़िका फौजी छै। जखन हम सांच बात कहलियै, त’ ओकर मोन झूस भ’ गेल रहै।
दोसर दिन ओकर मन स्वाभाविक लगलै हमरा। ऊ हमरा स’ एकटा प्रश्न पुछलकै। हम जवाब नञि द’ सकलियै। अखनो पुछैत रहै छै। पति-पत्नीक आपसी गपो करै काल कहियो क’ गंभीर भ’ जाइ छै आ फेर हमरा पूछि दै छै। मुदा, तकर जवाब हमरा बुते पार नञि लगलैए।
“केहन प्रश्न?” दीपकक पत्नी बाजलि।
“बहिन बला घटना के आगू बढ़बैत कहलकै जे जखन हमर सासु-ससुर किछ नञि बजलै, त’ हमर पत्नी कें सब पाटी के नेता सब कहलकै- चिन्ता किए करै छें। तोरा बहिन के न्याय भेटतौ। हमर पाटी तोरा बहिन के न्याय दिऔतौ। भरोस राख। ई सुनैत-सुनैत जखन हमर पत्नी के कान पाकि गेलै त’ एकटा नेता के कहलकै- जाउ हमरा दूरा पर स’। न्याय के भरोस दिआब’ स’ नीक त’ एहन काज करियौ जे ककरो न्याय के खगते ने होइ। ने अन्याय हेतै, ने न्याय के खगता हेतै। ने ड’र हेतै, ने चिन्ता हेतै। नेतबा किछ ने बजलै। बहुते लोक रहै ने। गामक लोक कहलकै जे छौंड़ी सनकि गेलैए। पत्नी हमरा पुछलक- नेतबा के जे बात हम कहलियै से भ’ नञि सकै छै?”
फेर वातावरण मौन। चुप्पी।
फेकन बाजल, “हम जवाब नञि द’ सकलियैए। हमहूं जवाब ताक’ मे लागल छियै। एम्हर एहन-एहन प्रश्न ओकरा मोन के किनसाइत हौंड़ि रहल छै। …माय-बाबू फोन पर कहलकै जे कनिया के सनकी बढ़ि गेलैए।”
प्रदीप बिहारी
मैथिली कथा मे जे किछु कथाकार सब छथि ताहि मे प्रदीप बिहारी विश्वस्त नाम छथि । प्रदीप बिहारी छथि त’ भरोस अछि जे कथा साहित्य मकमकायत नहि । ‘औतीह कमला जयतीह कमला’, ‘मकड़ी, ‘सरोकार’, ‘पोखरि मे दहाइत काठ’ कथा संग्रह, ‘खण्ड खण्ड जिनगी’ लघुकथा संग्रह , ‘गुमकी आ बिहाड़ि’, ‘विसूवियस’, ‘शेष’, ‘जड़ि’ उपन्यास प्रकाशित आ कोखि एखन (प्रेस मे) छनि । एकर अतिरिक्त नेपाली सँ मैथिली आ नेपाली सँ हिंदीक कथा-कविताक लगभग छह टा अनुदित पोथी प्रकाशित छनि । पत्र-साहित्य मे ‘स्वस्तिश्री प्रदीप बिहारी’ (जीवकान्तक पत्र प्रदीप बिहारीक नाम), सम्पादित पोथी मे ‘भरि राति भोर’ (कथागोष्ठी मे पठित कथा सभक संग्रह) आ ‘जेना कोनो गाम होइत अछि’ (जीवकान्तक पाँचो उपन्यास)क अतिरिक्त संपादित पत्र-पत्रिका ‘हिलकोर’, ‘मिथिला सौरभ’ आ ‘अंतरंग’ (भारतीय भाषाक अनुवाद पत्रिका) प्रकाशित छनि । सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार (युवा महोत्सव 1993 मे नाटक जट-जटिन मे अभिनय हेतु बिहार सरकार द्वारा), जगदीशचन्द्र माथुर सम्मान, महेश्वरी सिंह ‘महेश’ ग्रंथ पुरस्कार, दिनकर जनपदीय सम्मानक अतिरिक्त वर्ष 2007 मे कथा-संग्रह ‘सरोकार’क हेतु ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ देल गेल रहनि । कथाकार प्रदीप बिहारी सँ हुनक मोबाइल नम्बर +91-9431211543 वा ईमेल biharipradip63@gmail.com पर सम्पर्क कयल जा सकैत छनि ।
कथा: साभार प्रदीप बिहारीक फेसबुक वाल सँ