पतरातूक (हजारीबाग) विद्यापति पर्वक मंच पर आ जनवासा मे मधुपजी, मणिपद्मजीक संग किरणजी सँ भेल भेंट आ फेर किरणजीक गाम धर्मपुर(उजान) मे भेल विस्तृत गप्प-सप्प हमरा जीवनक एकटा पैघ उपलब्धि आ एहि संस्मरणक आधार थिक।
विद्रोह केँ अपना व्यक्तित्वक अविभाज्य अंग बनाक’ ताजिनगी कायम राखब एकटा असाधारण गप्प थिक। डॉ० काञ्चीनाथ झा ‘किरण’क नाम ताजिनगी धू-धू जरैत एकटा एहन हिमालयी व्यक्तित्वक पर्याय थिक,जे वर्तमान आ भविष्यक कतेको पीढीक प्रेरणा स्तम्भ बनल रहताह।तेँ हिनक परंपरा केँ अक्षुण्ण रखबाक बेगरता अछि।कथाकार,उपन्यासकार, कवि,नाटककार,स्पष्टवक्ता, संपादक,जनवादी साहित्यकार, मिथिला-मैथिलीक विरल योद्धा, एहि सभ पक्षक अद्भुत समन्वय भेटैछ, किरणजीक प्रभामय व्यक्तित्व मे।
मिथिला-मैथिली मे खरकट्टल पारंपरिक बीझ छोड़बैत,अदौकाल सँ मृत्यु धरि अनवरत संघर्षरत, किरणजी अन्यायक विरोध प्रत्येक डेग पर कयलनि।अपने अस्मिताक खोज मे फिकलो भेल,आजुक सम्पूर्ण पीढी,एहि किरण-पुञ्ज सँ प्रेरणा किऐक नहि ग्रहण करैछ?
जीवन आ साहित्य केँ एकाकार करयवला एहि महान चिन्तकक जीवन,मिथिला-मैथिली लेल होम भ’ गेल।’कथा-किरण’क एक-एकटा कथाक माध्यमे,मैथिली-कथा केँ एक नव मोड़ देनिहार कथाकार, ‘चन्द्रहण’क उपन्यासकार, ‘विजेता विद्यापति’क नाटककार,शत्-शत् निबंधक गद्यकार, ‘कतेक दिनक बाद’ काव्य-संकलनक गंभीर प्रगतिशील कवि, ‘पराशर’ महाकाव्यक प्रणेता किरणजी मैथिली साहित्यक एकटा गंभीर हस्ताक्षर छथि।तथ्य त’ ई थिक जे —
“एक ‘मधुरमणि’ लाख-लाख केर कथा बनल
व्यथा ‘किरण’ केर, ‘कथा-किरण’ केर कथा बनल
‘पराशर’ अमरत्व पाबि कृतकृत्य भेलाह
‘कतेक दिनक बाद’ सत्यवती केर कथा बनल
‘चारि खून क्यो खोजनिहार नहि’, ‘ककरो छोड़त काल?’
‘रत्नाकर जे धर्मक(?)’ तकरे कथा बनल
‘पराशर’ आ गिदड़ – बिलाड़िक एक संग कवि
‘मैथिल आँखि’ मिथिला केँ देलनि,कथा बनल।” — रमेश
हिनक काव्य मे गुणात्मक दृष्टिएँ जनवाद उभरि क’ आयल अछि।हिनक साहित्य सुच्चा जनवादक सृष्टि करैछ।यात्रीजीक समकालीन आ अग्रज वैचारिक गुरूवत् छलाह। किरणजी यात्रीजीक ‘ जकर भाग्य मे हैत,से अण्डैल पोठी खैत’ सँ असहमत होइत कहैत छथि — ‘जे करत उद्योग से अण्डैल पोठी खैत’। एहि अर्थ मे एतेक प्रगतिशील विचारधारावला लोक आ साहित्यकार कम छथि।मैथिलीक अनेक तथाकथित जनवादी लेखकक ठोरे पर सँ जनवाद तूबैत छनि। हृदय सँ जनवादी स्वर,किरणेजी बहार कयलनि,जे सिद्धांत एवं व्यवहार ,साहित्य एवं जीवन,दुनू केँ,जनवादी दृष्टिकोणे जीलनि।
किरणजी जाहि सामन्तमय वातावरण मे ,सामन्ती समाज, साहित्य एवं धर्मक विरुद्ध शंख फुकलनि,से अनुपमेय अछि। हिनक प्रगतिशील रचना केँ स्व० रमानाथ झा संकीर्णतावश छापब अस्वीकार क’ देलथिन। तेँ स्त्रोत्रियता आ जातिवादक ताजिनगी विरोध करैत रहि गेलाह,ई सुच्चा साम्यवादी।पी.एच.डी. डिग्री सेहो,संकीर्णताक कुंडली मारने बैसल साँपक विरुद्ध, एकटा विद्रोहेक उपलब्धि छल। अन्यथा, हिनका पी.एच.डी.क कोनो आवश्यकता अथवा व्यामोह नहि छलनि। पी.एच.डी. देबयवला विश्वविद्यालय स्वयं सम्मानित भेल।
एतेक धरि जे,जाहि पत्रिका ‘मिथिला मोद’क प्रतिष्ठाता ई स्वयं छलाह,तकरो सहयोगीगण,हिनक प्रगतिशीलताक विरोधी छलाह। एहन सन परिस्थिति मे ‘मोद’क दीपशिखा केँ प्रज्जवलित रखैत,अपन साहित्य,व्यक्तित्व आ मैथिलीक सेवाक व्रत राखब,बहुत दुष्कर छल,ताहि जमाना मे।
क्षमताक मोताबिक तैयो,हिनक साहित्यक ओतेक प्रस्फुटन नहि भ’ सकल जतेक हेबाक चाहैत छल,तेँ ताहि लेल तत्कालीन हिन्दी-मानसिकता, हिन्दी-साम्राज्यवाद, सामन्ती अवशेष, अंग्रेजी सरकार,अंधविश्वासक अनवरत विरोध,मिथिला-मैथिलीक पछड़ल दशाक उन्नयन मे लागल हिनक आन्दोलनात्मक उर्ज्वस्विता ,गाम-गाम मे विद्यापति-पर्वक आयोजनक माध्यमे चेतना जगयबाक भागीरथ प्रयास एवं राग-दरबारी गबैत मैथिलीक प्रगतिशीलता-विरोधी तथाकथित साहित्यिक मठाधीशगणक गिरगिटी चरित्र आ प्रकाशनक समस्या, मुख्य रूपे जिम्मेदार छल।
डॉ० जयकान्त मिश्र सरसकवि ईशनाथ आ सुमनक अपेक्षा डॉ० किरणक कवि केँ गौण मानलनि कारण तहिया हिनकर बहुसंख्य कविता अप्रकाशित छल।तत्कालीन काव्यालोचकगण द्वारा तेँ सम्यक् मूल्यांकन नहि भ’ सकल।आब तकर प्रकाशनोपरान्त हिनकर कवि केँ ,कतोओक स्थापित कविक हेतु चुनौती देब असंभव अछि। सुमनजीक संस्कृताह तत्सम-बहुल शब्दक काव्य-संसार मे,मैथिलीक ‘इन्डीजेनस शब्द’ केँ ताकय पड़त। मुदा किरणजीक काव्य मे ,मैथिली रहिते टा अछि।ओना संख्यात्मक आ संकीर्ण-दृष्टिक बदला, जँ गुणात्मक आ प्रगतिशील दृष्टिकोणक सार्वभौमिकता केँ स्वीकार कयल जाय,जे आजुक समयक आवाज आ प्रतिबद्धता अछि, तँ किरणजी सुमनजी किंवा ईशनाथ सँ कनेको झूस नहि ,बल्कि किरणजीक साहित्यक मूल्यांकन फेर सँ करय पड़त। आ तेँ मैथिलीक काव्य,कथा,निबंध आ महाकाव्यक विकासयात्राक पूनर्मूल्यांकनक बेगरता बुझाइछ।
किरणजीक समकालीन अनेक लेखक कालातीत भेल छथि। ओना अपना-अपना स्थान पर तैयो पूज्य से दीगर बात।ई लोकनि इतिहासक वस्तु बनल छथि। मुदा किरणजीक साहित्यकारक प्रतिबद्धता, आम-लोकक दुख-दर्दक प्रति छैक। तेँ भविष्य डॉ० किरणेक छनि।ओना डॉ० जयकान्त मिश्र पुन: इतिहास-लेखनक आवश्यकता केँ स्वयं स्वीकार कयने छलाह। तेँ कोनो- ने- कोनो पीढी ,किरणजीक सम्यक् मूल्यांकन अवश्य करत। ओना अशोकजीक ‘प्रतिमान’क आयोजन आ मोहन भारद्वाजक संपादन मे छपल ‘किरण’ ताहि दिशा मे उठाओल ठोस डेग थिक।किरणजीक एहि अवदान केँ स्वीकार करबा मे,ककरहु कोनो तारतम्य नहि हेतैक ,जे ओ मैथिली साहित्य-आन्दोलनक समाजवादी धारा केँ सम्पुष्ट कए,मैथिली साहित्य केँ जनवादक अत्याधुनिक पथ पर अग्रसारित कयलनि आ ओकरा रजनी-सजनीक आक्षेप सँ मुक्त करबा मे अपन अमूल्य योगदान देलनि।
परंपरागत भारतीय समाजक विकृति सभक घोर विरोधी,किरणजी सनातन धर्म, वर्ण-व्यवस्था, कर्मकाण्ड आदि पर सदा चोट करैत रहलाह। एतेक धरि जे मृत्युकाल मे तुलसीक पात आ गंगाजलक अपेक्षा,चारि बुन्न माँछक झोड़ पीब’ चाहैत छलाह,जाहि सँ मृत्युक क्षण किछु पैघ भ’ जाय।संघर्षक ई चरम सीमा थीक।प्रगतिवादक ई चरम सीमा थीक।संघर्ष आ प्रगतिवादक पर्याय कहल जयवाक चाही हिनका।जनउ रखबाक कोनो बाध्यता नहि, श्राद्ध-कर्मक कोनो इच्छा नहि। चार्वाक्य सँ कनियो कम नास्तिक नहि। ‘ऊँ मधु-मधु मधुवाता ऋतायते,मधुक्षरन्ति सिन्धवः’ सनक विशुद्ध वसन्त-वर्णनक श्राद्धकर्मक संग अतादात्म्यता,अप्रासांगिकता आ अनावश्यकताक,समीचीन तर्कवेत्ता,विधवा-विवाहक ओकालति कयनिहार आ व्यावहारिक रुपेँ सम्पादित करौनिहार,वैदिक-रीतिक परंपरागत विवाहक विरोधी किरणजी एकटा धह-धह जरैत काया केँ जीलनि। संघर्ष आ प्रगतिवादक, एकटा मीलक पाथर गारलनि। अतीतक भारतीय नारीक दुर्दशा, धर्म-पुराण- सतीत्व-मर्यादाक नाम पर नारीक बहुरंगी शोषणक ई विरोध-मूर्ति,मैथिलानी केँ घोघ उठयबाक आह्वान करैत छलाह। मात्र चार्वाक्य, महावीर आ बुद्ध केँ इमानदार दार्शनिक माननिहार किरणजी धर्मनिरपेक्षताक प्रतिमूर्ति छलाह।समाज, साहित्य आ जीवन पर सँ विकृत राजनीतिवादी धर्मक प्रभुत्वक संहार लेल कटिबद्ध किरणजी वस्तुतः धर्मनिरपेक्ष छलाह।
किरणजी मैथिलीमय एवं काव्यमय रहबाक कारणे, बहुत दिन धरि वैदगिरी नहि क’ सकलाह। काशी- प्रवास मे अनेक तीत-मीठ अनुभवक बीच,नवीन स्वरे ‘मोद’क प्रकाशनक जोगार कए,सर्वत्र पसरल हिन्दीक कुहेस केँ, ओ फाड़लनि। किरणक सिवा कुहेस केँ आन के फाड़ितय?
“धोन्हि फाड़वाक छलनि, ‘किरण’ बनि एलाह।
धोन्हि फाटि गेल तखन किरण चलि गेलाह।
लोभ- लाभ त्यागि ओ दधीचि बनि गेलाह।
हाड़ – हाड़ दान क’ मनीषी बनि गेलाह।
संघर्षक मूर्ति ओ ओही मे रमि गेलाह।
गिरगिटी चरित्र केँ क्षणे मे गमि गेलाह।
शोषण – अन्याय के विरुद्ध तनि गेलाह।
सुच्चा – समाजवादी किरण बनि गेलाह।
गाम – घर दलित – वर्ग बीच सनि गेलाह।
मूल्य आ यथार्थ केर बिम्ब जनि भेलाह।” — रमेश
मातृभाषाक प्रति किरणजीक प्रेम अतुलनीय छल।हिनक विचार मे अपना भाषा लेल जकरा प्रतिबद्धता आ दरेग नहि छैक,से ककरो आँखिक नोर कोना क’ पोछत? जन-भाषाक उपेक्षा आ जनवादी साहित्यक रचना,एके संग संभव नहि। तेँ हिन्दीक स्पष्ट विरोध,मैथिलीक अस्तित्व-रक्षा हेतु,ई आवश्यक मानैत छलाह। जाधरि एहि अलच्छी केँ बाढ़नि मारि मिथिला सँ नहि निकालल जायत,मैथिली प्रतिष्ठिता नहि होयतीह,उपेक्षिता रहतीह।हिन्दी आ उर्दूक आत्मा एक अछि,जकर साम्राज्यवादक समाप्ति, ई आवश्यक मानैत छलाह।
किरणजी स्वयं स्वतंत्रता सेनानी रहलाह। मुदा स्वराज-प्राप्तिक पश्चात अंग्रेजी,सामन्ती आ साम्राज्यवादी मनोवृत्तिक शिकंजा मे जकड़ल तथाकथित भारतीय आ मैथिली प्रबुद्ध-वर्ग,खासक’ नेतृत्व-वर्ग, मिथिले मे मैथिलीक उपेक्षा करए लागल। नेता लोकनि अपना चिनबारि पर हिन्दी -उर्दू दरड़बाक लज्जाहीन प्रयास करैत छलाह। किरणजी एहि प्रवृतिक सफल विरोध कयलनि,जकर परिणाम आइ किछु-किछु देखए मे अबैछ। आब चुनावक प्रचार मैथिलीयो मे थोड़ेक होइत अछि।
भाषाधार प्रान्तक निर्माण-काल मे मिथिला राज्यक निर्माणक हिनक मांग केँ सोसलिस्ट पार्टी नहि गछलक, तेँ ई ओहि सँ असम्पृक्त भ’ गेलाह। हिनक प्रसिद्ध एवं सुस्पष्ट विचार अछि जे,जाधरि मिथिलाक नाम,भारतक मानचित्र पर नहि पड़तैक,ताधरि मैथिली अमरलत्ती जकाँ निराधार लतरैत रहतीह।जाहि अंचलक भाषा ,एकोटा विधायक नहि अपनौतैक,से अंचल ओहि राज्य मे नहि रहि सकैछ। मिथिला-राज्यक चर्च एखनहुँ बहुत मैथिल केँ नहि अरघैत छनि। मिथिला-प्रान्तक निर्माण हेतु 1952 ई. मे दरभंगा टाउन-हॉल मे पहिल सभाक आयोजन किरणजी, डॉ० लक्ष्मण झा आ सुमनजी कएने छलाह। ई चर्च कहियो बन्द नहि भ’ सकैछ। जाधरि मैथिलीक अस्तित्वक चिन्ता रहतैक,मिथिला-राज्यक मांग उमड़ि-उमड़ि क’ अबिते रहतैक। मैथिली केँ दबाक’ ,बहुतो दिन धरि नहि राखल जा सकैत छै। एकरा अपन स्वरुप छैक,साहित्य छैक,भूभाग छैक।लोक,चेतना,संघर्ष आ मान्यताक हेतु तय कयल गेल,बड़ी दूरक यात्रा छैक। तेँ एकर नक्शा एकदिन बनिक’ रहतैक।एकरा भारतीय संविधान मे जगह भेटि क’ रहतैक। जनजीवन केँ एक सूत्र मे बन्हवाक सामर्थ्य भाषा मे होइ छै,धर्म मे नहि। मैथिली,मिथिलाक सिमेन्टिंग फोर्स थीक,हिन्दी, उर्दू किंवा सनातन धर्म नहि। मैथिलीक बिना मिथिलाक विकासक भवन ठाढ़ कयनाइ बुद्धिजीवीक भ्रमजाल आ सरकारी ठकपनी थीक। एहेन ठोस आ क्रान्तिकारी विचारक किरणजी केँ मैथिलीक इमानदार आ नि:स्वार्थ सेनापति हेवाक गौरव प्राप्त छनि।
मिथिला-मैथिलीक समक्ष अनगनित समस्या आ अपन अनवरत संघर्ष- दुनूक अस्तित्व एकहि संग स्वीकार करैत,किरणजी मैथिली पत्रकारिताक अद्यावधिक दुःस्थिति सँ क्षुब्ध छलाह। मैथिली-अकादमीक पथभ्रष्टता सँ क्षुब्ध छलाह।मैथिलीक वर्तमान केँ समस्याच्छादित मानितो,मैथिलीक भविष्य केँ ई उज्ज्वल मानैत छलाह। मैथिली पत्र-पत्रिकाक प्रति हिनक ममत्व ‘माटिपानि’क प्रवेशांक मे प्रकाशित हिनक पत्र सँ स्पष्ट अछि- “ओना त’ हिन्दी-पत्रक पूँजीक संग लड़ब कठिन अछि मुदा संघर्ष तँ करबाक अछिए।हिन्दी ओ हमर सभक पत्रक परिस्थितिक भिन्नताक ध्यान राखए पड़त। हिन्दी केँ साम्राज्यवादी क्षेत्र छैक – हमरा सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक। हिन्दी केँ कोनो संस्कृति नहि छैक,जकर रक्षा करब लक्ष्य राखत। हमरा लोकनि केँ अपन संस्कृति अछि। हिन्दी-पत्र केँ नफा लेल ग्राहक टा चाहिऐक। हमरा लोकनि केँ अँखिगर चरित्रवान नागरिकक निर्माण करबाक अछि,जे मैथिल संस्कृतिक निर्वाह करैत सय प्रतिशत मैथिल रहय,भारतीय रहय,मानव रहय। हम त’ पत्रक ग्राहक बनायब असल सहयोग मानैत छी, से एहि जर्जर शरीरे कतेक भ’ सकत,कोना कहू?” जमीनी आ तृणमूली मैथिलपन (मिथिलाक सभ जातिवर्ग आ धर्मक लेल) केँ ओ ‘मैथिल आँखि’ कहलनि जे मिथिला समाजक मूल्यांकन लेल, मैथिली रचना मे अनबाक लेल आ मैथिली आलोचना मे मूल्यांकन-प्रणाली एवं नव मानदंड बनेबाक लेल किरणजी स्थापित कयलनि। अशोक जी तकरे उपयोग मैथिली आलोचना मे (कथा मे नहि) ‘मैथिल आँखि’ कहिक’ क’ रहल छथि। शिवशंकर श्रीनिवास ,एहि निबंधक लेखक आ अन्य लेखक ताहि ‘मैथिल आँखि’क उपयोग अपन कथा-कविता मे आ समीक्षा-आलोचना मे क’ रहल छथि। से थिक मिथिलाक माटि-पानि केँ चिन्हबाक आँखि।
किरणजी लेखकक रूप मे मैथिलीक बहुत सेवा कयलनि।किन्तु अपना-आप केँ सेहो ओ लेखक सँ बेसी मैथिलीक सिपाही मानैत छलाह। कोनो दायित्व देवता-पितरक नाम पर लादि स्वयं निश्चिन्त भ’ जायब-बालु मे मुँह नुकाए बिहाड़ि सँ बँचबाक शुतुरमुर्गी प्रवृत्ति थीक- जकर किरणजी अदौकाल सँ विरोधी छलाह। तेँ समस्त जिनगीक नीक बेजायक उत्तरदायित्व अपना ऊपर स्वीकारि,धर्म,देवता आ भाग्यक महत्व केँ ओ नकारि देलनि,से उचिते। प्रत्येक बन्धन सँ मुक्त भए मिथिला-मैथिलीक हेतु संघर्षरत हेबाक हकार बिलहैत,ओ प्रवाह केँ बनौने राखए चाहैत छलाह। युवावर्ग केँ आगाँ अयबाक हिनक आह्वान अति ओजपूर्ण छल।
“माटिक महादेव बहुत पूजल गेलाह।आब मनुक्ख पूजल जाय।”— ई उक्ति मैथिली-मिथिलाक स्वनामधन्य सेनानी किरणेजीक भ’ सकैछ। मुसहरी मे जा क’ ठेहुनिया मारि कान पर हाथ राखि क’ किरणजी महराइ गबैत छलाह।तेहन आओर कियो नहि भेल। एहि दधीचिक मूल्यांकन बइमान साहित्य-संवर्ग की करत ?
साहित्य-संस्कृति आ समाजक इतिहास ओ वर्तमानक गम्भीर अध्ययन, जिनगीक विशद अनुभव, चौंचक विवेक-सम्मत ओ प्रगतिशील दृष्टि-बोध एवं फरिछायल वैचारिकता सँ जाहि कोटिक लेखक बनैत छैक, से छथि रमेश। मैथिली साहित्य मे पछिला सदीक आठम दशकक आमद एहि बहु-विधावादी लेखकक यू.एस.पी. छन्हि – हिनक प्रयोगधर्मिता। हिनक गजल होनि, कविता होनि वा कि कथा, कथ्य, शिल्प-शैली आ भाषा सभ स्तर पर ई नव-प्रयोग करबाक चुनौती आ जोखिम लैत रहलाह अछि। नवतूरक लेखन पर धुरझार समीक्षा लिखनिहार एहि विधाक ई विरल लेखक छथि। एखन धरि हिनक जमा पन्द्रह गोट मूल-पोथी प्रकाशित छनि, जाहि मे गजल संग्रह (नागफेनी), कविता संग्रह (संगोर, कोसी-घाटी सभ्यता, पाथर पर दूभि, काव्यद्वीपक ओहि पार, कविता-समय), गद्य-कविता संग्रह (समवेत स्वरक आगू), दीर्घ-कविता संग्रह (यथास्थितिक बादक लेल), कथा संग्रह (समाँग, समानान्तर, दखल, समकालीन नाटक, कथा-समय) आ समीक्षा संग्रह (प्रतिक्रिया, निकती) सभ अछि। हिनक सम्पादन-सहयोग मे सेहो विभिन्न विधाक पाँच गोट पोथी प्रकाशित अछि। हिनक दू गोट कविता संग्रहक हिन्दी-अनुवाद प्रकाशित भेल अछि। डॉ. इन्द्रकांत झा सम्मान (विद्यापति सेवा संस्थान, दरभंगा), तिरहुत साहित्य सम्मान (मिथिला सांस्कृतिक परिषद, हैदराबाद) आ मिथिला जनचेतना सम्मान (मिथिला लेखक संघ, दरभंगा) सँ सम्मानित लेखक रमेश सम्प्रति दरभंगा मे रहैत छथि। हिनका सँ +91-7352997069 पर सम्पर्क कयल जा सकैछ।
ई आलेख देसिल बयना, हैदराबादक पत्रिकाक अगस्त, 2020 अंक मे प्रकाशित अछि।