कुलानन्द मिश्रक कविताक बाट चलब जीवनक सोझ साक्षात्कार थिक। हिनक कविता मे जीवन अपन सम्पूर्ण जटिलता आ ओझरा, सरलता-सरसता-ममता आ राग-विराग ओ संगति-विसंगतिक संग अभिव्यक्त भेल अछि। मिथिलाक प्रति कविक संपृक्ति रोमांटिक वा तात्कालिक नहि, आत्मीय ओ सहज अछि। आ एहि अर्थमे कुलानन्द मिश्र अपन माटिक एकान्त कवि छथि-अपन कथ्य, भंगिमा ओ भाषा-सम्वेदनाक संग। यात्री ओ राजकमल चौधरीक बाद मैथिली कविताक एकटा इमानदार नाम। ई तीनू कविता हुनकर तीनू कविता संग्रह ‘ताबत एतबे’, ‘आब आगाँ सुनू’ आ ‘ओना कहबाक लेल बहुत किछु छल हमरा लग’ सँ लेल गेल अछि। कुला बाबू आ सुकान्त सोमक एकटा सहयोगी संग्रह ‘भोरक प्रतीक्षा मे’ सेहो आयल रहनि।
‘स्मृतिक छाहरि मे गामक धाह’ कविता ‘ताबत एतबे’ आ ‘उत्तरक प्रतीक्षामे’ कविता ‘आब आगाँ सुनू’ संग्रह मे संग्रहित अछि। ‘ओना कहबाक लेल बहुत किछु छल हमरा लग’ कविता बीस टुकड़ी( वा खण्ड) मे लिखल गेल कविता अछि जकर पहिल पाँच टुकड़ी सितम्बर 1972 आ शेष बीस टुकड़ी अगस्त 1980 मे लिखल गेल छल, जे कालांतर मे एहिए नाम सँ संग्रहक रूप मे संग्रहित भेल। प्रस्तुत कविता ओहिए मे सँ एक टुकड़ी अछि।
स्मृतिक छाहरि मे गामक धाह
गाम सँ चलैत काल
माइक सिनेह आ बापक आशीर्वाद
किछुए दूर धरि पाछु लागल आयल
ठुट्ठा पीपर तरक ग्राम देवता
सकुशल यात्राक देलनि पासपोर्ट
मुदा अहाँक मौन निस्वास
कतोक प्रान्तन्प्रांतर केँ धंगैत
एहि महानगरक अकच्छ कर’ बला गहमा-गहमियो मे
जमल प्रश्न जकाँ आगाँ ठाढ़ अछि
अहाँ जे हमरा साँसक भ’ गेलि छी मलिकाइन
दूर वा लग रहितहुँ
अपन छायामे रोमांचित
सदिखन सहगामिनी भेल छी
आँगनक तुलसीचौरा केँ दैत साँझ
अहाँक मनुसायल चित्र करैत अछि ट्रांसमिट
बाड़ीक काँच अनारक खटरस स्वाद
हमरा दाँतकेँ एतहु क’ दैछ कोत
आ भनसाघरक चुबैत चार सँ टपकैत पानि
हमरा दुमहलोक फाँट सँ झड़ि
हमरा ओछाओन मे एत्तहु क’ दैछ गिल
चर्चा बहुतो बातक भ’ सकैछ
गन्ध वा दुर्गन्धि पुरनुके प्रकृति धयने रहत
मुदा फूलक स्वांग रचने कागदक फूल
प्रायः किछु समय लगतैक
जे सभकेँ समाने भ’ जाइ स्वीकार
प्रयास थोड़ नहि कयल अछि
जे सिनेहक एहि मोट गाथा मे
किछु अनुच्छेद हम दुहु सम्मिलिते जोड़ि दी
आ सम्मिलिते लिखि दी उपसंहार
कोइलिक तान सँ झौहरि
आ मज्जरक गन्ध सँ उदासी
जीवनक ऊसर धरती पर
अनन्त पसरल झौआक गाछ
रुसल बसन्त मानियो जाय
गेल बसन्त कदाचित आबियो जाय
मुदा पड़ायल बसन्त
खोंचाड़ल बसन्त
कतेक दिन लागल रहब अनेरे एना
बकाण्ड प्रत्याशा मे
समय बड्ड थोड़ छैक
ई त’ एकतरफे सभ केँ बुझले छैक।
उत्तरक प्रतीक्षामे
निमूह सभक हत्याक नव ओरिआओनक संग
एकटा नव कथाक आरम्भ होइछ
नव भंगिमा संग कहल जाइत
धमकी छाप शौर्यक कथा
ई कथा —
कोनो फोर्ड किंवा कोनो बिड़लाक आँखिक चमक
कोनो जॉन किंवा रामधारीक आँखिक अन्हार सँ
शुरू होइछ
बजार मे पट्टेदार सभ
एकटा नव खाता खोलैत अछि
दुनियाक भूगोलक किताब मे
थोड़ेक संशोधन होइत छैक
घर मे कोनहुना सुखसँ जीबैत बहुमत
अल्पमतक कौशलसँ
सड़क पर आबि ढहनाय लगैछ
कतोक मड़इ धराशायी होइत छैक
आ एकटा कोनो अटारी
गगनचुम्बी बनि ठाढ़ि होइछ
उतरैत राति मे प्रातिक स्वर
अपनहि थर-थराय लगैछ
स्वप्नक संग जीबैत लोककेँ
स्वप्न-बाधा सँ खौंझ होइछ
क्षीर-सागर मथैत-मथैत
आ पुष्पक विमान पर सवारी करैत
लोकसभक प्रज्ञा सहजहिं
एतेक स्फीत आ गगनचारी भ’ गेलैए
जे धरतीक खिस्सा आब
कोनो दुखान्त नाटक जकाँ
त्रासद बुझाइत छैक
ओना धरतीक खिस्सा सरिपहुँ
माटिक आखर मे अंकित
लौह-घटित त्रासदी होइछ
तखन लोक केँ ई आब बुझाइत छैक
जे दुखान्त नाटकक सभ अभिनेता
समय अयला पर कोनो पार्ट
खूब दक्षता संग खेला सकैछ
ओना कहबाक लेल बहुत किछु छल हमरा लग
जेना
भादबक अन्हरिया राति मे हथोड़िया दैत कम्पित गात
अन्हार गुज्ज कोठरी मे काठी खड़रैत मृदुल गात
शाश्वत आलस्य सँ टूटैत राजसी गात
धन पिटनिहार सभक टभकैत राक्षसी गात
करतल-सुख आस्वादैत राग-रंजित मुख-मुद्रा
दुनू कान्ह भार उघैत श्रम-रंजीत मुख-मुद्रा
दुनू हाथेँ भीख बँटैत दर्प-रंजीत मुख-मुद्रा
दुनू हाथेँ भीख मँगैत ग्लानि-रंजीत मुख-मुद्रा
बिसरल निर्मोही दिस अपलक सजल दृष्टि
चिर-रोगी प्रियतमक पाटी पड़ल दृष्टि
सहज हिंस्र भाव सँ भोग्य दिस गड़ल दृष्टि
सहज दीन भाव सँ पैर मे पड़ल दृष्टि
उपटैत धारक हृत-प्रकम्पित अट्टहास
भासल जाइत नावक सुपरिचित करुण रास
ओना कहबा लेल बहुत किछु छल हमरा लग