पछिला लगभग पाँच बरखक सक्रीय सामाजिक आ साहित्यिक जीवन मे सब सँ बेसी जे सहयोग केलक ओ अछि फेसबुक। फेसबुके के दुआरे हमरा कैकटा प्रिय मित्र भेटलाह आ एहि मित्र सबहक सहयोग सँ शुरू भेल साहित्यिक चौपड़िक यात्रा।
नवल श्री ‘पंकज’ आ बालमुकुंद पाठक सँ भेंटघाँट आ परिचित भ’ मित्रता भेलाक बाद हमरालोकनि विचार भेल जे पटना मे जे आइ-काल्हि हमरा सबहक तूर के युवा लेखक सब सक्रीय छथि तिनका सब सँ परिचय-पात आ भेँट-घाँट कोना हुए आ से नियमित रूप सँ। ताहि हेतु नियार-भास शुरू भेल। लगभग तीन मास तक हम सब विचारिते रहलहुँ।
मुदा से एक दिन हमरा तीनू के खूब उजाहि उठल। सहमति बनल जे आइ राति सब गोटे संगे रहि एहि मामिला के फाइनल कइये देबैक। ओहि राति त’ नहि मुदा परात भेने समयक तय-तमन्ना भेल आ तकरा बाद हमरालोकनि पंकज भायक मैनपुरा स्थित आवास पर साँझखन पहुँचि गेलहुँ।
करीब 10 बजे सँ भोजन बनब प्रारम्भ भेल आ संगहि आरम्भ भेल एकटा नियमित मासिक बैसार के नियार-भास। खने किछु नाम आ नियम बनय खने किछु। एहि सब घमर्थन मे भोजन बनल आ सब गोटे भोजन क’ बैसि गेलहुँ कागत-कलम ल’। हमरा कने सवेरे-सकाल सुतबाक हिस्सक अछि। कतेको बेर चाह पीलाक बादो जखन निन्न नै सम्हरल त’ दुनु मित्र केँ निहोरा करैत हम सुतबाक आज्ञा मंगलहुँ। दुनु मे सँ कियो तैयार नहि भेलाह। आब हम फसलहुँ भारी फेरा मे। मोन मे हुए जे कोन सुकर्म केने रहि जे भगवान एहेन फेरा मे फँसेलाह। अंतोगत्वा नहिए जागि सकलहुँ आ रकन्ना क’ सूति रहलहुँ।
एम्हर ई दुनु भरि राति एहि मामला पर नियार-भास करैत रहलाह। भोर मे लगभग साढ़े पाँच बजे पंकज जी चाह पीबा लेल उठबैत कहलाह जे नामक नियार भ’ गेल। ‘से की’- हम पुछलियनि। बालमुकुंद कहलाह- ‘साहित्यिक चौपाड़ि’। हम औंघायले रही तैं कहलियनि जे बहुत नीक। बाद मे भक्क खुजलाक बाद पुछलियनि जे ई सब कोना-की भेल राति मे आ ई नाम कोना फुरायल? ‘असल मे चौपाड़िक माने होइत छैक सत्संगक अड्डा’ – बाल भाइ टिपलनि। ‘अपना सब साहित्यक सत्संग करबै यौ’, हम पुछलियनि। एहिये सब हँसी-ठठ्ठाक संग फाइनल भेल नाम। नियमक मादे हमरालोकनि नियारलहुँ जे अनेरेक औपचारिकता आ नियम-कानून सँ एकरा फराक राखल जाय। बस कानून मे कानून रहल जे एहि मे सिर्फ मैथिलीक रचना चाहे मौलिक होइक वा अनुवाद, कविता होइक वा कथा, आलोचना होइक वा संस्मरण सब विधाक रचना पढ़ल जायत। हम सब गोटे सहमत छलहुँ एहि सँ। जगह फाइनल भेल गाँधी मैदान आ तारीख 8 अगस्त 2015।
पटनाक सब नव आ पुरान रचनाकार सबकेँँ यथायोग्य-यथासंभव खबरि कयल गेलनि। सात गोटे आयल रहथि पहिल बैसार मे। उपस्थिति त’ सहजे कम छलैक मुदा हुलास बड्ड भेल हमरा तीनू केँ। एकटा स्वप्न जीवंत रूप लेने छल। शनैः-शनैः एहि गोष्ठीक यात्रा चलैत रहल आ लोक सबहक अबरजात लागल रहल। शुरू मे हमरा सब केँ एहि बातक सब सँ बेसी चिंता हूए जे कोना सब वरिष्ठ आ नव रचनाकार सब अयताह। हम सब विचार करी जे जँ सब वरिष्ठ रचनाकार सब औताह त’ कतेक मार्गदर्शन भेटत हमरा सब सन नवतुरिया केँ। कतेक नीक सँ दू टा अलग-अलग जेनरेशन केँ एक ठाम बिना कोनो खर्च-बर्च केँ बैसा साहित्यक स्कूलिंग कयल जा सकैछ।
से तीन-चारिटा गोष्ठीक बाद अग्रज सब आबय लगलाह आ हम सब खूब हरखित होइत रहलहुँ। पछिला एक बर्ख मे तेरह टा आयोजन भेल साहित्यिक चौपाड़िक। आब एक बर्ख के बाद जखन पाँछा घुरि तकैत छी त’ एकटा नियमित लोकक पतिहानि भेटैत अछि जाहि मे सब कियो सदैव सहयोगक मुद्रा मे पीठ पर ठाढ़ भेटैत छथि। हमरा जनैत एहि अनौपचारिक गोष्ठीक सब सँ पैघ सफलता अछि किछु युवा लेखक केँ मैथिली मे अप्पन कलम चलेनाय आ अप्पन भाषाक प्रति भेल झुकाव। एकटा आर प्रसन्न होयबाक गप्प अछि जे एहि गोष्टिये जकाँ दरभंगा आ दिल्ली मे सेहो एहिये नाम सँ एहने नियमित बैसार शुरू होयब।
मैथिलीक समकालीन सन्दर्भ मे जे हमरा सब केँ अप्पन अग्रजक स्नेह भेटनाय बंद भ’ गेल छल पछिला किछु बरख सँ आ तैँ एकटा ऑटोमैटिक कम्युनिकेशन गैप भ’ गेल छल, से आब भरि रहल अछि। ओनाहुयो अग्रज पीढ़ीक अनुभव आ नवतुरियाक ऊर्जा जँ एक ठाम होइक त’ निश्चित रूप सँ आबय बला समय मे मैथिली मे कतेको सक्कत आ ससक्त लेखकक आगमन होयत आ ओ लोकनि मैथिलीक उज्जवल साहित्यिक भविष्य मे सहायक होइत जयताह। मैथिलीक एहि उज्जवल आ ऊर्जस्वित भविष्य-निर्माण मे जँ ‘साहित्यिक चौपाड़ि’ एक्कहु टा ख’ढ़ लगा सकल त’ हम सब अपना केँ सफल मानब। एखनधरि जीवन मे विधाता कहियो असफल नहि केलनि त’ आशा करैत जे एहियो मे सफल होयब।
आ से हेब्बे करब !
(ई आलेख ‘साहित्यिक चौपाड़िक’ पहिल वार्षिक पत्रिकाक संपादकीय अछि)