आत्मकथा
१.
नेने मे बियाहलि एकटा नेनाक
चारिम नेना छलहुँ हम
तेसरक मुइला पर
माँगल चाँगल
जीबछ धार मे चू कटबाक कबुला कैल
चारिम नेना हम।
कहाँदन जनमैते देरी
लग्घी नहि भेल हमरा
प्राय: ओहि पुरखा जकाँ
जे रहबैयाक नाम गोत्र देखि
सुटका लैथि लग्घी कैक ठाम
प्राय: बुझा गेल छल
ओही खन हमरा
नहि रहबा जोगरक
अछि ई दुनिया।
२.
जत’ जन्म भेल हमर
ओत’ पहाड़ नहि
धार छलैक कैकटा मुदा
कहियो काल साँझ
आकि भोर मे देखाइत छलैक
एकटा पर्वत ऋँखला
जकर नाम हमरा सब
अंदाज लगबै छलहुँ
दाही छलै चारूकात
सालक साल
लोक अपन बएस
बाढ़ि सँ गनैत छल
छोटी लाइन गाड़ी रहै
टुटल भांगल किछु सड़क रहै
भसकैत कैकटा पुल रहै
आ अथाह धरोहि रहै पड़ौआक
पड़ाइत जाइत भारतीय राष्ट्र राज्यक
कोन कोन मे
बिचित्र छल पड़ौआ सब
जत’ रहै छल
ओत’ रहैत नहिं छल
बुझाइते ने छलैक
कत’ रहैत छल
एहने लोकसब हमर अपन छल
पलिबार छल,
कुटुम छल,
समाँग छल
खगल लोक
बेलोक हरजॉग जकाँ
ग़रीबी सँ उठल
बेरबाद भेल लोक
हमरा सबहक महात्वाकाँक्षा
बनक नागरिक भारतीय राष्ट्र राज्यक
तजक अपन भाषा
तजक अपन भूगोल
समाहित हेबाक
हिन्नू बनि
बनि मुसलमान
भारतीय राज्य राष्ट्र मे
बिसरि गेल रही
हमरा लोकनि
जे हमसब छी ओहिठामक
जत’ साँझ आकि भोर मे
देखाइत छलै
एकटा पर्वत ऋँखला
बूझल नहि छल
जकर नाम हमरा सब केँ
३.
जे भेटल हमरा दुनियाँ
ओत’ जरल रहैत छलै
हाथ नेना सबहक
बनबैत सोहनगर चूड़ी
फ़िरोज़ाबाद मे
जत’ कतरनी चूड़ाक सुवास
तैयारी होइत छल
कैकटा बोनिहारक कतिकहरक कुहर’ सँ
जत’ बनब’ वला घर नगर महानगर मे
गामक मजूर हमर
अपने सुतैत छला फुटपाथ पर
बड्डे बिचित्र छल ई दुनिया
आ दुनिया केँ बूझक विचार
आर विचित्र
पुनर्जन्मक इतिकथा
पाप पुन्यक संतुलन
जत’ पापक प्रतिफल नीक तुरत
आ पुन्यक सिनेमाक अंतिम रील मे
वा सीक्वेल मे
कोनो टा रस्ता नहि छलैक
बदलक एहि दुनिया केँ
केलन्हि प्रयास जान द’ नबजुबती आ नबजुबक
अन्हार मे बौआइत तकैत रस्ता
काकद्वीप सँ पेरू धरि
समयक संग निरंतर
स्पार्टाकस सँ बालचन धरि
बनबक एकटा दुनियाँ
जत’ लोकक मोल मात्र एहि लेल
जे ओ लोक अछि
कनेक दरेग
ममता कनेक
अपन संग रहबैयाक लेल
एक दिन मे नहि बनलैक खाढ़ी
नहि बनलैक एक दिन मे हाकिम हुकुम
कैक पीढ़ी लगतै बनब’ मे
एकटा रह’ जोगरक दुनियाँ
आन’ पड़तै लड़ाइ बाहर सँ घर मे
लोक सँ मन मे।
४.
हमरा समयक राजा
अपना केँ दास कहैत छल
आ हमरा सब जे दास
से राजा कहाइत छलहुँ
आ उघने जाइत छलहुँ
ई फूसि सब टा जनने बूझने
किएक कि सैह हमरा समयक कैदा छलै
आ कैदा केँ चलब’ लेल
सेना छलै पुलिस छलै
डंटा छलै झंडा छलै
ईश्वर छलै धर्म छलै।
५.
जनिका छोड़ि जायब हम
रहब हुनक स्मृति मे
स्मृति मे बेसी नीके गप मन पड़ैत छै
आश्वस्त छी हम
कोनो लोकक हँसबाक भंगिमा मे
कोनो लोकक तानल भृकुटी मे
जे अनने छलहुँ हम भरि जन्म
हम्फ्री बोगार्टक नकल क’
कोनो कबिक पाँती मे
बाँचल रहब बड़ी दिन धरि।
६.
नहि
कहि गेला जेना
फूलबाबू
हमहूँ मानैत छी
जे शरीर कोनो हज़ारीबाग़क
डाकबंगला नहि थीक
यैह शरीर हमर
यैह पैर जे बौआयल
एहि पिरथी पर
ताक’ लेल सुन्दरम
यैह हाथ हमर जे
लेलक आलिंगन मे
हमर पिरितिया केँ
यैह देह हमर
एकर स्मृति एकर विस्मृति
एकर रोमाँच एकर दरद
यैह टा छलै
यैह टा अछि।
७.
जेबाकाल
धन्यवाद हमर ओहि धारसब केँ
जे बहैत रहलीह हमरा भीतर
जोगौने रहलीह आँखि मे दरेग हमर
आर नोर अनका दुख पर
अपन सुख पर
धन्यवाद हमर ओहि खेतिहर
ओहि मजूर केँ
जे देलन्हि एकटा ठेकाना रहक
आ देलन्हि ग्रास हमर क्षुधा लेल
धन्यवाद हमर ओहि स्त्री सबहक
जे घर भ’ क’ रहली हमरा लेल
रहलहुँ जिनका भीतर जिनका संग
पड़ा जेबाक पहाड़ पर इच्छा नेने हम
धन्यवाद हमर ओहि मित्र सब केँ
केलन्हि जे बिपति मे मदति
अलादीनक जिन्न जकाँ
जखन कि कहियो नहि कैल
प्रयास हम हुनका सब केँ
कोनो दियारी मे बन्न क’ क’ राखक।
८.
बिचार आयल कखनहुँ
कखनहुँ कोनो बिम्ब
तामस कथूक कखनहुँ
उछेह सदिखन एकटा
नुकायल रहैत छल कबि हमर
एहि दुनियाँक बजार मे
जत’ बूड़ि कबिक पर्यायवाची छल
करैत छलाह बूड़ित्व ई जँ किसोर वय मे
चेति जाइत छलाह पैघ भेला पर
हम ताजिनगी
बूड़िये रहलहुँ
रहलहुँ उछेह मे
रहलहुँ गुनधुन मे
जतेक उछेह छल हमरा भीतर
ततेक ने लूरि आ ने ततेक उहि
आ जखन कखनहुँ मन पड़ैत छल
नीतिवाक्य- दीर्घसूत्री विनश्यन्ति
होइत छल- आन जेना बाँचिये जेताह
कहियो नहि एहन भेल जे कही
बाह, चाबास,
केहन नीक बस्तु लिखलहुँ अछि
सबदिन धखाइत रहलहुँ
जे लिखलहुँ तकरा ल’
बूझल अछि हमरा
बेस किछु नहि भेल हमरा सँ
की करबै,
एतबेक भेल
एतबेक जोगरक हम
एतबेक धधरा भेल हमर जारनि मे
आ समयो हमर बेस हबा नहि देलक
जैह छी, एतबे।
९.
जेबा काल
आर कोनो बस्तुक इच्छा नहि
जौं की त्यौं ध’ देब’ चाहै छलहुँ चूनरि अपन
अथाह हमर लीलसा पढ़क
आर बेसी आर किछु
मुदा पढनाहर भेटतन्हि पोथी सब केँ
हम नहि त’ आर केओ
लीखक जे छल
कैकटा कबिता पोथी
से त’ मात्र हमहीं क’ सकैत छलहुँ
किछु कैल नहि
जे आर पाक’ दैत छियै
किछु कैल नहि
जे पलखति नहि भेटल
घूर धुँआ सँ
किछु कैल नहि
कारण दुखद होइत छै
साक्षात्कार अपन अलूरिपन सँ
कौखन होइत अछि
धौर कोन चिन्ता
बिन लिखलाहाक
मन पड़ैत अछि
जे लीखल व्यर्थ छल
जे नहि लिखल अनर्थ छल
होइत अछि मोह फेर
जेहने अछि
बिन सीटल
नहि देखनुहुर कोनो
आ ने कालजयी
हमरे अछि तैयो
आ एकरे ल’ क’ हमर जीवन
तैँ भूत भ’ धरबन्हि
कोनो जुआन की जुबती केँ
आ लिखायत हमर पोथी सब
एहिना।
१०.
आर अंत मे
सब सँ नीक लागल हमरा
घ्यूराक तरकारी
अहि पचपनिक जीवन मे
ओकर नीक लागक
कोनो कारण टा नहि
देबय चाहब हम
लागल त’ नीक लागल
घ्यूरा घ्यूरा छल
हम हम छलहुँ
आ पसरल छल बीच मे एकटा
इतिहास आ भूगोल एकटा
हमर नीज अपन स्वादशास्त्रक
आ जीबैत रहलहुँ
हम आस धेने देखक
उज्जर आकि ललौन
दूर सँ देखाइत कॉचनजंघा केँ
बेर बेर
तिल तिल नूतन होइत
नैन हमर कहियो ने भेल तिरपित
बाक़ी आर कतेक कहू
फ़ुटनोटे सँ भरि जायत
पोथी हमर मनक।
अम्फान-प्रसंग
अम्फानक प्रतीक्षा मे
गोदोक प्रतीक्षा सँ
आ कोरोना निंघटबाक प्रतीक्षा सँ
बेसी निश्चित
मुदा भयाओन
सूदिखोरक कारिन्दाक एबा सन
प्रतीक्षा मे लागल छी
अम्फानक।
पहिने आयल तोफान देखि
कहलन्हि सचिन
आइला
फ़ानी परूकाँ
रेखाँकित कएलक
फ़ानी हैब जीवनक
आ एहि बर्ख अम्फान।
माय पुछै छथि
गामो मे एतैक की?
मन पाड़ैत श्रीकान्त वर्माक मगधक
कहि दहक बहिन केँ अपन
कहि दहक भाय केँ
भय सँ,
धियापुता सबहक चिन्ता सँ
धड़कै छन्हि छाती मायक।
भाइ चिन्तित पुछै छथि
उड़िया त’ ने जायत
पानीक टंकी छत पर जाकल
नहि द’ पबैत अछि
कोनो सांत्वना
मन हमर थाकल ।
एहना स्थिति मे करै छी
जैह टा हम क’ सकै छी
लाड़ै छी अम्फान शब्द केँ
अपन जीह पर
अपन मन मे
एक मन कहैत अछि
दुख पैरे चलैत मजूरक
दुख खगल लोकक
नोर
खुनियाँ सबहक
मारल लोकक
बनि बिहाड़ि
बनि तोफान
हहरि हहरि क’ अछि
आबि रहल।
अम्फान
सम्पान
कोना एहि अकलबेरा मे
पार लगाओत
सम्पान हमर
पटकाइत
भव सागरक छाती पर
अम्फान
सम्फान
खिउ आ पोल पोत वला
सम्फान
जिनकर मनसपुत्र सब
आजिज इतिहासक बोझ सँ
मुक्त होअय चाहैत छथि
इतिहास सँ
पुष्पक विमान पर उड़ान भरैत
आ लैंड कर’ चाहैत छथि
सोझाँ गुप्तकालक डिस्नेलैंड मे
एखन त’ अछि
मारुक प्रतीक्षा
आ स्मृति
नेनपन मे कहियो
खपड़ैलक घर मे बैसल
बिहाड़ि काल
चिकरैत
साहोर साहोर
कोनो बिसरल देवता केँ गोहरबैत।
परलय, थम्हू कने काल
परलय, थम्हू कने काल
चारुकात पसरल महामारी
अम्फान सँ दोमाइत गाछ सब
थम्हू मुदा कने काल।
भरबाक अछि
अपन मन
अपन परान मे
भालसरीक गंध
जकर रहैत छै मात्र गंध
नुकायल रहैत अछि
भालसरीक
छोटबे टटा फूल
मौलाइत
सड़कक अन्हार मे।
देखबाक अछि
राधाचूड़ा आ
कृष्णचूड़ाक
खसल फूल सब केँ
एक होइत
कारी डामर पर
उत्पत्ति करैत
एकटा पुरातन
मुदा तिल तिल नूतन
रंगक
रंग रभसक ।
देखबाक अछि
अमतलासक फूलक
नाम नाम झुमका पहिरने
अमलतासक गाछ केँ
डोलैत हल्लुके बसात मे
जेना सुनैत
महीन बेस महीन
मद्धिम बेस मद्धिम
कोनो धुनि केँ।
कने काल त’
थम्हू, परलय।
अम्फानक बाद-१
नांगट
उघाड़
घर सब
गाछ खसलाक बाद
देखाइत अछि
दूरे सँ
दुर्भाग्यक पिहानी
देखाइत छै
दूरे सँ।
अम्फानक बाद -२
पहिने
बाट बाट रहै
गाछ गाछ रहै
गाछ अपन ठाम
बाट अपन ठाम
सैह कैदा रहै
सनातनी
सैह भ’ आयल रहै।
एखन
बाट
पाटल अछि गाछ सँ
गाछ खसल अछि
बाट पर
टूटल सब कैदा
सब टा नेम
आ एक भेल
गाछ आ बाट
आवेगक परिणति मे।
अम्फानक बाद-३
सबिकाहा बाट रहै
बाट पर लोक चलय
गाछ ओकरा छाया दैक
जखन ओंघडायल
गाछ बाट पर
बिला गेलैक बाट
आब जँ
जेबाक अछि आगू
बाट बनब’ पड़त
अपनहि
खाहे एकपेड़िये
किएक नहि
बाट बनब’ पड़त
अपनहि।
अम्फानक बाद-४
छत्ता सँ छूटल
घोरन एकटा
चुभुटि धरलक
हमर टाँग केँ
मन पड़ल
नेनपन मे
कटने रहय
एकबेर लहरचुट्टा
आ ताकि ताकि
मारने रही
लहरचुट्टा सब केँ
मुंगरी सँ
मन पड़ल
खिस्सा
बदमाश नेनासब केँ
घोरनक छत्ता बान्हक
मुदा एखन
हम कनेक काल
बूल’ देलियै
घोरन केँ
हमर त’ घर अछि
बाँचल
ओ छल हेरायल
अपन छत्ता सँ
फेकायल अपन गाछ सँ
बुद्ध रहितहुँ तपस्या मे
त’ बनब’ दितियै
छत्ता
अपन गात पर
नहि छी बुद्ध
हम कहाँ ओतेक शुद्ध
नहुएँ सँ
छोड़ेलहुँ
घोरन केँ अपन चाम सँ
जेना पिरितियाक
आलिंगन केँ छोड़बैत छथि
चारि बजे भोरे पिरितिया
नहुएँ सँ
कहलियै घोरन केँ
गाछ रहितहुँ
त’ काजो अबितियह
मुदा से त’ नहि छी
ताक’ पड़त’ अपन गाछ
तोरे
बनब’ पड़त’ अपन छत्ता
फेर तोरे
जा बाऊ जा
शुभास्ते पन्थान:।
कहि नहि पहुँचत
अपन गाछ धरि घोरन
आकि साबुत कोनो गाछ
ठाढ़ कोनो गाछ धरि
भेटतै ओकरा पातक झोंझ
लगायत फेर कोनो छत्ता
की पिचायत अपन यात्रा मे
एहि अकलबेरा मे
जखन सबटा यात्रा
बनल जाइत अछि महायात्रा।
अम्फानक बाद-५
हमरा सोझाँ मे मात्र अछि
सिसोहल ठाढ़ि
उखड़ल गाछ
कतहुँ सोनितक एकोटा
बुन्न नहि।
कल्पना करब
जे कोना दोमने हेतै
बिहाड़ि एहि गाछ केँ
उमेठने हेतै ओकर ठाढ़ि केँ
आ घीच केँ तोड़ि देने हेतैक
मन पाड़ैत अछि
हमरा बी ग्रेडक
हॉरर सिनेमाक
वीभत्स दृश्यक।
अम्फानक बाद-६
हे गाछ
हे बिरीछ
हे चिड़ै
हे चुनमुन्नी
रहलहुँ एतेक बर्ख
एक संग
केस हमर पतराइत
निपत्ता भ’ गेल
बेटी हमर नेना सँ
युवती भ’ गेल
देस हमर भसियाइत
हाथे हाथे गेल
रहल संग अहाँ सबहक
छाहरि रहल
कहियो काल
खसल एकटा आम
आ कि जमरूल सेहो
अहाँक गेलाक बाद
रहत दू मिनटक मौन
सर्वदा उपस्थित
ताजिनगी
हमर मन
हमर परान मे।
अम्फानक बाद-७
दोमाइत त’ सब अछि
बिहाड़ि एलाक बाद
खसैत
मुदा सब नहि
कहाँदन
सुखायल गाछ
लिबैत अछि बेसी
बिहाड़ि मे
हवाक झोंक मे
कखनहुँ एहि दिस
ओहि दिस कखनहुँ
आ बाँचि जाइत अछि
जड़िगर गाछ
गाछ डरिगर
गाछ पतगर
रोकैत अछि
बिहाड़ि केँ अपन सक भरि
आ फेर खसि पड़ैत अछि
अरड़ा क’।
अम्फानक बाद-८
अबैत अछि फेर चिड़ै
पीयर चिड़ै
नील चिड़ै
उड़ैत ठाढि सँ ठाढि धरि
उड़ैत अकास मे
गबैत अपन चिड़ैबोली मे
गीत
कहैत अपन चिड़ैबौली मे
समाद
ताकि लैत अछि
नब गाछ
जिबैत अछि
चिड़ै तैयो।
अम्फानक बाद बहुभाषी हम
पुछलक केओ
कोना छी?
एकटा भाषा अछि
जाहि मे गोंगिया गोंगिया क’
सिखलहुँ हम कहब जे
हमरा डर होइत अछि
अन्हार सँ
हमर बिसबिसाइत अछि
सबसबाइत अछि देह
गरसित अछि
कैकटा बियाधि सँ देह
खराप अछि मन
कैकखन फूटितो नहि अछि
सुपट बोल
मात्र एकटा ध्वनि
जे बूझि जाइत छलीह
हमर माय
बूझि जाइत छलाह
हमर परिजन पुरजन।
ओहि भाषा मे मन होइत अछि
चिचियाइ
दैब हौ दैब
नहि देखलहुँ कहियो
हुहुआयब हवाक एहन कहियो
होअय जे उड़ा ल’ जायत
हमर बस्तु हमर जात
हमर मन हमर गात
आदंके मात्र कहि होइत अछि
माय गै माय
बाप रौ बाप।
पुछलक केओ
कैसे हैं?
एकटा भाषा छल
पोथीक
एकटा भाषा छल
परीक्षाक
जत’ सबदिन हम अपन
अस्तित्वक
करैत रहलहुँ
सप्रसंग व्याख्या
कहियो हम नहि छलहुँ ओत’
नीज हम
एकटा सीखल भाषाक
पढल तोता छलहुँ हम।
कहलियै
टूटे कुछ शीसे
गिरे बहुत पेड़
घुस आया पानी घर मे
बचे किसी तरह।
पुछलक केओ
हाउ आर यू?
एकटा भाषा अछि
हमर ओहदाक
बेसी कायदाक
ओत’ लोक केँ मात्र
काज सँ रहैत छै काज
नियम छै क़ानून छै
बेसी बाजब नहि
मानल जाइत नीक छै।
कहलियै
आ एम फाइन
थैंक यू
थैक यू वेरी मच
फॉर योर कन्सर्न ।
खेतिहर प्रसंग
१.
ई अजगुत गप छै
जे हमरा सब केँ
ई गप अजगुत
किएक ने लगैत अछि
जे नेताक संतान
होम’ चाहैत अछि नेता
न्यायाधीशक संतान
होम’ चाहैत अछि न्यायाधीश
उद्योगपतिक संतान
होम’ चाहैत अछि उद्योगपति
मुदा किएक ने
होम’ चाहैत अछि
खेतिहरक संतान खेतिहर?
२.
हमरा नेनपन मे
दुपहरि मे दलान पर
होइ पैघ पैघ चर्चा
नगर बनाम गाम
गोहरबैत एकटा भारतमाता केँ
जे छलीह ग्रामवासिनी
कतेक कम दाम होइत छलै
खेतिहरक बस्तुक
खेतिहरक पसेना
खेतिहरक सोनितक
कतेक बेसी दाम होइत छलै
नगर मे बनाओल
नगर सँ अबैत बस्तुक
आब बन्न भ’
गेल अछि ई चर्चा
हमर गामक
लोक आब बसैत छथि
किराड़ी गाम
खिड़की गाम
हॉजखास गाम
जत’ खेती नहि होइत छै
जे बाँचल छथि गाम मे
हुनका पलखति नहि चर्चाक
३.
नेनपन मे मन पाड़न्हि लोक
शास्त्रीजीक नारा
जय जवान जय किसान
जवानक नाम पर
फुसियाही नोर
बहौनिहार बड़ लोक
एखनहुँ
किसानक नाम पर
कननिहार केओ नहि
आब
४.
कने पैघ भेलहुँ
त’ बजैत छला योगेन्द्र अलग
बजैत छला डाक्टर कुरियन
वैह गप
टर्म्स आफ ट्रेडक नामे
अनुसंधान होइ
लिखय लोक पर्चा
खेती पर
खेतिहर पर
आब कृषि महाविद्यालय सब केँ
नहि भेटैत छै छात्र
५.
लोक तैयो चिन्हैत छल
जे खेतिहर उपजबैत छथि
खेबाक बस्तु
मिसिया भरि कृतज्ञता
बाँचल रहैत छलैक
अपन पुरखाक लेल
अपन भैयारी लेल
आब नेना भुटका बुझैत अछि
जे रोटी आ भात
सुपर मार्केट मे बनैत अछि।
६.
सबटा शब्द खेतीक
ओरायल जाइत छै
जीवन सँ
धान नहि ओसाहैत छथि
लोक आब
मात्र ओसाहैत अछि
राजाक फूसि सँ
काजक गप आब
चौकियाइत नहि अछि
खेत आब
मात्र चौकियाइत अछि
लोकक प्रतिरोध आब
राजसत्ताक द्वारा
छोपैत नहि अछि
धान आब लोक
मात्र छोपैत अछि
अपन आशा
आकाँक्षा अपन
बड़द निपत्ता भेल
छोड़ि गेल गरदामी
खेतिहरक गरदनि मे
पहिरओलक राजा
जाबी खेतिहरक मुँह मे
नाथ’ चाहैत अछि राजा
खेतिहर केँ नाथ सँ।
७.
धरोहि खेतिहरक
कूच करैत अछि
रजधानी दिस
जेना केलन्हि कूच
प्रवासी मजूर
अपन अपन गाम दिस
लॉकडाउन मे
शेष नाग
ससरैत अछि
दिल्ली दिसका सड़क सब पर
जगताह की देब
देबउठानक बाद?
८.
खेतिहरक बेटा
पहिरने राजाक वरदी
रोकैत अछि
खेतिहरक प्रयाण केँ
देखैत रहैत अछि
ममता सँ
खेतिहरक आँखि
अपन भैयारी
अपन नेना केँ
९.
जनक
जे धरैत छला हर
अन्नपूर्णा
जे भरैत छलीह पेट
अन्नदाता
जे जुरौने रहैत छलाह हिय
हिंसक देवताक
धार्मिक राज मे
कोनो मोजर नहि
एहि देवी
एहि देवताक
१०.
धानक खेतिहर
खेतिहर गहूमक
दालिक खेतिहर
खेतिहर अल्लूक
घ्यूराक खेतिहर
खेतिहर मेरचाइक
बढ़ल चल अबैत छथि
रजधानी दिस
एलाह जेना मेरठ सँ
एलाह जेना मोरादाबाद सँ
एलाह जेना नखलौ सँ
ग़दर मे सिपाही सब।
११.
ऑरवेल केँ भेँट भेलन्हि
अम्बेदकर संग
मिलि लिखलाह दुनू
नब संविधान
हम, भारतक लोक
सब लोक अभागल अछि
किछु लोक अनका सँ
बेसी अभागल छथि
जेना खेतिहर
खेत मजूर जेना
केओ आबि सकैत अछि
जा सकैत अछि कतहुँ
मात्र खेतिहर सब
रजधानी जेबा सँ
बारल छथि।
१२.
पानि एखनहुँ नहि
पहुँचैत अछि
खेत धरि हरदम
हेमाल सर्द जाड़ मे
भिजबैत अछि
ठंढ़ा सरकारी पानिक धार
खेतिहरक गात केँ।
१३.
खुनलक सड़क राजा
जेना खुनबैत छल
खाधि पहिने
किलाक चारू कात
छोड़लक प्रहरी राजा
जेना छोड़ैत छल
मगरमच्छ पहिने
ओहि खाधि मे
फनला ओलम्पिकक
फान’ वला सन
चारि हाथ तीन बीत
दू ठूठ पैघ खाधि
खेतिहर सब
पार केलन्हि
धरोहि प्रहरी सबहक।
१४.
पचतौ नहि खेलहा
रे मध्यवित्त
रे नगरजीवी
तोहर भात
भ’ जेतहु लाल
खेतिहरक सोनित सँ
तोहर दालि मे
हेतहु आँकड़
खेतिहरक हाड़क
फड़तहु पैघ पैघ
सूड़ा
पील
फड़तहु पैघ पैघ
तोहर सुपरमारकेटक
खाना सब मे
रह तोँ सूतल
कर तोँ गुनगाण राजाक
कर तोँ गुणगान राजक।
१५.
कतबो करब घमर्थन
गप बेस सोझ छै
साफ़ छै बेस
धनपति केँ चाहियै
सस्त अन्न
अपन दास सबहक
खोरिसक लेल
राजा
दास धनपतिक
धनपतिक बन्धु
दास बनबैत अछि
ताहि लेल
खेतिहर केँ ।
१६.
विदर्भ नहि छी रस्ता
नहि छी रस्ता लटकब
खेतक आड़ि पर कोनो
गाछ सँ
चलैत चलि जाउ
हे अन्नदाता
हे अन्नपूर्णा
मन पाड़ैत फैजक
हम देखेंगे
चलैत चलि जाउ
तख्त हिलाब’ लेल
ताज खसाब’ लेल।
विद्यानंद झा चारि दशक सँ मैथिली मे कविता लिखैत छथि आ मात्र मैथिलीए टा मे। दू टा संग्रह प्रकाशित छन्हि। पराती जकाँ आ बिछड़ल कोनो पिरीत जकाँ। किछु कथा आ किछु आलोचनात्मक लेख सेहो प्रकाशित छन्हि। मैथिली सँ अंग्रेज़ी मे किछु अनुवाद सेहो कएने छथि आ अन्यान्य भाषा सब सँ मैथिली मे अनुवाद सेहो। भारतीय भाषा परिषदक पुरस्कार, यात्री पुरस्कार आ कीर्तीनारायण मिश्र सम्मान कविता लेल आ कथा पुरस्कार अनुवादक लेल भेटल छन्हि। जीवन आ ओकर विविध आयामक पिरितिया कवि छथि विद्यानंद। हिनका सँ https://www.facebook.com/vidyanandjha पर सम्पर्क कयल जा सकैछ।