उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’क नाटक मे प्रयोग — डॉ. प्रकाश झा

 बैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’, राजकमल चौधरी, हरिमोहन झा, पं. गोविंद झा, चंद्रनाथ मिश्र ‘अमर’  आदि  – मैथिली साहित्य मे अलग – अलग विधा सभ मे लिखैत रहलाह अछि आ चर्चित सेहो भेलाह । जेना – ‘यात्री’ जतेक पैघ कवि भेलाह ओतबे सम्मान हुनका गद्य रचना मे सेहो भेटलनि । यैह गप्प हरिमोहन झा, राजकमल चौधरी आदि लेल सेहो कहि सकैत छियनि, मुदा उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ के बारे मे एहन कहनाइ कनि मुश्किल होयत । एहिमे कोनो संदेह नहि अछि जे नचिकेता जी बहुत रास आ नीक कविता सेहो लिखलन्हि अछि जे चर्चा मे सेहो रहलन्हि अछि । मुदा, एकटा नाटककारक रूप मे जे ख्याति नचिकेता जीक भेलन्हि अछि ओ हुकर सभ विधा पर भारी पड़ल छन्हि ।

                हमरा नचिकेता जीक लगभग सभ नाटक सँ अलग – अलग स्तर पर गुजरबाक अनुभव भेटल अछि । नायकक नाम जीवन, एक छल राजा, राम लीला, नाटकक लेल, प्रत्यावर्तन, जनक एवं अन्य एकांकी संग्रह प्रियम्वदा, नो एंट्री : मा प्रवेश, आदि । एहि सभ नाटक के हम नीक जेकाँ पढ़लहुँ आ मैलोरंग केँ रंगकर्मीक बीच एहि नाटक पर भेल चर्चा मे सेहो शामिल भेलहुँ अछि । ‘एक छल राजा’ लेल निर्देशक के रूप मे मंचन प्रक्रिया सँ सेहो गुजरलहुँ । नो एंट्री : मा प्रवेश आ  ‘प्रयोग’ एकांकीक श्री कुणाल जीक निर्देशन मे देखबाक सुअवर सेहो प्राप्त भेल अछि ।

                नाटक विभिन्न तरहक अनुभव सँ गुजरलाक बाद एकटा गप्प त’ निश्चिते कहल जा सकैत अछि, जे मैथिली नाट्य रचना मे नचिकेताजीक नाटक पूर्णरूपेण आन-आन नाट्य रचना सँ अलग–थलग देखा पड़ैत अछि । इहो सत्य अछि जे लगभग सभ नाटकक कथ्य या त’ पति-पत्नीक बीचक सम्बन्धक बारे मे, स्त्री- पुरुषक असहज सम्बन्धक बारे मे, व्यक्ति आ समाजक वा व्यक्ति आ व्यवस्थाक लड़ाई सँ सम्बन्धित अछि । मुदा, एहि सभ चिर-परिचित कथ्यक जे फोटो वा छाया चित्र नचिकेताक नाटक मे देखल जाइत अछि वो सर्व-साधारणक लीक सँ कनी हटि क’ अछि । रामलीला शैली मे लिखल नाटक के छोड़ि बाकी नाटकक बारे मे ई कहनाइ मुश्किल अछि जे ई सभ जीवनक यथार्थक एकटा तस्वीर होइतो ओकरा यथार्थवादी कहल जाय वा असंगत । ओ सभ जतबे ठोस अछि ओतबे अमूर्त सेहो । ओ सभ जतबे सोझ आ चिक्कन देखाइ पड़ैत अछि ओतबे गहींर आ मार्मिक सेहो अछि । कहबाक अभिप्राय ई जे नचिकेताक नाटक पहिने सँ निर्धारित आ बान्हल वा बन्हायल शिल्प आ व्याकरण मे फिट हेबाक विरोध मे लगातार संघर्ष करैत रहैत अछि । की, यैह कारण अछि जे वैचारिक स्तर पर एतेक ज्यादा चर्चित होमाक बादो नचिकेता जीक नाटकक मंचन बहुत कम भेलन्हि अछि आ भेबो केलन्हि त’ ओ कहियो मुख्य धाराक नाटक जेना लोकप्रिय नहि भेल । अपवादक रूप मे ‘एक छल राजा’ के छोड़ि देल जाय । हलाँकि ओकरा लोकप्रिय होयबाक दोसरो कारण सब छल । एहन नहि अछि जे हुनकर नाटक केँ चिर-परिचित निर्देशक नहि केलाह अछि ।  हिनक नाटकक निर्देशन श्रीकांत मंडल, कुणाल, प्रकाश झा आदि लोकनि केलाह अछि । हिनकर नाटकक बेसी प्रदर्शन कोलकाता मे भेल अछि ।

                नचिकेता जीक नाटक लगातार दू समानांतर आड़ि पर चलैत अछि । एकटा वो जे भाषा आ संवादक उपरका सतहपर सीधे-सीधे सम्प्रेषणीय बनि जाइत अछि आ दोसर ओ जे एहि उपरका परत केँ बीच सँ लगातार हुलकी मारैत अछि वा अपन उपस्थितिक एहसास करबैत रहैत अछि । ओना त’ ई बात प्राय: सभ नीक नाटककारक लेल कहल जा सकैत अछि आ एहन होइतो छैक । प्राय: नाटकक बारे मे प्रत्यक्ष पाठ आ अप्रत्यक्ष पाठ तथा उप-पाठक चर्चा हम सभ करिते रहैत छी, मुदा नचिकेताक नाटक मे एहन बेर-बेर होइत अछि । एकर कारण छै जे हिनकर नाटक पढ़ब मे जतेक सरल आ सहज लगैत अछि अपन शिल्प मे ओ अंतत: ओतबे जटिल आ उलझल रहैत बुझाइत अछि । एक दिस ओ बेसी नाटकीय अछि त’ दोसर दिस ओतबे एकरस । एक दिस सम्बन्धक ऊष्मा सँ भरल अछि त’ दोसर दिस ओकरा भीतर व्याप्त विकृति केँ सेहो अत्यंत क्रुर आ वीभत्स रूप मे सामने लबैत अछि । एहि पूरा पक्रिया मे नाटक बेसी-सँ-बेसी सांकेतिक होइत जाइत अछि ।

                नचिकेता जीक नाटक मे किछु नाट्य युक्ति त’ सत्ते लाजबाब अछि । ई सभ युक्ति मिलि क’ अलग-अलग नाटक मे एहन–एहन स्थिति आ वातावरणक रचना करैत अछि जाहि कारण नाटक मे गति, मुद्रा, ध्वनि आ संगीतक एकटा कोलाज बनि जाइत अछि । जे बेहद खूबसूरत लगैत छै । यैह कारण अछि जे हिनकर नाटक मे अंतरविरोध दू टा अतिवादी छोर पर स्थित रहैछ जे निर्मम, क्रुर आ भयावह चित्रणसभ किछु नाट्यधर्मिताक भीतर सँ अति सुन्दर भ’ क’ मंच पर अभिव्यक्त होइत अछि । जँ  हिनका नाटक केँ अपन याथार्थ रूप मे प्रस्तुत क’ देल जाय त’ ओहि मे देखबाक लेल किछु नहि बचत । तेँ हिनका नाटक मे सांकेतिकता नाटकक आकर्षणक सब सँ पैघ कारण अछि । जकरा पकड़ब निर्देशक लेल अति आवश्यक होइछ । 

                एतेकक बादो ई प्रश्न ओही ठाम अछि, जे आखिर की कारण छै, जे हिनकर नाटक कोककाता सँ बाहर बेसी खेलल नहि गेल । कियेक त’ ऑखिगर निर्देशकक अभाव मे अंतत: हिनकर नाटक दर्शकक लेल बुझनाइ आ अनुभूत करबाक स्तर पर अत्यंत दुरूह भ’ जाइत अछि । एकर उत्तर एहि सत्य मे नुकाओल अछि, जे नाटकक कथ्य आम आदमीक पीड़ा आ त्रासदी सँ जुड़ल होइछ, मुदा ओ रूप आ शैलीक स्तर पर जाहि रूप मे हमरा सभहक बीच अभिव्यक्त होइत अछि, एहि हिसाबे ओकर पहुँच एकटा सीमित वर्ग मात्र तक रहि जाइत अछि । विकराल प्रश्न ठाढ़ होइछ; की, विचारधारा परक नाटकक यैह परिणति होइछ, जे ओ जन-सामान्य लेल लिखल जयबाक बादो हरदम सम्भ्रांत दर्शक वर्ग द्वारा खेलल आ सराहल जाइत छैक ।  

                जखने कोनो नाटक मे, ओकर रचना मे कथ्य सँ बेसी शिल्प प्रधान होइत अछि त’ ओकर अपील हरदम बहुत सीमित वर्ग तक भ’ क’ रहि जाइत अछि । पश्चिम मे ब्रेष्टक रंगमंच, बंगालक बादल सरकारक रंगमंच, उत्तर–पूर्व मे रतन थियमक रंगमंच, मध्यप्रदेशक हबीब तनवीरक रंगमंच, दक्षिण मे का.ना. पणिक्करजीक रंगमंच, नुक्कड़ नाटक आदि लेल–की यैह सत्य नहि अछि ?

 

                                                                         डॉ. प्रकाश झा

रंगकर्मी एवं शोधार्थी डॉ. प्रकाश झा मैथिली रंगकर्म केँ वैश्विक स्तरपर स्थापित करबाक श्रेय छनि । कतेको राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी मे आलेख पाठ एवं मैथिली आ हिन्दीक महत्वपूर्ण पत्रिका मे नियमित शोधालेख प्रकाशित । पी.एच.डी. एवं नेट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार सँ सीनियर SRF (2016) आ JRF (2004) प्राप्त डॉ. झाक कुल चारि गोट पुस्तक ‘महेन्द्र मलंगियाक सात नाटक (सम्पादित), ‘महेन्द्र मलंगिया : व्यक्तित्व आ कृतित्व (सम्पादित)’ , ‘रज़िया सुल्तान; मैथिली मे (अनूदित; प्रकाशन विभाग, भारत सरकार)’ , ‘ज्योतिरीश्वर कृत धूर्त्तसमागम : प्रस्तुति, प्रक्रिया एवं परिणति (सम्पादित)’ पुस्तक प्रकाशित छनि । 40 सँ बेसी नाटकक निर्देशक डॉ. झा जाहि मे ज्योतिरीश्वरक ‘धूर्त्तसमागम’, विद्यापतिक ‘मणिमञ्जरि’, ‘गोरक्ष-विजय’ आ पं. जीवन झाक ‘सुन्दर संयोग’ शामिल अछि 50 सँ बेसी नाटक मे अभिनय सेहो कयने छथि । 19म भारत रंग महोत्सव (2017) मे हिनक निर्देशित नाटक ‘आब मानि जाउ’ आ 20म भारत रंग महोत्सव (2019) मे निर्देशित नाटक ‘धूर्त्तसमागम’’ चयनित आ मंचित छनि । बिहार सम्मान (2015); कला, संस्कृति एवं भाषा विभाग, दिल्ली सरकार, अरुण सिंहा स्मृति सम्मान (2015); पा.ना.म.; प्रांगण, पटना, बिहार, मिथिला विभूति सम्मान (2014); अ.भा.मि. संघ दिल्ली , युवा रंगनिर्देशक (2013); साहित्य कला परिषद, दिल्ली सरकार , स्वर्ण पदक (अभिनय;1996); ल.ना.मि. विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार आदि सम्मान सँ सम्मानित डॉ. झा सम्प्रति मैलोरंग रेपर्टरी एवं प्रकाशनक संस्थापक निदेशक, सुप्रसिद्ध रंग संस्था ‘संभव, दिल्ली’क अभिनेता आ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्लीक’ नाट्यशोध पत्रिका ‘रंग प्रसंग’क सहायक सम्पादक छथि । हिनका सँ prakashjha.nsd@gmail.com पर संपर्क कयल जा सकैछ ।

*ई आलेख मैथिलीक अख़बार ‘मैथिली पुनर्जागरण प्रकाश’  मे प्रकाशित भेल छल ।