श्री भीमनाथ झा अपन संस्मरण-संग्रह मे धूमकेतुक मादे लिखने छथि जे गाम मे कोनो आप्त मित्र धूमकेतु केँ एक बेर कहलखिन जे अहाँ जे कविता लिखैत छी से हमरा बुझय मे नहि अबैत अछि…। एकर उत्तर दैत धूमकेतु बाजल रहथि जे संसार मे बहुत किछु छैक बुझबा जोग तकरा बुझु; कोनो की जरूरी छैक जे कविते बुझि ।
हालहि एकटा कवियात्रिक एकटा प्रेम-कविता पढ़बा हेतु भेटल । पढ़ला उत्तर बेर-बेर विचारैत रहलहुँ जे हम सब कविता मे आगाँ बढ़बाक बदला पाछाँ कियैक घुसकि रहल छी ? 2022क स्त्रीक प्रेम कियैक ऐंठार पर औन्हल घैल बनल अछि ? कियैक नै ओ तोड़ैत छथि पुरुख-पातक नाथ-गरदामी ? कियैक नै लिखय चाहैत छथि अपरूप अइपन ? कियैक ने बहरेबाक प्रयास करैत छथि एहि औन्ह सब सँ ? (हरे कृष्ण झाक कविता ‘लिखि त’ दितहुँ अहाँ सँ’ ई विम्ब सब लेल अछि स्त्रीक संदर्भ मे) । आश्चर्य सँ तखन भरि उठैत छी जखन देखैत छी जे की स्वंय स्त्री ओ सब नहि लिखि रहल छथि जे की हुनका लिखबाक चाही रहनि ।
सामान्यतः दू तरहक कविता लिखल जाइत रहल अछि । एकटा चमत्कारिक कविता आ दोसर मात्र कविता । दुर्भाग्यपूर्ण अछि जे अधिकांश लेखक (जानि क’ कवि नै लिखल अछि) एखन चमत्कारिक कविताक हेतु जीबि रहलाह अछि । आ हमरा तकर मूल कारण लगैत अछि जे लेखक मात्र लिखि रहल छथि । पढ़बाको जे समय भेटैत छनि त’ तकरा जियान नै क’ ओहियो समय मे किछु लिखिये (?) लैत छथि ।
स्त्री-विमर्शक हेतु मैथिली मे किछु कविता हमरा प्रिय अछि । जाहि मे सँ किछु कविताक नाम लिखि रहल छी । मोन हुए त’ पढ़ब जरूर । लिखि त’ दितहुँ अहाँ-हरे कृष्ण झा, ओ के छल-कुलानन्द मिश्र, सीता सँ प्रश्न-अजित आजाद, बभनगामाबाली भौजी..-कृष्णमोहन झा आ दीदारगंजक यक्षी-विद्यानन्द झा । आरओ बहुत रास होयत जकर की नाम स्मरण नहि अछि एखन ।
कविताक नाम पर जे मोन हो आ जेना मोन हो लिखि देब की ठीके एहि सदी मे कविता मानल जयबाक परिपाटी बनि गेल अछि वा बनबाक हेतु अग्रसर अछि ? एखनुक परिदृष्य मे जे आन्ही-उपटी लागल अछि मैथिली कविता मे से देखि जँ धूमकेतु जीवित होइतथि त’ जरूर कूही होइत रहितथि दिनानुदिन ।
आइ धूमकेतुक जन्मदिन छनि । रहितथि त’ हमरा लोकनि बहुत रास साहित्यिक प्रश्न सभक संग हुनकर जन्मदिनक केक कटितहुँ । आ ओ केक खाइते-खाइत हमरा सभक प्रश्नक उत्तर दितथि । आ फेर हम सब गोटे अलकलित हर्ख मे डूबि जइतहुँ ।